
त्वरी पाद पंकजम्, नमामि देवी नर्मदे अर्थात जल रूपी चरण कमल को मेरा नमन माँ नर्मदा। आद्यगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदाष्टक में नर्मदा का गुणगान किया गया है और बताया गया है कि माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य जाति भवसागर से तर जाती है। अमरकंटक जाने के लिए कटनी से हमारी यात्रा (मैं और मेरा परिवार) की शुरुआत सड़क के रास्ते शुरू हुई। कटनी से अमरकंटक के बीच की दूरी लगभग 250 किमी का मार्ग अत्यंत मनमोहक हरियाली से युक्त है। मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील में समुद्र तल से लगभग 3600 फीट की ऊँचाई पर स्थित है अमरकंटक। कटनी शहर से जैसे हम पूर्व दिशा की ओर आगे बढ़े प्रकृति ने हमें अपने आगोश में लेने शुरू कर दिया कही आम के बगीचे, कही सागौन का जंगल, कही पलाश के पेड़, कही त हिंदू के नारंगी फूलों से लदा जंगल देखने दुर्लभ नहीं है। सुबह के अंधेरे को चीरती हुई सूरज की रोशनी क्षितिज तक पहुंच चुका था और हमारा काफ़िला बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के जंगल को पीछे छोड़ते हुए हम उमरिया पहुंच गए।
उमरिया तक पहुंचने में हमारा साथ बांधवगढ़ की 32 पहाड़ियों ने दिया और साथ -साथ नीलगाय और लंगूरों ने भी। उमरिया से आगे बढ़ने पर पाली बिरसिंहपुर शहर पहुंची। इस शहर का अपना आप में महत्व है जिसमें 10 वीं शताब्दी की विरासनी देवी का मंदिर है। हमने भी इस मंदिर के दर्शन किए और अमरकंटक के लिए कूच कर गए। मैंने पहले भी कई बार घने वन देखे हैं पर महसूस किया है कि पहले ऐसा किया जा रहा था, घने भी इतनी की सूर्य की किरण भी छनकर धरती पर पड़ रही थी। हम आगे चले एक के बाद एक शहर के पीछे छूटते गये लेकिन जंगल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा और अब शिरीष के जंगल ने साथ कैराना शुरू किया जिसके सफेद फूलों ने वातावरण को और भी सुंदर बना दिया था। चलते - चलते हम अनूपपुर पहुँच गए और बस हमारा स्वप्न नजदीक आ गया। अनूपपुर से अमरकंटक का मार्ग धरती पर स्वर्ग के समान है जहां ऐसी प्रतीत होती है कि प्रकृति देवी स्वयं निवास करती है। मैकल के ऊँचे - ऊँचे पहाडों की मोड़दार रास्ते को पार करते हुए आखिरकार हम अमरकंटक की सीमा में प्रवेश कर गये।

अमरकंटक के बारे में सुना गया था कि वास्तव में उसे कई गुना सुंदर, स्वच्छ, हरित, मनमोहक है। अमरकंटक के बारे में महाकवि कालिदास ने आम्रकूट का उल्लेख किया है ।अमरकांतक का नाम भगवान शिव के कारण पड़ा क्योंकि जनश्रुति है कि भगवान शिव के कण्ठ से माँ नर्मदा प्रवाहित होती है तो अमरकंट के नाम से इसका नाम अमरकंटक हो गया है। वैसे अमरकंटक मैकल पर्वत के सर्वोच्च योग का नाम जहाँ से लेकर विभिन्न नदियाँ प्रवाहमान होते हैं। अमरकंटक अत्यंत प्राचीन शहर जिसका उल्लेख महाभारत काल से लेकर पुराणों में मिलता है। उपलब्ध साक्ष्यों में सर्वप्रथम यहाँ चेदी राजवंश के प्रमाण मिलते हैं। 10 वीं से 11 वीं शताब्दी में कल्चुरियों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने अमरकंटक के मंदिर को सजाने के लिए सँवारने योगदान दिया है। कल्चुरि राजाओं के बाद 18 वीं शताब्दी में बघेल वंश का उल्लेख मिलता है जिसने मंदिरों आदि का जीर्णोध्दार करवाया है।

अमरकंटक की सीमा में प्रवेश करने के बाद हमारा पहला पड़ाव ” कोटि तीर्थ ” था अर्थात नर्मदा उद्गम कुण्ड एवं नर्मदा मंदिर । अमरकंटक का कोटि तीर्थ के नाम से वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है जिसका अर्थ है कि करोड़ो तीर्थो के बराबर एक तीर्थ । कोटितीर्थ में दो कुंड बने है जिसका निर्माण रेवा नायक नामक व्यक्ति ने करवाया था जिसका बाद में नागपुर के भोसले ने जीर्णोध्दार कराया । नर्मदा नदी इसी कुंड से निकलती है । जिस स्थान से नर्मदा नदी का उद्गम होता है वहाँ एक नर्मदा मंदिर का निर्माण किया गया जिसके अंदर शिवलिंग स्थापित है और इस शिवलिंग को नर्मदेश्वर महादेव कहते है । नर्मदा का एक और नाम है शांकरी क्योंकि नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है । इस कुंड के आसपास कुल मिलाकर 24 मंदिर है जिसमें विभिन्न देवी देवताओं की प्राचीन प्रतिमायें स्थापित की गई है । इन मंदिरों एवं कुण्ड के मुख्य द्वार का निर्माण बघेल वंश के शासक गुलाबसिंह बघेल ने कराया था । इस कुण्ड के समीप ही एक और कुण्ड है जहाँ व्यक्ति स्नान, ध्यान, अर्घ्य आदि क्रिया करते है । नर्मदा नदी भारत की पाँचवी और मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी नदी है । नर्मदा नदी को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है जो मध्यप्रदेश का लालन पालन करती है ।
नर्मदा नदी को रेवा के नाम से भी जाना जाता है जनश्रुति के अनुसार पुरातन समय में रेवा नायक माँ नर्मदा के पिता थे जिन्होंने नर्मदा कुंड का निर्माण करवाया था । मैकलसुता के नाम से जानी जाती है क्योंकि नर्मदा नदी का उद्गम मैकल पर्वतमाला से हुआ है । नर्मदा नदी भारत की ग्यारह सर्वाधिक पवित्र नदियों में से एक है । वास्तव में सतपुड़ा, मैकल और विन्ध्य पर्वत के मिलन स्थल पर स्थित अमरकंटक का कोटितीर्थ आत्मविभोर करने वाला है ।
नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है कल्चुरि कालीन मंदिरों का समूह । इन मंदिरों का निर्माण 10 -11 वीं शताब्दी में कल्चुरि राजाओं ने करवाया था जिनमें पातालेश्वर महादेव, शिव, विष्णु, जोहिला ,कर्ण मंदिर और पंचमठ है । पातालेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना आद्यगुरु शंकराचार्य जी ने की थी । यह शिवलिंग मुख्य सतह से दस फीट नीचे स्थित है जहां श्रावण मास के एक सोमवार को नर्मदा नदी का पानी पहुँचता है । इन मंदिरों का नजारा अत्यंत आश्चर्यजनक है जहाँ पत्थरों पर कलात्मक कारीगरी अद्वितीय है । मंदिरों के समूह परिसर में एक कुंड है जिसका नाम सूर्य कुंड है । इन्हीं मंदिरों के समीप स्थित है शंकराचार्य आश्रम ।

कोटितीर्थ से लगभग तीन किमी दूर स्थित है “सोनमुडा ” या “सोनमुंग ” । यह स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है । यही से यह नदी पतली धारा के रुप में आगे बढ़ती है । इस जगह का दृश्य मानों ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रकृति सजीव हो गई हो । सोनमुडा से एक और नदी निकलती है जिसका नाम है ” भद्र ” । सोन और भद्र मिलकर सोनभद्र बनाती है । सोन नदी का पानी पीले रंग का होता है कहा जाता है कि इसके पानी में सोने के कण मिले हुए होते हैं । इसी स्थान पर हमने लंगूरों को चने खिलाये ।

सोनमुंग से एक किमी आगे स्थित है माई की बगिया । कहा जाता है कि यह स्थल माँ नर्मदा की क्रीडा स्थली है । माँ नर्मदा अपनी सहेली गुलबकावली के साथ क्रीडा करती हैं । इस स्थान को गुलबकावली का जन्मस्थान कहा जाता है जिसका अर्क किसी भी प्रकार के नेत्र रोग को लिए रामबाण औषधि के समान है । माई की बगिया में माँ का मंदिर है । गुलबकावली के अतिरिक्त केला, आम, सागौन के पेड़ पौधे हैं ।

हम पश्चिम दिशा में आगे बढ़े और कोटितीर्थ से 6 किमी दूर घने जंगल से होते हुए नर्मदा नदी जलप्रपात का निर्माण करती है और 100 फीट की ऊँचाई से पानी गिरता है। इस जलप्रपात का नाम कपिलिद है। कपिलदी के आसपास का क्षेत्र मनोवम है लगता है इसी प्रकृति में रच बस जाओ।
कपिलदी से लगभग एक किमी दूर दुर्गम रास्ते पर चलते हुए नर्मदा नदी एक और जलप्रपात का निर्माण करती है जहां पानी का रंग सफेद रहता है, इसलिए इस जलप्रपात का नाम दुस्साहिद जलप्रपात है।

कोटितीर्थ से उत्तर की ओर की 8 किमी की दूरी पर जलेश्वर धाम है, यह स्थान जोहिला नदी का उद्गम स्थल है।) यह स्थान एक शिवलिंग स्थापित है जिसे जलेश्वर महादेव कहते हैं। इस जगह का दृश्य बेहद रोचक है।
इन सभी स्थानों के अलावा यहाँ और भी स्थान है जो इस प्रकार है
- कबीर चौरा या चबूतरा - यहाँ कबीर साहब ने कुछ समय व्यतीत कर ध्यान किया था। यह स्थान कोटितीर्थ से 5 किमी पश्चिम दिशा में जबलपुर रोड पर स्थित है।
- भृगु कमण्डल - यह स्थान कोटितीर्थ से 3. किमी दूर दुर्गम पहाड़ियों के बीच स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहां भृगु ऋषि ने कठोर तप किया था।
- श्री यंत्र मंदिर - कोटितीर्थ से एक किमी दूर। दुनिया का एकमात्र श्री यंत्र मंदिर जो पूर्णतः माँ लक्ष्मी को समर्पित है।
- आदिनाथ मंदिर - जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर। श्री ऋषभदेव जी का मंदिर है जो कोटित्ति से केवल 5 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राजस्थानी पत्थरों से किया गया है जिसमें भगवान आदिनाथ की 24 टन वजनी पीतल एवम कांसे से निर्मित मूर्ति स्थापित की गई है।
- दुर्गा धारा – यह स्थान अत्यंत दुर्गम पहाड़ियों. के बीच स्थित है । इस स्थान की यह विशेषता है कि यहां आटे की लोई के आकार के पत्थर मिलते है तथा यहाँ एक जलप्रपात भी है जो कि स्थान को और भी ज्यादा रमणीय बना देता है ।
अमरकंटक को जमदग्नि और भृगु ऋषि की तपोस्थली भी कहते है । अमरकंटक औषधि केन्द्र के रूप में भी विख्यात है यहां हर्रा, बहेरा, आंवला, बबूल, नीलगिरि, नीम, गुलबकावली, आम्बाहल्दी, कहुआ, सेमल, बीमर आदि के पेड़ सुगमता से मिल जाते है । अमरकंटक को भारत के 18 बायों रिजर्व में जगह मिली है जिसका नाम “अचानकमार ” है ।
ऐसे स्वर्ग तुल्य स्थान से जाने का तो मन नहीं करता परंतु अपने धाम तो सबको जाना ही होता है तो हम भी निकल पड़े अपने घर की ओर । अमरकंटक ने मेरे मन पर विजय पा ली जिसकी स्मृति अमिट है । मैं कहूँगा अमरकंटक जरुर घूमने जाये क्योंकि “एमपी अजब है एमपी गजब है ” ।
कैसे पहुँचे :-
सड़क – अनूपपुर जिले से नियमित बस सेवा. उपलब्ध है तथा टैक्सी आदि से भी पहुँच सकते है । मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग जबलपुर एवं कटनी से टैक्सी सेवा भी उपलब्ध कराता है । अमरकंटक बिलासपुर और पेंड्रा रोड़ जिले से भी जुड़ा हुआ है ।
रेल – अमरकंटक से सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन. पेंड्रा है तथा दूसरा सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन अनूपपुर है जहां से देश के विभिन्न भागों में पहुंचा जा सकता है ।
हवाई अड्डा – अमरकंटक से सबसे नजदीकी हवाई. अड्डा जबलपुर है जो लगभग 260 किमी दूर है जहां से दिल्ली, मुंबई, भोपाल, इंदौर के लिए विमान सेवा उपलब्ध है ।
निकटतम स्थान: -
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, विराटेश्वर मंदिर, बाणसागर बाँध, कंकाली देवी का मंदिर, विरासनी देवी मंदिर (पाली बिरसिंहपुर) आदि।
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