धुवाँधारचा जलप्रपात
थोड्याच वेळात समोर दिसतो तो फेसाळत खाली कोसळणारा जलप्रपात . पाहून अचंबित व्हायला होत. नाव अगदी सार्थ करणारा धुवाँधार. कोसळत असते ती पांढरीशुभ्र जलधारा. पाण्यावर जणू काही धुराचे लोट. खाली खळाळणारं पाणी. आल्हाददायक अस वातावरण. धुवाँधार अक्षरशः डोळ्यांचे पारणे फेडतो. हे सगळ पाहून धबधब्यात न भिजताही मन ओल चिम्ब होउन जात. पावलं निघायच नावच घेत नाहीत. आता वेळ होती ती नर्मदेच्या पात्रातून संगमरवरी शिळांच्या सानिध्यात नौका सफरीची. नर्मदेचं शांत पाणी. दोन्ही बाजूने संगमरवरी शिळा. अतिशय सुंदर विलोभनीय. त्यात नावाड्याचं रसाळ काव्यमय वर्णन भर टाकतं. तो अनेक पुराणातले, सिनेमांच चित्रीकरण झाल्याचे संदर्भ देतो. या शिला आपल्याला वेगवेगळ्या आकारांत ब्रम्हा विष्णु,महेश अशा अनेकविध आकारांत दिसतात. फ़क्त गरज सौंदर्यदृष्टिची. त्याच ते एक वाक्य आठवत "समझे तो आर्ट नहीं तो मॉडर्न आर्ट". जवळपास तासभर केलेली ही सफर केवळ अविस्मरणीय अशी होती.
नर्मदेतील संगमरवरी शिळांचं मनोहारी दृश्य कितीही पाहीलं तरी मन भरतचं नाही.
मध्यप्रदेशात अनेक जंगले आहेत. त्यातलच एक मधाई म्हणजेच सातपुडा नॅशनल पार्क. १५०० चौ .किमी क्षेत्रफळ असलेल हे जंगल. सातपुड्याच्या रांगांनी वेढलेलं. वाघांसाठी राखीव असलेल जंगल. देनवा नदीच्या काठावर एका वेगळ्या तिन्हीसांजेचा अनुभव घेऊ शकतो. विस्तीर्ण असा देनवाचा जलाशय डोंगररांगानी वेढलेला. मावळत्या दिनकराची डोंगरापल्याड जाण्याची लगबग. अनेकविध पक्षांचा मुक्त विहार. या ठिकाणी अनेक दुर्मिळ पक्षांच दर्शन घडत. मधेच एखादी विहार करणारी नौका. वातावरणाचा बदलत जाणारा रंग. पाण्यावरही पसरलेली लाली. अतिशय विहंगम दृश्य. जणू काही सोहळाच असल्यासारखा. या सोहळ्याच नेत्रसुख घेण्यासाठी आसनस्थ व्हाव आणि रंगमच्याकडे पाहत रहावं. ही रमणीय अशी संध्याकाळ पाहून मन रमल नाही तर नवलच. हे सार टिपण्यासाठी कॅमेरा अस्वस्थ होत राहतो. हे सार कॅमेऱ्यात अणि मनाच्या कप्प्यात साठवत होतो. क्षितिजावर डोळे स्थिरावले भास्कराला निरोप देण्यासाठी. वातावरणात थोडासा गारवा. थोड्याच वेळात सूर्य डोंगराआड विसावला. निरोप समारंभ पार पडला. सर्वत्र संधिप्रकाश पडलेला. या संधिप्रकाशात भवतालचा परिसर वेगळाच भासत होता. अशी ही अविस्मरणीय संध्याकाळ.
देनवाच्या तीरावर बसून पाहिलेला सूर्यास्त
पोटापाण्याची सोय करताना
दुसरा दिवस जंगल भ्रमणाचा. मधाई सफरीसाठी बोटीने पलीकडे जावे लागते. मनात उत्सुकता होती. जिप्सी तयार होतीच. या जंगलाच वैशिष्ट्य म्हणजे येथे लांबच लांब रांगा नसतात. जिप्सिच्याही ठराविक फेऱ्या असतात सकाळी ११ व संध्याकाळी ११. एका वाहनात ५-६ माणसं. गाइड अणि चालक अशी जोड़ी होती. गरजेच्या सूचना देत आमची जंगल सफर सुरु झाली. समोरच एका गवताळ कुरणात चितळांची झुंड नजरेस पडली. मनसोक्त बागडताना. गाइड ने माहिती देण्यास सुरुवात केली. येथील गाइड व जिप्सी चालक प्रशिक्षित व कुशल आहेत. झाडे पक्षी प्राणी याविषयी सखोल माहिती आहे. उत्सुकतेपोटी विचारलेली माहिती त्यानी अत्यंत चांगल्या प्रकारे सांगितली. हे जंगल अतिशय घनदाट असे आहे. सूर्य उगवत होता. कवडसे झाडांमधून झिरपत होते. पक्षांचा किलबिलाट बाकी वातावरणात स्तब्धता. एकूणच प्रसन्न अशी जंगलातील सकाळ. तज्ज्ञांच्या मते भारतात मधाई येथे महाकाय गवा रेडे,सांबर आढळतात. या सफ़रीत अनेक प्राणी , पक्षी पाहिले पण व्याघ्र दर्शन काही झाले नाही. तरीही काहीतरी वेगळ अनुभवल्याचा आनंद मात्र ओसंडून वाहत होता. वाघाच्या पलीकडे जंगलात इतर पाहण्यासारख आहेच की. त्यामुळे वाघ म्हणजे सर्व काही हा विचार सफर करताना सोडून सफरीचा आस्वाद घ्यावा. हे सर्व पाहताना वेळ कसा निघुन जातो कळतच नाही. अवर्णनीय अशी सफर. एकदा अनुभवावी अशी.
अपनेही धुनमें
किंगफिशर
जबलपुर भारत के मध्यप्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
तथा राज्य विज्ञान संस्थान है। इसे मध्यप्रदेश की संस्कारधानी भी कहा जाता
है। थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय आयुध निर्माणियों के कारखाने
तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है।
इतिहास
पुराणों
और किंवदंतियों के अनुसार इस शहर का नाम पहले जबालिपुरम् था, क्योंकि इसका
सम्बंध महर्षि जाबालि से जोड़ा जाता है। जिनके बारे में कहा जाता है कि वह
यहीं निवास करते थे।
1781 के बाद ही मराठों के मुख्यालय के रूप में चुने जाने पर इस नगर की
सत्ता बढ़ी, बाद में यह सागर और नर्मदा क्षेत्रों के ब्रिटिश कमीशन का
मुख्यालय बन गया। यहाँ 1864 में नगरपालिका का गठन हुआ था।
एक पहाड़ी पर मदन महल
का किला स्थित है, जो लगभग 1100 ई. में राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया
एक पुराना गोंड किला है जिसका निर्माण सामरिक उद्देश्य से किया गया था.
इसमें आवासीय व्यवस्था नहीं । इसके ठीक पश्चिम में गढ़ है, जो 14वीं
शताब्दी के चार स्वतंत्र गोंड राज्यों का प्रमुख नगर था।
भेड़ाघाट, ग्वारीघाट और जबलपुर से प्राप्त जीवाश्मों से संकेत मिलता है कि
यह प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण युग के मनुष्य का निवास स्थान था। मदन
महल, नगर में स्थित कई ताल और गोंड राजाओं द्वारा बनवाए गए कई मंदिर इस
स्थान की प्राचीन महिमा की जानकारी देते हैं। इस क्षेत्र में कई बौद्ध,
हिन्दू और जैन भग्नावशेष भी हैं। कहते है कि जबलपुर में स्थित ५२ प्राचीन
ताल तलेैयों ने यहाँ की पहचान को बढाया, इनमें से अब कुछ ही तालाब शेष बचे
हैं परन्तु उन प्राचीन ताल तलैयों के नाम अभी तक प्रचलित हैं। जिनमें से
कुछ निम्न हैं;
अधारताल, रानीताल, चेरीताल, हनुमानताल, फूटाताल, मढाताल, हाथीताल, सूपाताल,
देवताल, कोलाताल, बघाताल, ठाकुरताल, गुलौआ ताल, माढोताल, मठाताल, सुआताल,
खम्बताल, गोकलपुर तालाब, शाहीतालाब, महानद्दा तालाब, उखरी तालाब, कदम
तलैया, भानतलैया, श्रीनाथ की तलैया, तिलकभूमि तलैया, बैनीसिंह की तलैया,
तीनतलैया, लोको तलैया, ककरैया तलैया, जूडीतलैया, गंगासागर, संग्रामसागर।
जबलपुर भेड़ाघाट मार्ग पर स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ संस्कृत के कवि राजशेखर से सम्बंधित है ।
प्रसिद्ध स्थल
भेड़ाघाट
हनुमान ताल बड़ा जैन मन्दिर
मदन महल
- रानी दुर्गावती का मदन महल - मदन महल का किला सन् १११६ में राजा मदन शाह द्वारा बनवाया गया था। जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने 'संस्कारधानी का नाम दिया था।
- भेड़ाघाट- भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चौंसठ योगिनी मंदिर इसके समीप ही स्थित है - धुंआधार जलप्रपात, भेड़ाघाट एक आकर्षक पर्यटन स्थल है।
मंदिर
- त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर
- बाजना मठ: बाजना मठ, रेलवे स्टेशन से करीब ८ कि॰मी॰ की दूरी पर मेडीकल कालेज से, तिलवारा घाट रोड पर स्तिथ है, इस मन्दिर में "श्री बाबा बटुक भैरवनाथ जी"* विराजमान हैं। प्रति शनिवार को इस मन्दिर में भक्तों की इतनी भीड होती है कि मन्दिर के अन्दर उनके द्वारा जलाई गयी अगरबत्तीयों से निकले धुएं के कारण कुछ भी दिखायी नहीं देता। कुछ लोग इस मन्दिर को तान्त्रिक मन्दिर मानते हैं।
- गुप्तेश्वर मन्दिर
- पच-मठा
- शनि मंदिर तिलवारा
- बूढी खेरमाई
सम्राट अशोक से लेकर अलबरुनी तक नाप चुके हैं जाबालि ऋषि की तपोभूमि

रीतेश प्यासी, जबलपुर। जबलपुर का इतिहास उतना ही
पुराना है, जितना कि काशी, पाटलीपुत्र, मगध आदि व अन्य ऐतिहासिक नगरों का
है। पौराणिक आधार पर देखें तो भृगु ऋषि की तपोस्थली भेड़ाघाट और
प्रकृतिवादी जाबालि ऋषि का नाम जबलपुर से जुड़ा है। ईसा पूर्व 322 में
चन्द्रगुप्त मौर्य ने जब मगध के राजा नंद का विनाश किया था, तब उनका राज्य
नर्मदा के तट तक फैला था। जबलपुर नगरी कभी गढ़ा गोंडवाना, तो कभी त्रिपुरी
के नाम से विख्यात रही। यहां कई कलचुरि राजा हुए, जिन्होंने हिमालय से लेकर
सागर के तट तक समस्त राज सत्ताओं को त्रिपुरी के अधीन कर दिया था।
इनका था जबलपुर से संबंध, मिलते हैं शिलालेख
ईसा
पूर्व 273 में सम्राट अशोक ने बहोरीबंद के निकट रूपनाथ में अपना 256 वां
पड़ाव डाला था। यहां लगे एक शिलालेख में सम्राट अशोक ने लिखवाया था कि परिम
से नीचे से नीचा व्यक्ति भी ऊंचा स्थान पा सकता है। ईसा पूर्व 94 में जब
मौर्य वंश का अवसान हुआ, तब उनसे जो जनपद अलग हुए उनमें त्रिपुरी का भी
उल्लेख है।
त्रिपुरी में कलचुरिवंश ने शासन की शुरूआत सन् 249 से
की। कलचुरिवंश अपने को सहस्त्रार्जुन का वंशज बताता है, जिन्होंने लंकापति
रावण को बांधकर रखा था। कलचुरियों की राजधानी भेड़ाघाट रोड स्थित तेवर रही।
इनका शासन करीब एक हजार साल तक चला। सन् 875 में कोकल्यदेव राजा हुए।
कलचुरि
काल में राजा लक्ष्मणराज का शासन 950 में रहा, जिन्होंने अपने राज्य की
सीमाओं का विस्तार पूर्व से लेकर पश्चिम के समुद्र तट तक किया। सन् 1019
में गांगेयदेव ने राज्य की सीमाओं को बढ़ाते हुए दक्षिण में कर्नाटक और
उत्तर में समूचे उत्तर भारत तक बढ़ाया। गांगेयदेव की वीरता नेपाल जा तक
पहुंची थी। 1030 में जब अरबी विद्वान अलबरूनी आया, तब उसने गांगेयदेव की
वीरता का बखान अपनी पुस्तक में किया था।
1041 में गांगेयदेव का लड़का
कर्णदेव गद्दी पर बैठा, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के तीन हिस्सों तक अपने
राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। कर्णदेव ने दक्षिण के चोल, पांड्य,
मालावार के मुरलो, कोयम्बटूर के कुंग, कांगड़े के कीर, पंजाब के हूण, मालवा
के भोज जैसे अनेक राजाओं को त्रिपुरी की सत्ता के अधीन किया।
आज भी मौजूद हैं इस वंश की निशानियां
कलचुरि
काल में शिल्पकला को विशेष महत्व दिया गया। तेवर, हथियागढ़, भेड़ाघाट में
चौसठयोगिनी मंदिर एवं वरेश्वर शिव की प्रतिमा, अमरकंटक का केशवनारायण
मंदिर, गोपालपुर के मंदिर, कटनी बिलहरी, रूपनाथ, कारीतलाई, नोहटा, काशी का
कर्णमेरू मंदिर जैसे स्थानों पर जितने भी प्राचीन मंदिर व मूर्तियां हैं,
वे सभी कलचुरिकाल की देन हैं।देश के कई संग्रहालयों में आज कलचुरिकालीन
शिल्पकला धरोहर के रूप में रखी है।
संगमरमरी जबलपुर की सैर
मध्यप्रदेश की जधानी भोपाल से 330 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्राचीन शहर जबलपुर। रामायण एवं महाभारत की कथाएँ इस शहर से जु़ड़ी हुई हैं। यह शहर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। जबलपुर का भौगोलिक क्षेत्र पथरीली, बंजर जमीन और पहाड़ों से आच्छादित है। जबलपुर में आपको बेशुमार संगमरमर की चट्टानें देखने को मिलेंगी।
इनके बीच से बहती हुई नर्मदा चाँदी की लकीर जैसी दिखाई देती है। जबलपुर का खास आकर्षण यहाँ का भेड़ाघाट और
धुआँधार जलप्रपात है। यहां नर्मदा संगमरमरी चट्टानों के बीच से बहुत
संकरे रास्ते से बहती है। इसके बाद एक बहुत गहरे स्थान में पानी गिरने से
पानी की जगह धुआं ही धुआं दिखाई देता है। गर्मियों में इस प्रपात के पास
ख़ड़े होने पर गर्मी से काफी राहत मिलती है।
संगराम सागर और बजाना मठ
सन्
1480-1540 में राजा संगराम शाह ने इन इमारतों का निर्माण किया था। कहते
हैं कि यहाँ तिलवाराघाट पर महात्मा गाँधी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थीं।
1939 में कांग्रेस का सम्मेलन इस स्थान पर आयोजित किया गया था।
माला
देवी मंदिर का बारहवीं सदी में निर्माण किया गया था। इस मंदिर में माला
देवी या लक्ष्मी की मूर्ति श्रद्धालुओं ने स्थापित की है। बिलहारी 14
कि.मी. है। जबलपुर से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित रामनगर में गोंड राजाओं
का किला स्थित है। तीन मंजिला यह किला नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
जबलपुर से 84 कि.मी. दूर रूपनाथ स्थित है।
यहाँ
विशाल पत्थर के मध्य में शिव लिंग रखा है, जहाँ पर भगवान शिव की
पूजा-अर्चना की जाती है। जबलपुर में पर्यटक रेल, सड़क एवं हवाई मार्ग से
पहुँच सकते हैं।
मदन महल किला
गोंड
राजा मदन शाह ने इस महल को पहा़ड़ों के ऊपर निर्मित किया था। आसमान की
ऊँचाइयों से स्पर्श करते इस किले से इस सुंदर नगरी को निहारा जा सकता है।
जबलपुर का प्रसिद्ध चतुष्कोणीय शिव मंदिर
बेशकीमती स्वर्ण शिखर वाला अद्भुत शिवालय

FILE
आइए श्रावण के शुभ दिन आपको टेमर-भीटा स्थित इस चमत्कारी शिव मंदिर की महिमा से परिचित कराते हैं।
शिलालेख
के मुताबिक 1881 में ग्राम के प्रतिष्ठित गोस्वामी परिवार ने इस
चतुष्कोणीय महाशिव मंदिर का निर्माण कराया था। सवा सौ साल बाद भी इसका
स्वरूप जस का तस है। समीप ही बनवाए गए दो कुएं मीठे जल के स्रोत हैं। वहीं
आसपास रोपे गए पौधों ने आज विशाल दरख्तों की शक्ल ले ली है। बेल का छतनार
वृक्ष सालभर शिवप्रिय बेलपत्र की सहज उपलब्धता सुनिश्चित कराता है।
आओ करें जबलपुर की सैर - 1
रोहित यादव
एक दिन दफ्तर में खाली बैठा हुआ था. सावन का महीना ऊपर से पवन
का शोर था. हिसाब लगाया कि इस बार सप्ताह अंत में तीन दिन की छुट्टी है. चल
यार रोहित कहीं घूमने चलते हैं. अंदर खुशी की लहर सी दौड़ गयी. घूमने का
नाम सुनते ही जो चीज सबसे पहले याद आती है वही इस बार भी आयी. और क्या याद
आएगा, वही पैसों की कमी. पता नहीं ये कमी मेरे पास ही होती है या सबका ये
हाल है.
आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है, कई लोग सोशल मीडिया पर इतने प्रसिद्ध हैं
कि वो जहाँ घूमने जाते हैं उनमें से अधिकतर जगहों पर उनका कोई ना कोई
प्रसंशक रूपी दोस्त मौजूद रहता है. जिस से इनके घूमने, रहने और खाने का
खर्चा बच जाता है. सिर्फ आने जाने का भाड़ा लगा. हींग लगे ना फिटकरी रंग भी
चौखा होय.
पर अपनी ऐसी किस्मत कहाँ. ना कभी लिखना आया, ना कभी सेलिब्रिटी बने. सच
कहूँ तो मुझे ऐसे सेलिब्रिटी टाइप लोगों से जलन होती है. बजट देखा. कहीं आस
पास ही जाया जा सकता था, ट्रेन से.
उत्तर भारत में जुलाई और अगस्त बारिश के महीने होते हैं. खिड़की से बाहर
देखा. बारिश की गोल बूँदें काँच पर से लुढ़कती हुई नीचे गिर रही थी. सुना है
ऐसा माहौल देख कर कुछ लोग रोमांटिक हो जाते हैं, मैं इमोशनल हो जाता हूँ.
घूमने के लिए इमोशनल.
बारिश में पहाड़ों में जाना नहीं है, साउथ और ईस्ट इंडिया जा नहीं सकता.
गुजरात महाराष्ट्र 3 दिन में आना जाना घूमना हो नहीं सकता. तो अब? तो अब
मध्य प्रदेश जायेंगे. मामा के राज्य में. नेट चालू करो पार्थ, अजब गजब MP
में घूमने की जगह ढूंढो.
बजट, आने जाने का समय, मौसम, ट्रेन में सीट आदि सब चीजों पर गौर किया.
मंजिल को अच्छे से फिल्टर पर लगाया गया. जबलपुर. वीकेंड के लिए सही जगह है
भाई यहीं चल. इरादा बदले उस से पहले ही घर फोन कर दिया
“ऑफिस में काम ज्यादा है इस बार नही आऊंगा.”
15 अगस्त को कौन सी कम्पनी खुलती है बेटा?
खुलती है, बस ओवरटाइम मिल जाता है.
चल ठीक है, कोई नहीं.
कई बार बुरा भी लगता है, घर पर झूठ बोल कर जाना. पर कहते हैं कि खुजली
और कलंक प्रकृति की 2 ऐसी कालजयी रचनाएँ है कि एक बार लग जाये तो मिटाना
भारी हो जाता है. मुझे खुजली लगी घूमने की, फिर चाहे झूठ बोल कर ही जाना
पड़े. दोस्तों को फोन किया, चलोगे घूमने जबलपुर? जवाब मुझे पहले से ही पता
था. आपको भी अंदाजा तो हो ही गया होगा.
13 अगस्त शाम 5 बज कर 45 मिनट, निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन, मध्य प्रदेश
सम्पर्क क्रांति. ट्रेन सही समय पर छूटी. बारिश की बूँदें गालों पर लुढ़कते
आँसुओं की तरह खिड़की के कांच पर गिर कर नीचे की तरफ भाग रही थी. मैं फिर से
इमोशनल हो गया.
बैग से हेडफोन निकाल कर कान में ठूँसा, गाना लगाया- बोलो इतने दिन क्या
किया, तेरा नाम लिया हो तुझे याद किया, तुझे याद किया तेरा नाम लिया. खिड़की
वाली सीट, बारिश और गाना … क्या संयोग था. ज्यादातर खुशमिजाज लोगों का
पसंदीदा कॉम्बिनेशन. जहाँ मौका मिले अपनी तारीफ कर लेनी चाहिए. अँधेरा घिर
रहा था. शहर पीछे छूट रहे थे. 9 बजते बजते लोग सोने लगे. जबलपुर मैं आ रहा
हूँ, सोचते सोचते सो गया.
जबलपुर पहुंच कर स्टेशन से रिक्शा लिया और बोला किसी सस्ते से होटल में
चलो. सस्ते होटलों को रिक्शे वालों से अच्छा भला कौन जानता है. कभी कभी तो
लगता है कि जैसे रिक्शा वाले होते ही सस्ते होटल में ले जाने के लिए.
दिल्ली में मैंने अक्सर देखा है एक रिक्शा वाला आप जितने में कहोगे उतने
बजट का कमरा दिखा देगा. स्टेशन के आस पास पानी जमा था. रिक्शे वाले ने
बताया रात को अच्छी बारिश हुई है. अभी धूप नहीं निकली थी और मौसम इतना
खुशनुमा था जैसे कह रहा हो ‘Welcome To Jabalpur’.
एक दो होटलों में पूछताछ करने के पश्चात एक होटल में 400 रु का कमरा मिल
गया. जबलपुर की व्यवसायिकता को देखते हुए 400 रु ज्यादा नहीं थे. मुझे
यहाँ सिर्फ आज की रात ही रुकना था. अगले दिन रात को फिर वापसी की ट्रेन थी.
कमरे में गया और जाते ही नहा कर कपड़े बदले.
कल वाले कपडे थोड़े भीग गए थे. भर पेट नाश्ता किया और घूमने निकल पड़ा.
बारिश तो नहीं हो रही थी पर बादल छाए हुए थे. रेनकोट और छाता मैं साथ लाया
था. जबलपुर में घूमने के लिए काफी जगह हैं जिनके बारे में आने से पहले में
काफी विस्तार से जानकारी लेकर आया था. परन्तु एक दिक्कत वाली बात ये है की
सारी जगह काफी दूर दूर हैं. और इनको आपस में जोड़ने के लिए पब्लिक
ट्रांसपोर्ट के बारे में कोई विशेष जानकारी मुझे नहीं मिल सकी. तो ये
निश्चय कर लिया की कोई ऑटो किराये पर बुक कर के घूम लेंगे.
तभी होटल वाले का फ़ोन आया – भाईसाहब आपको कहाँ कहाँ घूमने जाना है?
अरे, ये तो आपको बताना चाहिए कि आपके शहर में भीड़ के अलावा क्या है घूमने का.
हाँ हाँ यहाँ बहुत कुछ है. आप ऐसा करो वापिस होटल आ जाओ मैं सारा इंतज़ाम करवा देता हूँ.
ठीक है आता हूँ लेकिन मुझे सस्ता इंतज़ाम चाहिए.
ठीक है आ जाओ. फिर बात करते हैं.
अच्छा जी ऐसा भी होता है! होटल वाले को मेहमान की इतनी फिक्र! क्या बात
है. अक्सर सस्ते होटल वाले को इतनी तमीज से बात करते हुए देखा नहीं. और
सस्ते होटलों में रुक रुक कर मैं भी इनकी बदतमीज़ी का आदी हो गया हूँ.
वापिस रिसेप्शन पर पहुँचा तो उसने एक कागज पर कोई 5 या 6 जगह दिखाई.
देखो मैं आपको यहाँ यहाँ घूमने भेज रहा हूँ. हमारे जबलपुर की सारी जगह
इसमें शामिल हैं. ये आपका ड्राइवर और बाहर आपकी टैक्सी है. इतना सुनने के
बाद तुरंत शीशा देखने का मन हुआ. कभी कभी स्मार्टनेस की वजह से मैं अमीर
दिखने लगता हूँ. मौका मिलते ही तारीफ कर लेनी चाहिए.
मैंने मुस्कान छुपाते हुए पूछा और पैसे? 800 रु. मैं खुश था. क्यूंकि
मैंने नेट पर देखा था ऑटो वाले 1000 रु तक ले लेते हैं. और मैं इतने रु तक
देने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी था. फिर भी बनावटी गंभीरता दिखते हुए
कहा अरे इतने ज्यादा, क्या आप नहीं चाहते कि मैं जबलपुर घूमूं.
मेरा एक दोस्त यहाँ का है, मैंने पता किया तो उसने तो बताया था कि 500 रु तक टैक्सी मिल जाती है.
नहीं सर वैसे तो ऐसा नहीं है पर चलो आप 600 दे देना. कहीं ज्यादा भाव
ताव के चक्कर में टैक्सी वाला भाग ना जाये ये सोचते ही मैंने तुरंत हाँ कर
दी. लो जी चलो घूमने.
जबलपुर नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ एक प्राचीन शहर है. इसे मध्यप्रदेश
की संस्कारधानी भी कहा जाता है. थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय
आयुध निर्माण के कारखाने तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है.
ये शहर गौंड शासकों, मराठाओं तथा अंग्रेजों के अधीन रह चुका है. पुराने
समय के शासकों द्वारा बनवाये गए कुछ महल एवं ताल तालाब इत्यादि अभी भी यहाँ
बचे हुए हैं. नेट पर जबलपुर के बारे में जो जानकारी पढ़ने को मिली उनमें से
एक पैरा यहाँ ज्यों का त्यों रख रहा हूँ – “जबलपुर का इतिहास उतना ही
पुराना है जितना की काशी, पाटलिपुत्र, मगध आदि नगरों का है. पौराणिक आधार
पर देखें तो भृगु ऋषि की तपोस्थली भेड़ाघाट और प्रकृतिवादी जाबालि ऋषि का
नाम जबलपुर से जुड़ा है. जबलपुर नगरी कभी गढ़ा गोंडवाना, तो कभी त्रिपुरी के
नाम से विख्यात रही. यहाँ कई राजा हुए जिन्होंने हिमालय से लेकर सागर के तट
तक समस्त राज सत्ताओं को त्रिपुरी के अधीन कर दिया था.”
टैक्सी वाले का नाम अनिल था. अनिल जी वैसे तो काफी बातूनी थे पर जब उनसे
शहर के बारे में कुछ जानने की कोशिश की तो उनको ज्यादा जानकारी नहीं थी.
खास कर ऐतिहासिक विषयों की. वैसे मुझे लगता है कि पर्यटन स्थलों पर टैक्सी,
ऑटो, बस परिचालकों आदि को अपने शहर के सभी स्थलों के बारे में महत्वपूर्ण
जानकारियां तो होनी ही चाहिए. पर्यटक को काफी मदद हो जाती है ऐसे में.
खोजी पत्रकार तो कहीं न कहीं से जानकारी निकाल लेते हैं पर मेरे जैसे आम
पर्यटक के लिए काफी सारे विषय जानकारी के अभाव में अछूते रह जाते हैं. और
जरुरी नहीं कि नेट पर उपलब्ध जानकारी हमेशा शत प्रतिशत सही ही हो.
थोड़ी देर चलने के बाद एक शांत सी जगह पर गाड़ी रुकी तो अनिल जी ने बताया
कि ‘Balancing Rock’ आ गयी है. गाड़ी यहीं पार्क करनी पड़ेगी. आप घूम कर आ
जाओ, मैं यहीं इंतजार करता हूँ.
गाड़ी से उतर कर थोड़ा आगे चला तो क्या देखता हूँ एक बड़ी सी चट्टान एकदम
लुढ़कने वाले अंदाज में एक दूसरी बड़ी चट्टान पर बिल्कुल सुई की नोक जितनी
जगह पर टिकी हुई है. ये नजारा वाकई विस्मित कर देने वाला था. यदि आपके पास
इंटरनेट की उपलब्धता है तो ‘Balancing Rock’ की गूगल इमेज तुरंत देख
डालिये.
इस शहर में आगे कुछ देखने को मिले ना मिले पर सिर्फ इस एक चट्टान ने
मेरे पैसे वसूल कर दिए. मदन महल की पहाड़ियों पर स्थित ये चट्टान देशी
विदेशियों के आकर्षण का खास केंद्र है.
कहते हैं कोई पंद्रह बीस साल पहले आये 6.9 की तीव्रता वाले भूकंप का भी
इस चट्टान पर कोई प्रभाव नहीं हुआ था. यहाँ आगे ही मां शारदा देवी का
प्राचीन मंदिर है और यहाँ के लोग मानते हैं कि माता की कृपा से ही ये
चमत्कार संभव हो सका है. हम भारतीय हमारे साथ थोड़ा भी अच्छा होते ही उसको
चमत्कार का नाम देकर तुरंत भगवान के साथ जोड़ देते हैं.
चलो वैसे भी हमें शुक्रगुजार तो होना ही चाहिए चाहे किसी बहाने से ही
सही. ये चट्टान कब से अपने इस रूप में इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल
सकी. कुछ देर वहाँ रुका. फोटो खींचे और फिर आगे माता शारदा के मंदिर की तरफ
चल दिया.
माँ शारदा देवी का मंदिर वहाँ से कुछ ही कदम की दूरी पर है. मंदिर जाते
हुए ही दाहिने हाथ की तरफ से सीढियाँ ऊपर की तरफ जा रही हैं. सीढ़ियों के
पास एक बोर्ड लगा हुआ है जिसमें लिखा है रानी दुर्गावती का किला. पर मैं
पहले मंदिर हो आता हूँ.
मंदिर मेरे लिए कभी घूमने के स्थान ना होकर सिर्फ आस्था के केंद्र होते
हैं. इसलिए मैं सोचता हूँ कि ट्रेवल एजेंट अपने ट्रेवल लिस्ट में मंदिरों
के नाम ना शामिल करें तो ज्यादा अच्छा होगा. जिस पर्यटक को मंदिर जाना है
वो पहले ही अपना प्लान कर के आएगा और खुद ही बोल देगा कि मुझे फलां फलां
मंदिर जाना है.
मंदिर से आने के बाद सीढियाँ चढ़ते हुए रानी दुर्गावती के किले की तरफ
गया. इस किले को कुछ जगहों पर मदन महल के नाम से भी लिखा गया है. राजा मदन
सिंह द्वारा बनवाया गया यह किला मुख्य शहर से करीब दो किमी दूर एक पहाड़ी
की चोटी पर स्थित है.
यह किला राजा की मां रानी दुर्गावती से जुड़ा हुआ है, जो कि एक बहादुर
गोंड रानी के रूप में जानी जाती है. किले का थोड़ा बहुत रख रखाव किया गया है
हालाँकि अधिकतर हिस्सा फिलहाल खंडहर में तब्दील हो चुका है.
यह किला रानी दुर्गावती और उनकी पूरी तरह से सुसज्जित प्रशासन व सेना के
बारे में काफी कुछ बयान करता है. शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष,
छोटा सा जलाशय और अस्तबल को देखकर आप इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकेंगे.
इस किले से प्रचीन काल के लोगों के रहन-सहन का भी पता चलता है. साथ ही इससे
उस समय के रॉयल्टी का भी अंदाजा हो जाता है.
जबलपुर जाने पर इस जगह को अवश्य घूमना चाहिए. यह किला उन शासकों के
अस्तित्व का साक्षी है, जिन्होंने यहां 11वीं शताब्दी में काफी समय के लिए
शासन किया था.

जब मैं यहाँ पहुंचा तो सिर्फ एक परिवार यहाँ पर्यटक के रूप में मौजूद
था. उनके अलावा यहाँ कुछ स्थानीय लड़के लड़कियाँ स्कूल की यूनिफार्म और बैग
समेत घूम रहे थे. शायद स्कूल बंक कर के आये हों. बच्चे खण्डरों में पढ़ने के
लिए तो आये नहीं होंगे, फिर क्या करने आये होंगे. इस से पहले कि जबलपुर का
ये ऐतिहासिक पर्यटक स्थल दिल्ली के कुछ पर्यटक स्थलों की तरह सिर्फ खास
किस्म के कार्यों के लिए बदनाम हो प्रशासन को यहाँ ध्यान देना चाहिए.
कहने के लिए तो एक चौकीदार भी था वहाँ पर वो अपने सरकारी कर्मचारी होने
का धर्म बिना अपवाद के निभा रहा था. ड्यूटी समय पर कुर्सी पर बैठ कर सोने
का धर्म. यदि कोई सरकारी कर्मचारी मेरे इस लिखे हुए को पढ़ रहा है तो कृपया
बुरा ना मानें ये मेरी आपसे ईर्ष्या है जो मुझसे ये सब जबरदस्ती लिखवा रही
है. वरना तो आप कितने कर्म प्रधान होते हैं ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जान
सकता. मौका मिलने पर तारीफ कर भी देनी चाहिए.
किला घूमने के बाद मैं वापिस टैक्सी में आ गया जहाँ अनिल भाई इंतज़ार कर
रहे थे. मुझे यहाँ 2 घंटे का समय लगा. अनिल जी कहने लगे की अकेला बंदा
अमूमन यहाँ इतनी देर तक नहीं घूमता और जल्दी ही बोर होकर नीचे आ जाता है,
जिससे हम लोगों का समय बच जाता है. पर लगता है आप घूमने के कुछ ज्यादा ही
शौकीन हैं. मैंने इसे तारीफ के तौर पर लिया और अनिल जी को धन्यवाद कहा. अब
अगर देखा जाये तो 6 में 3 जगह मैं देख चुका हूँ और 3 बाकी है.
आओ करें जबलपुर की सैर - 2
रोहित यादव
अब हम भेड़ाघाट की तरफ बढ़ रहे थे. भेड़ाघाट जबलपुर से करीब 20
किमी की दूरी पर है. यहाँ तक पहुंचने के लिए कोई खास मशक्क्त नहीं करनी पड़ी
और जल्दी ही अनिल जी ने अपनी गाड़ी पार्किंग में जा लगायी.
हम नदी एवं मार्बल रॉक्स यानी संगमरमर की चट्टानें देखने पहुंचे थे.
उन्होंने रास्ता बताया और मैं उधर को चल दिया. नर्मदा की खूबसूरती के बारे
में आज यानी 26 नवंबर 2017 के वेब दुनिया नामक हिंदी पेज पर छपा है ‘लगातार
जोर मारती लहरों से चट्टानों का सीना चीरकर हजारों वर्ष के कठोर संघर्ष के
बाद नर्मदा ने यह सौंदर्य पाया है जिसे निहारने देश ही नहीं, विदेशी
पर्यावरण प्रेमी भी खिंचे चले आते हैं.
संगमरमरी चट्टानों के बीच बिखरा नर्मदा का अनूठा सौंदर्य देखते न तो मन
अघाता है और न आँखें ही थकती हैं. भेड़ाघाट, तिलवाराघाट के आस-पास के
क्षेत्र का इतिहास 150 से 180 करोड़ वर्ष पहले प्रारंभ होता है.
कुछ वैज्ञानिक इसे 180 से 250 करोड़ वर्ष पुरानी भी मानते हैं. ‘ मार्बल
रॉक्स नर्मदा नहीं के दोनों तरफ की किनारों पर स्थित है और आश्चर्यजनक रूप
से ये 100 फीट से भी ऊँचीं है. नर्मदा की ये संगमरमरी चट्टानें सौंदर्य से
परिपूर्ण हैं. यह एक अत्यंत रमणीय पर्यटन स्थल है.
चाँद की रोशनी में भेड़ाघाट की मार्बल चट्टानों की सैर का एक अलग ही तरह
का अनुभव रहता है. चूँकि बारिश का मौसम था तो माँ नर्मदा अपने पूरे वेग पर
थी पानी का स्तर बहुत ज्यादा था. मैं वहीँ संगमरमर की चट्टानों पर बैठ कर
नदी को निहारने लगा. ‘बहता पानी और डूबता सूरज अक्सर मुझे कुछ लिखने को
प्रेरित करते हैं.
‘ये लाइन मेरे दिमाग में आयी और तुरंत मैंने वहीं बैठे बैठे इसको मोबाइल
में लिख कर सेव कर लिया. बीच में कुछ देर के लिए हल्की बूंदें गिरीं तो
मैंने छाता तान लिया था. अभी कुछ दिन पहले ही यहाँ ऋतिक रोशन की मोहनजोदारो
फिल्म की शूटिंग हुई है. बेशक ये जगह है ही फिल्माने लायक. अति सुन्दर.
भेड़ाघाट के पास ही नर्मदा का पानी काफी ऊंचाई से झरने के रूप में गिरता
है. इसी झरने को धुआँधार फॉल कहते हैं. जबलपुर के पर्यटन स्थलों की सूची
में एक नाम इसका भी है. जब पानी एक धारा के रूप में ऊपर से नीचे नदी में
गिरता है तो दूर से देखने पर नदी में से धुआं सा उठता दिखाई देता है और धार
मतलब पानी की धारा. इसीलिए इसको धुआँधार फॉल का नाम दे दिया गया है.
मेरे भम्रण के दौरान बारिश अपने चरम पर थी तो नर्मदा में खूब पानी था.
इस वजह से मैं फॉल नहीं देख सका क्योंकि नदी का जलस्तर इतना बढ़ा हुआ था कि
इसने झरने को पूरी तरह ख़त्म कर दिया था. अन्यथा ये भी एक आकर्षक दर्शनीय
स्थल होता.
करीब 2 घंटे बिताने के बाद अगला पड़ाव चौंसठ योगिनी मंदिर होगा. भेड़ाघाट
के पास ही यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है. यहाँ तक जाने के लिए 150 से
अधिक सीढियाँ चढ़ कर जाना पड़ता है. यह बहुत ही भव्य मंदिर है. यहाँ 64
योगिनी अर्थात् देवियों की प्रतिमा है.

दसवीं शताब्दी में स्थापित हुए दुर्गा के इस मंदिर से नर्मदा दिखाई देती
है. स्थानीय मान्यता के अनुसार यह प्राचीन मंदिर एक भूमिगत रास्ते के
द्वारा रानी दुर्गावती के किले से जुड़ा हुआ है. इस मंदिर का निर्माण 10वीं
शताब्दी में कलचूरी साम्राज्य के दौरान हुआ.
बाद में अपनी प्रवृति के अनुरूप ही मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिर को काफी
नुकसान पहुँचाया और मूर्तियों को तोड़ दिया गया. विखंडित मूर्तियां मुगल
मानसिकता के प्रमाण के रूप में ज्यों की त्यों अभी भी विराजमान हैं. यकीनन
ये जगह जबलपुर घूमने आने के दौरान जरूर देखने वाली जगह में शामिल है. अगर
इसको आप मंदिर की श्रेणी में डालना चाहते हैं तो मैं अपनी पहले वाली लाइन
वापिस लेता हूँ जिसमे लिखा था कि मंदिर पर्यटक स्थलों की सूची से बाहर होने
चाहिए.
मन में खुशी और उदासी वाले मिश्रित भाव लिए मैं बाहर लगी बेंच पर आकर
बैठ गया और नर्मदा की तरफ देखने लगा. इस जगह को कैसे लिख कर परिभाषित किया
जाये ये ही विचार कर रहा था कि एक परिवार वहाँ टहलते हुए आ गया.
ग्रुप का सज्जन बेंच पर आकर बैठा तो जैसे पूरे दिन से चुप पड़ी मेरी
बातूनी जुबान को बोलने का मौका मिल गया. मैं उस बन्दे से ऐसे बातें करने
लगा जैसे मेरे घनिष्ट मित्र हो. बन्दे ने भी पूरे उत्साह से बात की.
परिवार रोहतक से आया था और मैं रेवाड़ी से. दो हरियाणवी सुदूर प्रदेश में
जब मिल बैठे तो बातों का लंबा सिलसिला चल निकला. उन्होंने बताया कि वो हर
साल कम से कम चार या पांच जगहों पर घूमने जाते हैं और ये उनका जूनून है.
वाह, आपसे मिल कर मजा आया. फिर तो हमने दुनिया भर की जगहों के बारे में
अपने अनुभव साझा किये. हम दोनों ही लगभग समान जगहों पर घूमे हुए थे. चर्चा
रोचक हो चली तो उनकी श्रीमती ने भी चर्चा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.
मुझे ये जान कर बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ कि उनके दोनों बच्चे भी
घुमक्कड़ी की बातों में रुचि दिखा रहे थे और छुपा दिए गए इतिहास से कुछ हद
तक वाकिफ थे. मैंने इस तरफ इशारा किया तो विकाश जी ने कहा की ‘रोहित भाई
मैं तो बोलता हूँ अपने बच्चों को यहाँ ऐसी जगहों पर अवश्य लाना चाहिए.
देखने दो उनको की इतिहास में क्या घटित हुआ और उसको हमसे कैसे छुपाया गया.
बेशक इस मंदिर में आने के बाद इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जा
सकता है.’
अब मेरी हैरान होने की बारे थी. विकाश जी कैसे बिना किसी लाग लपेट के
अपनी बातें बड़ी आसानी से कह रहे थे जबकि हम में से कई इस तरह की चर्चा से
अक्सर बचते रहते हैं. विकाश जी के साथ घंटे भर बतियाने के बाद मैं वापिस आ
गया जहाँ अनिल भाई मेरी राह देख रहे थे. शाम होने लगी थी.
पता नहीं देखने के लिए कोई और जगह बची थी या नहीं पर मेरा मन अब और कहीं
जाने का नहीं था. अनिल भाई को कहा चलो अब वापिस चलते हैं. और कहीं नहीं
जाना. जवाब मिला ‘ठीक है चलो. रास्ते में एक शिव मूर्ति मंदिर है जिसको
आपको देखना चाहिए. वहाँ कुछ देर के लिए रुकते हुए चलेंगे.’
यार शिव मूर्ति तो दिल्ली में भी है, मुझे नहीं जाना चलो बस.’ इस से
पहले कि मैं कुछ भूल जाऊँ, वापिस होटल पहुँच कर अपना आज का अनुभव लिखना
चाहता था.
मना करने के बाद भी अनिल जी ने जबलपुर के विजयनगर पहुंचने के बाद गाड़ी
पप्रसिद्ध शिव मूर्ति मंदिर की तरफ घुमा दी. होटल मालिक के बाद ये दूसरा
बंदा था जो अपने शहर के मेहमान की इतनी देख रेख कर रहा था.
‘भैया, आप जाओ प्रभु के दर्शन कर आओ मैं यहीं मिलूंगा.’ ठीक है जल्दी ही
आता हूँ. अंदर प्रवेश किया तो भगवान शिव की आसन्न मुद्रा में बैठे हुए की
एक मूर्ति बनी हुई थी. मूर्ति ज्यादा पुरानी नहीं है और साल 2006 में ही
इसे आम जनता के लिए खोला गया है.
मूर्ति की ऊंचाई 76 फीट है. अगर आप इसे मंदिर की श्रेणी में रखना चाहते
हैं तो मैं फिर से अपने सबसे पहले वाले विचार के समर्थन में आना चाहूंगा.
‘मंदिरों को पर्यटन स्थलों की सूची से बाहर ही रखना चाहिए.’
शिवजी को प्रणाम किया और अपने विचार के लिए माफी मांगी. वापिस आने पर
अनिल जी को घूर कर देखा और कहा ‘बहुत अच्छी जगह थी भाई. अच्छा किया जो इधर
ले आये. पर अब और कहीं नहीं ले जाना बस.’ अनिल जी इतना खुश हुए जैसे कोई
मुराद पूरी हो गयी हो, उनको लगा मैं वाकई बहुत खुश हूँ. चलो अच्छा है.
अगले दिन देर तक सोया. कोई प्लान नहीं था. पास में ही एक शॉपिंग मॉल था.
तब पता नहीं था लिखूंगा इसलिए नाम याद नहीं रखा. टहलते टहलते वहाँ चला
गया. वहाँ से जबलपुर के ऊपर लिखी हुई एक किताब खरीदी. जो बाद में ये लेख को
लिखने में काफी सहायक सिद्ध हुई.
थिएटर में ऋतिक की मोहनजोदारो लगी हुई थी. ट्रेन रात को है तब तक क्या
करूंगा सोच कर मैंने मूवी की टिकट ले ली. सबसे पहला सीन वहीँ का आया जहाँ
मैं कल गया था भेड़ाघाट. अच्छा लगा देख कर.
बाहर निकला तो जोरदार बारिश हो रही थी. रेनकोट पहना और छाता भी तान
लिया. होटल से बैग उठाया और सीधे स्टेशन जा पहुँचा. शाम को ट्रेन समय से
चली. संयोग ही था कि वापसी में भी वही खिड़की वाली सीट, बारिश की बूंदें और
गाना. याद रखने वाले अनुभव के साथ अलविदा जबलपुर.
जबलपुर – संगमरमर नगरी (JABALPUR – THE CITY OF MARBLE)
Jabalpur
जबलपुर, द सिटी ऑफ मार्बल (Jabalpur The City Of Marble)। कई लोग इसे
संगमरमर नगरी या मार्बल सिटी भी कहते हैं। जबलपुर भारत के इतिहास से लेकर
राजनीति(Politics), संस्कृति(Culture) से लेकर पर्यटन(Tourism) में अहम
स्थान रखता है। शहर का नाम जाबालि ऋषि के नाम पर जबलपुर हुआ है। अंग्रेजों
के समय इस शहर को जब्बलपोर(Jabbalpore) के नाम से जाना जाता था। भारत में
बहुत कम शहर होंगे जहां नदी, पहाड़, इतिहास की यादें सबकुछ एक साथ हो।
जबलपुर केवल एक शहर नहीं है बल्कि एक याद है जिसे महसूस किया जा सकता है।


(Chausath Yogini Temple)
भारत विश्व के उन देशों में से एक है जहां मूर्तिकला और स्थापत्यकला का
विकास साथ-साथ हुआ। भारत में बड़े-बड़े महलों से लेकर मंदिर तक बेमिसाल
कारीगरी के नमूने हैं। पत्थरों से बने मंदिर और मूर्तियां कई हजारों साल से
भारत की पहचान रही है। एक ऐसा ही मंदिर है एमपी के जबलपुर में जिसका नाम
है चौंसठ योगिनी मंदिर।
चौंसठ योगिनी मंदिर देखकर तो लगता है कि आज का संसद भवन का मैप(Map) इसे
ही देखकर तैयार किया गया था। इस मंदिर का आकार वृत्ताकार(Circular) है। इस
मंदिर में प्रवेश करने के लिए दो द्वार हैं जो पूर्व और पश्चिम दिशा में
हैं। मंदिर में प्रवेश करने के बाद वृत्ताकार संरचना में चौंसठ योगिनी की
प्रतिमा(Statue) स्थापित हैं। इस मंदिर की एक सबसे बड़ी खासियत है कि
वृत्ताकार संरचना में स्थापित प्रत्येक मूर्ति 81 डिग्री का कोण(Angle)
बनाती है।

Shiv Parvati Temple
मंदिर के बिल्कुल बीचोंबीच एक मंदिर है जिसमें शंकर-पार्वती की प्रतिमा
नंदी पर विराजमान है। यह कल्चुरीकालीन स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है।
बलुआ पत्थर पर बारीक कारीगरी करके मंदिर को बनाया गया है। मंदिर ज्यादा
आकर्षक नहीं है लेकिन इसका इतिहास कई कहानियां बयां करता है। इस मंदिर का
निर्माण कल्चुरी राजा युवराजदेव प्रथम ने 10वीं शताब्दी में करवाया था। इस
मंदिर में गुप्त और कुषाण काल की प्रतिमाएं भी स्थापित की गईं हैं। आज कई
मूर्तियां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देती हैं। मुगल राजा औरंगजेब के
आदेश पर मंदिर की मूर्तियों में तोड़फोड़ की गई थी।

Chausath Yogini Temple
सौ फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए जो सीढ़ियां दिखाई
देती हैं वे भी कई सौ साल पुरानी हैं। यह मंदिर कभी तांत्रिक गतिविधि का
केंद्र हुआ करता था। इस मंदिर को गोलकीमठ के नाम से भी जाना जाता था। इस मठ
को विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल था। यहां ज्योतिष, गणित, तंत्र-मंत्र आदि
की शिक्षा दी जाती थी। इस मंदिर की सबसे रोचक बात ये है कि भले ही इस
मंदिर का नाम चौंसठ योगिनी मंदिर है लेकिन यहां योगिनियों की 81 प्रतिमाएं
स्थापित हैं।

Tilwara Ghat
तिलवारा घाट
(Tilwara Ghat)
जबलपुर की लाइफलाइन नर्मदा नदी के किनारे कई सारे घाट बने हुए हैं जो
अपनी-अपनी कहानी बयां करते हैं। नर्मदा नदी के किनारे तिलवारा घाट अपना एक
अलग ही इतिहास बयां करता है। तिलवारा घाट का नाम नर्मदा नदी के किनारे
स्थित तिल भांडेश्वर मंदिर के कारण हुआ है। यहां मकर संक्रांति के त्योहार
पर मेला भी लगता है।

Til Bhandeshwar Temple
तिलवारा घाट हमें इतिहास का आईना भी दिखाता है। यहां लोकमान्य बाल
गंगाधर तिलक ने आजादी से पहले लोगों को इसी घाट केे समीप संबोधित किया था।
महात्मा गांधी ने जबलपुर की तीन बार यात्रा की थी। एक बार उन्होंने तिलवारा
घाट का दौरा भी किया था।

Gandhi Smarak
महात्मा गांधी के स्वर्गवास के बाद उनकी अस्थियों का विसर्जन इसी घाट पर
किया गया था। इसी घाट के पास बना गांधी स्मारक महात्मा गांधी के अहिंसा की
याद दिलाता है। इस स्मारक का निर्माण एमपी के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर
शुक्ल ने करवाया था।

Kamania Gate
कमानिया गेट
(Kamania Gate)
देश की सबसे पुरानी पार्टी में से एक कांग्रेस पार्टी का संबंध जबलपुर
से रहा है। साल 1939 की बात है जब कांग्रेस का अधिवेशन जबलपुर में हुआ। इस
अधिवेशन को त्रिपुरी अधिवेशन के नाम से जाना जाता है। अधिवेशन में कांग्रेस
के दिग्गज नेता शामिल हुए जिनमें महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू,
सुभाषचंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, बी पट्टाभि सीतारम्मैया आदि थे।अधिवेशन
में अध्यक्षता के लिए चुनाव हुआ जिसमें सुभाषचंद्र बोस ने बी पट्टाभि
सीतारम्मैया को पराजित किया। सीतारम्मैया गांधीजी की पसंद थे और चाहते थे
कि वे ही जीतें। सीतारम्मैया की हार को महात्मा गांधी ने अपनी हार कहा था।
यह सब सुभाषचंद्र बोस को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा
दे दिया। बाद में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया।

Kamania Gate
इस अधिवेशन की याद में शहर के बिल्कुल बीचोंबीच स्मारक का निर्माण
करवाया गया। इसे जबलपुर में कमानिया गेट के नाम से भी जानते हैं। ये स्मारक
हमें सदैव त्रिपुरी अधिवेशन के किस्से को याद कराता रहेगा। ये गेट शहर के
मुख्य बाजार में स्थित है जिसे बड़ा फुहारा के नाम से जाना जाता है।

Kachnar City
कचनार सिटी
(Kachnar City)
जबलपुर को अविस्मरणीय जगहों के लिए जाना जाता है। यहां मैं जिस जगह की
बात कर रहा हूं वो जबलपुर को भारत में चुनिंदा जगह बनाती है। जबलपुर की
कचनार सिटी में स्थित हैं भारत की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा में से एक। कचनार
सिटी में भगवान शिव की 76 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा को
देखकर लगता है कि मानो दुनिया की सारी वस्तुएं बौनी नजर आ रही हैं। भगवान
शिव के चेहरे का भाव देखकर लगता है कि नदी का शांत ठहरा पानी हो। प्रतिमा
सच में आश्चर्यचकित करने वाली है।

Balancing Rock
बैलेंसिंग रॉक
(Balancing Rock)
क्या कभी आपने किसी चट्टान को दूसरी चट्टान पर टिके हुए देखा है? क्या
कभी आपने 40 टन वजनी चट्टान को 10 इंच जितनी जगह पर टिके हुए देखा है?
जबलपुर की बैलेंसिंग रॉक(Balancing Rock) इसका बेहतरीन उदाहरण है। प्रसिद्ध
मदन महल किले के पास कई सालों से बैलेंस का एक शानदार प्रतीक है बैलेंसिंग
रॉक। जियोलॉजिस्ट(Geologist) के अनुसार बैलेंसिंग रॉक लगभग 5 करोड़ साल
पुरानी है। ये रॉक ग्रेनाइट से बनी हुई है। इन सब के अलावा इस रॉक ने कई
भूकंप(Earthquake) झेले हैं। जबलपुर नर्मदा फॉल्ट लाइन पर स्थित है जहां
भूकंप आते रहते हैं। साल 1997 में रिक्टर स्केल पर 6.2 तीव्रता का भूकंप
आया था जिसने जबलपुर को हिलाकर रख दिया था लेकिन इसके बावजूद बैलेंसिंग रॉक
अपनी जगह से हिला तक नहीं। बैलेंसिंग रॉक तुस्सी ग्रेट हो।

Madan Mahal
मदन महल
(Madan Mahal)
जबलपुर का इतिहास स्वर्णिम रहा है। मौर्य, गुप्त, सातवाहन, कल्चुरि शासन
तक के प्रमाण मिलते हैं। इसके सबके अलावा यहां गोंड वंश के शासकों का शासन
कई सौ सालों तक रहा। गोंड वंश के शासन के समय की बहुत सारी रचनाएं जबलपुर
में हैं जो समृद्ध शासन व्यवस्था की झलक दिखाती है। मदन महल किला इसी गोंड
वंश के शासन का साक्षात गवाह है। जबलपुर में 500 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित
है मदन महल। मदन महल को अब रानी दुर्गावती किला के नाम से भी जानते हैं।

Architecture Of Mahal
इस किले का निर्माण गोंड शासक मदन शाह ने 11वीं शताब्दी में करवाया था।
ये महल कोई बहुत बड़ा नहीं है और ना ही इसमें कोई भव्यता है लेकिन संरचना
इसे महत्वपूर्ण(Important) बनाती है। महल एक ओर से पूरी तरह एक बड़ी सी
चट्टान पर टिका हुआ है। महल दोमंजिला है जिसकी ऊपरी मंजिल में दो छोटे-छोटे
कमरे हैं। इस महल की छत से दूर तक फैले जबलपुर को देखेंगे तो वाह कहने से
खुद को रोक नहीं पाएंगे।

Madan Mahal
दरअसल मदन महल गोंड शासकों के लिए एक वॉर रूम था जिसे वे वॉच टॉवर की
तरह इस्तेमाल करते थे। इस महल के परिसर में अस्तबल, स्नानागार, बावड़ी आदि
आज भी मौजूद है। इस महल का उपयोग शाही यात्राओं के लिए भी किया जाता था।

Gwarighat
ग्वारीघाट
(Gwarighat)
नर्मदा नदी के किनारे स्थित सबसे पवित्र घाटों में से एक है ग्वारीघाट।
ऐसी मान्यता है कि इस घाट पर गौरी ने तपस्या की थी इसलिए इस घाट को
ग्वारीघाट के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि पहले इसका नाम गौरीघाट
था जो बिगड़ते हुए ग्वारीघाट हो गया। घाट पर आकर आस्था की डुबकी तो लगा
सकते हैं साथ ही साथ शांति भी महसूस कर सकते हैं। ग्वारीघाट में रामलला
मंदिर, जानकी मंदिर और गौरी कुंड भी है।

ग्वारीघाट के बाएं तट पर ग्वारीघाट साहिब है जो सिखों का पवित्र तीर्थ
स्थल है। भारत भ्रमण के दौरान गुरु नानक देव जबलपुर आए थे और इसी जगह पर
रुके थे। ऐसी मान्यता है कि यहीं गुरु नानक देव ने ऋषि सरबंग का उद्धार
किया था और ठगों(Thugs) को सही मार्ग पर लेकर आए थे। इस घाट की पवित्रता दो
धर्मों का प्रतीक बन गई है।

Tripur Sundari Temple
त्रिपुर सुंदरी
(Tripur Sundari Temple)
त्रिपुर सुंदरी मंदिर केवल एक मंदिर ही नहीं बल्कि इतिहास का जीता जागता
सबूत है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरि वंश के प्रसिद्ध राजा कर्णदेव ने
11वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर में त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा
विराजमान है। यहां पहले तांत्रिक गतिविधियां (Tantric Activities) होती थी।
ये मंदिर भेड़ाघाट जाते समय आता है।

Bhedaghat
भेड़ाघाट और पंचवटी
(Bhedaghat and Panchwati)
जबलपुर की पहचान केवल ऐतिहासिक(Historical) और सांस्कृतिक(Cultural)
नहीं है। जबलपुर भौगोलिक(Geographical) रूप से काफी समृद्ध है। इसकी
सुंदरता के बारे में वे भी जानते हैं जिन्होंने ने बॉलीवुड की फिल्म देखी
है। बॉलीवुड की कई फिल्मों ने भेड़ाघाट की खूबसूरती को दिखाया है। भेड़ाघाट
के धुआंधार जलप्रपात को देखकर लगता है कि मानो दुनिया ही कहीं खो गई।
सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच नर्मदा की तेज धवल धारा जब रसातल को
पाने की कोशिश करती है तो विहंगम दृश्य पैदा होता है। ऊंचाई से गिरते पानी
की दूधिया चमक से उठते धुएं में सूरज की रोशनी में टकराने से इंद्रधनुष
पैदा करता है। संगमरमर की इन्हीं चट्टानों के बीच महाखड्ड में उछलती-कूदती
नर्मदा नदी आगे बढ़ती है। जैसे-जैसे नर्मदा आगे बढ़ते जाती है धीरता और
गंभीरता को धारण करते हुए आगे बढ़ते जाती है।

Panchwati
पंचवटी जबलपुर की एक अनोखी पहचान है जहां संगमरमर के ऊंचे-ऊंचे पहाड़
शांत और गंभीर नर्मदा से बात करते हैं। सफेद संगमरमर भी अब अपना रंग बदलने
लगता है। कहीं ये पहाड़ स्लेटी तो कहीं भूरे तो कहीं गुलाबी तो कहीं नीले
दिखाई देते हैं। इन पहाड़ों के बीच नौका विहार मानो इस तरह लगता है कि जैसे
हम किसी दूसरी दुनिया में प्रवेश करने वाले हैं। चांदनी रात इस जगह को
स्वर्ग बना देती है। नर्मदा नदी के पानी से टकराकर सफेद संगमरमर की
चट्टानों पर पड़ने वाली रोशनी एक स्वर्णजाल का निर्माण करती है।

Marble Materials
प्रकृति जितना मानव को देती है मनुष्य की मांग और बढ़ने लगती है।
भेड़ाघाट और पंचवटी में संगमरमर से बने सामानों की कतार तो यही कहती है।
हाथी, मोर, घोड़ा आदि की प्रदर्शनी हमें संगमरमर की खूबसूरती का अहसास
कराती है। घर के तोरण हों या फूलदान संगमरमर चार चांद लगा देता है।

Hanumantal Jain Temple
हनुमानताल जैन मंदिर
(Hanumantal Jain Temple)
जबलपुर शहर के बीचों बीच स्थित है हनुमानताल जैन मंदिर। सफेद संगमरमर से
बने इन मंदिरों की नींव 1686 एडी(AD) में पड़ी थी। यहां कुल 22 मंदिर हैं।
ये मंदिर इसलिए भी महत्व रखते हैं क्योंकि ये स्वतंत्र अवस्था में भारत का
सबसे बड़ा जैन मंदिर है। यहां भगवान आदिनाथ की कल्चुरीकालीन प्रतिमा
स्थापित है। यहां मुगलकालीन और मराठों के समय की काफी मूर्तियों और सामान
का संग्रह है।

मंदिर में माता पद्मावती की मूर्ति भी स्थापित है। माता पद्मावती की
पूजा जैन धर्म में मध्य भारत में मुख्य रूप से की जाती है। मंदिर के
बिल्कुल सामने एक बड़ा सा ताल है जिसे हनुमानताल के नाम से जाना जाता है।
आकार में चौकोर ये ताल तीन धर्मों को समेटे हुए है जो मानो कह रहा हो कि
सभी धर्म शांति के लिए हैं।

Shankar Shah Raghunath Shah Memorial
शंकरशाह रघुनाथशाह स्मारक
(Shankar Shah Raghunath Shah Memorial)
जबलपुर जंक्शन से कुछ सौ मीटर की दूरी पर शंकरशाह रघुनाथशाह का स्मारक
है। ये स्मारक दोनों के बलिदान को अमर बनाता है। शंकरशाह रघुनाथशाह
पिता-पुत्र थे और महारानी दुर्गावती के वंशज। जो दुर्गावती का वंशज हो वो
भला गुलामी कैसे सहन कर सकता है? शंकरशाह ने एक कविता लिखी जिसे वे अक्सर
गुनगुनाया करते थे। उनकी कविता से लोगों में देशभक्ति का भाव जगता था लेकिन
अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट के अधिकारी क्लार्क को ये पसंद नहीं आया।
उसने इसे देशद्रोह कहा और अपने गुप्तचरों की मदद से पिता-पुत्र को बंदी बना
लिया। उसने पिता-पुत्र को तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया। आज भी
गोंडवाना की धरती उनकी वीरता की कायल है कि उन्होंने अंग्रेजों की एक भी
शर्त मानने से इंकार कर दिया।

Pisanhari Ki Madhia
पिसनहारी की मढ़िया
(Pisanhari Ki Madhia)
मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध जैन तीर्थों में से एक है पिसनहारी की मढ़िया।
यह एक दिगंबर जैन मंदिर है। कहा जाता है कि एक वृद्धा मंदिर का निर्माण
करवाना चाहती थी लेकिन उसके पास रुपये ना होने के कारण वो मंदिर नहीं बनवा
सकी। वृद्धा ने हाथ चक्की से अनाज पीसकर रुपये कमाए और उस धन से मंदिर
बनवाया। इसलिए इस जगह को पिसनहारी की मढ़िया कहा जाता है। इस मंदिर परिसर
में 14 मंदिर हैं। मंदिर पहाड़ी पर स्थित हैं। यहां से जबलपुर को निहारना
आंखों को सुकून देता है।

Bargi Dam
बरगी डैम
(Bargi Dam)
जबलपुर में घूमने के लिए एक और शानदार जगह है बरगी डैम। जबलपुर से 30
किमी दूर स्थित ये डैम वाटर एक्टिविटी को बढ़ावा देता है। डैम के किनारे
खड़े होकर लगता है कि आप किसी समुद्र के नजदीक हो।

Bargi Dam
यहां बोट राइड, फिशिंग, वाटर स्कूटर आदि की सुविधा भी है, जिससे बरगी
डैम की यात्रा और भी मनोरंजक बन जाती है। इतना ही नहीं, डैम के आसपास के
क्षेत्रों में मैना, तोता, सारस, कबूतर और स्थानीय काली गौरेया समेत अनेक
पक्षियों को भी देखा जा सकता है।

रानी दुर्गावती म्यूजियम
(Rani Durgawati Museum)
रानी दुर्गावती के नाम पर जबलपुर में म्यूजियम की स्थापना 1964 में की
गई । इस म्यूजियम में जबलपुर और आस-पास का इतिहास मूर्तियों, कलाकृतियों,
मुद्राओं(Coins), शिलालेखों से प्रदर्शित किया गया है। यहां मौर्यकाल से
लेकर गोंड के समय तक की सामग्रियों को प्रदर्शित किया गया है। इन सबसे अलग
यहां एक आदिवासी वीथिका है जिसमें जबलपुर अंचल के आदिवासी परिवेश को
प्रदर्शित किया गया है। इस वीथिका(Gallery) में गोंड और बैगा जनजाति के
जीवन को बताया गया है। इसके अलावा रानी दुर्गावती के जीवन को प्रदर्शनी के
माध्यम से दर्शाया है।

Dumna Nature Park
डुमना नेचर पार्क
(Dumna Nature Park)
जबलपुर नेचर के करीब बसा हुआ शहर है। जहां पहाड़ी, तालाब, जंगल, नदी,
संगमरमर के पहाड़ हैं। जबलपुर का डुमना नेचर पार्क जो बहुत से जानवरों का
बसेरा है। यहां हाथी, चीतल, हिरण, बारहसिंगा, जंगली सुअर, नीलगाय आदि हैं।
यहां एक सर्प उद्यान(Snake Park) और बटरफ्लाई पार्क भी है। यहां पर्यटकों
के लिए ढेर सारे आकर्षण स्थल(Attraction Points) हैं जिनमें साइकिलिंग
ट्रेक, फिशिंग प्वाइंट, सेल्फी प्वाइंट, टॉय ट्रेन आदि है। यहां लगभग 15
किमी लंबा साइकिलिंग ट्रैक है। डुमना नेचर पार्क के पास ही खंदारी लेक है
जहां पर्यटक(Tourist) बोटिंग भी कर सकते हैं।

Osho Tree, Bhanwartal Garden
भंवरताल गार्डन
(Bhanwartal Garden)
भंवरताल गार्डन शहर में स्थित एक सामान्य गार्डन जैसा दिखता है लेकिन है
नहीं। यहां लगा मौलिश्री का पेड़ ओशो ट्री के नाम से जाना जाता है। कहा
जाता है इसी पेड़ के नीचे ओशो रजनीश को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यहां ओशो के
अनुयायी आज भी ध्यान लगाने आते हैं। इसके अलावा यहां फाउंटेन, वॉचिंग टॉवर,
ट्रेल, ओपन एयर ओडिटोरियम है। इस गार्डन के बीचोंबीच हाथी पर सवार रानी
दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित की गई है।

Rani Durgawati Statue, Bhanwartal Garden

Sangraam Sagar Lake
संग्राम सागर
(Sangraam Sagar Lake)
शहर की 52 ताल-तलैया में एक संग्राम सागर भी है। इसका निर्माण गोंड राजा
संग्राम शाह ने करवाया था। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी झील आंखों को
सुकून और आनंद से भर देती है। इस झील के बीचोंबीच एक वॉचिंग टॉवर भी बना
हुआ है। इस झील के एक तरफ प्रसिद्ध बाजनामठ मंदिर है। यह मंदिर अपनी
तांत्रिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। दूसरी तरफ एक पार्क है जो एक
पहाड़ी पर स्थित है।

Rani Durgawati Samadhi Stal
रानी दुर्गावती समाधि स्थल
(Rani Durgawati Samadhi Stal)
इंग्लिश की एक कहावत है Last but not the least मतलब है कि आखिरी है
लेकिन किसी से कम नहीं है। जबलपुर से 24 किमी दूर नर्रई गांव है जहां स्थित
है रानी दुर्गावती की समाधि स्थल। इसे नर्रई नाला के नाम से भी जाना जाता
है। यहीं युद्ध लड़ते हुए रानी दुर्गावती को वीरगति प्राप्त हुई थी। ये
मात्र जगह नहीं है ये सीख देने वाली जगह है। कैसे अपनी मातृभूमि की रक्षा
के लिए तन-मन-धन न्यौछावर किया जाता है। रानी दुर्गावती का जीवन और उनसे
जुड़ी हर जगह यही सीख देती हैं।

Mungodi
फूड्स ऑफ जबलपुर
(Foods Of Jabalpur)
जबलपुर विविधता के मामले में भारत के संपन्न शहरों में से एक है। चाहे
ऐतिहासिक जगह हो या प्राकृतिक, सांस्कृतिक हो या मॉर्डन जबलपुर में इन सबका
मेल है। खानपान के मामले में जबलपुर किसी शहर से कम नहीं है। जबलपुर में
वैरायटी ऑफ फूड उपलब्ध है। जबलपुर के खाने में सारे स्वाद हैं चाहे खट्टा
हो या मीठा, चाहे नमकीन हो या तीखा। सुबह के ब्रेकफास्ट से लेकर रात के
खाने तक सब कुछ अलग है।

Khoya Jalebi
जब भी आप जबलपुर जाएं तीन पत्ती चौराहे पर पोहे खा सकते हैं। यहां एमपी
के दूसरे शहरों से थोड़ा अलग होता है जिसमें आलू की स्लाइस काटकर डाली जाती
है जो आपको हटकर टेस्ट और टेक्सचर देता है। ब्रेकफास्ट में पोहे के अलावा
मंगोड़े या जबलपुर की भाषा में बोले तो मुंगोड़ी का स्वाद ले सकते हैं।
मुंगोड़ी, मूंग की दाल से बनती है जिसमें गरम मसाला, नमक, हरी मिर्च,
बेसन,हरी धनिया, जीरा पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है। मुंगोड़ी को कुरकुरी
बनाने के लिए पालक का उपयोग किया है। मुंगोड़ी का ऐसा स्वाद पूरे भारत में
कहीं और चखने को नहीं मिलेगा। मुंगोड़ी को यहां हरी चटनी के साथ परोसा
जाता है जिसका स्वाद चार गुना बढ़ा देता है।

Falahari Gatpat
जबलपुर की जो सबसे स्पेशल डिश है मावे या खोवे की जलेबी। यहां की मावे
की जलेबी बहुत मशहूर है। आप जब कभी जबलपुर जाएं तो मावे की जलेबी जरूर
खाएं। जबलपुर में कमानिया गेट के पास बड़कुल वाले की दुकान की मावे की
जलेबी स्वाद के नेक्स्ट लेवल पर ले जाती है। बड़कुल के समोसे और कचौड़ी भी
लाजबाब होते हैं।
कभी आपने टमाटर गटपट, फलाहारी गटपट जैसी डिश के बारे में सुना है? नहीं, तो
मैं आपको बताता हूं कि गटपट क्या है? टमाटर गटपट, फलाहारी गटपट एक तरह की
चाट है जिसमें प्याज और लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता। फलाहारी में आलू से
बनी चाट होती है जिसमें सिंघाड़े का सेव, मूंगफली और साबूदाने का उपयोग
किया जाता है। इसी तरह टमाटर गटपट में आलू की जगह टमाटर ले लेता है। सबसे
अलग और शानदार डिश है एक बार जरूर टेस्ट कीजिएगा।

Kunde Ka Peda
जबलपुर की एक ऐसी स्वीट डिश जिसकी मांग शहर से बाहर भी है। उसका नाम है
कुंदे का पेड़ा। कुंदे का पेड़ा बहुत स्वादिष्ट रहता है और बहुत ही मुलायम।
ये पेड़े मुंह में रखते ही घुल जाते हैं। इस पेड़े का नाम कुंदे का पेड़ा
रखने पीछे इसे बनाने का कारण है। इस पेड़े को बनाते समय अन्य पेड़े के
मुकाबले ज्यादा देर तक फैंटा जाता है। यही कारण है कि इसे कुंदे का पेड़ा
कहा जाता है।
इसके अलावा यहां रबड़ीवाला दूध, लच्छेदार रबड़ी, राजकचौड़ी लजीज और जायकेदार व्यंजन हैं।

Narmada at Night
त्योहार और भाषा
(Festivals and Language)
यहां सभी धर्मों के त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। जबलपुर के दो
सबसे बड़े त्योहार नवरात्रि और नर्मदा जयंती है। नवरात्रि में पूरा शहर
भक्ति में डूबा होता है। दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। इस दिन सारा शहर
सड़कों पर उतर आता है और प्रतिमा विसर्जित करने के बाद बुराई रूपी रावण को
जलाकर भस्म किया जाता है। जबलपुर को जीवन देने वाली नर्मदा नदी को यहां मां
कहा जाता है। यहां नर्मदा जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाती है। लोग
दूर-दूर से आते हैं और लोग नर्मदा को चुनर भेंट करते हैं। कई लोग कई किमी
लंबी चुनर भी भेंट करते हैं।
जबलपुर एमपी का तीसरा और भारत का 40वां सबसे बड़ा शहर है। गोंड शासनकाल
(gond regime) में ये गोंडवाना में आता था। इसे महाकौशल प्रांत(Mahakaushal
state) के नाम से भी जाना जाता है। जबलपुर में हिंदी भाषा बोली जाती है।
बघेलखंड(Baghelkhand) और बुंदेलखंड(Bundelkhand) के बीच बसे होने के कारण
यहां दोनों बोली(Dialects) मतलब बघेली और बुंदेली की छाप साफ-साफ दिखाई
देती है। इन दोनों बोली के मिलने से एक नई स्थानीय बोली बनी है जिसे यहां
जबलपुरिया(Jabalpurian) बोली कहा जाता है। यहां के लोगों को जबलपुरिया कहा
जाता है।
कब जाएं
(Best time to visit)
जबलपुर में गर्मी के मौसम में पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है
और बारिश जोरदार होती है। बारिश अच्छी होने के कारण पहाड़ी हरी-भरी हो
जाती है और नर्मदा नदी उफान पर होती है। इसी कारण ठंड का मौसम घूमने के लिए
शानदार है। इसलिए जब भी आप जबलपुर जाएं तो अक्टूबर से मार्च तक के महीने
में ही जाएं।
नजदीकी आकर्षण स्थल
(Nearest tourist attraction points)
जबलपुर से नजदीकी कई टूरिस्ट प्लेस हैं जिनमें अमरकंटक, तामिया,
भैंसाघाट, संग्रामगढ़, बिलहरी, बहोरीबंद, मैहर, पचमढ़ी, श्रीधाम, डमरू
घाटी, मंडला, बांधवगढ़ नेशनल पार्क, कान्हा नेशनल पार्क, जीवाश्म नेशनल
पार्क डिंडौरी, भीमगढ़ डैम, सिवनी।
कैसे पहुंचे
(How to reach)
एयरपोर्ट :- जबलपुर एयरपोर्ट को डुमना एयरपोर्ट के नाम
से जाना जाता है। जबलपुर भारत के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है जिसमें
दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, इंदौर, भोपाल शामिल हैं।
रेलवे स्टेशन :- जबलपुर जंक्शन एक बड़ा रेलवे स्टेशन
है और पश्चिम मध्य रेलवे का मुख्यालय है। यहां से देश के कोने-कोने के
शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध है।
बस स्टैंड :- जबलपुर में अंतर्राज्यीय(Interstate) बस
स्टैंड है। इस बस स्टैंड से राज्य के दूसरे शहरों और महाराष्ट्र, गुजरात,
यूपी और छत्तीसगढ़ के लिए बस उपलब्ध हैं।
जरूर एक बार संगमरमर की नगरी को देखने जाएं और शहर को जी कर देखें।
रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर
संग्रहालय खुलने व बन्द होने का समय समय - प्रातः 10-00 से शाम 5-00 तक
|
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प्रवेश शुल्क
भारतीय दर्शक -रू. 10-00
विदेषी दर्शक - रू. 100-00
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फोटोग्राफी - रू. 50-00
विडियों ग्राफी - रू. 200-00
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नोटः-
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रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर
मध्यप्रदेश के पूर्वी अंचल का सम्भागीय मुख्यालय जबलपुर पुण्य सलिला
नर्मदा नदी के उत्तरी ओर स्थित है। यह ऐतिहासिक नगर देश के बडे़ नगरों यथा
दिल्ली वाराणसी इलाहाबाद कानपुर नागपुर भोपाल ग्वालियर सागर आदि से सडक व
रेलमार्ग द्वारा जुडा हुआ है।
जबलपुर अंचल प्राचीन काल से ही समृद्ध क्षेत्र रहा है। मौर्यकाल का
महत्वपूर्ण साक्ष्य रूपनाथ का लघु शिलालेख है जो सम्राट अशोक द्वारा
उत्कीर्ण करवाया गया था। मौर्यो के बाद शुंग, सातवाहन, कुषाण, शक भी यहां
के शासक रहे। सातवाहन कालीन अश्वमेध यज्ञ की सूचना देने वाला बघोरा से
प्राप्त शिवघोश का शिलालेश एवं कुषाण-शक क्षत्रप कालीन अभिलिखित यक्षी
प्रतिमा का भेड़ाघाट जबलपुर अंचल से प्राप्ति क्षेत्रीय इतिहास के
महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। बुधगुप्त व जयनाथ के ताम्र पत्र गुप्त काल के
महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। कलचुरि काल में त्रिपुरी डाहल मण्डल की राजधानी था
जहां से लगभग 500 वर्ष कलचुरि शासको ने विशाल भूभाग पर शासन किया। इसके
बाद गोंड वंश में संग्रामशाह, दलपतिशाह व रानी दुर्गावती जैसे साहसी व
प्रतापी शासक हुए है।
कलचुरि काल में जबलपुर को जाउली पत्तल या जाबालिपत्तन कहा जाता था। इस
समय बड़े पैमाने पर मंदिरों मठों व मूर्तियों का निर्माण हुआ जिसमें कई
कलाकेन्द्र यथा बिलहरी कारीतलाई तिगवां तेवर एवं भेडाघाट आदि स्थापित हुए।
संग्रहालय की स्थापना-
रानी दुर्गावती संग्रहालय का आकर्षक भवन द्विमंजिला एवं संग्रहालय
विज्ञान के निर्दिष्ट सिंद्धान्तों व आवशकता के अनुरूप है। संग्रहालय में
भूतल पर चार दीर्घायें एवं एक कला वीथिका आडोटोरियम हाल है। प्रथम तल पर भी
चार दीर्घायें है। इन दीर्घाओं में शैव दीर्घा, वैष्णव दीर्घा, जैन
दीर्घा, सूचकांक दीर्घा, उत्खनन अभिलेख दीर्घा, मुद्रा दीर्घा एवं आदिवासी
कला दीर्घा है। (एक गलियारें में चौसठ योगिनियों के छायाचित्र प्रदर्शित
है) इन दीर्घाओं में संग्रहालय के संग्रह की चयनित कलाकृतियों को प्रदर्शित
किया गया है, शेस कलाकृतियां आरक्षित संग्रह के रूप में रखी गई हैं।
आरक्षित संग्रह से पुनः चयनित कर अपेक्षाकृत कम महत्व की प्रस्तर
कलाकृतियों को संग्रहालय प्रांगण के उद्यान में मुक्ताकाश प्रदर्शित किया
गया है। संग्रहालय में कुल 6163 पुरावशेष संग्रहीत है। संग्रहालय की
दीर्घाओं का विवरण निम्नानुसार है।
इण्डेक्स वीथिका
संग्रहालय का प्रवेश हाल ही इण्डेक्स वीथी है जिसमें एक ओर रिशेप्शन
काउन्टर एवं दूसरी ओर विभागीय प्रकाशन का काउन्टर है। सामने रानी दुर्गावती
की गजारूढ मूर्ति तथा उपर भित्ति पर रानी दुर्गावती के जीवन पर आधरित
चित्र विवरण सहित प्रदर्शित है। दीर्घा में प्रदर्शित प्रस्तर प्रतिमाओं
में कला के श्रेष्ठ उदाहरण यथा ध्यानी बुद्ध बोधिस्वत्व, स्थानक बृद्ध,
वोधिसत्व पदमाणि, बौद्धदेवी तारा, स्खलितवसना आदि प्रतिमाये प्रदर्शित है।
जबलपुर नगर के समीप स्थित तेवर ग्राम प्राचीन (त्रिपुरी) बौद्धधर्म का
महत्वपूर्ण केन्द्र था वहां से उक्त बौद्व प्रतिमायें संग्रहीत की गई हैं।
शैव दीर्घा
शैव दीर्घा में प्रदर्शित कलाकृतियां शैव धर्म से संबंधित है, इनमें
नृत्यरत अष्ट भुजी गणेश की उत्कृष्ट प्रतिमा है। गणेष के ऊपरी
दायें&बायें हाथ में नाग तथा अन्य भुजाओं में परशु, स्वदंत, मोदक पात्र
आदि का आलेखन है। उमामहेशर प्रतिमा में समस्त शैव परिवार शिल्पांकित है।
शिव की वाम जंघा पर आसीन पार्वती के हाथ में दर्पण है। शिव के हाथ में
पुष्प त्रिषूल, नाग व आलिंगनरत् है।
पैरो के मध्य में दाये गणेश वाये कर्तिकेय तथा मध्य में भृंगी,नदी तथा
सिंह दृष्टव्य है। दूसरी उमामहेश्वर प्रतिमाओं में रावण को कैलाश पर्वत
उठाते हुये दिखाया है। दीर्घा में प्रदर्शित दो अन्य उमामहेश्वर प्रतिमाओं
में शिव को उमा के मुख के समीप उंगली रखे विशिष्ट अनुराग प्रदर्शित करते
दिखाया है। अर्धनारीश्वर प्रतिमा में दक्षिणांग शिव व वामांग पार्वती है
सभी आभूषणों से सुसज्जित प्रतिमा में भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है, जो
कलचुरि कला की महत्वपूर्ण कृति है।
शिव व विष्णु के संयुक्त स्वरूप को प्रदर्शित करती हरिहर प्रतिमाये भी
कलचुरि कला को महत्वपूर्ण कृतियां है। दीर्घा की अन्य प्रतिमाओं में भैरव,
शक्ति-गणेश व पार्वती की प्रतिमाओं प्रदर्शित है द्विभंग भैरव प्रतिमा में
धम्मिल केश राशि व यथेष्ट अलंकरण है, हाथों में कपाल पात्र व खटवांग है।
शाक्ति-गणेश की यह प्रतिमा शैलीगत आधार पर यद्यपि कलचुरि कला की कृति है,
किन्तु इसमें लोक कला का प्रभाव प्रतीत होता है। यह सभी आभूषणों से
सुसज्जित एक आलिंगन प्रतिमा है। पार्वती की समभंग स्थानक प्रतिमा में मुख
पर ध्यानजनित आभा परिलक्षित होती है। संतुलित तालमान, पारदर्शी वस्त्रों का
आलेखन कलचुरि कला के प्रथम चरण का द्योतक है।
शैव दीर्घा में प्रदर्शित 20 प्रतिमाओं में गणेश, शिव वीणाधर नटेश,
अर्धनारीश्वर, पार्वती, हरिहर व शक्ति गणेश शैलीगत आधार पर कलचुरि कला के
प्रथम चरण 9&10 वी शताब्दी की हैं, किन्तु चौसर क्रीड़ारत उमा महेश्वर
एवं अन्य उमा महेश्वर प्रतिमाओें में शिल्पांकन की बारीकी, तीखापन तथा
अलंकरण की वाहुल्यता का दिग्दर्शन होता है जो कलचुरि शैली के चरमोत्कर्ष
काल 11&12 शती ई. की है।

वैष्णव दीर्घा
वैष्णव दीर्घा में प्रमुख रूप से विष्णु तथा उनके प्रमुख अवतारों की
प्रतिमायें प्रदर्शित हैं। इनमें गरूड़ासीन लक्ष्मी नारायण, स्थानक विष्णु,
नृसिंह, वराह, वामन, त्रिविक्रम, बलराम, आयुध पुरूष तथा गरूड़ मुख्य हैं।
दीर्घा की विशिष्ट प्रतिमाओं में विष्णु की समपाद स्थानक प्रतिमा विशेष
उल्लेखनीय है, जिसके अद्र्वनिमीलित नेत्र व भावपूर्ण मुद्रा तथा आभूषणों का
सुन्दर आलेखन, संतुलित तालमान व सुन्दर अवयवों की रचना कलचुरि कला के
प्रथम चरण की ओर इंगित करते हैं। प्रभामंडल पर दशावतारों का शिल्पांकन व
अधिष्ठान पर भूदेवी का अंकन हैं। बरहाटा जिला नरसिंहपुर से प्राप्त इस
प्रतिमा के अतिरिक्त समपाद स्थानक विष्णु की तीन अन्य प्रतिमायें भी
प्रदर्शित हैं, जिसमें एक मनकेड़ी तथा दो जबलपुर से प्राप्त हुए हैं।
अन्य महत्वपूर्ण प्रतिमाओं मे नृवराह की सुंदर प्रतिमा हैं। कलचुरि
कालीन इस वराह प्रतिमा में विष्णु को पृथ्वी का उद्वार करते दिखाया है। जो
वराह मुखी मानवाकार प्रत्यालीढ शिल्पांकन है। सभी आभूषणों से सुसज्जित वराह
के हाथों में चक्र, शंख, गदा आयुध हैं। बाई ऊपरी भुजा पर भूदेवी को उठाये
हुए प्रदर्शित है। विष्णु के अन्य अद्र्वमानवीय अवतार नृसिंह को दैत्य
हिरन्यकश्यपु के उदर को विदीर्ण करते हुए दिखाया गया है। चतुर्भुजी नृसिंह
के दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं। अन्य महत्वपूर्ण प्रतिमाओं में वामन
की समपाद स्थानक प्रतिमा आभूषणों से सुसज्जित कलचुरि कला की महत्वपूर्ण
कृति है। भगवान विष्णु के वामन अवतार के द्वितीय चरण अर्थात वामन द्वारा
अपने पैर का विस्तार कर तीन पग पृथ्वी नापते हुऐ स्वरूप को त्रिविक्रम कहा
जाता है। उसी कथानक को व्यक्त करते हुये इस प्रतिमा में देव प्रत्यालीढ
मुद्रा में सभी आभूषणों से सुसज्जित शिल्पांकित है। दीर्घा में बलराम की दो
प्रतिमाये प्रदर्शित हैं। एक द्विभंग में चतुर्भुजी शिल्पांकन है। नाग
फणों से छत्र युक्त बलराम के वायें हाथ माँ हल व चक्र है । दाये हाथ में
पुष्प व सम्भवतः मूसल का आलेखन था, जो भग्न है। दूसरी महत्वपूर्ण बलराम
प्रतिमा लगभग 6&7 वी शती ई की है। जिसमें पार्शव में नाग कुण्डली व नाग
छत्र है दाया हाथ ऊपर उठा हुआ तथा वाये में सुरापात्र हैं। यह प्रतिमा
गुप्तोत्तर कला की महत्वपूर्ण कृति हैं। अन्य प्रतिमाओं में गरूड़,
चतुष्टिका तथा ताडशीर्ष है।
संग्रहालय में प्रदर्शित वैष्णव प्रतिमाओं में कलचुरिकाल के दोनों चरणों
की शैलीगत विशेषताओं के साथ संतुलित तालमान, अलंकरण भव्यता एवं मौलिकता का
समावेश है।

जैन दीर्घा
इस दीर्घा में प्रदर्शित जबलपुर अंचल के जैन कला केन्द्रों से संग्रहीत
की गई है, जो कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है इनमें तीर्थंकर आदिनाथ की
पदमासनस्थ प्रतिमा ध्यान मुद्रा मे निरूपित है, जिसमें उनके दोनों स्कन्धों
के मध्य में जटाजूट झूल रहे हैं। आसनपट्टिका पर ध्वज लांछन वृषभ का आलेखन
हैं, सिहपीठिका पर दाये पक्ष गोमुख एवं बाये यक्षी चक्रेश्वरी का आलेखन
हैं। दूसरी प्रतिमा तीर्थंकर पार्श्वनाथ में कुण्डलित नाग पीठ पर पदमासन मे
ध्यानस्थ शिल्पांकित है। प्रभामंडल के ऊपर नाग छत्र है। ऊपर गज अभिषेकरत व
विद्याधर युगलों का शिल्पांकन है। सिंह पीठिका पर नवग्रह तथा यक्ष-यक्षी
का आलेखन हैं। इसी प्रकार तीर्थंकर सम्भवनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा भी
कलचुरि कला के श्रेष्ठ मानदंडों को प्रदर्शित करती हैं। सभी पार्शवचरो के
आलेखन सहित आसन पटल पर लांछन अश्व अंकित हैं।
एक अन्य कायोत्सर्ग प्रतिमा तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की है, जो सभी तीर्थकर
लक्षणों से युक्त है। सिंहपीठिका पर यक्ष-यक्षी तथा आसन पट्ट पर लांछन
चंद्र का आलेखन हैं । दीर्घा में प्रदर्शित अन्य कायोत्सर्ग प्रतिमा
तीर्थकर शांतिनाथ की है, उनका ध्वज लांछन मृग हैं। तीर्थंकर यथेष्ट अलंकरण
से सुसज्जित है। इसके अतिरिक्त दीर्घा में अम्बिका, ध्यानस्त आदिनाथ एवं
जैन परिचारक व नवग्रह की प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं।
अप्सरा-दिक्पाल दीर्घा--
संग्रहालय के प्रथम तल पर प्रथम हाल में अप्सरा व दिक्पाल दीर्घा हैं।
इस दीर्घा में सुरसुन्दरी, स्खलित वसना, नायिका सद्यस्नाता, वेणु वादिनी
एवं सुरसुन्दरी प्रतिमाओं में कलचुरि कला के श्रेष्ठ मानदण्ड विविध
आभूषणों, सुन्दर केश विन्यास, मोहक अंग संरचना तथा सुगठित मांसल अवयवों की
संरचना का दिग्दर्शन होता है। सभी अप्सरा या सुर सुन्दरियां यथेष्ट अलंकरण
से सुसज्जित होकर विभिन्न मुद्राओं, कमनीय अंग संरचनाओं व भावो को सुन्दर
ढंग से अभिव्यक्त करती हैं, जो कलचुरि कला की महत्वपूर्ण कृतियां हैं।
सुरसुन्दरियों की आकर्षक चितवन, स्खलित वसना की कमनीय क्षीण कटि व उन्नत
उरोज, सद्यस्नाता की वेणी से टपकती जल कणिकायें भाव प्रवीणता तथा
अंग-प्रत्यंगो में लालित्य, वेणुवादिनी की आकर्षक केश सज्जा व भावांकन
क्षेत्रीय विशेषताओं से परिपूर्ण हैं।
दिक्पाल प्रतिमाओं में इंद्र, अग्नि, वरूण, कुबेर, यम प्रतिमाओं के
अतिरिक्त अग्नि स्वाहा की आलिगंन प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय हैं। जिसमें
दिक्पाल अग्नि की वाम जंघा पर आसीन अग्नि स्वाहा के आकर्षक आलेखन हैं, अन्य
कला कृतियों में बौद्व देवी तारा, कल्याण देवी, तथा युद्व प्रयाण दृष्य भी
विशेष महत्व के हैं।
अभिलेख दीर्घा-
जबलपुर संग्रहालय में अभिलेख एवं ताम्रपत्र यद्यपि कम मात्रा में
संग्रहीत है, किन्तु इनमें बाघोरा से प्राप्त सातवाहन कालीन शिलालेख
संग्रहालय का सर्वाधिक प्राचीन लेख है, इस अभिलेख में यज्ञ-यूप तथा अश्व भी
उत्कीर्णित हैं, इस लेख में ईसा पूर्व प्रथम शती के शिवघोष नामक शासक का
नाम मिलता है। बिलासपुर जिले के लंहगाभाटा से प्राप्त अभिलेख देवनगरी लिपि
मे हैं, जो क्षेत्रीय कौरव वंश के राजाओं से संबंधित है। भटगांव से प्राप्त
अभिलेख परवर्ती परमार तथा नागवंश के राजाओं से संबंधित है। दोनी जिला दमोह
का मूर्ति पादपीठ लेख भी प्रदर्शित हैं। ताम्र पत्रों में बुधगुप्त के समय
का शंकरपुरा जिला सीधी से प्राप्त ई. सन 487 का ताम्रपत्र हैं जिसमें
महाराज हरिवर्मा का नाम मिलता हैं। कटनी से प्राप्त गु.स. 182 (ई सन 581)
का उच्चकल्प महाराज जयनाथ का ताम्रपत्र, रीवा से प्राप्त कर्णदेव कलचुरि का
ई. सन 1055 का ताम्र पत्र, पवई जिला उमरिया से प्राप्त कलचुरि विक्रमसिंह
देव का ई. 1193 का ताम्र पत्र दीर्घा में प्रदर्शित हैं । इसके अतिरिक्त
ककरहेटा जिला जबलपुर के उत्खनन से प्राप्त पुरासामग्री तथा ठिढवारा जिला
कटनी की पुरासामग्री भी प्रदर्शित है।
चैसठ योगिनी दीर्घा--
कलचुरि काल में योगिनी काल सम्प्रदाय का व्यापक प्रसार था। योगिनी शक्ति
का ही एक रूप है योग एवं विविध उपासना के माध्यम से शक्तियों का अनुग्रह
प्राप्त करना योगिनी पूजा का उद्देश्य था। भेड़ाघाट में प्रसिद्व चैसठ
योगिनी मंदिर है, वहां पर संग्रहीत योगिनियों के छायाचित्रों को मूल स्थान
के क्रम से इस दीर्घा में प्रदर्शित किया गया हं।
मुद्रा दीर्घा-
प्रथम तल पर स्थित वीथी में मुद्रा के उदभव से लेकर विकास के क्रम को
प्रदर्शित किया गया है। चादी के आहत सिक्कों, ताबें के कुषाण सिक्के,
पृथक-पृथक शोकेश मे प्रदर्शित हैं। गुप्त सिक्के संग्रहालय के संग्रह में न
होने के कारण उनके छायाचित्र व लीजेण्ड के चार्ट प्रदर्शित किये गये हैं।
इण्डो सेसानियन, नाग व कलचुरि शासकों के मुद्राओं को भी प्रदर्शित किया गया
हैं। इसके बाद में दिल्ली सल्तनत, मुगल, उत्तर मुगल, ब्रिटिश, सिन्धिया
रियासत आदि के सिक्के भी प्रदर्शित हैं।

आदिवासी कला दीर्घा
इस दीर्घा मे जबलपुर अंचल एवं गोंडवाना की आदिवासी संस्कृति को दिखाया
गया है। गोंड व बैगा जनजाति का रहन-सहन खान-पान वेषभूषा, आभूषण, पूजन
सामग्री, वादय यंत्र एवं आवास आदि को माडलस, छायाचित्र एवं मूल सामग्री आदि
के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।

मुक्ता काश प्रदर्शन--
संग्रहालय प्रांगण में संग्रहालय भवन के बाहर व उद्यान में सीमेन्ट
पादपीठों पर प्रस्तर प्रतिमायें प्रदर्शित की गई है। इसमें कुषाण कालीन
यक्षी प्रतिमायें, नंदी देवियां, द्वारशाखायें एवं अन्य कलाकृतियां है।
संग्रहालय की विशिष्ट कलाकृतियां-
संग्रहालय मे कई उत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह है, इनमें चैसर
क्रीड़ारत् उमा-महेश्वर, गरूड़ासीन लक्ष्मीनारायण, बलराम, सद्यस्नाता,
स्खलितवसना, नदी देवियां, बोधिसत्व, ताडशीर्ष, अग्निस्वाहा, युद्व प्रयाण,
पदमपाणि, बोधिसत्व बज्रसत्व, तारा, श्री कल्याण देवी आदि का ऊपर का उल्लेख
किया जा चुका है, किन्तु एक विशिष्ट कृतियों का विवरण निम्नानुसार है
1- अलीक निद्रा-
वैष्णव वीथिका के सामने प्रदर्शित है। यह शिल्पकृति रूठे नायक तथा
मनुहार करती नायिका के मौन अभिनय का शिल्पीय रूपांकन है। प्राकृत भाषा के
कवि हाल द्वारा रचित गाथासप्त सती की एक गाथा में वर्णित दृष्य का रूपांकन
शिल्पी ने मौलिकता के साथ किया हैं। इस फलक पर दो दृष्य हैं। फलक पर दायें
ओर प्रथम दृष्य में तीन स्त्रियां बैठी हुई हैं। मध्य की नायिका प्रिय से
मिलने के लिये आतुर है, उसके दोनों ओर एक-एक परिचारिका नायिका के श्रंगार
में सहयोग कर रही हैं।
फलक पर दाये पूर्व निश्चिन्त संकेत के अनुसार नायक उद्यान मे अपनी प्रियतमा
की प्रतीक्षा कर रहा है, किसी कारणवश समय पर नहीं पहुंचने के कारण खिन्न
नायक अपनी निराशा व अप्रसन्नता को व्यक्त करने के लिये निद्राभिभूत होने का
अभिनय कर रहा है। नायिका किंचित विलम्व से पहुंचती है। तो प्रियतम को सोता
हुआ पाती है। नायक की मुद्रा से स्पष्ट है कि वह कपट निद्रा का अभिनय कर
रहा, जिसमें नायिका को यह समझते देर नहीं लगती कि उसका प्रियतम रूठकर कपट
निद्रा कर उसकी प्रतीक्षा कर रहा हैं। इसकी पुष्टि के लिये नायिका चुपचाप
नायक के सिरहाने बैठकर उसके कपोल पर चुबंन अंकित करती है, जिससे उसके अंग
प्रत्यंग पुलकित हो जाते है और अलीक निद्रा स्पष्ट हो जाती हैं।
चैसर क्रीड़ारत उमा महेश्वर--
चैसर क्रीड़ारत उमा महेश्वर प्रतिमा मे अत्यन्त कलात्मकता व मनोविनोद का
आलेखन है। दोनों ही सुन्दर आभूषणों से सुसज्जित चौसर खेल रहे है। शिव की
मुख मुद्रा निर्विकार तथा पार्वती के मुख पर विजयोल्लास परिलक्षित है ।
दोनों की उंगलियां गोटियों के समीप है। प्रतिमा में भैरव, वीरभद्र,
कार्तिकेय, रावण आदि का आलेखन है, किन्तु अधिष्टान पर मध्य मे नंदी के गले
में पड़ी रस्सी को पार्वती की सखियां अपनी ओर खीचती हुई दिखायी गई है। पीछे
दो पुरूषों के साथ परषुधारी, गणेष का भी आलेखन है। इस दृष्य मे पार्वती
द्वारा नंदी को जीता जाना चित्रित है।
उक्त दीर्घाओं व वाहय प्रांगण में प्रदर्शित पुरासामग्री के अतिरिक्त
संग्रहालय के संग्रह में आरक्षित संग्रह भी है। संग्रहालय के कुल
पुरावशेषों में 6163 नग है, जिसमें प्रस्तर कलाकृतियां, सिक्के अभिलेख,
ताम्रपत्र आदि शामिल हैं।
गरूडासीन लक्ष्मीनारायण-
कलचुरि कला के चत्र्मोत्कर्ष को छूने वाली अन्य कलाकृतियों में गरूड़ासीन
लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय हैं, जो 12 वी शती की उन्नत
कला मानदंडो को अभिव्यक्त करती है। सभी आभूषणों से सुसज्जित गरूड़ासीन
लक्ष्मीनारायण में विष्णु के हाथो के आयुध भग्न है। नीचे मानवाकार गरूड़ को
भी सभी आभूषणों से अलंकृत दिखाया गया है। प्रतिमा में विष्णु के मुख पर
आनंद का भाव तथा लक्ष्मी के मुख पर अनुराग जनित लज्जा के भाव है, जो विष्णु
की वाम जंघा पर आसीन हैं। प्रतिमा मे ऊपर वितान के कोनों पर ब्रहमा व षिव
मध्य मे योग नारायण तथा परिकर पर दसावतारों का आलेखन है।
4- अग्निस्वाहा-
संग्रहालय के प्रथम तल पर दिक्पाल दीर्घा में प्रदर्शित यह दुर्लभ
प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है जिसमें दाडी मूछ युक्त दिक्पाल अग्नि को अपनी
शक्ति स्वाहा के साथ अलिंगन मुद्रा में दिखाया गया है। कलचुरि कला की
उत्कृष्ट कृति में शिल्पी ने भावों के साथ-साथ अपनी स्वछन्द अभिव्यक्ति को
भी साकार रूप दिया है। जिसमें तारासने में बारीकी एवं तीखापन प्रतिमा के
आकर्षण को अधिक बढ़ाता है।
पेंचला जाण्याचे ठरले पण बरीच डोकी एकत्र आली आणि
त्या कार्यक्रमाचा बोर्या वाजला. त्या डोक्यांपैकी बर्याच जणांच्या
डोक्यात पेंचला जाउन मस्त "बसायचे" अशी कल्पना होती, काही जणांना तिथे
कशाला जायचे हेच माहीत नव्हते. त्यामुळे तो बेत रद्द करून, मी आणि आशिस
भेडाघाट पाहण्यासाठी गुपचुप सटकलो.
शनिवार
(11 डिसेंबर 2010) रात्रीची जबलपुर सूपर एक्सप्रेस घेतली. गाडी वेळेत,
9.40 ला निघाली. रात्रीचा प्रवास म्हणून झोपण्याचा जामानिमा चोख बरोबर
घेतला होता. पण झोप येईल तर शपथ. समोरच्याच बर्थवर हिंद-केसरी (घोरणे)
भयंकर वरच्या सुरात पेटले होते. सपशेल शरणागती पत्करून मी नुसतच या
कुशीवरुन त्या कुशीवर वळत राहिलो. आशिसची पण तीच अवस्था होती. मधूनच जोरात
बोलून निषेध नोंदवण्याचा प्रयत्न करून पहिला. पण हिंदकेसरीने आमच्याकडे
तुच्चतेने पाहायला देखील डोळे उघडले नाही. अखेर 3.30 च्या सुमारास
हिंद-केसरी कोणत्याश्या स्टेशनवर उतरून गेले आणि आम्ही तत्काळ झोपी गेलो.
सकाळी
7 च्या सुमारास (12 डिसेंबर 2010) गाडी जबलपुरला पोहोचली. स्वस्तात-स्वस्त
हॉटेल पाहिजे म्हणून फिरत फिरत हॉटेल दीप पॅलेस मधे खोली घेतली. अत्यंत
खराब हॉटेल आहे. खोल्या / टॉयलेट स्वच्छ नाही. आम्हाला फक्त सकाळचे विधी
उरकण्यासाठी आणि सामान ठेवण्यासाठी खोली हवी असल्याने तडजोड केली.
हॉटेलच्या समोरच "हॉटेल इंडिया" म्हणून मस्त हॉटेल आहे. त्याचे रेस्टोरेंट
ही झकास आहे. तिथे नाश्ता हादडला. जवळच्याच करमचंद चौकातुन पूर्ण दिवसासाठी
रिक्षा ठरवली. रिक्षावाल्याने (गुप्ता जी) 500 रुपयात, शहीद स्मारक, शिव
मंदिर, धुवाधार धबधबा, भेडाघाट, चौसष्टा योगिनी मंदिर, त्रिपूर सुन्दरि
मंदिर, मदन महल् किल्ला, राणी दुरगावती संग्रहालय, हे सर्व दाखवण्यासाठी
तयार झाला.
हे
पाहून 10.30 च्या सुमारास मुख्य आकर्षण, भेडाघाटकडे निघालो. जबलपुर –
इन्दोर मार्गावर, जबलपुर पासून साधारण 22 की.मी.वर भेडाघाट आहे. राष्ट्रीय
महामार्ग 7 ओलांडून पुढे, दुतर्फा गहू, सोयबीनची शेती आहे. पाऊण तासात
भेडाघाटला पोहोचलो. प्रथम नर्मदा नदितिल, धुवाधार धबधब्याकडे निघालो. धबधबा
घाट उतरून, जवळून पाहता येतो आणि 60 रुपयांचे टिकेट काढून रोप वे मधूनही
पाहता येतो (हा पावसाळ्यात चालू असतो). माझ्या मते रोप वे मधूनच पाहण्यात
मजा आहे. धबधब्याचा विस्तार / आवाका हवेतून नजरेत सामावून घेता येतो.
धबधब्याचा विस्तार मोठा आहे, उंची किरकोळ आहे. आपल्या खंडाळा/माळशेज
घाटातील कित्येक धबधबे याच्यापेक्षा उंच असतात. रोपवेतून पैल तीरावर
गेल्यावर परत फिरण्यासाठी वेळेचे बंधन नाही. आधी विनंती केली तर अर्ध्या
मिनिटासाठी रोप वे मध्यावर थांबवतात म्हणजे निवांतपणे फोटो काढू शकतो.
आम्ही रोपवेतून आणि पैल तीरावरून मनसोक्त धबधबा अनुभवला, त्याचे तुषार
अंगावर झेलले, सप्तरंगी कमान पहिली……..एकूण कल्ला केला.
इथून
निघालो, भेडाघाटकडे. मार्गातच चौसष्ठ योगिनी मंदिर आहे. याला “चौसष्ठ
योगिनी मंदिर” म्हणतात पण हे आहे गौरी शंकर मंदिर. मंदिर 800 वर्ष जुने
आहे. या मंदिरातील मूर्ती वैशिष्ट्यपूर्ण आहे. नंदीवर आरूढ शिव आणि पार्वती
यांची मूर्ती आहे. पूजार्यानी दिलेल्या माहिती प्रमाणे शिव-पार्वतीचा
विवाह प्रसंग दाखवणारी ही मूर्ती आहे आणि नंदीवर आरूढ शिव पर्वतीची ही
एकमेव मूर्ती आहे (पण फोटो काढण्यास मनाई आहे). मन्दिराभोवती वर्तुळाकार
कोनाद्यांमध्ये चौसष्ठ योगीनींच्या मूर्ती आहेत. मोजल्यावर कळले की मूर्ती
चौसष्ठपेक्षा जास्त आहेत. त्यात योगिनी व्यतिरिक्ता इतर मूर्तीही आहेत.
सर्व मूर्ती भग्नाव्स्थेत आहेत. भुलेश्वर (पुणे) येथे पाहिलेली विनायकीची
(गणेशाचे स्त्रीरूप) मूर्ती येथेही आहे. अर्ध्या तासात मंदिर पाहून झाले.
पुढेच भेडाघाट आहे.
भेडाघाटला
होडीमधून फिरायची सोय आहे. नदीच्या (नर्मदा) दोन्ही बाजूस संगमरवराचे मोठे
मोठे डोंगर वजा खडक आहेत. काही ठिकाणी 100 फुटानपेक्षा उंच. संगमरवराचे
रंग तरी किती…..पांढरा, गुलाबी, निळा, काळा, सोनेरी, पिवळा. भेडाघाटची
खासियत म्हणजे, कोणत्याही वेळी जा (पावसाळा सोडून), तुम्ही निराश होणार
नाही. कारण सूर्यप्रकाशाप्रमाणे रंगाच्या छटा बदलत जातात. पौर्णिमेच्या
वेळी तर रात्री 8 ते 12 मध्येही ही सफर करता येते. चंद्र प्रकाशात लकाकता
भेडाघाट पहाणे हा अविस्मरणीय अनुभव आहे असे कळले. ही 2 की. मी. ची सफर 50
मिनिटात संपते. पण सफर चालू होण्यासाठी, पूर्ण होडी भरेपर्यंत थांबावे
लागते. 23 जण (मोठे) पूर्ण होईपर्यंत होडी निघत नाही. प्रत्येकी तिकीट आहे
रु. 41. विशेष होडी केली तर 360 रुपये. मोटर बोट पण आहे ती 20 मिनिटात सफर
करून आणते.
सफारी
मधे 4 नावड्यांपैकी 1 गाइड म्हणून ही काम करतो आणि माहिती देत राहतो, ही
माहिती 95% बकवास असते. संपूर्ण माहिती पद्यात सांगितली जाते. करमणूक सोडून
त्याला काहीही किंमत नाही. त्यातील काही पद्ये खाली देत आहे. कोणताही दगड
पाहून किंवा त्यावरील काही तरी विचित्र आकाराला कोणतेही नाव देऊन किंवा
काहीतरी काल्पनिक गोष्ट बनवून ही काव्ये रचलेली आहेत.
काली काली मूर्ति, हात पैर सिर, इसे बोलते है कालभैरव
उज्जैन मे बड़ा भाई, भेडा घाट मे छोटा भाई
वो ड्रिंक लेता है, ये नारियल ख़ाता है लेकिन पीते दोनो भाई, वो अद्धि पिता है, ये पहुआ
जिसका बड़ा भाई हो शराबी, छोटा पिए तो क्या है खराबी.
-----
प्राण जाए पर वचन न जाए
सुनील दत्त, प्रेमनाथ, रेखा
तभी से पड़ी है गड्ढे के अंदर रेता
साइडमें गुलाबी कलर (पिंक),
यही बैठी थी रेखा, साड़ी का कलर हो गया पिंक
-----
धर्मेन्द्र, डॅनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जंपिंग पॉइंट
यही से जंप लगाया था, धर्मेन्द्र और डॅनी ने
लेकिन उन्होने नही लगाया, उनकी डॉल फेंकी थी
अगर वो जंप लगाते, तो फिरसे दोबारा फ़िल्मोंमे नज़र नही आते
------
"रात का नशा, अभी आँख से गया नहीं" (फिल्म - अशोका) का शूटिंग यही हुआ था.
आयी थी करीना, मे का था वो महीना
उसने किया डांस, हम लोगोने देखा पहिली चान्स
तीन लाख लेके गया ठेकेदार
-----
जिस देश मे गंगा बहती है
पद्मिनी डांस करके गाना गाती
"ओ, बसंती पवन पागल, ना जा रे, ना जा रे, रोको कोई
इस लिए अपन भी आगे नही जाएँगे
ये है अपना लास्ट पॉइंट - इस जगह को कहते "स्वर्गद्वार".
------
2.30
च्या सुमारास भेडाघाटहून निघालो ते मदन महल् किल्ल्याकडे. (मार्गातील
त्रिपूर सुन्दरि मंदिर पाहण्याचा बेत रद्द केला) किल्ला जबलपुरमधे एका
टेकडीवर आहे. किल्ल्याच्या पायथ्याशी बॅलेन्सिंग rock पाहिला. किल्ला
छोतासा आहे. बरीच पडझड झालिय. एका प्रचंड शीळेच्या आधाराने महाल उभा केलाय.
या महालातील सजजयांवरून अवघे जबलपुर पाहता येते. 25 मिनिटात किल्ला उरकला.

आता
शेवटचे स्थळ – राणी दुरगावती संग्रहालय. खरे तर हे पाहायला पूर्ण दिवस
हवा. विष्णू, शिव, गणेश अशा देवांच्या शिल्पांची वेगळी दालने आहेत. तसेच
नाणी, भांडी इत्यादीची दालने आहेत. स्वातंत्र्याचा इतिहास, त्याच्याशी
निगडीत पत्रे, कात्रण, आदेश, गोंड साम्राज्याचा इतिहास, त्यांची जीवनशैली
दर्शवणारी स्वतन्त्र दालने आहेत. येथे शुल्क आकारून फोटो – वीडियो शूटिंग
साठी परवानगी आहे.
आता 4 वाजले होते…जेवण करायचे राहीले होते.
ट्रेनचा अनुभव लक्षात घेता, 5.30 च्या बसचे (मन्गलम ट्रॅवेल्ज़) तिकीट
घेतले. दीप पॅलेस मधे जाउन सामान घेणे, ट्रेन तिकीट रद्द करणे, भोजन करणे
आणि वेळेत बस स्टॅंडवर पोहोचणे या गडबडीत माझे ओळखपत्र हॉटेल मध्येच राहून
गेले. ओळख पत्राशिवाय खोली देणार नाही म्हणून हॉटेल मॅनेजरने, ते photocopy
काढण्यासाठी ठेवून घेतले होते. धडा मिळाला की प्रवास करताना ओळखपत्राच्या
4/5 photocopy बरोबर बाळगाव्यात.
बसचा अनुभव नक्कीच सुखावह नव्हता.
इथे रूस्तम-ए-हिंद (पादणे) ने नागपूरपर्यंत सोबत करून आक्ख्या प्रवासात
आमचा छ्ळ केला. तसेच बस ही मेली लोकल होती, थांबत – थांबत 250 की.मी. पार
करायला तिने 8 तास घेतले. अखेर रात्री 1.30 ला नागपूरला उतरलो आणि सुटकेचा
निश्वास टाकला.
- राजन महाजन
Some Contact Details & Information -
Hotel Deep Palace, Near Karamchand Chowk – 0761 – 4031906 (Dirty / Unhygienic Rooms – starting from Rs. 325/-)
Hotel
India, City Coffee House Building, Near Karamchand Chowk - 0761 –
2480093 / 2403179 (Recommended as its clean, spacious & has Good
restaurant for all meals. Rooms starting from Rs. 800/- to Rs. 2400/-)
Mangalam
Travels, Near Bus Stand - 0761-4044394 (for Jabalpur-Nagpur-Jabalpur
Buses) Seat – Rs. 200/-, Sleeper Rs. 250/- (Non AC). There are many
other Bus Operators for this route like Khurana Travels.
See these links for more information –
See this link for more photographs of my visit to Bhedaghat / Jabalpur
Expense Sheet for 2
Train Ticket (Nagpur - Jabalpur) - 540
Auto to Deep Palace Hotel - 30
Hotel Rent & Tea - 332
Breakfast (India Coffee House) - 160
Auto for sightseeing 500
Bhedaghat (entry fee) - 30
Dhuadhar Ropeway -120
Bhedaghat (Boating) - 82
Rani Durgavati Museum - 20
Bus (Jabalpur-Nagpur) -400
Lunch - 240
Rabdi/Tea/Ice Cream - 65
Total Expenses -2519


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