Monday, August 5, 2024

हरियाणा

 http://yogi-saraswat.blogspot.com/2023/04/chandrakanta-mahal-vijaygarh-fort.html

 Chandrakanta Mahal Vijaygarh Fort Sonbhadra

 

 सोनभद्र शहर का नाम आपने शायद नहीं सुना होगा और सुना भी होगा तो देखा बिलकुल नहीं होगा... लेकिन चंद्रकांता का नाम जरूर सुना होगा ! चंद्रकांता नाम से देवकीनंदन खत्री का एक टीवी सीरियल खूब चला था जिसके कुछ किरदार बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हुए जिनमें यक्कू को कौन भूल सकता है ?       

                    

चंद्रकान्ता हिन्दी के शुरुआती उपन्यासों में है जिसके लेखक देवकीनन्दन खत्री हैं। सबसे पहले इसका प्रकाशन सन 1888 में हुआ था। यह लेखक का पहला उपन्यास था। यह उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था और तब इसे पढ़ने के लिये बहुत लोगों ने देवनागरी/हिन्दी भाषा सीखी थी। यह तिलिस्म और ऐयारी पर आधारित है और इसका नाम नायिका के नाम पर रखा गया है।

इसने नीरजा गुलेरी के इसी नाम के मेगा बजट टीवी धारावाहिक को प्रेरित किया जो  भारतीय टेलीविजन के इतिहास में सबसे बड़े ब्लॉकबस्टर में से एक बन गया 

                      

चन्द्रकान्ता को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है। हालांकि इसका जिम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है।

                       

राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार विरेन्द्र विक्रम की प्रमुख कथा के साथ साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेन्द्र सिंह तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चन्द्रकांता के परिणय से होता है।
                      

अब अपने यात्रा वृतांत पर आते हैं। वाराणसी और मिर्ज़ापुर के वॉटरफॉल्स देख के मैं रॉबर्ट्सगंज पहुँच गया था।  उस वक्त शाम के छह बजे थे , रॉबर्ट्सगंज के बस स्टेशन के बाहर बहुत ज्यादा खाने पीने का कुछ  नहीं दिख रहा था। एक दूकान पर चाय पीने बैठ गया तो उन्ही से आसपास रुकने और खाने की बात करने लगा।  पास में ही एक होटल बताया  रुकने को -सिर्फ 150 रूपये में ! कमरा देखा तो बहुत गंदा और बिस्तर तो और भी गंदा। वापस आ गया उसी चाय की दूकान पर ---- एक और चाय खींची , इस बार समोसे के साथ ! वो बोले-एक होटल और है !  मगर थोड़ा महंगा है ! कितने का होगा ? होगा 400 -500 का ! आपको ये बहुत सस्ता लग रहा होगा लेकिन रॉबर्ट्सगंज के हिसाब से ये "थोड़ा महंगा " ही था लेकिन होटल साफ़ सुथरा और नया बना हुआ था ! 100 रूपये एक्सट्रा देकर AC वाला रूम मिल गया ! खाने के लिए उसी चाय की दूकान पर पहुँच गया रात 9 बजे !

                        

अगला दिन था ! नहाधोकर होटल से निकल गया !  जुलाई की उमस सुबह से ही अपना आभास दे रही थी और पसीना माथे से टपकने लगा था।  सुबह के आठ ही बजे होंगे ,मुझे बताया गया "वहां" से सीधे कुछ मिल जाएगा आपको चातेरी या शायद चतरा जाने के लिए।  ऑटो में बैठा ,बैठा रहा ! मेरे साथ एक स्कूल की मैडम और थीं ,सरकारी प्राइमरी स्कूल की मैडम ! उस ऑटो की सवारी पूरी ही नहीं हुई और अंततः लगभग 40 मिनट बैठे रहने के बाद दोनों पैदल ही आगे बढ़ गए ! अब वो आगे आगे और मैं उनके पीछे :) मेरी डोरी उनसे बंधी हुई थी लेकिन ये डोरी चतरा तक ही बंधी रह पाई ! मुझे वहीँ उतरना था ! 

                              

चतरा उतर तो गया लेकिन चंद्रकांता महल वाला विजयगढ़ फोर्ट तक जाने के लिए  व्यवस्था नहीं थी कोई ! सोचा कि चलो  चलना शुरू  करते हैं , कोई मिल  जाएगा  तो लिफ्ट लेने की कोशिश करूँगा।  100 -200 मीटर चलने के बाद ही एक ट्रैक्टर मिल गया , एक किलोमीटर भी नहीं पहुंचे होंगे कि उसने रास्ता बदल दिया ! उतरना ही पड़ा ! फिर चलने लगा। ... इस बार मास्टर जी मिल गए जो किसी स्कूल में पढ़ाने जा रहे थे।  प्रेमपाल नाम था उनका। . उन्होंने अपने स्कूल के रास्ते को छोड़कर एक दो किलोमीटर का रास्ता तय करा दिया ! मुझे चतरा से 18 किलोमीटर दूर बताया गया था चंद्रकांता महल।  अर्थात मैं लगभग चार-पांच  किलोमीटर का रास्ता तय कर चूका था ! अब फिर चलने लगा -उमस ने जान निकाल रखी थी ! जुलाई में तो वैसे भी गर्मी और उमस अपने शबाब पर होती हैं ! एक जगह जहाँ से रास्ता चुर्क के लिए कटता है वहां से ठण्डा पानी मिल गया।  रास्ते में धंधरौल बाँध मिला जिसकी अथाह जल राशि इसे खूबसूरत बना रही थी।  मास्टर जी ने यहां से आगे एक गांव मऊखुर्द तक छोड़ दिया था।  

                          

        दोपहर होने लगी थी तो यहाँ एक मंदिर के बाहर पेड़ों की छाँव में सुस्ताने लगा।  कुछ लोग पास आये -खाना खाएंगे ? नहीं। ..नहीं ! चाय ? ना ना। .. ठण्डा पानी हाथ में था ! अपनी तरह का अलग शिवलिंग देखा यहाँ तो फोटो खींच लिया।  चलने लगा। . उधर से आते हुए कई गाड़ियां दिखीं लेकिन इधर से या तो दिखी ही नहीं या जो दिखीं उन पर पहले से ही दो -दो तीन -तीन सवारियां जमी हुई थीं ! गाड़ियों से यहाँ मेरा मतलब मोटर साइकल्स से है ! कार यहाँ कभी कभार ही देखने को मिला करती हैं ! सड़क अच्छी है लेकिन अधिकतर वीरान रहती है... . बिजली है............ 4G नेटवर्क भी आ जाता है कभी कभी ! सब कुछ है बस पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है इस फोर्ट के लिए।  



एक हल्का सा बैग मेरे कंधे पर था जिसमें बिस्कुट के तीन -चार पैकेट पड़े थे , उनमे से एक निपटाया ! बकरियों के झुण्ड को ले जाते एक बुजुर्ग मिल गए तो एक पैकेट उन्हें पकड़ाया ! दोपहर के एक बज चुके थे। ... रास्ता एकदम वीरान ! इधर से भी और उधर से भी। .. दोनों तरफ घना जंगल ! कोई गाडी इधर या उधर से जब भी गुजरती , भले वो मुझे लिफ्ट नहीं दे रहे थे लेकिन मुझे ये एहसास जरूर दिला जाते थे कि तू सुरक्षित है ! एक मोपेड लिए श्रृंगार का सामान गाँवों में बेचने जा रहा था , रुक गया ! बोला -थोड़ा ! संभलकर चलना भाई ! भेड़िया वगैरह निकल जाते हैं कभी कभी ! 

और जंगल ! फोर्ट से बस थोड़ा ही पहले खत्म हुआ होगा बल्कि खत्म ही नहीं हुआ फोर्ट तक भी ! फोर्ट पर आवाजाही की वजह से रास्ता थोड़ा चौड़ा कर दिया गया है इसलिए एक आभास सा होता है की जंगल खत्म हो गया है ! वास्तव में ऐसा नहीं है।  अंततः लगभग पौने तीन बजे मैं 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद विजयगढ़ फोर्ट के सामने था।  बाहर एक दो दूकान हैं खाने -पीने की।  एक ठो कोल्ड ड्रिंक और वहां के स्थानीय घास फूस के पकोड़े खाकर फोर्ट के प्रवेशद्वार की तरफ चल पड़ा।  प्रवेशद्वार भी लगभग 200 -220 सीढ़ियों के बाद आता है , अच्छी खासी चढ़ाई है वहां तक भी।  



झाड़ -झंखाड़ से भरे इस फोर्ट की चाहरदीवारी टूट फूट गई है कई जगहों से। मैंने प्रवेशद्वार से अंदर जाते हुए लेफ्ट से चलना शुरू किया -ये खण्डहर जरूर हैं ! लेकिन इतिहास के आईने हैं ! आईने हैं राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र के प्रेम के।  आईने हैं एक प्रेम कहानी के जिसे शब्दों में गूंथकर देवकीनंदन खत्री जी ने जन जन तक पहुंचाया और जिसे चलचित्र के माध्यम से गुलेरी जी ने घर घर में प्रसिद्ध कर दिया।  यहाँ के खंडहरों से भुतहा आवाजें नहीं आतीं , सुगंध आती है ! सुगंध इस पावन धरती की , सुगंध सच्ची मुहब्बत की , सुगंध प्रकृति की और सुगंध ! प्रकृति से जुड़े यहाँ के लोगों के सात्विक विचारों की।  पवित्र सीता कुण्ड से आगे बढ़ा तो किसी महल के किसी हिस्से के कुछ स्तम्भ दिखे जो दूर से देखने पर बहुत आकर्षित कर रहे थे।  आगे एक और पवित्र कुण्ड है जिसे रामकुण्ड कहते हैं।  यहीं एक मंदिर बना है ! कहते हैं कि आसपास के गाँवों के लोग इसी कुण्ड से अपनी कांवड़ यात्रा शुरू करते हैं और इस कुण्ड में कभी भी जल सूखता नहीं है।  


मंदिर में एक बाबा मिल गए।  थोड़े नाटे कद के हैं , झारखण्ड के किसी गाँव के रहने वाले हैं।  नाम -षणमुखानंद बताया मुझे ! अब मैं उनके घड़े से एक गिलास पानी पीकर उनके साथ आगे बढ़ता हूँ , वो चंद्रकांता महल देखने जिसकी ख्वाहिश तबसे थी जबसे इस जगह का नाम सुना है।  बाबा मुझे सब जगह घुमाते हैं।  और अब लगभग शाम के पांच बजने को हैं , मैं बाबा के साथ उनकी कुटिया में प्रवेश करता हूँ।  बाबा एक कप चाय और कुछ मीठा मुझे खाने को देते हैं और वहां पहुंचे कुछ लोगों और अपने यजमानों की एक डायरी दिखाते हुए मुझे आज यहीं रुक जाने का अनुरोध करते हैं। मैं बाबा को कुछ दक्षिणा देता हूँ। ...  मुझे लेकिन लौटना होगा ! 

                      

अभी आधा घण्टा और लग जाता है मुझे फोर्ट में और फिर मैं पूरा एक चक्कर करते हुए वापस उस जगह पर हूँ जहाँ से इस फोर्ट के अंदर गया था।  सीढ़ियां उतर के जल्दी जल्दी उस रास्ते पर लौटने लगता हूँ जिस रास्ते से भरी दोपहर में मैं फोर्ट गया था।    



पीछे से एक बाइक की आवाज आने लगती है , मैं इस उम्मीद में कि शायद लिफ्ट मिल जाए , रुक जाता हूँ।  इस बार भगवान् ने सुन ली :) कोई महोदय हैं जो खुद रॉबर्ट्सगंज से यहाँ आये थे। मतलब पूरे रास्ते के लिए जुगाड़ बन गया।  रास्ते में कहीं बारिश आई तो मढ़ैया में चाय पीने रुक गए , पैसे भी उन्होंने ही दिए। वो चुर्क होते हुए मुझे मेरे होटल से लगभग दो किलोमीटर दूर एक रास्ते पर छोड़ देते हैं।  अंधेरा घिरने को है लेकिन आज मैं बहुत खुश हूँ , एक ऐसी जगह होकर आया हूँ जो वर्षों से मेरी wishlist में थी ! 

 स्थानीश्वर मंदिर : कुरुक्षेत्र



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हर्ष का टीला और शेख चिल्ली का मक़बरा देखने में इतना समय गया कि अँधेरा सा होने लगा ! भूल ही गया कि बाहर ऑटो वाला भी खड़ा है और मेरा इंतज़ार कर रहा है ! पैदल पैदल घूमते हुए देर हो गयी और आसपास नजारा भी ऐसा था जिसे देखने में मन लग रहा था ! बाहर आकर तुरंत ही स्थानीश्वर मंदिर चल दिया !


स्थानीश्वर मंदिर बहुत ही सुंदर बना हुआ है ! समय की कमी के कारण पूजा पाठ और दर्शन तो नही कर पाया किन्तु बाहर से फोटो जरूर खींचे ! स्थानीश्वर महादेव मंदिर जैसा कि नाम से लग रहा है भगवान शिव को समर्पित है ! ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए पांडवों ने भगवन श्री कृष्णा के साथ यहां शिव की उपासना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था ! इसी मंदिर के पास सिखों के नौवें गुरु , गुरु तेगबहादुर जी की स्मृति में एक गुरुद्वारा भी है ! गुरु तेगबहादुर ने यहां एक रात अपना ठिकाना बनाया था ! ऐसा कहा जाता है कि जब तक आप इस मंदिर के दर्शन नही कर लेते तब तक आपकी कुरुक्षेत्र यात्रा संपन्न नही मानी जाती ! इस मंदिर के नाम से ही इस स्थान का नाम स्थानीश्वर या थानेश्वर पड़ा ! सर्वप्रथम यहां भगवान शिव ने लिंगम के रूप में आराधना करी थी ! यहीं इसी जगह पर महाभारत के नायक "कुरु " ने यमुना किनारे तपस्या करी थी और इसी ताकत के बलबूते उन्होंने यहां कई योद्धाओं के प्राण ले लिए ! 
 
 
 


यहां एक कुण्ड है जिसमें भगवन शिव की प्रतिमा स्थापित है जिसमें से मैकेनिकल रूप से धार लगातार निकलती रहती है , ऐसा माना जाता है कि इस कुण्ड में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल जाती है हालाँकि पानी इतना गन्दा है कि लगता है कुष्ठ रोग से मुक्ति तो क्या मिलती होगी , जिसे नही होगा उसे जरूर हो जाएगा ! काई जमी पड़ी है पूरे कुण्ड में , न जाने कब से सफाई नही हुई उस कुण्ड की ! 
 
 
 
 











शाम उतर रही है















 





ये गुरु तेगबहादुर जी की स्मृति में बना गुरु द्धारा ! ये फोटो नेट से उठाई है 

 हर्ष का टीला : कुरुक्षेत्र

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पिछली पोस्ट शेख चिल्ली के मकबरे की थी जिसमें आपने शेख चिल्ली और उसकी पत्नी के मकबरे को देखा था ! पिछली पोस्ट में श्री हर्षवर्धन जोग साब ने अपनी टिप्पणी में एक बहुत सही बात लिखी थी कि हमारे उत्तर भारत में शेख चिल्ली का मतलब अपनी नादानियों और ऊट पटांग हरकतों से लोगों को हसाने वाले एक कॉमिक करैक्टर से होता है ! या ऐसे व्यक्ति से मतलब है जो दिन में भी सपने देखता हो , या बड़े बड़े हवाई ख्वाब बनाता हो ! कभी कभी ऐसे आदमी को हम कह भी देते हैं - अब चल भी शेख चिल्ली की औलाद ! शेख चिल्ली की औलाद मतलब उसकी तरह ही दिन में ख्वाब देखने वाला प्राणी ! धन्यवाद जोग साब !


 


ये पोस्ट लिखने के लिए मुझे आपको कुरुक्षेत्र का इतिहास संक्षेप में बताना पड़ेगा ! कुरुक्षेत्र महाभारत वाला ही कुरुक्षेत्र है लेकिन इससे आगे एक छोटा सा शहर हुआ करता था स्थानीश्वर ! अब दोनों एक ही हो गए हैं ! स्थानीश्वर यानि ईश्वर का स्थान और ये स्थानीश्वर बिगड़ते बिगड़ते थानेश्वर हो गया है ! थानेश्वर में सातवीं शताब्दी में एक राजा हुआ करता था प्रभाकर वर्धन ! उसके बाद उसके पुत्रों राज्यवर्धन और हर्षवर्धन ने सत्ता संभाली ! थानेश्वर , वर्धन या पुष्यभूति साम्राज्य की राजधानी था ! ये वो साम्राज्य था जिसने गुप्त वंश के बाद भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपना सत्ता चलाई ! प्रभाकर वर्धन की 606 ईस्वी में मौत हो जाने के बाद उसके ज्येष्ठ पुत्र राजयवर्धन का अभिषेक हुआ लेकिन उसे उसके दुश्मन ने मार दिया जिसके बाद हर्षवर्धन राजा बने ! यहां एक बात कह दूँ कि राजा हर्ष वर्धन सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में ही राजा बन गए थे ! राजा हर्ष वर्धन ने अपना राज्य उत्तर भारत से लेकर वर्तमान आसाम के कामरूप तक फैला दिया था और अपनी राजधानी को थानेश्वर से हटाकर उत्तर प्रदेश के कन्नौज में स्थापित किया था ! इसी थानेश्वर को गज़नी के महमूद ने सन 1011 में तहस नहस कर दिया !


ये थानेश्वर शहर एक टीले (Mound ) पर बसा हुआ है जिसे हर्ष का टीला कहते हैं ! यहीं शेख चिल्ली का मक़बरा है और इस मकबरे के पश्चिम में हर्ष का टीला के अवशेष हैं ! इन अवशेषों से पुरातत्ववेत्ताओं को ग्रे और रेड पोलिश किये हुए गुप्त वंश और कुषाण वंश के बहुत ही कीमती बर्तन प्राप्त हुए हैं ! ये पूरा स्थान लगभग 1 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है ! आप अगर एक नजर से देखना चाहेंगे तो आपको लगेगा -अरे यार ! क्यों आये हैं यहाँ ? लेकिन जब आप इसके इतिहास से परिचित होते हैं तो आपको निश्चित ही संतोष मिलता है और गर्व की अनुभूति होती है कि हमने एक सातवीं शताब्दी की स्ट्रक्चर देखी है !


इसमें बनी सीढ़ियां शायद बाद में बनायीं गयी हैं लेकिन इसमें जो कोठरी (Room ) बनी हुई हैं वो चौड़ी और ऊपर से अर्ध गोलाकार हैं ! जैसे अस्तबल में घोड़े के लिए जगह बना दी जाती है या दिल्ली के चिड़ियाघर में हाथी के लिए जो जगह बनाई हुई है ! और ज्यादा इस विषय पर लिखना मुश्किल है इसलिए आज - राम राम !!





हर्ष का टीला के अवशेष


हर्ष का टीला के अवशेष



हर्ष का टीला के अवशेष




वहां हरे रंग की एक मस्जिद भी है




पास ही शेख चिल्ली का मक़बरा



पास ही शेख चिल्ली का मक़बरा


हर्ष का टीला के अवशेष


हर्ष का टीला के अवशेष














हर्ष का टीला के अवशेष























  शेख चिल्ली का मक़बरा : कुरुक्षेत्र

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ज्योतिसर देखने के बाद उसी रास्ते पर ज्योतिसर से बिलकुल पास ही पड़ने वाले गीता मंदिर जाने का कार्यक्रम था लेकिन जब वहां पहुंचा तब वो मंदिर बंद था ! अब ये शाम को चार बजे खुलेगा और अभी बजे हैं तीन ! यानि पूरा एक घण्टा इंतज़ार करना पड़ेगा , ये संभव नही क्योंकि आज ही वापस लौटना है और अभी बहुत कुछ देखना बाकी है ! इधर उधर के फोटो लिए और चलते बने ! यहां इस मंदिर प्रांगण में पीछे की तरफ गौशाला है जिसमें सौ से ज्यादा गायें बंधी हुई थीं ! मुख्य मंदिर की ईमारत बहुत ही खूबसूरत बनी हुई है और इसी से इसकी खूबसूरती का अंदाजा लगाया जा सकता है ! मुख्य दरवाज़े तक दोनों तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं और बीच में कुछ अलग अलग साइज के पत्थर लगे हुए हैं जिनमें लाइट लगाई हुई हैं ! कल्पना करिये कि रात के अँधेरे में ये कितनी खूबसूरत लगती होंगी ! निर्माण कार्य अभी चल रहा है !!




उससे थोड़ा सा पहले कुरुक्षेत्र की तरफ इस्कॉन मंदिर है और थोड़ा और आगे कल्पना चावला प्लैनेटेरियम है ! ऑटो वाला जब भी इन जगहों पर अपना ऑटो रोकता , मैं पहले अपनी घडी देखता और आगे चल देता ! समय बहुत इजाजत नही दे रहा था ! अब सीधे शेख चिल्ली का मकबरे को देखने चलते हैं ! 


शेख चिल्ली या शेख चेहली का मक़बरा कुरुक्षेत्र के थानेसर में थोड़ा सा शहर से बाहर की तरफ है ! शेख चिल्ली का असली नाम सूफी अब्दुल रहीम अब्दुल करीम अब्दुर रज़्ज़ाक था ! और वो मुग़ल राजकुमार दारा शिकोह का गुरु भी था ! यहां इस काम्प्लेक्स में दो मकबरे हैं , एक बड़ा और उसके सामने ही एक और छोटा ! बड़ा मक़बरा शेख चिल्ली का है और कहते हैं कि छोटा मक़बरा उसकी बीवी का है ! शेख साब का मक़बरा पर्शियन स्टाइल में गोल गुम्बद के जैसा है लेकिन  मक़बरा कुछ आयताकार है ! इस काम्प्लेक्स में एक मस्जिद भी है जिसे पत्थर मस्जिद कहते हैं !


आइये फोटो देखते चलते हैं :

गीता कुञ्ज मंदिर की गौशाला


ये लाइट जब रात में चमकती होगी तो क्या शानदार लगती होगी !!


मंदिर के शिखर पर लगा सुन्दर शंख








कल्पना चावला प्लैनेटेरियम
कुरुक्षेत्र में मुझेसबसे अच्छे उसके चौराहे लगते हैं ! हर चौराहे पर शानदार कलाकृति मिल जायेगी
कुरुक्षेत्र में मुझेसबसे अच्छे उसके चौराहे लगते हैं ! हर चौराहे पर शानदार कलाकृति मिल जायेगी

कुरुक्षेत्र में मुझेसबसे अच्छे उसके चौराहे लगते हैं ! हर चौराहे पर शानदार कलाकृति मिल जायेगी
शेख चिल्ली का मक़बरा
शेख चिल्ली का मक़बरा
शेख चिल्ली का मक़बरा




ये शेख चिल्ली की पत्नी का मक़बरा
ये शेख चिल्ली की पत्नी का मक़बरा














​पास​ ही स्टेडियम में लहराता तिरंगा





अभी एक तरह ये टाइल लगना बाकी है 

  ज्योतिसर :कुरुक्षेत्र

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ब्रह्म सरोवर और उसके आसपास के स्थानों को देखने के बाद अब सीधा ज्योतर्सर के लिए जाना था ! और इसके लिए मुख्य सड़क तक आना था जहां से ऑटो या बस मिल सके ! कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर , कुरुक्षेत्र -पेहोवा रोड पर एक छोटी सी जगह है ज्योतिरसर ! कुरुक्षेत्र में आपको अलग अलग समाज की धर्मशालाएं दिखाई देती हैं ! जितनी भी दिखीं उनमें "जाट धर्मशाला " बहुत ही बड़ी है ! बहुत लम्बी चौड़ी ! और भी धर्मशालाएं हैं ! जाट धर्मशाला के पास में ही बिरला गीता मंदिर भी है , लेकिन जा नही पाया !

मुख्य रोड पर आकर दो चार ऑटो वालों को रोका और पूछा -ज्योतिरसर ? आगे बढ़ा ले जाते ! कोई जवाब नही ! एक बुजुर्ग बोले - बस से चले जाओ , बस भी जाती है ! अब बस भी लिस्ट में शामिल हो गयी लेकिन इसी बीच एक ऑटो आया और उससे बात हुई तो बोला इधर से तो आप पहुँच जाओगे लेकिन फिर लौटने में परेशानी होगी और देर भी होगी ! बात करते करते उससे ज्योतिरसर के अलावा "शेख चिल्ली का मक़बरा " "हर्ष का टीला "और भद्रकाली मंदिर देखने का किराया 200 रुपया तय हुआ और निकल गए ज्योतिरसर की तरफ !



 भगवद् गीता के जन्म का साक्षी वट वृक्ष

 


लगभग तीन बजे मैं ज्योतिरसर की पवित्र भूमि पर था ! ये वो जगह है जहाँ भगवान कृष्णा ने अर्जुन को उसके कर्तव्य को याद दिलाया था और भगवान श्री कृष्णा ने यहीं अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन कराये थे ! छोटे छोटे मंदिरों की ये श्रंखला बहुत सुन्दर तो नही कही जा सकती लेकिन आपकी भावना यहां मायने रखती है ! वो वट वृक्ष अब भी यहां उपस्थित है जहां भगवान श्री कृष्णा ने गीता का उपदेश दिया ! ये वट वृक्ष ( Banyan Tree ) उस समय का साक्षी है ! ज्योतिरसर मतलब प्रकाश पुंज या प्रकाश की अथाह राशि ! इस मंदिर के पास में ही एक सरोवर यानी ताल है और उस पर पैदल यात्रियों के लिए आने जाने के लिए एक छोटा सा पुल बना हुआ है ! मैं जब इधर उधर घूम रहा था तब भगवद् गीता का सबसे विख्यात श्लोक :

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानम् सृजामि अहम्
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्म संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे।


कोई बहुत ही सुन्दर आवाज में सुना रहा था ! सच कहूँ तो उसकी आवाज की भूरि भूरि प्रशंसा करूँगा ! इतनी मधुर और इतनी साफ़ ! मैं उसे देखने लग गया लेकिन पता नही कहा से आवाज़ आ रही थी ? ओह ! वो व्यक्ति उस पुल के नीचे पानी में मुंह लगाए बार बार वो ही श्लोक दोहरा रहा था और धीरे धीरे लोग उसके पास तक पहुँच रहे थे ! मैं भी पहुँचता लेकिन उससे पहले ही वो वहां से उठ गया ! जब वो बाहर आया तो लोग उसे पैसे देने लगे ! लेकिन उसने एक रुपया भी किसी से स्वीकार नही किया और धीरे धीरे करके चला गया ! कभी दोबारा मिला तो जरूर सुनना चाहूंगा ! आप भी यदि कभी जाते हैं उधर तो एक बार उसे जरूर सुनियेगा ! सच कहूँगा -इतनी मधुर आवाज आपने कभी नही सुनी होगी ! प्रतिभाएं कहाँ कहाँ मिल जाती हैं ?


इस परिसर में भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन की रथ वाली प्रतिमा संगमरमर से बनाई गयी है जो बहुत ही खूबसूरत है और ज्यादातर लोग इन्ही दो जगहों पर फोटो खिचवाते हैं ! एक वो वट वृक्ष के पास और एक इस कांच में बंद संगमरमर के रथ के साथ !











संगमरमर से बने रथ पर भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन विराजमान हैं !!


संगमरमर से बने रथ पर भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन विराजमान हैं !!


संगमरमर से बने रथ पर भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन विराजमान हैं !!





थोड़ा सा ध्यान से देखिये इस फोटो को , इसमें वो व्यक्ति पुल के नीचे दिखाई दे रहा है जो अपनी मधुर आवाज में गीता श्लोक गा  रहा था


 भगवद् गीता के जन्म का साक्षी वट वृक्ष


 भगवद् गीता के जन्म का साक्षी वट वृक्ष








छोटे छोटे मंदिरों में लगी प्रतिमाएं


छोटे छोटे मंदिरों में लगी प्रतिमाएं

बाल गोपाल









  सर्वेश्वर महादेव और अन्य मंदिर : कुरुक्षेत्र

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ब्रह्म सरोवर को साइड साइड से देखते हुए लगभग एक पूरा चक्कर गोल गोल लगा लिया और वापस जहाँ से चला था वहीँ आ गया ! यहाँ माँ कात्यायनी का एक प्राचीन मंदिर है हालाँकि मुझे आज तक ये नही समझ में आया कि प्राचीन मंदिर कहते किसे हैं ? कहीं कल मंदिर बना और उसके बाहर बोर्ड लगा मिलेगा , प्राचीन शिव मंदिर , प्राचीन हनुमान मंदिर ! जैसा मैंने पहले कहा कि अंदर रास्ता बहुत ही साफ़ सुथरा और चौड़ा है इसलिए कोई समस्या नही आती ! यहीं एक ऐसा मंदिर है जिसे द्रौपदी का कुआँ (कूप ) कहा जाता है लेकिन कूप तो कहीं नही दिखाई दिया ! थोड़ा सा आगे पूर्वमुखी हनुमान जी का मंदिर है ! गुणी पाठकों से निवेदन करूँगा कि इस विषय में ज्ञान वर्धन करें कि पूर्व मुखी , दक्षिण मुखी क्या होता है ?






थोड़ा सा आगे चलकर बल्कि ये कहें कि गेट के बिलकुल सामने ही एक खूबसूरत मंदिर है "सर्वेश्वर महादेव " का ! सर्वेश्वर महादेव भगवान शिव का ही कोई रूप हैं ! लेकिन मंदिर की दीवारों पर और इस शिखर पर अन्य मूर्तियां हैं जो वास्तव में बहुत सुन्दर हैं ! हाँ , ब्रह्म सरोवर में बोटिंग का आनंद भी उठाया जा सकता है ! ब्रह्म सरोवर से बाहर आकर एक और मंदिर है "दक्षिण मुखी प्राचीन हनुमान मंदिर " ! देखने लायक है ! आज लिखने को ज्यादा नही है ! अब आगे सीधे ज्योतिरसर चलेंगे !!












ये सर्वेश्वर महादेव मंदिर के एक कक्ष की छत है
सर्वेश्वर महादेव मंदिर में माँ की प्रतिमा
सर्वेश्वर महादेव मंदिर में माँ की प्रतिमा

ब्रह्म सरोवर
ब्रह्म सरोवर


ब्रह्म सरोवर से बाहर चलते हैं !! धन्यवाद आपका भी
दक्षिण मुखी प्राचीन हनुमान मंदिर "

दक्षिण मुखी प्राचीन हनुमान मंदिर "
दक्षिण मुखी प्राचीन हनुमान मंदिर "

दक्षिण मुखी प्राचीन हनुमान मंदिर "

 ब्रह्म सरोवर : कुरुक्षेत्र

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​कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन के बाहर से ब्रह्म सरोवर के लिए ऑटो मिल जाते हैं ! लेकिन कुरुक्षेत्र में दो सरोवर हैं ब्रह्म सरोवर और सन्निहित सरोवर ! ब्रह्म सरोवर को बड़ा सरोवर और सन्निहित सरोवर को छोटा सरोवर कहते हैं ! तो ब्रह्म सरोवर यानि बड़ा सरोवर चलते हैं !

ब्रह्म सरोवर में स्नान एक पुण्य कर्म माना जाता है ! आप देखें तो पाएंगे कि हिन्दू धर्म में पवित्र सरोवर या कुण्ड में नहाने की पुरानी परंपरा रही है और इसे पवित्र माना जाता है ! जैसे हेमकुंड , रूप कुण्ड ! ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ करने के बाद कुरुक्षेत्र से ही सृष्टि बनाने की शुरूआत की थी और ब्रह्म सरोवर इस सृष्टि का उद्गम माना जाता है ! इस सरोवर का नाम अल बरुनी द्वारा 11 वीं शताब्दी में लिखी गयी गई "किताब -उल- हिन्द " में भी आता है ! जब प्रतिवर्ष नवम्बर के अंत और दिसंबर के शुरुआत में यहां "गीता जयंती " का उत्सव मनाया जाता है तब इस सरोवर को देखना और भी सुन्दर लगता है ! ​उस समय यहां दीप दान और आरती भी होती है ! लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ यहां सूर्य ग्रहण के समय होती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के समय यहां स्नान करने से आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं !




ज्यादातर ऑटो वाले रोड पर ही उतार देते हैं , अंदर वो ही ऑटो जाते हैं जो हायर किये हुए होते हैं ! वैसे रोड से भी ज्यादा अंदर नही है ! मुश्किल से 10 मिनट लगते हैं ब्रह्म सरोवर तक आने में ! कुरुक्षेत्र में जिंदल ग्रुप ने बहुत काम किया हुआ है ! कांग्रेस के युवा सांसद और झण्डा अभियान के अग्रणी नवीन जिंदल का काम दिखाई देता है और उनका असर भी दीखता है उस क्षेत्र में ! बहुत से घरों के ऊपर तिरंगा लहराता हुआ दिखाई दे जाएगा ! ब्रह्म सरोवर से तुरंत पहले भगवान श्री कृष्णा की बहुत ही सुन्दर और बड़ी मूर्ति जिंदल ग्रुप ने लगाई हुई है और इसके साथ ही गीता के श्लोक भी लिखे हैं ! सामने ही सरोवर दिखाई देता है ! इस सरोवर को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है जो एक छोटे से पल के नीचे से आपस में में जुड़े हुए हैं ! रास्ता बहुत सुन्दर और साफ़ सुथरा है ! पानी भी बहुत साफ़ है सरोवर का ! स्नान तो नही किया मैंने लेकिन हाँ , आचमन जरूर कर लिया ! सरोवर के नहाने वाले घाटों पर सफाई भी ठीक ठाक है और महिलाओं के लिए अलग कवर्ड घाट हैं लेकिन इन घाटों को अलग अलग विशेष नाम दिए हैं ! जैसे अदिति घाट , सत्यभामा घाट ! महिलाओं के घाटों पर महिला का शानदार चित्र बनाया गया है !!

थोड़ा सा आगे जाकर भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन का महाभारत का वो दृश्य मूर्ति के रूप में विराजमान है जब भगवन श्री कृष्णा अर्जुन को धनुष उठाने और युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं ! बहुत ही बड़ा रथ है ये जिसमें चार घोड़ों को जोता गया है , मतलब इस रथ को चार घोड़े खींचते हुए दिखाए हैं ! ऊपर छत्र है और ध्वज पताका लहरा रही है ! ध्वज पताका पर भगवान बजरंगबली हनुमान विराजमान हैं ! यहां भी गीता के श्लोक लिखे हुए हैं और एक बोर्ड पर गीता सार लिखा हुआ है !


आगे की बात अगली पोस्ट में :

जिंदल ग्रुप द्वारा लगवाई गई भगवान श्री कृष्णा की मूर्ति

रथ में चार घोड़े जोते गए हैं
भगवान श्री कृष्णा , अर्जुन को कर्मयोगी बनने का सन्देश दे रहे हैं




​लहराती हुई धर्म पताका और वहां विराजमान ​भगवान हनुमान





ब्रह्म सरोवर की विशाल जलराशि
ब्रह्म सरोवर की विशाल जलराशि
ब्रह्म सरोवर की विशाल जलराशि

महिलाओं के लिए अलग घाट हैं





ये उसी रथ पीछे का हिस्सा है

  कुरुक्षेत्र : जहाँ भगवद् गीता का जन्म हुआ

कभी कभी ज्यादा छुट्टियां मिलना भी अच्छा नहीं लगता ! बोरियत शुरू होने लगती है ! दीपावली की लगभग पूरे सप्ताह की छुट्टियों में यही हाल रहा ! कहीं अगर जाने का सोचता तो हर जगह मिलने वाली भीड़ के बारे में सोचकर कदम पीछे हट जाते और ऐसे करके शुक्रवार यानि 13 नवंबर तक घर में ही पड़ा रहा और बच्चों के साथ दीपावली की खुशियां मनाता रहा ! पिछला दीपावली का त्यौहार गोवर्धन , मथुरा में मनाया था ! शुक्रवार को एकदम से प्लान किया कि शनिवार को कुरुक्षेत्र निकलता हूँ ! प्लान तो ये था कि सुबह गाजियाबाद से 7 बजे की emu  पकड़ के नयी दिल्ली और फिर नयी दिल्ली से 8 बजकर 10 मिनट पर निकलने वाली कुरुक्षेत्र EMU पकड़ लूंगा !  लेकिन ऐसा कुछ भी नही हो पाया ! उस रात प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इंग्लैंड के लंदन में वेम्ब्ले स्टेडियम में स्पीच दे रहे थे और उन्हें सुनते सुनते रात के बारह बज गए फिर तो नींद ही उखड गयी ! और मुश्किल से 2 या ढाई बजे नींद आई होगी ! अब 2 ढाई बजे सोकर कोई मतलब ही नही कि 6 बजे जग जाया जाए ! नींद खुली आठ बजे और आज तो चाय भी खुद ही बनानी थी ! निकलते निकलते 9 बज गए !



इरादा बस इतना था कि जो भी ट्रेन मिलेगी , नयी दिल्ली तक निकल जाऊँगा और फिर वहां से कुरुक्षेत्र की ट्रेन ले लूंगा ! टिकट लेकर जैसे ही प्लेटफार्म पर गया तो उद्घोषणा हो रही थी - इलाहाबाद से चलकर चंडीगढ़ जाने वाली ऊंचाहार एक्सप्रेस प्लेटफार्म नम्बर तीन पर आ रही है ! अब बस इतना देखना था कि ये कुरुक्षेत्र होकर जायेगी या नही ? नेट पर चैक किया तो मन को प्रसन्नता हुई ! कुरुक्षेत्र जायेगी और आज ये ट्रेन 6 घंटे की देरी से चल रही है , शायद मेरे लिए ? अन्यथा तो इसका ग़ाज़ियाबाद आने का समय सुबह 3 बजकर 25 मिनट का है ! भीड़ तो थी लेकिन दिल्ली आते आते ट्रेन लगभग खाली हो गयी और आराम से पैर फैलाकर बैठ लिए ! ट्रेन  दिल्ली निकलने के बाद सब्जी मण्डी पर और फिर , आजादपुर ,आदर्शनगर , बादली, खेड़ा कलां , होलम्बी कलां को निकालते हुए  नरेला पर रूकती है और इसके साथ ही दिल्ली छोड़कर हरयाणा में प्रवेश कर जाती है !

हरियाणा का पहला स्टेशन राठधना पड़ता है और इसके बाद हरसाना कलां है , हालाँकि एक्सप्रेस ट्रैन यहाँ नही रूकती !  फिर आता है सोनीपत ! सोनीपत इंडस्ट्री के  लिए बहुत प्रसिद्ध है ! सोनीपत के बाद ट्रेन संदल कलां , रजलु गढ़ी को पार करते हुए गन्नौर स्टेशन पर रूकती है और फिर केवल एक स्टेशन भोड़वाल माजरी छोड़कर अगले ही स्टेशन समालखा पर रूकती है ! इसके बाद आता है दिवाना और फिर पानीपत ! पानीपत में विश्व प्रसिद्द रिफाइनरी है।  पानीपत के बाद बाबरपुर , कोहण्ड , घरौंडा , बजीदा जाटान के बाद आता है करनाल ! करनाल का नाम शायद आपने सुना होगा ! कल्पना चावला याद है न आपको ? भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री जो कोलंबिया शटल में गयी तो थी आसमान में लेकिन कभी लौट के नही आ पायी ! सलूट कल्पना को ! लेकिन बाबरपुर ? शायद बाबर ने यहीं लड़ाई लड़ी होगी जो पानीपत की लड़ाई के नाम से इतिहास में दर्ज़ है ! लेकिन क्या इसका नाम नही  बदला जाना चाहिए ? 

आगे चलते हैं और अब करनाल से आगे का स्टेशन आता है भैनी खुर्द , फिर तरावड़ी और फिर नीलोखेड़ी और उसके बाद अमीन ! अमीन निकलते ही कुरुक्षेत्र स्टेशन ! दोपहर के एक बजकर 20 मिनट हुए हैं अभी ! हल्का फुल्का खाना खाया ! खाना खाकर अब सीधे ब्रह्म सरोवर चलते हैं लेकिन ब्रह्म सरोवर के चित्र और उसके विषय में जानकारी अगली पोस्ट में मिलेगी ! हाँ इस पोस्ट में आपको कुरुक्षेत्र के चौराहों पर लगी हुई शानदार प्रतिमाएं जरूर दिखेंगी जो इस शहर को बहुत खूबसूरत बनाती हैं ! ज्यादातर चौराहों पर ऐसी प्रतिमाएं दिखाई देती हैं !! कुछ चित्र इंटरनेट से भी संकलित किये गए हैं !



नरेला के बाद दिल्ली का क्षेत्र समाप्त होकर हरियाणा आ जाता है
सोनीपत

पढ़ने में मुश्किल ? भोड़वाल माजरी है ये
















कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का द्रोणाचार्य गेट

































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