Saturday, August 3, 2024

Jammu

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Amarnath Yatra 2022: Day 1

 पांच दिन जम्मू और उधमपुर के जाने -अनजाने स्थानों को घूम लेने के बाद कल से मुझे उस यात्रा पर निकलना था जिस यात्रा को करने के लिए मैं जम्मू आया था। अमरनाथ यात्रा ! अमरनाथ यात्रा कल यानि 29 जून 2022 से शुरू हो रही थी और आज 28 जून थी। मुझे पहले ही दिन अमरनाथ यात्रा पर जाना था और ये सोच समझकर लिया गया फैसला था क्यूंकि मैंने सोचा हुआ था कि जब भी अमरनाथ यात्रा पर जाऊँगा , पहले ही दिन जाऊँगा ! इसका एकमात्र कारण था कि मैं अमरनाथ यात्रा को जम्मू से शुरू होते हुए , मंत्रोचार के बीच इसके श्री गणेश का साक्षी बनकर इस यात्रा को देखना चाहता था।  


जम्मू -कश्मीर की सिम मैं पहले ही दिन जम्मू उतरते ही ले चुका था मगर कुछ चीजें अभी लेनी शेष थीं। मैं वैष्णवी भवन के सामने ही एक बाजार से जरुरत की सब चीजें ले आया। वहीँ एक सुन्दर शिव मंदिर में दर्शन भी कर आया।  इस मंदिर में बहुत सारा कांच लगा हुआ है जिससे इस मंदिर की सुंदरता और बढ़ जाती है।  रेलवे स्टेशन के आसपास , 30 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा के होर्डिंग लगे हुए थे जो इस क्षेत्र को अद्भुत शिवमय बना रहे थे।  

वापस अपने गेस्ट हाउस में लौटा और अपने यात्रा सम्बंधित कागज़ अलग फोल्डर में रख के अमरनाथ यात्रा के बेस कैंप -भगवती सदन पहुँच गया।  गेट से अंदर तक जाने में एक घण्टे से ज्यादा लग गया।  सुरक्षा के लिहाज से तगड़ी जांच पड़ताल हो रही थी। अंततः एक हॉल में पहुंचा मगर लेटने /बैठने की तो बात ही अलग , पैर रखने तक की जगह उपलब्ध नहीं थी। रात के लगभग 9 बजने को थे। लोगों ने सलाह दी कि पहले कल के लिए बस का टिकट करा लो ! 

बस काउंटर की लाइन में लग गया ! तीन तरह के टिकट बिक रहे थे -डीलक्स , सेमी डीलक्स और सामान्य बस ! डीलक्स बस का किराया जम्मू से पहलगाम तक का किराया 850 रूपये , सेमी डीलक्स का 650 रूपये और सामान्य का किराया 450 रूपये निर्धारित था। डीलक्स बस का टिकट माँगा एक -बताया गया कि डीलक्स  टिकट खत्म हो चुके हैं अब बस सेमी डीलक्स और सामान्य बस के ही टिकट उपलब्ध हैं। सेमी डीलक्स का एक टिकट बुक करा दिया जिसमे बस नंबर (54) और सीट नंबर लिखा था।  


पीछे की तरफ से बहुत शोर सुनाई दे रहा था मगर इस शोर को इग्नोर कर के पेट पूजा करने के लिए लंगर खाने चला गया।  बैग को इधर -उधर एक हॉल में पटक दिया था ! मुझे मालुम था -इतने भारी बैग को लेकर कोई लेकर नहीं जायेगा ! लंगर हॉल से बाहर निकला तो मेरी चप्पल गायब थीं ......मैं इधर -उधर ढूंढने लगा तो किसी ने पूछ लिया -चप्पल नहीं मिल रहीं क्या ? मैंने हँसते हुए कहा -हाँ ! बोले -उधर देख लो ! उधर उठा के रख दी हैं ! मिल गईं ! 


बैग पटक ही दिया था कहीं ! अब हाथ हिलाते हुए उधर चल पड़ा जिधर से लगातार शोर सुनाई दे रहा था ! दो काउंटर पर सिम मिल रहा था -जिओ और एयरटेल का।  यहाँ सिम 250 रूपये में मिल रहा था , मैंने 450 रूपये में लिया था ! दो सौ रूपये ज्यादा ... खैर ! होता है कभी -कभी !

जहाँ से शोर सुनाई दे रहा था वहां पहुंचा। हे -हे -हो-हो ...इसके अलावा कुछ और सुनाई नहीं दे रहा था न कोई कुछ बताने को तैयार था। भयंकर धक्का -मुक्की !  कई सारे काउंटर लगे थे ..भीड़ में से सर घुसाते हुए आगे पहुंचा तो पता चला कि इस बार RFID कार्ड जरुरी कर दिया है  और यहाँ वही RFID कार्ड इशू हो रहा था मगर अब भीड़ बहुत हो जाने और कार्ड कम पड़ जाने की वजह से रोक दिया गया है ! मैं वहीँ अटका रहा और भयंकर गर्मी से पसीने -पसीने होता रहा ! फिर कुछ देर बाद वहां अनाउंसमेंट हुआ कि आप लोग अपना RFID कार्ड पहलगाम के एंट्री गेट पर भी ले सकते हैं ! अमां यार ....पहले ही बता देते ! 

गर्मी ने बुरा हाल कर दिया था। हॉल के पीछे नहाने के लिए खुले पाइप पर नहाने वालों की लाइन लगी हुई थी , हम भी पहुँच गए ! ग्यारह या साढ़े ग्यारह बजे होंगे उस समय।  बताया गया सुबह 3 बजे से यात्रा शुरू होगी ! अब हमारे पास इतना समय नहीं था कि नींद खींच ली जाए ,मगर हाँ ! पैर लबे तो कर ही सकते थे इसलिए बैग उठाया और एक पार्क में आकर लम्बे हो गए।  

दो बजते -बजते लोग सामान समेटने लगे थे।  मेरी भी नींद उखड़ गई .... एक हल्की सी झपकी आ गई थी और इससे थकान कम हो गई थी।  अब अगले दिन की यात्रा के लिए तन और मन दोनों तैयार हो चुके थे।  बैग उठाकर सरकने लगे और उधर पहुँच गए जहाँ से यात्रा को हरी झण्डी दिखाने के लिए एक मंच बनाया गया था।  अभी तैयारी चल रही थी इसलिए इतने में अपनी वाली बस को खोज के उसमे बैग पटक दिया और गर्मागर्म चाय उदरस्थ कर दी।  


चार बजते-बजते पंडितों का एक समूह, राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार और टीवी चैनलों के कैमरे चमकने लगे थे ! किसी ने मेरा भी इंटरव्यू किया , जेके न्यूज़ था शायद वो चैनल ! अब सिर्फ इंतज़ार था जम्मू -कश्मीर के उपराज्यपाल माननीय मनोज सिन्हा जी का और उनके आते ही पूरे विधि विधान से मंत्रोच्चार शुरू हुआ और आसमान हर -हर महादेव के नारों से गुंजायमान होने लगा।  इसी क्षण  के लिए , इसी समय को जीने के लिए मैं यहाँ उपस्थित हुआ था ! इसी पल को अपनी आँखों  से देखने के लिए मैंने अप्रैल में रजिस्ट्रेशन शुरू होते ही मैंने पहले दिन अपना रजिस्ट्रेशन करा दिया था।  


चार बजकर 50 मिनट पर गाड़ियां निकलनी शुरू हो गईं। हम भी पांच बजते -बजते जम्मू की बाहरी सडकों पर जम्मू के निवासियों को सुबह की शीतल हवा का आनंद लेते हुए देख पा रहे थे।  बस की खिड़की खोली तो तेज शीतल हवा का एक झौंका मन  और चित्त को प्रसन्न कर गया और इतना प्रसन्न कर गया कि आँखें बंद हो गईं।  

शानदार और हरे -भरे जम्मू -श्रीनगर हाईवे पर बसें दौड़ती चली जा रही थीं लाइन से।  कहीं रुकी तो पता चला कि भण्डारा लगा है।  सुबह के 9 या 10 बजे होंगे।  लोग बुला -बुला के कुछ भी खाने के लिए आमंत्रित कर रहे थे।  ये भारत की संस्कृति है जिसे लिखना मुश्किल है सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  किसी को किसी की जाति से कोई मतलब नहीं था , सभी शिव के भक्त और सभी बाबा बर्फानी के दर्शन को व्याकुल।  


अनंतनाग से कुछ पहले हमारी बस खराब हो गई ! एक बस खराब हुई तो पूरा कॉन्वॉय रोक दिया गया।  आधा घण्टा लग गया बस ठीक होने में और तब हमने देखा कि इस कॉन्वॉय के साथ कितनी सुरक्षा चलती है ! आगे -पीछे CRPF  के साथ -साथ जम्मू कश्मीर पुलिस के कमाण्डो भी हमारी सुरक्षा में थे। थोड़ी देर के लिए वीआईपी वाली फीलिंग आने लगी थी हालाँकि ...इस सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत क्यों है ? ये सोचनीय विषय है ! अपने ही देश में बहुसंख्यक समाज की एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा को प्रतिवर्ष आयोजित करने के लिए इतनी सुरक्षा ? हमारी सहिष्णुता....क्या हमारी कमजोरी बन गई है ?


अनंतनाग शहर से निकलते हुए रास्ते के किनारे स्थानीय लोग तिरंगा झण्डा लेकर यात्रा का स्वागत करते दिखे।  अनंतनाग के आखिरी हिस्से में दो -तीन सिख लोगों को एक पेड़ के नीचे बैठे देखकर सुकून मिला कि आज भी अनंतनाग में कुछ नॉन मुस्लिम रहते हैं।  

रुकते -खाते -पीते हम लगभग दोपहर बाद तीन बजे के आसपास पहलगाम पहुंचा दिए गए थे।  जहाँ हमें उतारा गया था वहीँ बराबर में पहलगाम की जीवन रेखा -लिद्दर नदी एकदम स्वच्छ रूप में बह रही थी।  हमसे पहले पहुंचे लोगों ने इस नदी में उतर के माहौल बना  दिया था तो हम भी क्यों पीछे रहते ! बहुत ठण्डा मगर उतना ही स्वच्छ जल जैसे एकदम अभी ग्लेशियर से पिघल के आ रहा हो ! 


पांच बजे के आसपास हम उस गेट पर थे जहाँ से एंट्री लेकर दूसरी तरफ निकल जाना था।  यहीं पहले हमें RFID कार्ड भी लेना था , अपने कागज़ चेक कराने थे।  इस पूरे प्रोसेस में लगभग आधा घण्टा लग गया था और जब बाहर निकला दूसरी तरफ तो उधर कोलकाता से आये यूथिका चौधरी और उनके पतिदेव विक्रम खन्ना जी इंतज़ार करते मिले।  उनके साथ ही उनके होटल में रुकने के लिए ऊपर की ओर चल पड़ा हालाँकि 300 रूपये प्रति व्यक्ति की दर से यहाँ टैण्ट में भी रुका जा सकता है।  


होटल में उनके एक और मित्र थे , मैं उनके साथ ही उनके रूम में रुक गया।  आज रात यहाँ रुकना था और सुबह -सुबह ही यात्रा शुरू करने के लिए चंदनवाड़ी निकल जाना था।  चाय पीकर पास में ही स्थित मामल मंदिर या ममलेश्वर मंदिर  के दर्शन के लिए निकल गए।  हालाँकि मंदिर बंद हो चुका था मगर बाहर से दर्शन करना और छोटे से मंदिर की सुंदरता को तो देखा ही जा सकता था।  ये वही मंदिर माना जाता है जहाँ भगवान शिव ने गणेश जी की नाक काट के सूंड लगा दी थी।  कहते हैं कि ये मंदिर पांचवीं शताब्दी का बना हुआ है।  बहुत ही खूबसूरत और दर्शनीय मंदिर है ममलेश्वर मंदिर।  





रात नौ बजे आसपास खाना खाने के बाद  अगले दिन की यात्रा के सब पैकिंग कर के रख दिया और सो गए ! 
अगले दिन की बात अगली पोस्ट में करेंगे ......

 Babor Temples : Manwal-Jammu

 बाबोर मंदिर: मनवाल


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यात्रा दिनांक : 29 जून 2022 

काला डेरा मंदिर घूम के निकल आया था ! लौटते हुए उसी दुकान से , जिससे थोड़ी देर पहले ही कोल्ड ड्रिंक खरीदी थी , पानी की बोतल ले ली।  गर्मी भयंकर थी और उस पर भी जून के आखिरी सप्ताह की दोपहर ! शरीर का पानी , पसीना बन के बाहर निकलता जा रहा था लगातार और इस कमी को पूरा करते जाना जरुरी हो गया था।Youtube Link : https://www.youtube.com/watch?v=gSc8HGbCjSQ&t=232s

 Kala Dera Mandir: Manwal Jammu -Kashmir

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काला डेरा मंदिर मनवाल

Date : 28 June 2022

मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के बाद वापस लौटने का समय हो गया था।  मानसर लेक के बराबर में एक रास्ता जम्मू से आता  हुआ दिख रहा था , ये शायद कुछ् शॉर्ट होगा मगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं दिख रहा था इस रोड पर। केवल प्राइवेट वाहन या कुछ ट्रक ही आते -जाते दिख रहे थे।  हालाँकि मुझे भी इस रास्ते से अभी जम्मू नहीं लौटना था मगर चाय -समोसा खाते हुए एक दुकान पर बैठकर आते -जाते वाहनों को देखता रहा।  


मुझे वापस मनवाल ही लौटना था।  अभी दोपहर के दो बजे थे और मनवाल से जम्मू की ट्रेन का समय लगभग साढ़े पांच बजे का था।  मानसर से मनवाल 30 -35 किलोमीटर दूर था मगर मेरी मुश्किल दूरी नहीं समय की थी।  मनवाल टाउन से कुछ पहले कुछ पुराने मंदिरों का एक बोर्ड लगा दिखाई दिया था , मुझे उन मंदिरों तक पहुंचना था और फिर ट्रेन भी पकड़नी थी।  मुझे न अभी तक उन मंदिरों का नाम पता था न उनकी मनवाल टाउन से दूरी का कोई आईडिया था। 


वापस आने में ज्यादा देर नहीं लगी।  सुरिंसर से मानसर तक के लिए एक कार से लिफ्ट मिल गई और जैसे ही उस कार से उतरा , मुश्किल से पांच मिनट के अंदर मनवाल के लिए बस भी आ गई।  टिकट लेते हुए उस भाई से बता दिया था कि भाई एक जगह मंदिरों का कुछ बोर्ड जैसा लगा है वहां उतार देना , मगर मालुम नहीं वो भूल गया या उस मेरी बात समझ नहीं आई थी , वो बस को फुल स्पीड में चलाता हुआ आगे निकल गया।  मुझे फिर से वो बोर्ड दिखा तो मैं एक तरह से चिल्लाया -रोकियो भाई ! रोकियो ..तब उसे याद आया कि मैंने उसे -कुछ बोला भी था ! 



मैं 50 कदम लौटा ! बोर्ड मुझे अपने राइट साइड में दिखा था और मुझे बस ने लेफ्ट साइड में उतारा था।  भारत में लेफ्ट साइड ड्राइविंग ही है तो निश्चित सी बात है कि बस लेफ्ट में ही चल रही थी।  मैं रोड क्रॉस कर के उधर जाता , उससे पहले एक कोल्डड्रिंक पीने का मन हो रहा था।  जून का महीना अपने आखिरी पड़ाव में था तो स्वाभाविक है कि भयंकर गर्मी थी।  कुछ कदम और चला दुकान की तरफ तो वहां दुकान के बराबर में ही एक धुंधला सा बॉर्ड लगा था -पढ़ने की कोशिश की तो समझ आया ! काले रंग के बोर्ड पर सफ़ेद अक्षरों में हिंदी में लिखा था -काला डेरा मंदिर ! कोल्डड्रिंक जिस दुकान से ली थी उसी आदमी से पूछा -इधर क्या है ? बहुत पुराने मंदिर हैं ! नींद में खलल डाल दिया था शायद मैंने उसकी ....वो कोल्डड्रिंक की बोतल पकड़ा के ऐसे सो गया फिर से जैसे जन्म जन्मांतर से न सोया हो ! 


तू सोता रह भाई ! मैं बराबर में ही बने एक गेट से अंदर प्रवेश कर गया।  रास्ता एक लम्बी -खाली गली जैसा था जिसके एक तरफ घर बने थे और दूसरी तरफ खाली जगह पड़ी थी जिसके चारों तरफ कंटीले तार लगे थे।  करीब 200 मीटर चलने के बाद मैं एक ऐसी जगह पहुँच चुका था जिसका मैंने पहले न कभी नाम सुना था न वो मेरे इस बार के किसी प्रोग्राम में शामिल थी।  आया तो था मानसर और सुरिंसर लेक देखने के लिए मगर ये तो आनंद आ गया ! एक और नई जगह देखने को मिल गई।  



सामने एक चारपाई पर केयरटेकर फैले पड़े थे पेड़ की छाँव मे।  उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि जून की भरी गर्मी में दोपहर की चिलचिलाती धूप  में कोई बांगड़बिल्ला इधर आ धमकेगा !  मुझे देखकर उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और फिर अपनी उसी सपनीली दुनियां में खो गए / शायद सो गए ! 


मैं आज जिस जगह को आपको दिखाने और बताने जा रहा हूँ उस जगह के बारे में आपने न कभी पहले सुना होगा न शायद पढ़ा होगा।  हम में से ज्यादातर लोग ऐसी जगह जाना पसंद करते हैं जो भीड़भाड़ से भरी रहती हैं , जिनका विज्ञापन आप हर रोज़ देखते हैं या ज्यादा चमकती हैं और जिन जगहों के फोटो अच्छे आते हैं मगर मुझे पसंद हैं ऐसी भी जगहें जो बहुत पुरानी होती हैं , बहुत सुन्दर भले न हों लेकिन इतिहास समेटे हुए हों।  इनमे से ही एक जगह हैं काला डेरा के शिव मंदिर ! जम्मू -उधमपुर के बीच पड़ने वाले छोटे से टाउन मनवाल के पास स्थित ये मंदिर 10 वीं या शायद 11 वीं शताब्दी के बने हुए हैं जिन्हें डोगरा शासकों ने बनवाया था।  काला डेरा का मतलब होता है काले पत्थर के बने मंदिर।  



आसपास अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ है जिससे यहाँ पहुंचकर बोरियत महसूस नहीं होती।  शुरुआत में ही आकर्षित करते स्ट्रक्चर हैं जिनके खम्भे बहुत ही सुन्दर और डिज़ाइनदार हैं। मेरा विश्वास है कि आप निराश नहीं होंगे।  थोड़ा आगे चलकर मुख्य मंदिर नजर आता है जिसको एक प्लेटफार्म पर इस तरह से बनाया गया है जिससे श्रदालुओं को आने और दर्शन कर के निकलने में परेशानी न हो।  मंडप हालाँकि छोटा है और गर्भगृह में शिवलिंग विराजमान हैं।  मंदिर के सामने विराजित नंदी को किसी ने नुकसान पहुँचाया हुआ है।  


अब यहाँ जितना घूमना था वो घूम चुका हूँ और मोबाइल की घडी चार बजते हुए दिखा रही है।  मुझे अभी यहीं पास में एक और ऐसी ही अनजानी सी जगह भी जाना है इसलिए यहाँ से निकलने का समय आ पहुंचा है।  अगली पोस्ट में आपको एक और बेहतरीन जगह लेकर जाऊँगा। .. आते रहिएगा  

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26 June-2022

शाम होने में अभी कुछ देर बाकी थी ! शायद तीन या साढ़े तीन बजे होंगे जब मैं बहु बाग़ से बाहर निकला था।  जिस गेट से एंट्री लिया था उससे दूसरे वाले गेट पर बाहर निकला था , यहां सुखराम बिश्नोई जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! एंट्री गेट पर आपको चाय -पानी तक की भी कोई दुकान देखने तक को भी नहीं मिलती मगर इस वाले गेट पर न केवल दुकानें थीं बल्कि ऑटो / ई रिक्शा भी बहुत सारे खड़े थे ! 



सुखराम बिश्नोई भाई अपनी हॉस्पिटल ड्यूटी खत्म कर के सीधे यहीं आ गए थे अपनी बाइक से और इससे मेरा बहुत सा टाइम बच गया जिससे मैं ऐसी जगहों तक भी जा पाया जिनके बारे में मुझे पहले से पता नहीं था ! ऐसी ही एक जगह थी -जम्मू का बलिदान स्तम्भ ! 



बलिदान स्तंभ ,  जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित एक स्मारक है । इसका निर्माण उन सैनिकों और पुलिसकर्मियों के वीरतापूर्ण कार्यों को याद करने के लिए किया गया था जो सीमाओं की संप्रभुता की रक्षा के लिए और जम्मू-कश्मीर में चल रहे विद्रोह के दौरान मारे गए थे । देश में अपनी तरह का पहला निर्माण भारतीय सेना द्वारा 2009 में 13 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। यह एक सैनिक की बंदूक के आकार में साठ मीटर ऊंचा है। देश भर के 52 स्तंभों पर 4877 शहीदों के नाम अंकित हैं। कुछ स्तंभ कारगिल युद्ध में शहीद हुए 543 सैनिकों को समर्पित हैं। इन शहीदों में से 71 जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों से थे। बाद में, जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के दौरान मारे गए सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के 15,000 कर्मियों को स्मारक में सम्मानित किया गया। 




स्तंभ का आकार 
संगीन राइफल जैसा है। स्तंभ की ऊंचाई आधार से लगभग 60 मीटर है और सूर्य की किरणें इसके किनारों से छनकर आती हैं। आधार पर एक शाश्वत ज्योति है, शहीद की लौ को राइफल के बट के भीतर रखा जाता है। स्मारक का डिज़ाइन 5.56 मिमी इंसास राइफल के इर्द-गिर्द घूमता है । प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ 6 मीटर लंबी इंसास गोलियां खड़ी की गई हैं। यह स्मारक विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के भीतर युद्ध और आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान शहीद हुए सैनिकों को समर्पित है। इसमें 1947-1948 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1962 का भारत-चीन युद्ध , 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1999 का कारगिल युद्ध और 1990 के बाद से आतंकवाद विरोधी अभियान शामिल हैं। ये नाम स्मारक की परिधि के चारों ओर बने स्तंभों और अमर जवान ज्योति के आसपास की दीवारों पर भी अंकित हैं। परिधि के आधे हिस्से में परमवीर चक्र और अशोक चक्र पुरस्कार विजेताओं के भित्ति चित्र हैं


जितनी सुन्दर और ऐतिहासिक ये जगह है उस हिसाब से यहाँ हमें उतने लोग नहीं दिखाई दिए।  बाद में जब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स में इस बात का जिक्र किया तो पता चला कि ज्यादातर लोगों को इस जगह का पता ही नहीं है , यहाँ तक कि जम्मू के स्थानीय लोग भी इस जगह से अनभिज्ञ हैं ! 

           

अगर आप कभी जम्मू से कटरा या जम्मू से उधमपुर वाली ट्रेन से गए हों तो आपको इस पर लगी राइफल स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन आप इसको तभी पहचान पाएंगे जब आप यहाँ कभी गए हों ! सर्दियों में शाम पांच बजे तक और गर्मी के मौसम में छह बजे तक खुले रहने वाले बलिदान स्तम्भ का कोई टिकट नहीं लगता है ! 

हमे लगभग पांच बज चुके थे और अब यहाँ बलिदान स्तम्भ पर देखने के लिए कुछ खास बचा नहीं था इसलिए बिश्नोई भाई ने अपनी बाइक कहीं और जाने के लिए तेजी से दौड़ा दी। मेने उनसे पुछा भी - अब कहाँ ? तोह बोले -योगी भाई आपको बहुत जबरदस्त जगह दिखाऊंगा जो बिलकुल आपके मतलब की है। 

उन्होंने बाइक इधर उधर घूमते हुए अमर पैलेस पर जाके रोक दी। अमर पैलेस डोगरा राजाओं के समय में एक महल हुआ करता था जो अब होटल में परिवर्तित हो चुका है।  यहाँ हमारे लिए करने को कुछ था नहीं तो बहार से एक - दो फोटो लिए और चलते बने। 


अगला पड़ाव मुबारक मंडी था। मुबारक मंडी डोगरा राजाओं के समय का सचिवालय कहा जा सकता है। यहाँ आपको डोगरा राजाओं के समय के विदेश मंत्रालय , रक्षामंत्रालय  जैसी बिल्डिंग देखने को मिल जाएँगी। यहाँ विदेश मंत्रालय वाले भवन में एक म्यूजियम भी है मगर जब वहां पहुंचा तब तक वह बंद हो चुका था। 



आसपास की अधिकांश बिल्डिंग यूरोपियन स्टाइल में बनी हुई है जिनका अब जीर्णोद्धार किया जा रहा है। उम्मीद कर सकते है कि यहाँ फिर से वही पुराना रूप और गौरव दिखाई देगा !




पास में ही रानी चरक का खण्डहरनुमा महल भी है जो बहुत आकर्षित करता है ! बिलकुल गिरने की हालत में एक पहाड़ी पर खड़ा ये महल , मेरे लिए जम्मू का सबसे बड़ा आकर्षण था ! पहाड़ी तक जाकर इस महल में घुसने की न तो इजाजत थी और न उतना समय था हमारे पास इसलिए नीचे से ही फोटो लिए और अपनी अगली और आखिरी मंजिल की तरफ बढ़ गए! आखिरी मंजिल -जामवंत गुफा! मगर उसकी बात अगली पोस्ट में करेंगे..... 




 Places to visit in Jammu : Jamwant Gufa

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जामवंत गुफा ,जम्मू 

26 June-2022



मुबारक मण्डी हेरिटेज से वापस लौट रहे थे , बिश्नोई जी बोले कि चलिए एक और जगह दिखा के लाता हूँ।  मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीर खो है ! जामवंत की गुफाएं भी कहते हैं इस जगह को ! तो अब हम पीर खो नहीं बल्कि जामवंत गुफा ही लिखेंगे आगे।  इस गुफा में कई पीरों, फकीरों, और ऋषियों ने तपस्या की,  इस कारण से इसका नाम पीर खोह् पड़  गया। डोगरी भाषा में इसे खोह् गुफा भी बोलते है।



कहते है कि श्री राम -रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब  विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।

उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो। इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था।



एक कथा के अनुसार राजा सत्यजीत ने सुर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को प्रकाश मणि प्रसाद के रूप में दे दी। राजा का भाई मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने मणि धारण कर ली। इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर मणि प्राप्त की। कृष्ण से हारने के बाद ये मणि जामवंत ने कृष्ण को दे दी।


यहीं से कृष्ण और जामवंत फिर से मिले। जामवंत ने कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया यहीं पर जामवंत ने कृष्ण के समक्ष अपने पुत्री सत्य भामां से विवाह का अनुरोध किया और दहेज स्वरूप प्रकाश मणि दी।


ये तो हो गई इस जगह से जुडी कहानी ! अब मंदिर में चलते हैं ! सीढ़ियों से जैसे ही ऊपर पहुँचते हैं एक बड़ा सा हॉल दीखता है और उस हॉल में से ही कहीं नीचे की तरफ सीढ़ियां जाती हैं।  छोटी -छोटी सीढ़ियां उतरते हुए कभी कभी ऐसा लगता है जैसे सिर अभी टकरा जाएगा मगर जैसे ही आप नीचे उतर जाते हैं , छोटे मगर बहुत ही सुन्दर मंदिर बने हुए हैं।  यही गुफा मंदिर हैं ! फोटो या वीडियो लेना सख्त मना है मगर मैंने अनुरोध किया तो मुझे एक फोटो लेने की अनुमति मिल गई ! 



मंदिर प्रांगण  उतरे तो बराबर में ही एक सुन्दर पार्क है और इस पार्क के एक कोने पर रोप वे का स्टेशन भी है।  पता किया तो बताया गया कि ये रोप वे जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक जाती है और फिर महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक जाती है।  उस वक्त यानि कि जून -2022 में ,  इसका किराया जामवंत गुफा से महामाया मंदिर तक 150 रुपए था और इतना ही महामाया मंदिर से बहु फोर्ट तक का था मगर आप एक साथ आने जाने का करेंगे तो ये 500 रूपये प्रति व्यक्ति हो जाता है।  


मैं हालाँकि इस रोप वे में बैठा नहीं था मगर कल्पना करें तो जब ये तवी नदी और बहु गार्डन के ऊपर से होकर गुजरती होगी , अद्भुत दृश्य देखने को मिलता होगा।  मुझे जानकारी नहीं थी तब और न उतना समय बचा था क्योंकि ये शाम छह बजे तक ही मिलती है और सुबह 11 बजे शुरू होती है।  आपको मौका मिले तो जरूर आनंद लीजियेगा , अच्छा लगेगा ! 

थक चुका था मैं ! सुबह लगभग आठ बजे से ही घूमता फिर रहा था तो पार्क में एक जगह मैं और बिश्नोई भाई , कोल्डड्रिंक और चिप्स लेकर बैठ गए ! अन्धेरा होने में अभी कुछ देर बाकी थी मगर जैसे ही हल्का सा अँधेरा घिरने लगा , पार्क के एक कोने में लगी भगवान शिव की मूर्ति और उसके आसपास लगे फव्वारे चमक उठे।  शिव की मूर्ति से निकलती जलधारा , माँ गंगा का रूप व्यक्त करती हुई प्रतीत होती हैं।  


जैसे -जैसे शाम घिरने लग रही थी , भीड़ बढ़ती जा रही थी।  ये ज्यादातर स्थानीय लोग थे जो अपने बच्चों के साथ पिकनिक मनाने आ रहे थे।  

अब ऐसा कुछ जम्मू शहर में रह नहीं गया था जो मेरी लिस्ट में रहा हो और देख न पाया होऊं ! बल्कि जितना सोचा था उससे ज्यादा , बहुत ज्यादा देखने और घूमने का मौका मिल गया और ये सब संभव हुआ मित्र सूखराम बिश्नोई जी की वजह से ! धन्यवाद भाई जी !! 


बिश्नोई भाई ने मुझे सरस्वती भवन छोड़ दिया।  खाना खाकर अब बस सो जाना है क्यूंकि कल उधमपुर जाऊँगा और आपको एक ऐसी जगह 
दिखाऊंगा  जो बहुत ऐतिहासिक है... प्राचीन है.... विशिष्ट है... मगर जिसके विषय में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है... आते रहिएगा !! 

 Balidan Stambh-Mubarak Mandi : Jammu

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26 June-2022

शाम होने में अभी कुछ देर बाकी थी ! शायद तीन या साढ़े तीन बजे होंगे जब मैं बहु बाग़ से बाहर निकला था।  जिस गेट से एंट्री लिया था उससे दूसरे वाले गेट पर बाहर निकला था , यहां सुखराम बिश्नोई जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! एंट्री गेट पर आपको चाय -पानी तक की भी कोई दुकान देखने तक को भी नहीं मिलती मगर इस वाले गेट पर न केवल दुकानें थीं बल्कि ऑटो / ई रिक्शा भी बहुत सारे खड़े थे ! 



सुखराम बिश्नोई भाई अपनी हॉस्पिटल ड्यूटी खत्म कर के सीधे यहीं आ गए थे अपनी बाइक से और इससे मेरा बहुत सा टाइम बच गया जिससे मैं ऐसी जगहों तक भी जा पाया जिनके बारे में मुझे पहले से पता नहीं था ! ऐसी ही एक जगह थी -जम्मू का बलिदान स्तम्भ ! 



बलिदान स्तंभ ,  जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित एक स्मारक है । इसका निर्माण उन सैनिकों और पुलिसकर्मियों के वीरतापूर्ण कार्यों को याद करने के लिए किया गया था जो सीमाओं की संप्रभुता की रक्षा के लिए और जम्मू-कश्मीर में चल रहे विद्रोह के दौरान मारे गए थे । देश में अपनी तरह का पहला निर्माण भारतीय सेना द्वारा 2009 में 13 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। यह एक सैनिक की बंदूक के आकार में साठ मीटर ऊंचा है। देश भर के 52 स्तंभों पर 4877 शहीदों के नाम अंकित हैं। कुछ स्तंभ कारगिल युद्ध में शहीद हुए 543 सैनिकों को समर्पित हैं। इन शहीदों में से 71 जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों से थे। बाद में, जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के दौरान मारे गए सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के 15,000 कर्मियों को स्मारक में सम्मानित किया गया। 




स्तंभ का आकार 
संगीन राइफल जैसा है। स्तंभ की ऊंचाई आधार से लगभग 60 मीटर है और सूर्य की किरणें इसके किनारों से छनकर आती हैं। आधार पर एक शाश्वत ज्योति है, शहीद की लौ को राइफल के बट के भीतर रखा जाता है। स्मारक का डिज़ाइन 5.56 मिमी इंसास राइफल के इर्द-गिर्द घूमता है । प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ 6 मीटर लंबी इंसास गोलियां खड़ी की गई हैं। यह स्मारक विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के भीतर युद्ध और आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान शहीद हुए सैनिकों को समर्पित है। इसमें 1947-1948 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1962 का भारत-चीन युद्ध , 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध , 1999 का कारगिल युद्ध और 1990 के बाद से आतंकवाद विरोधी अभियान शामिल हैं। ये नाम स्मारक की परिधि के चारों ओर बने स्तंभों और अमर जवान ज्योति के आसपास की दीवारों पर भी अंकित हैं। परिधि के आधे हिस्से में परमवीर चक्र और अशोक चक्र पुरस्कार विजेताओं के भित्ति चित्र हैं


जितनी सुन्दर और ऐतिहासिक ये जगह है उस हिसाब से यहाँ हमें उतने लोग नहीं दिखाई दिए।  बाद में जब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स में इस बात का जिक्र किया तो पता चला कि ज्यादातर लोगों को इस जगह का पता ही नहीं है , यहाँ तक कि जम्मू के स्थानीय लोग भी इस जगह से अनभिज्ञ हैं ! 

           

अगर आप कभी जम्मू से कटरा या जम्मू से उधमपुर वाली ट्रेन से गए हों तो आपको इस पर लगी राइफल स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन आप इसको तभी पहचान पाएंगे जब आप यहाँ कभी गए हों ! सर्दियों में शाम पांच बजे तक और गर्मी के मौसम में छह बजे तक खुले रहने वाले बलिदान स्तम्भ का कोई टिकट नहीं लगता है ! 

हमे लगभग पांच बज चुके थे और अब यहाँ बलिदान स्तम्भ पर देखने के लिए कुछ खास बचा नहीं था इसलिए बिश्नोई भाई ने अपनी बाइक कहीं और जाने के लिए तेजी से दौड़ा दी। मेने उनसे पुछा भी - अब कहाँ ? तोह बोले -योगी भाई आपको बहुत जबरदस्त जगह दिखाऊंगा जो बिलकुल आपके मतलब की है। 

उन्होंने बाइक इधर उधर घूमते हुए अमर पैलेस पर जाके रोक दी। अमर पैलेस डोगरा राजाओं के समय में एक महल हुआ करता था जो अब होटल में परिवर्तित हो चुका है।  यहाँ हमारे लिए करने को कुछ था नहीं तो बहार से एक - दो फोटो लिए और चलते बने। 


अगला पड़ाव मुबारक मंडी था। मुबारक मंडी डोगरा राजाओं के समय का सचिवालय कहा जा सकता है। यहाँ आपको डोगरा राजाओं के समय के विदेश मंत्रालय , रक्षामंत्रालय  जैसी बिल्डिंग देखने को मिल जाएँगी। यहाँ विदेश मंत्रालय वाले भवन में एक म्यूजियम भी है मगर जब वहां पहुंचा तब तक वह बंद हो चुका था। 



आसपास की अधिकांश बिल्डिंग यूरोपियन स्टाइल में बनी हुई है जिनका अब जीर्णोद्धार किया जा रहा है। उम्मीद कर सकते है कि यहाँ फिर से वही पुराना रूप और गौरव दिखाई देगा !




पास में ही रानी चरक का खण्डहरनुमा महल भी है जो बहुत आकर्षित करता है ! बिलकुल गिरने की हालत में एक पहाड़ी पर खड़ा ये महल , मेरे लिए जम्मू का सबसे बड़ा आकर्षण था ! पहाड़ी तक जाकर इस महल में घुसने की न तो इजाजत थी और न उतना समय था हमारे पास इसलिए नीचे से ही फोटो लिए और अपनी अगली और आखिरी मंजिल की तरफ बढ़ गए! आखिरी मंजिल -जामवंत गुफा! मगर उसकी बात अगली पोस्ट में करेंगे..... 

 Bahu Fort Jammu

 जम्मू कश्मीर यात्रा 

फिर से एक और यात्रा पर निकला था लेकिन लिखने में बहुत देर हुई है , क्षमा चाहता हूँ आप सभी से ! लेकिन आपको इस यात्रा में कुछ जानी पहचानी और कुछ ऐसी जगहें दिखाने वाला हूँ जिन्हें आपने पहले कभी नहीं देखा होगा ! आपने शायद उनके बारे में कभी सुना भी नहीं होगा  ! 


मैं जून 2022 में एक लम्बी और शानदार जम्मू कश्मीर यात्रा पर निकला था , कुल 14 दिन की यात्रा के लिए ! इस यात्रा में से पांच दिन मैं जम्मू में ही रहा और आसपास की कुछ जानी -कुछ अनजानी जगहों तक भी पहुंचा।  



तारीख थी 25 जून 2022 , और मैं जिंदगी में दूसरी बार जम्मू रेलवे स्टेशन उतर चुका था।  सुबह के 8 या साढ़े आठ ही बजे होंगे। मेरा बैग कपड़ों से एकदम ठसाठस भरा था , गर्मी के भी कपडे थे और गर्म कपडे भी थे।  न न , जम्मू में जून में सर्दी नहीं पड़ती ! सर्दी पड़ती है अमरनाथ की यात्रा में ! मेरे बैग में अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन भी था पहले ही दिन का।  पहला दिन -पहला शो ! अमरनाथ यात्रा की बात बाद में करेंगे पहले जम्मू की बात कर लेते हैं।  


तो जम्मू पहुँच गया जी।  मैंने सोचा -अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन तो है ही मेरे पास तो भगवती नगर में ही जाकर रुकता हूँ।  पूरा तामझाम लेकर भगवती नगर पहुंचा तो बोले भैया अभी यहाँ कुछ नहीं है , 30 जून से यात्रा है तो 29 को ही आइये।  बैग फिर से पीठ पर लटकाया और पैदल पैदल वापस लौटने लगा कि कुछ मिल जाए E-रिक्शा वगैरह।  पास में ही एक मंदिर दिखा तो वहां पहुंचा।  रुकने की ख़ास व्यवस्था नहीं थी मगर चाय -पूड़ी और सब्जी मिल गई वहां।  वहां से निकला तो धीरे -धीरे चलने लगा ... कोई गर्ल्स कॉलेज था जिसकी दीवारों पर बहुत बेहतरीन पेंटिंग बनाई हुई थी।  कुछ फोटो लिए और अपना रास्ता पकड़ लिया।  लौट के स्टेशन पर आया तो पता चला -एकदम पास में ही वैष्णो देवी धाम के तीन रेस्ट हाउस हैं ! वैष्णवी , सरस्वती और कालिका धाम ! मुझे सरस्वती में 150 रूपये में AC डॉरमिटरी मिल गई।  आनंद आ गया ! इतना सस्ता और स्टेशन के एकदम पास ! 



मैं इस इरादे से गया था कि अमरनाथ यात्रा से लौट के , कश्मीर घूमते हुए हिमाचल में ट्रैकिंग भी करूँगा।  इसी उद्देश्य से स्लीपिंग बैग और टेंट भी लेकर गया था।  वजन ज्यादा लगने लगा था तो बाद में , जोधपुर के रहने वाले और जम्मू में पोस्टेड मित्र सुखाराम बिश्नोई जी के पास ये सामान छोड़ दिया।  पहला दिन था जम्मू में ! घूमने को बहुत था इधर लेकिन शुरू कहाँ से करूँ ? एकदम नहाधोकर फ्रेश हुए और निकल पड़े बहु फोर्ट देखने।  फोर्ट के आसपास की दीवारों पर भी सुन्दर कृतियां उकेरी हुई हैं जो जम्मू की पहचान को व्यक्त करती हुई दिखती हैं।  




आगे बढ़ें -इससे पहले कुछ इस किले का इतिहास भी जान लेंगे तो और अच्छा है ! 

बहू किला जम्मू के सबसे पुराने किलों में से एक है, जिसे राजा बाहुलोचन ने लगभग 3000 साल पहले बनवाया था और बाद में 19 वीं शताब्दी में किंग्स ऑफ डोगरा राजवंश द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस किले का धार्मिक महत्व भी है,क्योंकि यहां काली माता का भी एक सुन्दर मंदिर है जिन्हें स्थानीय  लोग  “बावली वाली माता” कहकर पुकारते हैं। 





इस किले का संबंध बहू लोचन और राजा जम्बू लोचन से है, दोनों राजा अग्निगर्भ द्वितीय के पुत्र थे जो सूर्यवंशी वंश के थे। अग्निगर्भ के 18 पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र, बहू को जम्मू शहर के विकास के साथ-साथ किले के लिए भी श्रेय दिया गया है। इस किले की प्रागैतिहासिक संरचना कई वर्षों पहले से एक सुसज्जित संरचना में बदल गई। ऑटार देव जो शासक कपूर देव के पोते थे, ने 1585 में इसी स्थान पर इस किले का पुनर्निर्माण कराया। कई वर्षों तक यह किला समय-समय पर ध्वस्त और पुनर्निर्माण करता रहता है, लेकिन अंतिम वर्तमान संरचना 19 वीं शताब्दी में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा बनाई गई थी। इस किले को फिर से अपने शासन की अवधि के दौरान महाराजा रणबीर सिंह द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। 



ऐसा कहा जाता है कि एक दिन जब राजा शिकार पर थे, उन्होंने एक असामान्य दृश्य देखा- एक बाघ और एक बकरी बाघ पर हमला किए बिना तवी नदी का पानी पी रहे थे! इसे ईश्वरीय संकेत मानते हुए। राजा ने तब यहां इस किले के साथ अपनी राजधानी स्थापित की थी। किला एक ऊंची पठारी भूमि है, जो तवी नदी के बाईं ओर है।





किले की वास्तुकला स्पष्ट रूप से डोगरा शासकों के भव्यता को दर्शाती है। बहू किले के चारों ओर एक बगीचा है। इसे बाग-ए-बहू कहा जाता है और यह एक बहुत अच्छी तरह से Maintained garden है जिसमें सुंदर फूलों के बिस्तर, फव्वारे और उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा भूमिगत मछलीघर यानी Aquarium भी है।

बाग़ और एक्वेरियम जाने के लिए अलग -अलग टिकट लगता है।  शायद 25 या 30 रूपये का टिकट था।  मैंने गार्डन घूमना तय किया और जा पहुंचा एक बेहद  खूबसूरत बाग़ देखने।  करीब दो घण्टे लग गए , शायद और भी घूमता थोड़ा बहुत लेकिन फ़ोन की रिंग बजने लगी थी।  दूसरे गेट पर मित्र सुखाराम बिश्नोई इंतज़ार कर रहे थे।  उनसे पहली बार मिलना हो रहा था , हालाँकि हम सोशल मीडिया के माध्यम से कई सालों से परिचित थे।  

अगली जगह निकलेंगे अब और सच मानिये वो जगह अनूठी भी है , सुन्दर भी है और शायद आपने उसके बारे में सुना भी नहीं होगा ! मिलते हैं जल्दी ही 


Temples of Kashmir-काश्मीरमधील मंदिरे


Kashmir is not only a Tourist Hub but it was a major seat of Hindu and Buddhist Religions. This fact is evident from various Hindu Temples of Kashmir and some Buddist Sites.

काश्मीरचे सुप्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर – Shakaracharya Temple

Temples of Kashmir-काश्मीर - शंकराचार्य मंदिर (जेष्ठेश्वर मंदिर) -Shakaracharya Temple
काश्मीर – शंकराचार्य मंदिर (जेष्ठेश्वर मंदिर)

श्रीनगर जवळ एका टेकडीवर सुप्रसिद्ध शिवमंदिर (जेष्ठेश्वर मंदिर) आहे. काश्मीरात येणारे हिंदू पर्यटक या शिवमंदिराला निश्चितच भेट देतात व त्यामुळे येथे भाविकांची फारच वर्दळ असते. सुमारे ८ व्या शतकातील हे मंदिर काश्मीरातील आद्य मंदिरांपैकी एक आहे. या स्थानावर आदि शंकराचार्यांनी वास्तव्य केले होते असे मानतात म्हणून हे शिवमंदिर शंकराचार्यांचे मंदिर म्हणूनच ओळखले जाते. येथील शिवपिंड भव्य आहे.

फ्रान्सिस यंगहाऊसबँड (Francis Younghousband) यांनी काश्मीर (१९११) या पुस्तकात या मंदिराचा उल्लेख केला आहे. हे इ स पूर्व २२० पूर्वीचे असल्याचे त्यांचे म्हणणे आहे व ते गोपादित्याने (इ.स. २५३ ते ३२८) या टेकडीवर बांधले. हे मंदिर पूर्वी ज्येष्ठेश्वर मंदिर म्हणून ओळखले जाई. आद्य शंकराचार्यांच्या वास्तव्याने पुनीत झालेले हे शिवमंदिर सध्या शंकराचार्य मंदिर म्हणून ओळखले जाते. अवघ्या ३२ वर्षाच्या छोट्याश्या कारकिर्दीत आदि शंकराचार्यांनी हिंदू धर्मासाठी बरेच मोठे काम करुन ठेवले आहे.

अवंतीश्वर(शिव), अवंतीस्वामी(विष्णु) मंदिरे

(Avantishwar and Avantiswami Temple)

Temples of Kashmir-अवंतीश्वर मंदिर अवशेष , काश्मीर
अवंतीश्वर मंदिर अवशेष , काश्मीर
Temples of Kashmir-अवंतीश्वर मंदिर अवशेष , काश्मीर
अवंतीश्वर मंदिर अवशेष , काश्मीर

अनंतनाग आणि श्रीनगर यांना जोडणाऱ्या राष्ट्रीय महामार्गावर अवंतीपुरची दोन मंदिरे आहेत. कर्कोटक राजघराण्याचा पराभव करुन राज्यावर येणाऱ्या राजा अवंतीवर्मन (उत्पल राजघराणे) या राजाने अवंतीपूर शहर वसविले (९ वे शतक) व या २ मंदिरांचे निर्माण देखील केले. यातील अवंतीश्वर (शिवाला समर्पित) आणि अवंतीस्वामी (विष्णूला समर्पित) ही दोन मंदिरे एकमेकांच्या जवळ आहेत. दोन्ही मंदिरांची रचना आणि स्वरूप सारखेच आहे. या राजा अवंतीवर्मनाचे एक शिल्प देखील आपल्याला अवंतीस्वामी मंदिरात आढळते. अवंतीवर्मनच्या कारकिर्दीत या प्रदेशाची भरभराट झाली. अवंतीस्वामी मंदिर हे त्या काळातील काश्मीरच्या दगडी मंदिर वास्तुकलेचे उदाहरण आहे.

Temples of Kashmir-अवंतिस्वामी मंदिर अवशेष , काश्मीर
अवंतिस्वामी मंदिर अवशेष , काश्मीर
Temples of Kashmir-अवंतिस्वामी मंदिर अवशेष , काश्मीर
अवंतिस्वामी मंदिर अवशेष , काश्मीर

मार्तंड (सूर्य) मंदिर – मट्टन – Martand Sun Temple

Temples of Kashmir-मार्तंड मंदिर, मट्टन , काश्मीर Martand Sun Temple
मार्तंड मंदिर, मट्टन , काश्मीर

पहलगाम पासून सुमारे ३० किमी अंतरावर असणाऱ्या मट्टन येथील मार्तंड सुर्य मंदिर हे प्राचीन मंदिरांपैकी एक. काश्मीरचा सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड (७ वे शतक) याने हे मंदिर बांधल्याचा उल्लेख कल्हणाच्या राजतरंगिणी या ग्रंथात येतो. आज या मंदिरात सूर्यमूर्ती नसली तरी मंदिराच्या भिंतींच्या एका बाजुला आपल्याला घोड्यावर स्वार असलेला आगळावेगळा सूर्य पाहायला मिळतो. खरं तर मट्टन हे गावाचे नाव देखील मार्तंड या नावावरून तयार झालेले काश्मिरी भाषेतील अपभ्रंशित रूप आहे.

मुस्लिमांच्या शिरकावापूर्वी काश्मीर हे बौद्ध तसेच शैव आणि हिंदू तत्त्वज्ञानाचे केंद्र आणि संस्कृत शिक्षण आणि साहित्याचे केंद्र होते. १४ व्या शतकापर्यंत मात्र काश्मीर मुस्लिमांच्या अधिपत्याखाली आले होते आणि १५ व्या शतकाच्या सुरूवातीस त्यातील बहुतेक मंदिरांचा विध्वंस करण्यात आला त्यात हे मार्तंड मंदिर देखील होते.

मुस्लीम शासक सिकंदर शाह मिरी जो स्वतःला बुत-शिकन म्हणजे मूर्तीभंजक म्हणवून घेई, याने १५ व्या शतकाच्या सुरुवातीस मार्तंड सूर्यमंदिराची तोडफोड करण्याचा आदेश दिला. हे काम सुमारे एक वर्ष चालले असे म्हणतात. यातच त्याने मंदिराच्या गाभाऱ्यात ओंडके टाकून पेटवून देण्याचा आदेश दिला. काश्मीर खोर्‍यातील हिंदूंचे इस्लाममध्ये धर्मांतर करण्याचा त्याचा प्रयत्न होता, जो मोठ्या प्रमाणावर हिंदूंचा छळ करून, हिंदू-बौद्ध संस्कृतीच्या प्रतिमा नष्ट करून आणि हिंदू आणि बौद्धांच्या मनात दहशत निर्माण करून यशस्वी झाला. त्याने मोठ्या प्रमाणात बौद्ध स्तूप देखील नष्ट केले.

मार्तंड सूर्य मंदिर दगडी शिल्पकलेचा उत्कृष्ट नमुना आहे. यातील काही अवशेष श्रीनगरच्या श्री प्रताप सिंग संग्रहालयात धाडण्यात आले तर काही तेथेच विखुरलेले आहेत. उभ्या असलेल्या वास्तूवरील मूर्त्यांचे विद्रूपीकरण केले गेले तर उरल्यासुरल्या मूर्तीच्या भागांची झिज झाली आहे.

मार्तंड मंदिराचा हिंदी सिनेमातील वापर

पुरातन मार्तंड मंदिर परिसर अतिशय देखणा व निसर्गरम्य असल्याने हिंदी चित्रपटसृष्टीने आपल्या काही गाण्यांच्या छायाचित्रणासाठी याचा उपयोग करून घेतलेला आपल्याला आढळतो. यात १९७० सालच्या मन की आँखे चित्रपटातील वहिदा रहमान यांच्यावर चित्रित झालेल्या “चला भी आ SSS आज रसिया ,ओ जानेवाले आजा तेरी याद सताये” या गाण्यातील पहिल्या कडव्याच्या पार्श्वभूमीवर आपल्याला हे तेव्हाचे भव्य मंदिर दिसते. त्यानंतरचे दुसरे गाणे आहे ते म्हणजे १९७४ सालच्या “आंधी” चित्रपटातील सुप्रसिद्ध “तेरे बिना जिंदगीसे कोई शिकवा तो नही” हे गाणे.

Temples of Kashmir-सूर्यप्रतिमा, मार्तंड मंदिर, मट्टन , काश्मीर Martand Sun Temple
सूर्यप्रतिमा, मार्तंड मंदिर, मट्टन , काश्मीर

यातील गाण्यात तर एका ठिकाणी संजीव कुमार व सुचित्रा सेन यांच्या मध्ये या मंदिराच्या एका बाजूच्या भिंतीवर कोरलेली अश्वारूढ सूर्यमूर्तीदेखील स्पष्टपणे ओळखता येते.

या दोन्ही गाण्यातील एकेक कडवेच इथे चित्रित केले गेले होते व तरीदेखील या मंदिराचे भव्यपण आपल्या नजरेत भरण्यासारखे होते. मात्र २०१४ साली आलेल्या हैदर या चित्रपटातील “बिस्मिल, बिस्मिल” हे संपूर्ण गाणेच या मंदिराच्या आवारात चित्रित झाले, पण यात या मंदिराचे चित्रण सैतानाची गुफा असे केले गेल्याने व असा सैतानच प्रत्यक्ष या गाण्यातील कथानकाच्या अनुषंगाने दाखविला गेल्याने, हे गाणे तेव्हा विवादास्पद ठरले व या मंदिराचे नाव सर्वसामान्य हिंदूंना माहिती झाले. पण असे असले तरी काश्मीरला जाणारे सर्वच हिंदू पर्यटक या ठिकाणी येतातच असे नाही.

मार्तंड मंदिराची काही पुरातन छायाचित्रे
Temples of Kashmir Ruins of Martand Temple (Pic from INternet)
Ruins of Martand Temple (Pic from Internet)

जॉन बर्क (१८४३-१९००) नावाचा एक आयरिश तरुण ब्रिटिश  रॉयल इंजिनीअर्ससोबत फार्मासिस्ट म्हणून भारतात आला होता. त्याला छायाचित्रणात रुची असल्याने तो पेशावर येथील छायाचित्रकार विल्यम बेकर, जे  निवृत्त सार्जंट होते त्यांचा सहाय्यक बनला. या द्वयीने १८६४ ते १८६८ या काळात काश्मीरचे बरेच छायाचित्रण केले यातील एक छायाचित्र मार्तंड मंदिराचे देखील होते. तेव्हा उजाड वाटणारा मंदिरा सभोवतालचा परिसर आता मात्र दाट वस्तीने भरून गेला आहे. 

१८७० च्या सुमारासचे अजून एक रेखाचित्र / छायाचित्र
Temples of Kashmir
Ruins of Martand Temple (Pic from Internet)

ब्रिटीश पुरातत्वशास्त्रज्ञ अलेक्झांडर कनिंगहॅम (१८१४-९३), एक तरुण ब्रिटिश आर्मी अभियंता म्हणून १८४५-४६ च्या पहिल्या शीख युद्धानंतर काश्मीरमध्ये तैनात होते. नोव्हेंबर १८४७ मध्ये, त्यांनी काश्मीरमध्ये अस्तित्वात असलेल्या बहुतेक प्राचीन वास्तूंचे मोजमाप आणि अभ्यास केला. त्यांच्या या कार्यामुळे त्यांना भारतीय पुरातत्वशास्त्राचे जनक म्हणून ओळखले जाऊ लागले. ते आपल्या पुस्तकात म्हणतात 

या मंदिराच्या निर्मितीच्या  श्लोकांचा अर्थ बराच विवादित आहे – हे मंदिर स्वतः राणादित्यने बांधले होते, आणि अंतराळ, किंवा त्यापैकी किमान एक, त्याची राणी अमृताप्रभा यांनी बांधले होते. रणदित्यच्या कारकिर्दीची तारीख काहीशी अस्पष्ट आहे, परंतु तो इ स पाचव्या शतकाच्या पूर्वार्धात मरण पावला असे मानण्याला जागा आहे. याच कनिंगहॅम यांनी अजून एक मुद्दा प्रकाशात आणला आहे तो म्हणजे इ सनापूर्वी दुसऱ्या शतकात होऊन गेलेल्या टॉलेमी या ग्रीक ख-भूगोल अभ्यासकांचे मत. आपल्याकडे सर्वसाधारणपणे कोणतेही प्रचंड मंदिर पांडवांनी बांधले असे म्हणण्याचा प्रघात आहे. याच प्रकारे काश्मिरातील मंदिरांनादेखील पांडव लारी अथवा पांडवांची घरं असे मानले गेले आहे. याच अनुषंगाने कनिंगहॅम याने टॉलेमीचे एक वाक्य उद्धृत केले आहे ते म्हणजे “पांडवांचे राज्य वितस्ता नदीवर असल्याचा”. दूर ग्रीक मध्ये कुठेतरी असणाऱ्या टोलेमीला देखील इ स पूर्व दुसऱ्या शतकात पांडवांच्या अथवा त्याच्या वंशजांच्या राज्याची व पर्यायाने महाभारताची कल्पना होती असे दिसते. 

Temples of Kashmir-Ruins of Martand Temple (Pic from INternet)
Ruins of Martand Temple (Pic from Internet)

मंदिरात प्रवेशद्वाराच्या प्रत्येक बाजूला एक लहान अलिप्त खांब असलेली एक उंच मध्यवर्ती इमारत आहे, संपूर्ण मंदिर नक्षीकाम केलेल्या खांबांनी वेढलेल्या मोठ्या चौकोनात उभे आहे. मध्यभागी असलेल्या तिहेरी सोपानासह या  मध्यवर्ती इमारतीची लांबी ६३ फूट, पूर्वेकडील बाजूस ३६ फूट रुंदी आणि पश्चिमेकडील किंवा प्रवेशद्वाराच्या टोकाला केवळ २७ फूट आहे. या मंदिराला सर्वसाधारण हिंदू मंदिरांप्रमाणे अर्ध मंडप, अंतराळ व गर्भ गृह आहे. 

Temples of Kashmir-Ruins of Martand Sun Temple (Pic from Internet)
Ruins of Martand Temple (Pic from Internet)

आजही मंदिर पाहताना या सर्व खुणा व मंदिराच्या सभोताली असलेली देवकोष्ठे आपल्याला दिसतात. त्यांची संख्या ६४ अथवा ८४ असावी. मंदिराचा  जीर्णोद्धार सुरु असल्याने काही वर्षातच हे मंदिर पुन्हा आपल्याला त्याच्या गत वैभवात पाहायला मिळेल अशी अपेक्षा आहे. मंदिराच्या सभोवताली फेरफटका मारताना आपल्याला त्याच्या वेगवेगळ्या भागातील सौन्दर्याचे दर्शन होते. मंदिर परिसर जसा भव्य आहे तसेच हे मंदिर देखील. इतक्या विनाशानंतर व इतक्या वर्षांच्या पडझडीनंतर देखील आजही या मंदिराच्या अंतर्भागातील व बाहेरील भावावरील विविध भावमुर्ती त्याच्या गतवैभवाची साक्ष देत उभ्या आहेत. त्यामुळे हे मंदिर पाहायला जाण्यापूर्वी त्याच्या वैभवाचा हा इतिहास माहित करून घ्यायला हवा. 

टीप : आमच्या या आगळ्यावेगळ्या “काश्मीर मंदिर” सहलीचे आयोजन पुण्याच्या मेघना बोकील यांनी केले होते व कोल्हापूरचे इंडोलॉजिस्ट श्री इंद्रनील बंकापूरे यांनी मंदिरांबाबत मार्गदर्शन केले. 

 

Hindu/Buddhist Spiritual Kashmir आम्ही पाहिलेले काश्मीर


Hindu/Buddhist Spiritual Kashmir – सर्वसाधारणपणे प्रत्येक व्यक्तीची आयुष्यात एकदा तरी काश्मीरला जायची इच्छा असते ती तेथील निसर्गसौन्दर्याचं वर्णन ऐकून. तिथली हिमाने आच्छादलेली गिरिशिखरे, सुंदर बागातील रंगबिरंगी ट्युलिपची फुलं, हिंदी सिनेमात वर्षानुवर्षे पाहिलेल्या सफरचंद, अक्रोड, केशर वगैरेंच्या बागा, तेथील बर्फात खेळण्याची वर्णनं या सर्वानी आपली उत्सुकता चाळवली नाही तर नवलच. त्याबरोबरच तेथील पश्मीना मेंढीच्या हातमागावर विणलेल्या शाली, विणकाम केलेले काश्मिरी ड्रेस मटेरियल, क्रिकेटच्या बॅट, कार्पेट्स या सर्व गोष्टी जेथे बनतात त्या जागी जाऊन खरेदी करणं ओघानेच येतं. काश्मीर पर्यटनावर असलेले दहशतवादाचे सावट आता ३७० कलम हटवले गेल्यावर बऱ्याच अंशी कमी झाल्याने व गेली २ वर्षे असलेले कोरोनाचे सावट देखील दूर झाल्याने काश्मिरात होणारी पर्यटकांची वर्दळ देखील आता वाढली आहे.

Spiritual Kashmir-दल सरोवरातील शिकारा, काश्मीर
दल सरोवरातील शिकारा, काश्मीर

काश्मीरला जाणारा पर्यटक असतो आनंदात रमणारा. शिकाऱ्यात बसून दल सरोवरात फेरफटका मारायचा, एखादी रात्र याच सरोवरातील हाऊस बोट मधील ऐषोरामी खोल्यांमध्ये घालवायची, येथील अरु व बेताब व्हॅली यांसारख्या सुप्रसिद्ध दऱ्यांमध्ये फेरफटका मारायचा, येथील उद्यानांमध्ये काश्मिरी वेशभूषा करून छायाचित्र काढायची हेच पर्यटकांचे उद्दिष्ट असते.

यात सर्वच वयोगटातील पर्यटक असतात. यात लग्नानंतर मधुचंद्राला येणारी जोडपी जशी असतात तशीच मध्यमवयीन व आपापल्या लहानग्यांबरोबर येणारी जोडपी देखील असतात. यांच्या बरोबरीने पन्नाशी-पार व वृद्धत्वाकडे झुकलेले उतारवयीन पर्यटक देखील असतात. त्यामुळे आपल्याला अनेक नामवंत सहलसंस्थांचे सहल व्यवस्थापक आणि त्यांच्यासोबत जाणारा एक घोळका असेही दृश्य बरेचदा दिसते. यातही बरेच महाराष्ट्रातील पर्यटक असल्याने जागोजागी बरेचदा मराठी ऐकायला मिळते.

श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम ही आपल्या सर्वाना, ऐकून का होईना, परिचित असलेली पर्यटन स्थळे. आपल्या ५ ते ८ दिवसांच्या पर्यटनात हे पर्यटक जमेल त्या ठिकाणी प्रवास करतात व आनंदाच्या आठवणी सोबत घेऊन परततात.

पण या सर्वांपलीकडे देखील एक काश्मीर आहे. ते आहे ऐतिहासिक हिंदू व बौद्ध काश्मीर(Hindu/Buddhist Spiritual Kashmir) पण या वैभवशाली इतिहासाची आठवण अथवा माहिती फार थोड्या पर्यटकांना असते व ती देखील बरेचदा काश्मीरचे शेवटचे महाराज हरिसिंह यांची माहिती अथवा श्रीनगर मधीलच शंकराचार्य मंदिर, एवढीच मर्यादित असते. याचे महत्वाचे कारण म्हणजे बहुसंख्य पर्यटकांचा कल लक्षात घेऊनच पर्यटन संस्था त्यांच्या सहलीचे आयोजन बागा, खरेदी बाजार, दुकानं, बर्फाळ ठिकाणं या ठिकाणांसाठी करतात. पण या पलीकडेदेखील काश्मिरात तेथील देदीप्यमान इतिहासाची आठवण करून देतील असे स्तूप, पुरातन मंदिरांचे अवशेष व काही सुस्थितीतील मंदिरे आहेत. आपल्याला काश्मीरचे मूळ स्वरूप समजावून घ्यायचे असेल तर या जागा आवर्जून पाहायला हव्यात. काही वेळा लांबच्या अंतरांमुळे हे शक्य होत नसेल तर श्रीनगरातील मुख्य ठिकाणी असलेले श्री. प्रताप सिंह (SPS) हे संग्रहालय तर किमान ३-४ तासांचा अवधी काढून पाहायलाच हवे.

यासाठी थोडी पूर्वतयारी केली तर ते फायद्याचे ठरू शकेल. हा अभ्यास करण्यासाठी काश्मीरचा सुप्रसिद्ध कवी व इतिहासकार कल्हण याचे “राजतरंगिणी” हे पुस्तक नजरेखालून घालायला हवे. हे पुस्तक PDF स्वरूपात मराठीत देखील उपलब्ध आहे.

हा सर्व अभ्यास करून काश्मिरातील मोजकी सुंदर ठिकाणं, मंदिरं, स्तूप, अवशेष पाहता येऊ शकतात. यात हारवन येथील स्तूपाचे अवशेष, परिहासपूर येथील सम्राट ललितादित्याच्या राजधानीचे अवशेष, अवंतिपुर येथील अवंतीश्वर व अवंतीस्वामी मंदिरांचे अवशेष , सम्राट ललितादित्याने मट्टन (मार्तंडचे अपभ्रंशित रूप) या ठिकाणी बांधलेले सुप्रसिद्ध मार्तंड (सूर्य) मंदिर, जेष्ठागौरी व जेष्ठेश्वर (शंकराचार्य) मंदिर यांसारख्या असंख्य मंदिरांचा समावेश होतो. या काश्मिरात आपल्याला काय पाहायला मिळेल याची थोडक्यात माहिती आपण घेऊ.

हारवन येथील बौद्ध स्तूपाचे अवशेष

Spiritual Kashmir-हारवन येथील बौद्ध स्तूपाची जागा
हारवन येथील बौद्ध स्तूपाची जागा

हारवन या श्रीनगरच्या बाहेरील बाजूस असलेल्या गावात, जुन्या बौद्ध मठाचे अवशेष आहेत. त्याच्या अवशेषांवरून या जागेचे महत्त्व समजणे फार कठीण आहे. परंतु या प्राचीन मठाने बौद्ध धर्माच्या इतिहासात मोलाची भूमिका बजावली आहे. कुंडलवनच्या ज्या परिसरात कुशाण सम्राट कनिष्क याच्या आदेशा वरुन इसवी सनाच्या पहिल्या शतकात बौद्ध धर्माची चौथी परिषद भरली होती, तोच हा परिसर असावा असे अभ्यासकांचे म्हणणे आहे. याच परिषदेत बौद्ध धर्माच्या महायान व हीनयान पंथांचा देखील उदय झाला असे मानण्यात येते.

Harwan is a historic Buddist place in Srinagar, (Jammu and Kashmir, India). It is nearly is 21 kilometers from the centre of Srinagar city and features remnants of Buddhist monuments.

इ.स.च्या पहिल्या शतकात काश्मीरमध्ये बौद्ध धर्माची भरभराट झाली त्यावेळी काश्मीर कुशाण साम्राज्याचा एक भाग होता. त्याचा महान सम्राट, कनिष्क (पहिला) हा बौद्ध धर्माचा समर्थक होता. त्याने पश्चिम अफगाणिस्तानपासून दक्षिणेकडील पाटलीपुत्र आणि मध्य आशिया आणि चीनमधील तारिम खोऱ्यापासून मध्य भारतापर्यंत पसरलेल्या विशाल साम्राज्यावर राज्य केले. काश्मीर हा देखील साम्राज्याचा एक भाग होता आणि गांधार प्रदेशाच्या पूर्वेकडील टोकाला वसला होता. या सम्राटाने व काश्मीर या स्थानाने, पुढे बौद्ध धर्माच्या वाढीसाठी आणि प्रसारासाठी महत्त्वाची भूमिका बजाविली, ती या चौथ्या बौद्ध धर्मीय परिषदेच्या स्वरूपात.

कनिष्काच्या काळापासून पुढे ८ व्या शतकापर्यंत बौद्ध धर्म हा काश्मीरमधील मुख्य धर्म राहिला, त्यानंतर त्याची जागा हळूहळू हिंदू धर्माच्या पुनरुज्जीवनाने घेतली. त्यानंतरच्या काळात, काही शतके, काश्मीरमध्ये इस्लामच्या आगमनाने बौद्ध धर्म नाहीसा होईपर्यंत दोघेही(हिंदू व बौद्ध धर्म) एकत्रित स्वरूपात अस्तित्वात होते.

हारवन मठ नेमका कधी बांधला गेला हे निश्चित सांगता येणे कठीण असले तरी उत्खननात सापडलेले पुरातत्वीय अवशेष १ल्या ते ६व्या शतकातील आहेत. या काळात, काश्मीरमध्ये असंख्य बौद्ध मठ होते, ज्यामध्ये हारवन आणि बारामुल्ला जिल्ह्यातील उष्कूर हे सर्वात प्रमुख होते. दुर्दैवाने, आज फारच थोडे पर्यटक, हारवन येथील बौद्ध स्थळाच्या अवशेषांना भेट देतात. हारवन हे गाव श्रीनगरच्या ईशान्येस सुमारे १८ किमी वर आहे. मुख्य रस्त्याच्या अगदी बाजूला एक छोटासा फलक आपल्याला मार्ग दर्शक ठरतो. येथून सुमारे १ किमी अंतर चढत वर गेल्यावर आपल्याला अत्यंत उत्कृष्ट अवस्थेत जतन केले जात असलेले हे स्थळ दृष्टीपथात येते.

Spiritual Kashmir-हारवन येथील स्तूपाची जागा
हारवन येथील स्तूपाची जागा

या ठिकाणी खालच्या भागात विहार सदृश्य बांधकामाचे अवशेष दिसतात तर वरच्या भागात मंदिराच्या प्रकारची गोलाकार रचना (अथवा स्तूप) आणि एक अंगण होते असे दिसते. या वरच्या भागाच्या मागे, अजून उत्खनन बाकी असलेल्या आणखी संरचनांचे अवशेष असावेत. एकेकाळी संपूर्ण संकुल संपूर्ण टेकडीवर पसरलेले असावे असे वाटते.

या ठिकाणचे अजून एक वैशिष्ट्य म्हणजे येथे जतन केलेले तत्कालीन दगड, गोटे व मातीने लिंपलेल्या भिंतींचे अवशेष. या विहारातील भिंतींच्या तत्कालीन अवशेषांचे काही ठिकाणी पुनर्निर्माण करीत त्यांची योग्य ती निगाही राखली जात आहे.

बौद्ध धर्माच्या प्रसाराच्या गाथेमध्ये हारवन मठाचे स्थान खूप महत्त्वाचे आहे. कारण ते या धर्माच्या स्थापनेपासून त्याचा सर्व दिशांना प्रसार होण्याचे एक मध्यवर्ती ठिकाण होते. दुर्दैवाने, आधुनिक काळात या जागेचे महत्त्व कुठेतरी हरवलेले दिसते. त्याच बरोबर बौद्ध धर्माच्या इतिहासातील काश्मीरचे महत्त्व देखील हरवले.

परिहासपूर येथील सम्राट ललितादित्याच्या साम्राज्याचे अवशेष

परिहासपूर, श्रीनगर, काश्मीर येथील सम्राट ललितादित्याच्या वाड्याचे अवशेष
परिहासपूर, श्रीनगर, काश्मीर येथील सम्राट ललितादित्याच्या वाड्याचे अवशेष

परिहासपूर अथवा पारसपूर हे काश्मीर खोर्‍यातील श्रीनगरच्या वायव्येस २२ किलोमीटर अंतरावर असलेले एक छोटेसे शहर. हे तत्कालीन झेलम नदीच्या प्रवाहाच्या वरच्या पठारावर बांधले गेले होते. हि नदी तेव्हा वितस्ता या नावाने ओळखली जाई. काश्मीरवर कर्कोटक घराण्याचा ललितादित्य मुक्तपीड राजा राज्य करत असताना (६९५-७३१) त्याने हे शहर वसवले होते आणि त्यांच्या कारकिर्दीत काश्मीरची राजधानी त्याने श्रीनगरहून परिहासपूर इथे हलविली. याविषयीची माहिती आपल्याला राजतरंगिणी या ऐतिहासिक दस्तावेजातून मिळते.

Spiritual Kashmir-परिहासपूर, श्रीनगर, काश्मीर येथील सम्राट ललितादित्याच्या वाड्याच्या प्रवेशद्वारावरील मूर्ती.
परिहासपूर, श्रीनगर, काश्मीर येथील सम्राट ललितादित्याच्या वाड्याच्या प्रवेशद्वारावरील मूर्ती.

राजतरंगिणी हा कल्हण या कवीचा काश्मीरविषयक इतिहासाचा सुप्रसिद्ध ग्रंथ. कल्हण हा हर्ष राजाच्या कारकिर्दीत (१०८९-११०१) इ स ११०० च्या सुमारास जन्मला. त्याचे वडील चंपक हे हर्ष राजाच्या दरबारात प्रतिष्ठित मंत्री होते. या कल्हणानेच पुढे ११४८-४९ च्या सुमारास ८ तरंग (भाग) असलेला हा ग्रंथ सिद्ध केला. आपल्याला त्याकाळी ज्ञात असलेल्या राजांच्या वंशावळी व त्यांचा इतिहास कल्हणाने या ग्रंथात शब्दबद्ध केल्याने याचे ऐतिहासिक मोल आहे. कल्हणाच्या या ग्रंथानुसार सम्राट ललितादित्याने परिहासपूर या भागात आपले निवासस्थान आणि चार मंदिरे बांधली. मंदिरांमध्ये विष्णूची मुक्तकेशव, परिहासकेशव, गोवर्धनधर व महावराह अशी चार मंदिरे होती. सम्राट ललितादित्याने यातील मुक्तकेशव मंदिरातील विष्णूची प्रतिमा तयार करण्यासाठी ८४००० तोळे सोने वापरले होते. याच्याशिवाय येथे एक तांब्याची बुद्धप्रतिमा देखील होती.

ललितादित्यच्या मृत्यूनंतर त्याच्या मुलाने, वज्रदित्याने आपली राजधानी परत श्रीनगरला हलविली. त्यानंतर सत्तेवर आलेल्या राजा अवंतीवर्मन याने ती पुन्हा तेथे आणली खरी परंतू वितस्ता (म्हणजेच आताची झेलम) नदीच्या प्रवाहातील अनैसर्गिक बदलांमुळे ती येथे फार काळ ठेवता आली नाही. अवंती वर्मनचा मुलगा शंकर वर्मन याने (इ स ८८३ ते ९०१) मग त्याची राजधानी शंकरपूर या नवीन शहरात हलवली. त्याने परिहासपूर येथील दगड त्याचे नवीन शहर वसविण्यासाठी वापरले व परिहासपूरचा ह्रास सुरु झाला. पुढे आणखी दोन शतकानंतर राजा हर्ष आणि उक्कला यांच्यातील युद्धादरम्यान (१०८९-११०१) उक्कलाने परिहासपूरमध्ये आश्रय घेतला. राजा हर्षाने उक्काला यापैकी एका इमारतीत असल्याचा विश्वास ठेवून ती जागा पेटवली. त्याने परिहासपूरच्या मूर्ती तोडल्या आणि वितळविल्या. पुढे चौदाव्या शतकात सुलतान सिकंदर बुतशिकन (इ स १३९४-१४१६) ने या मंदिरांचा संपूर्ण नाश केला.

पण लुटमार तिथेच संपली नाही. कल्हणाच्या राजतरंगिणी ग्रंथाचा ठावठिकाणा शोधून अतीव परिश्रम घेऊन इंग्रजी भाषांतर करणारे महान ब्रिटीश इंडोलॉजिस्ट ऑरिएल स्टीन यांनी राजतरंगिणी ग्रंथाच्या वर्णनाचा माग काढत १८९२ मध्ये या स्थळाला भेट दिली व या मंदिरांच्या अवशेषांचा धांडोळा घेतला. त्यानंतर पुन्हा मे १८९६ मध्ये पुन्हा एकदा या ठिकाणाला भेट दिली व त्यांना तेथील परिस्थिती पाहून धक्काच बसला. त्यांच्या दोन भेटींमध्ये अनेक शिल्पे आणि दगड गहाळ असल्याचे त्यांच्या लक्षात आले. जम्मू-काश्मीरचे महाराज झेलमचा बग्गी रस्ता बांधत होते आणि परिहासपुर येथील दगड या रस्त्याच्या बांधकामासाठी वापरण्यात येत असल्याचे निष्पन्न झाले. त्यानंतर ऑरिएल स्टीनने महाराजांच्या दरबारात असलेल्या Sir Adelbert Talbot या ब्रिटिश अधिकाऱ्याशी संपर्क साधला आणि जे काही उरलेले अवशेष होते त्याचा उरला सुरला विनाश थांबविला.

आज आपल्याला या ठिकाणी ललितादित्याच्या वाड्याचे अवशेष पाहायला मिळतात. भव्य जोती असलेल्या या इमारतींचे अवशेष आपल्याला या वाड्यांची , मंदिराची भव्यता दर्शवितात. यात आपल्याला तत्कालीन वाड्यातील सांडपाण्याचा निचरा करण्यासाठी असणारी सोय देखील दृष्टीस पडते.

मंदिराच्या जोत्याचे अवशेष असणाऱ्या इमारतीला चारही दिशांना पायऱ्या आहेत. या पायऱ्यांच्या सुरुवातीलाच दोन्ही बाजूला मांडी घालून बसलेले भारवाहक यक्ष दिसतात. मात्र त्यानंतर केवळ वरच्या चौथऱ्यावर एक चबुतरा आहे या सर्व दगड इतरत्र विखुरलेले आढळतात. याही मंदिराच्या व येथील राजवाड्याच्या जीर्णोद्धाराचे काम सुरु आहे. येथे अनेक भग्न मुर्त्या व दगड विखुरलेले आहेत.

श्री प्रतापसिंग (SPS) संग्रहालय

काश्मीरच्या अनेक पाहण्यासारख्या गोष्टींपैकी एक म्हणजे श्रीनगरमधील अप्रतिम श्री प्रतापसिंग संग्रहालय. मात्र काश्मीर पहायला येणाऱ्या पर्यटकांपैकी बरेचसे पर्यटक काश्मीरच्या या महत्त्वाच्या ठेव्याकडे दुर्लक्षच करतात.

Spiritual Kashmir-श्री प्रताप सिंह संग्रहालय, श्रीनगर, काश्मीर
श्री प्रताप सिंह संग्रहालय, श्रीनगर, काश्मीर

भारताच्या इतिहासात काश्मीरला अत्यंत महत्वाचे स्थान आहे. काश्मीरचा इतिहास जाणून घेतला तर हे स्थान महात्म्य आपल्या लक्षात येते व ते कळले तर आपला काश्मीर दर्शनाचा आनंद द्विगुणित होऊ शकतो.
इ स १८९८ मधे स्थापन झालेले हे संग्रहालय म्हणजे एक खजिनाच. हा खजिना आपल्याला ६ दालनांत दृष्टीपथात येतो. यात पुरातत्त्वशास्त्र (Archeology), नाणकशास्त्र (Numismatic), Decorative Art, Jewelry, Arms and Artillery, चित्रकला (Painting), विविध भाषांमधील विविध प्रकारची हस्तलिखिते (Manuscripts in various forms and Scripts), संस्कृती व समाज (Culture and Society), Textile इत्यादीच्या ८०,००० हून अधिक वस्तूंचा समावेश होतो आणि अभ्यासकांसाठी तर दिवसही अपुरा पडेल इतका हा ठेवा आहे.

Spiritual Kashmir-श्री प्रतापसिंह संग्रहालय, काश्मीर येथील सुंदर विष्णू मूर्ती
श्री प्रतापसिंह संग्रहालय, काश्मीर येथील सुंदर विष्णू मूर्ती
Spiritual Kashmir-श्री प्रतापसिंह संग्रहालय, काश्मीर येथील सुंदर मूर्ती
श्री प्रतापसिंह संग्रहालय, काश्मीर येथील सुंदर मूर्ती

या संग्रहालयाबद्दल मायाजालावर इतर बरीच माहीती उपलब्ध आहे, तरीदेखिल प्रत्यक्ष बघण्याला पर्यायच नाही तेव्हा पुढच्या वेळी तुम्ही काश्मीरला याल तेव्हा श्रीनगरातील हा ठेवा पाहण्यासाठी १० ते ४ मधील किमान २ तासाचावेळ बाजुला काढून ठेवा.

काश्मीरमधील पर्यटक (अ)सुविधा

काश्मीर हे एवढे सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थळ असूनदेखील येथे पर्यटकांसाठी असणाऱ्या सुविधांची मात्र वानवाच आहे. जे पर्यटक चांगल्या दर्जाच्या हॉटेल्स मध्ये (तीन ताराकिंत किंवा जास्त) राहतात त्यात त्यांना चांगल्या दर्जाची सेवा, स्वच्छतागृहे व न्याहारी उपलब्ध असते. थंडीपासून संरक्षणाकरिता उबदार खोल्या, बिछाने उपलब्ध असतात. पण सर्वसाधारण मध्यमवर्गीय पर्यटकांना मात्र या सोयी अभावानेच मिळतात. एकत्रितपणे बोलायचं झालं तर प्रवासादरम्यान, उद्यानांमध्ये अथवा इतर प्रेक्षणीय स्थळांपाशी तर स्वच्छतागृहांची परिस्थिती तर फारच वाईट आहे. म्हणूनच स्त्रियांची तर फारच कुचंबणा होते. सर्वसाधारणपणे काश्मीरचे अनुभव सांगताना तिथला निसर्ग, तिथली थंडी, खरेदी यांच्या वर्णनात स्वच्छतागृहे, उपाहारगृहे, भोजनगृहे यांच्याबद्दल आपल्याला फारसे (वाईट) वाचायला अथवा ऐकायला मिळत नाही पण ते देखील एक भयानक वास्तव आहे. हे काही वेळा हाऊस बोटला देखील लागू पडल्याचे आम्ही ऐकले आहे. आपण “हे काय, आठवडाभरासाठीच आहे! सहन करू” या मानसिकतेत जातो व त्याची वाच्यता करीत नाही.

पर्यटन हेच काश्मीरमधील मुख्य उत्पन्नाचे साधन आहे, पण हे करतानाही पर्यटकांना लुबाडण्याचा प्रकार देखील घडतात. अतीव थंड व बर्फाच्या ठिकाणी जाणाऱ्या पर्यटकांना जॅकेट्स, गमबूट्स , हातमौजे वगैरे पुरविण्याच्या व्यवसायाखाली बरेच लुबाडले जाते, अरेरावी केली जाते. प्रत्येक ठिकाणी कोणतीही सेवा पुरविली किंवा पुरवायला मदत केली तरी घसघशीत बक्षिसाची अपेक्षा ठेवली जाते, नव्हे त्यावर अडवणूक देखील केली जाते व एखाद्या ठिकाणी थोडेसे कमी झाले तर पुढे निकृष्ट दर्जाची सेवा पुरविली जाते. येथील सेवादरांवर सरकारचे कोणतेही नियंत्रण नसल्याने सामान्य पर्यटक लुबाडला जातो, पण याची वाच्यता मात्र टाळली जाते व त्यामुळे याबद्दल पुढच्या पर्यटकांना काहीच समजत नाही. हाच प्रकार हाऊसबोट वर मिळणाऱ्या सुविधा, तेथील स्वच्छता याबाबतीतही घडतो.

काश्मीर सुंदर आहेच पण त्याचे सौन्दर्य राखुन पर्यटन वाढवायचे असेल तर पुरविल्या जाणाऱ्या सेवा सुविधा यांमध्ये व्यवसायिकपणा यायला हवा.

काश्मीरमध्ये काही सुंदर पुरातन मंदिरदेखील आहेत. यातील काही प्रसिद्ध मंदिरांबद्दल म्हणजे अवंतिस्वामी, अवंतीश्वर व मार्तंड मंदिर याविषयी एका वेगळ्या लेखातून पाहू.



 शारदापीठ जम्मू आणि काश्मीर (POK).

 









शारदापीठ जम्मू आणि काश्मीर (POK).
Shardapeeth Jammu and Kashmir (POK)
शारदा मंदिर हे भारतातील सगळ्यात प्राचीन मंदिरा पैकी एक आहे. हे मंदिर सुमारे 5 हजार वर्ष जुने मंदिर आहे आणि त्याबद्दल अनेक मान्यता आहेत. असे म्हटले जाते की सम्राट अशोकाच्या कारकिर्दीत शारदा पीठाची स्थापना 237 ईसा पूर्व मध्ये झाली. हिंदू शिक्षण देवीला समर्पित हे मंदिर अभ्यासाचे प्राचीन केंद्र होते. काही समजुतींनुसार, हे मंदिर पहिल्या शतकाच्या सुरुवातीला कुशाणांच्या राजवटीत बांधण्यात आले होते.
शारदा पीठ मंदिर हे एक प्राचीन मंदिर आणि पीओके मध्ये स्थित एक महत्त्वाचे सांस्कृतिक स्थळ आहे. हे 18 शक्तीपीठांपैकी एक मानले जाते. याला बरीच ओळख आहे. शारदा पीठ मुजफ्फराबादपासून सुमारे 140 किमी आणि कुपवाडापासून सुमारे 30 किमी अंतरावर पाकव्याप्त काश्मीर (PoK) मध्ये नियंत्रण रेषेजवळ (LoC) नीलम नदीच्या काठावर आहे. काही प्राचीन वृत्तांनुसार, मंदिराची उंची 142 फूट आणि रुंदी 94.6 फूट आहे. मंदिराच्या बाह्य भिंती 6 फूट रुंद आणि 11 फूट लांब आहेत. तटबंदी उंची 8 फूट आहेत. पण आता बहुतांश रचना खराब झाली आहे. हे मंदिर शक्तीपीठ म्हणूनही मानले जाते, जेथे देवी सतीचे शरीराचे अवयव भगवान शिव आणत असताना पडले होते. म्हणूनच, हे 18 महाशक्तीपीठांपैकी एक आहे. संपूर्ण दक्षिण आशियातील शक्तीपीठ. शारदा पीठ म्हणजे "शारदाची जमीन किंवा आसन किंवा आसन" जे हिंदू देवी सरस्वतीचे काश्मिरी नाव आहे. शारदा पीठ हे शिक्षणाचे प्राचीन केंद्र असल्याचेही म्हटले जाते जेथे पाणिनी आणि इतर व्याकरणकारांनी लिहिलेले ग्रंथ साठवले होते. म्हणून, हे ठिकाण वैदिक कामे, शास्त्रे आणि भाष्ये यांच्या उच्च अभ्यासाचे प्रमुख केंद्र मानले जाते. शारदा पीठ, देशातील सर्वात जुनी विद्यापीठांपैकी एक, जी शारदा विद्यापीठ म्हणून ओळखली जाते, त्याच्या लिपीसाठी खूप प्रसिद्ध आहे आणि असे म्हटले जाते की पूर्वी या विद्यापीठात सुमारे 5,000 विद्वान होते आणि त्या काळातील सर्वात मोठे ग्रंथालय होते इथे होते . शारदा पीठाचा पाया हा तोच काळ मनाला जातो जेव्हा काश्मिरी पंडितांनी त्यांच्या नैसर्गिक सौंदर्याची भूमी शारदा पीठ किंवा सर्वज्ञानपीठ मध्ये बदलली. देवी शारदाला काश्मिरा-पूर्वसानी असेही म्हणतात. 1947 च्या फाळणीनंतर मंदिर पूर्णपणे ओसाड झाले आहे. मंदिराला भेट देण्यास बंदी घटली गेली, त्या नंतर कट्टर मुस्लिम आतंकवादी संघटनांनी मंदिर आणि परिसर उद्ध्वस्त करून प्राचीन दरोहर जमीनदोस्त केली. म्हणजेच 1947 पर्यंत लोक येथे दर्शनासाठी जात असत, पण त्यानंतर काय झाले, याचा तुम्हीच अंदाज घ्या.
मागच्या आठवड्यात प्राचीन वास्तुकला समूहाच्या वतीने नारनाग मंदिर, काश्मीर या बद्दल माहिती देण्याचा प्रयत्न केला होता. या लेखातहि काश्मीर राज्यातील प्राचीन हिंदू मंदिराची ओळख करून देण्याचा एक छोटासा प्रयत्न केला आहे. तसेच येणार्या काळात आपण संपूर्ण जम्मू आणि काश्मीर राज्यातील सर्व प्राचीन मंदिरांचि माहिती ग्रुप मध्ये उपलब्ध करून देण्याचा प्रयत्न करू. वरील सर्व माहिती वेग वेगळ्या ठिकाणावरून संग्रहित करण्यात आली आहे.
गोरक्ष घावटे...


http://yogi-saraswat.blogspot.com/2013/12/blog-post_5188.html

 पौढ़ी पौढ़ी चढ़ता जा , जय माता दी कहता जा

हमेशा से मन में एक बात लेकर बैठा था कि अपने ट्रेवलिंग ब्लॉग कि शुरुआत किसी धार्मिक स्थान के यात्रा विवरण से करूँगा ! ये बात हकीकत में साकार हुई नवम्बर महीने की 10 तारीख को ! माता वैष्णो देवी के दर्शन के रूप में ! 9 नवम्बर की रात को 11 बजे गाजियाबाद स्टेशन पहुँच गया था अपने पूरे परिवार और मितगणों के साथ ! 12 बजकर २० मिनट पर जम्मू स्पेशल ट्रैन में आरक्षण था ! ट्रैन लगभग सही समय पर गाजियाबाद आ पहुंची ! लेट होने का सवाल इसलिए नहीं था क्यूंकि ये ट्रैन आनंद विहार से ही खुलती है जो ज्यादा दूर नहीं है गाजियाबाद से ! अगले दिन की सुबह हो चली थी और सभी लोग पेट भरके खाना खाकर आये थे लेकिन न जाने क्यों सबको ट्रैन में बैठते ही भूख लग गयी और परांठे खोल लिए , मैंने भी ! किसी ने पूड़ी भी निकल रखी थी ! बढ़िया तरह से पेट भर गया कहा जाए कि ओवर लोड हो गया ! सब अपनी अपनी सीट पर फ़ैल गए ! और फिर लुधियाना में जाकर ही आँख खुली ! लुधियाना में चाय -नाश्ता लेकर मेरा ठिकाना तो टॉयलेट के पास वाला दरवाजा बन गया और मैं पंजाब देखते हुए जम्मू कश्मीर में प्रवेश कर गया ! रावी नदी लगभग सूखी पड़ी हुई थी ,जहां तक मुझे याद है रावी से ही जम्मू कश्मीर शुरू होता है ! बहुत खूबसूरत लगता है पंजाब और कश्मीर ! लहलहाते खेत हों या खेतों कि जुताई करते ट्रेक्टर ! मेरे देश की जान हैं ये ! बहुत खूबसूरत ! फिल्लौर ,पंजाब से निकलकर ये ट्रेन मुझे लगता है एकदम बैलगाड़ी बन जाती है ! इसीलिए जहां हमें दोपहर को 12 बजे तक जम्मू पहुँच जाना चाहिए था इसे वहाँ पहुँचने में लगभग 3 बज गए , यानि तीन घंटे लेट !

 

विचार ये था कि पहले जम्मू के दर्शनीय स्थलों को देखा जाए लेकिन प्रभात ने कहा कि भैया लौटकर देखेंगे और मेरी पत्नी लाता ने भी उसकी हाँ में हाँ मिला दी तो जाहिर है मैं अकेला क्या कर सकता था ! हालाँकि हैम बाद में भी उन जगहों को नहीं देख पाये ! जम्मू रेलवे स्टेशन से निकलकर थोडा नीचे ही कटरा जाने वाली बस और टैक्सी उपलब्ध रहती हैं ! वहाँ से 75 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से बस में बैठे और करीब सवा दो घंटे में कटरा पहुँच गए ! बस जम्मू से कटरा के रास्ते में एक जगह चाय नाश्ते के लिए जरुर रूकती है ! जम्मू रेलवे स्टेशन से निकलकर जब हैम प्लान बना रहे थे तब एक बढ़िया सी घटना पेश आई ! हमारे साथ ग्रुप लीडर के रूप में चल रहे शर्मा जी हालाँकि पुलिस में नहीं हैं लेकिन पुलिस मैन जैसे कद काठी और रुतबा रखते हैं ! जब उनकी बेटी और मेरी पत्नी ने कहा कि उन्हें शौच जाना है तो वो जगह कि तलाश होने लगी सार्वजनिक शौचालय देखा गया , वो 7-7 रुपये मांग रहा था ! शर्मा जी उसके पास गए और उससे बोले कि अगर तू खाली शौच करके दिखा दे (अगर पेशाब न करे ) तो मैं तुझे पचास रुपये दूंगा ! वो बेचारा घबरा गया और मुफ्त में सब कुछ करने दिया ! हहहआआआ ! अपना अपना रुतबा ,अपनी अपनी सोच !

 

कटरा में तीन परिवारों को तीन अलग अलग कमरे लेने थे ! होटल वाले से बात हुई , 600 रुपये का एक कमरा ! गर्म पानी की सुविधा ! सामान रखने की सुविधा ! बढ़िया था लेकिन शर्मा जी ने पता नहीं क्या तरकीब बिठाई कि वो 600 रूपये वाला कमरा हमें 400 रुपये में ही मिल गया और एक एक कप चाय उसके साथ मुफ्त ! शर्मा जी जुगाड़ू तो हैं ! लेकिन ये याद रखिये कटरा में मोल भाव बहुत काम आता है ! होटल में अपना सामान रखकर खाना खाकर बस फ़ैल गए अपने अपने बिस्तर में ! ठण्ड बहुत ज्यादा तो नहीं थी लेकिन थी ! कम्बल के लायक ही ! अगली सुबह माता अर्धकुंवारी के दर्शन की योजना बनी और सुबह ही सुबह चढ़ाई चढ़ने की योजना बनी ! काउंटर पर पहुंचे ! पहले सुना था कि एक ग्रुप में 50 लोगों को भेजते हैं और कोई एक ही व्यक्ति वहाँ जाकर पर्ची बनवा लेता था लेकिन इस बार तीन वर्ष से ऊपर के हर व्यक्ति का अलग से टिकट बन रहा था और उसे व्यक्तिगत रूप से वहाँ होना होता था क्यूंकि उसकी फ़ोटो ली जाती थी ! ये जानकारी शायद आपके काम आये ! हाँ अर्धकुंवारी पर अभी वाही चल रहा है कि एक ग्रुप में वो 50 लोगों को भेजते हैं ! शर्मा जी अर्धकंवरी पर जल्दी पहुँच गए थे इसलिए उन्होंने करीब १०:३० बजे अपना नंबर लगा दिया था ! बाकी लोग देर से पहुंचे और सबसे बाद में मैं पहुंचा क्योंकि मेरे साथ दो छोटे छोटे ( ५साल और ३ साल ) बच्चे थे ! अर्धकुंवारी पर भीड़ भाड़ बहुत थी लेकिन ठण्ड का नामोनिशान नहीं था ! वही नवम्बर वाली सर्दी ! वहाँ सरकारी खान पान सेवा केंद्र है , चाय 5 रुपये की खूब सारी मिल जाती है ! बाहर 8 या 10 रुपये की मिलती है और वो भी बहुत कम ! लेकिन खाने में थोड़ी समस्या है ! सरकारी यानि श्री माता वैष्णो श्राइन बोर्ड के खान पान केंद्र में कढ़ी चावल , राजमा चावल या बड़ी बड़ी पूड़ी ही मिल पाती हैं ! दूध मिल जाता है जिससे बच्चों का काम चल जाता है ! बाहर पकोड़ी , समोसे , चाउमिन वगैरह मिल जाती है ! जेब में दाम चाहिए सब मिल जाता है लेकिन थोडा सा महंगा ! जैसे 10 रुपये की फ्रूटी 20 रुपये में मिलती है ! कोई नहीं, इतना तो बनता है ! हमें यानि हमारे ग्रुप को 126 वाँ नंबर मिला अर्धकुंवारी के दर्शन के लिए, लेकिन 4 बजे जैसे ही 120 वें ग्रुप का नम्बार आया ,दर्शन रोक दिए गए ! 4 बजे से साढ़े सात बजे तक दर्शन रोक दिए गए , बताया गया आरती का समय है ! आखिर हमें 8 बजे प्रवेश मिला और करीब 10 बजे के आसपास दर्शन हुए ! दर्शन , मतलब एक छोटी सी गुफा में से पार निकलना होता है ! बताया गया कि ये गुफा ही पवित्र स्थान है ! कहानी नहीं लिखूंगा ! दर्शन पश्चात खाना खाकर सीधे भवन की ओर प्रस्थान करने की योजना बनी और रात में करीब 11 बजे भवन (माता वैष्णो देवी के स्थल को भवन कहते हैं ) की ओर प्रस्थान कर दिया ! बच्चों ने पूरा साथ दिया ! पैदल पैदल चलते रहे ! हालाँकि घोड़े -खच्चर और पिट्ठू उपलब्ध थे किन्तु मान्यता के अनुरूर पैदल ही यात्रा करना आवश्यक था ! अब बैटरी वाली गाड़ियां भी उपलब्ध हैं अर्धकुंवारी से भवन तक ! लेकिन कटरा से अर्धकामवारी की चढ़ाई जितना कठिन है उसकी तुलना में अर्धकुंवारी से भवन तक की चढ़ाई कम , आसान और सरल है ! दो घंटे भी नहीं लगे होंगे हमें भवन तक जाने में ! 1 बज रहा होगा , कम्बल मिलना मुश्किल था ! लेकिन शर्मा जी ने सब जुगाड़ कर दिया ! पहले ही कह चूका हूँ बहुत केयरिंग और जुगाड़ू हैं वो ! 

 

अर्धकुंवारी और भवन पर जितना चाहो आप कम्बल ले सकते हैं बस आपको वहाँ 100 रूपये प्रति कम्बल के हिसाब से पैसा जमा करना होता है जो सुबह कम्बल वापिस करने के साथ ही वापिस मिल जाता है ! अच्छी सुविधा है ! भवन पर ही सोने की बढ़िया जगह मिल गयी ! निश्चित हुआ कि सुबह नहा धोकर दर्शन करेंगे ! हाँ ! वैष्णो देवी के भवन पर भी श्राइन बोर्ड वालों ने खाने पीने की बढ़िया सुविधा करी हुई है ! 24 घंटे की सुविधा !


अगली सुबह बहुत ठन्डे पानी से नहाना पड़ा ! हालाँकि मैं नवम्बर आते ही ठण्डे पानी से नहाने से तालुक तोड़ देता हूँ और गर्म पानी शुरू कर लेता हूँ लेकिन पूजा पाठ के मामले में ये जिद छोड़ देनी पड़ती है ! बहुत ठंडा पानी था ,राम राम ! रोम रोम खड़ा हो गया ! सबसे बाद में नहाया मैं ! नहाने के लिए बढ़िया व्यवस्था है , महिलाओं की अलग और पुरुषों की अलग ! नहा धोकर जूते चप्पल लॉकर में रखे और दर्शन करने वाली लाइन में लग गए ! जल्दी ही नंबर आ गया ! ये दर्शन अर्धकुंवारी माता के दर्शनों से आसान रहे और सुन्दर भी ! सुना था भीड़ भाड़ वाले दिनों में आदमी पिंडियों को देख भी नहीं पाता और चलता कर देते हैं लेकिन माता की कृपा रही कि बहुत सुन्दर और स्पष्ट दर्शन कर पाये हम ! 

 


जय माता की !


दर्शनों के पश्चात भैरों बाबा के दर्शन के लिए और ऊपर जाना था ! साथ चल रहे प्रभात और प्रशांत ने बताया कि भैया सीढ़ियों से चढ़ना कठिन तो है लेकिन जल्दी पहुँच जायेंगे ! सीढ़ियां ही पकड़ लीं ! एकदम खडी चढ़ाई दिखती है ! बच्चे साथ हों तो और भी मुश्किल ! लेकिन माता रानी की कृपा , देखिये सब जय माता की ! कहते कहते भैरों बाबा के मंदिर तक पहुच ही गए ! वहाँ भीड़ बहुत कम थी और ऐसा लग रहा था जैसे भवन पर जाने वालों में से सिर्फ कुछ ही लोग यहाँ तक आये हों ! दर्शन सुलभ और आसान रहे ! ये 12 नवम्बर हो चला था ! शर्मा जी का आदेश आया कि आज ही वापिस अर्धकुंवारी रुकेंगे ! दोपहर के 12 बजे होंगे अभी ! मैंने पूछा -क्या हम आज ही कटरा चल सकते हैं ? फिर सुबह सुबह जम्मू और शाम को ट्रेन पकड़कर गाजियाबाद ! मेरे दिमाग में जम्मू घूमने का प्लान चल रहा था लेकिन मेरा विचार किसी को पसंद नहीं आया ! सब थके हुए थे और अर्धकुंवारी से आगे नहीं बढ़ना चाह रहे थे ! भैरों बाबा की तरफ से अर्धकुंवारी तक उतराई है ! रास्ते में एक दो बढ़िया दूकान हैं जिन्हें आप रेस्टॉरेंट कह सकते हैं ! भैरों बाबा से शुरू करके हम बस वहीँ रुके और कुछ खाया पिया ! वहाँ से चले तो थोड़ी नीचे ही सांझी छत है जहां तक कटरा से हेलीकाप्टर सेवा उपलब्ध है ! हर 10 मिनट में एक हेलीकाप्टर उड़ान भरता हुआ दीखता है ! सांझी छत विश्राम करने के लिए भी बहुत बेहतर जगह है हालाकिं ये हेलीपेड से कुछ दूर है लेकिन बहुत सुन्दर जगह है ! हमने करीब एक घंटे तक वहाँ डेरा जमाये रखा ! बढ़िया , आरामदायक धुप लग रही थी वहाँ और आसपास के दृश्य भी अति सुन्दर हैं ! फ़ोटो लेने लायक ! सांझी छत पर ही माता वैष्णो श्राइन बोर्ड का एक रेस्टोरेंट है जहां आपको वही सब कड़ी चावल , राजमा चावल , चाय आदि मिल जायेगी !

 


सांझी छत से उतरते समय बहुत सी सीढ़ियां पड़ती हैं ! उनकी संख्या अधिकतर स्थानों पर लिखी हुई है जैसे 68 सीढ़ियां , 526 सीढ़ियां आदि आदि ! ये सीढ़ियां चढ़ते समय तो बहुत कष्टदायक लगती हैं किन्तु उतरते समय बहुत आसान और शॉर्टकट लगती हैं ! बहुत जल्दी जल्दी ही नीचे पहुंचा देती हैं ! लेकिन बुजुर्ग लोगों को ख़ास ध्यान रखना चाहिए ! सीढ़िया चढ़ते समय भी और उतरते समय भी ! जय माता दी , जय माता दी करते कहते आखिर हम 4 या साढ़े चार बजे के आसपास वापिस अर्धकुंवारी पहुँच गए थे ! अर्धकुंवारी पर एक जगह है शारदा भवन , 100 -100 रुपये में डोरमेटरी मिल जाती है यानि हर आदमी को 100 रुपये में एक एक बैड मिल जाता है सोने के लिए । इसी की जरुरत थी हमें उस वक्त ! इतनी थकान थी कि पड़ते ही सो लिया मैं तो ! पत्नी ने जगाया कि कुछ खा तो लो ! 8 बजे थोड़ी दूर स्थित श्राइन बोर्ड के खान पान केंद्र में गया और रोज की तरह वो ही कढ़ी चावल खैंच आया दो प्लेट ! लौटकर आया तो बीवी नाराज ! मेरे लिए क्यूँ नहीं लाये ? मैंने कहा अपने आप खा आओ ! वो गुस्सा हो गयी ! लेकिन थोड़ी देर ही गुस्सा , रही मान गयी ! मानना ही था ! मैं झुक गया था और वापिस उसके लिए कढ़ी चावल लेने चला गया ! साथ में दौनों बच्चों को भी कर दिया ! बच्चों ने मैगी खानी थी , वो मिली नहीं तो चाउमिन का विचार आया ! 40 रूपये कि एक प्लेट ! मुझे मालुम था एक प्लेट में दौनों का ! उसे बोला ,बिना सॉस और मिर्च कि चाउमिन बना दे ! उसने कह दिया नीचे बेसमेंट में चले जाओ , वहाँ कह देना ,वो बना देगा ! नीचे पहुंचे तो लगा बिलकुल ही धरातल में आ गए हैं शायद ! उसने बच्चों के हिसाब से बिना मिर्च मसला डाले चाउमिन बना दी ! जब बच्चे खा चुके और चलने को तैयार हुए तो वो मुझे पूछने लग गया , दौनों बच्चे जुड़वां हैं क्या ? मैंने कहा नहीं , डेढ़ -दो साल का अंतर है ! हाँ ,बड़ा बीटा शरीर से कुछ हल्का है इसलिए लग रहा होगा ! मैंने चलते चलते बच्चों को बोला बीटा , अंकल को थैंक्यू बोलो ! बड़ा तो बोल आया , जब छोटे ने देखा तो वो भी भाग कर आया और थैंक्यू बोलकर भाग आया ! वो आदमी हमारी टेबल के पास आया और उसने दौनों बच्चों को टेबल पर खड़ा कर एक फ़ोटो निकल ली अपने मोबाइल में और फिर कुछ देर बाद एक पर्ची मेरे हाथ में थमाते हुए बोला इसे आप ऊपर काउंटर पर दे देना ! उसमें लिखा था स्टाफ ! ऊपर जाकर वो पर्ची काउंटर पर दी तो मुझे मेरे दिए हुए 40 रुपये वापस मिल गए ! बच्चों का प्यार ! जय हो

 

अगली सुबह अर्धकुंवारी से कटरा ही पहुंचना था , शरीर थक हुआ भी था आराम से आँख खुली ! आठ बजे ! शायद 9 बजे हैम निकले होंगे कटरा के लिए ! 11 बजे कटरा बड़े आराम से पहुँच गए ! लोगों को खरीद दारी भी करनी थी , प्रसाद वगैरह ! महिलाओं को अपने स्टॉल , शॉल , कड़े , चूड़ी ,सिंदूर जाने क्या का लेना था ! भगवान् जाने ! ये सब चीजें हर जगह मिलती हैं लेकिन न जाने क्यूँ कटरा से ही खरीदना जरुरी था ? हाँ एक बात भूल गया ! कटरा में बहने वाली बाण गंगा नदी के ठन्डे ठन्डे पानी में सिर्फ मैं ही नहाया ! बड़ी बात ! दिसंबर जनवरी कि ठण्ड में 8 -8 दिन मुँह चुपड़कर कॉलेज आने वाला बाँदा इतने ठन्डे पानी में नहाया ! और फिर गुलशन कुमार के भंडारे में भी भोजन किया ! पहली बार मैकेनिकल रोटी मेकर भी देखा ! खैर ! सब सामान और प्रसाद खरीदकर कटरा से तीन बजे बस पकड़ी और पांच बजे हम जम्मू रेलवे स्टेशन पर थे ! छह बजे का समय था ट्रैन का ! जम्मू स्पेशल ! एकदम गन्दी और बकवास ट्रैन ! न साफ़ सुथरी और न टाइम पर चलने वाली ! इसे सुबह 6 बजे ग़ज़िआबाद पहुँचना था लेकिन पहुंची 10 बजे ! अगर कोई मजबूरी न हो तो इस ट्रैन से यात्रा न करें !

 

जय माता की !

 

                                    मेरा बड़ा बेटा हर्षित





                                                                छोटा बेटा पारितोष


                   कटरा की तरफ से चढ़ाई करते समय शुरू में ही पड़ता है ये मंदिर ! सुन्दर है ! दौनो भाई साथ साथ


                                                   अर्धकुंवारी पर दर्शन का इंतज़ार 

              गर्मी थी ! इस बन्दर का मन हुआ होगा की कुछ तूफानी हो जाए तो छीन ली किसी की कोल्ड ड्रिंक 



                                  अच्छा तो अब चलते हैं वापस


जल्दी  ही आप अमृतसर की यात्रा का विवरण पढ़ेंगे ! तब तक राम राम ....................






















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