Monday, August 5, 2024

उत्तर प्रदेश

 प्रेम मंदिर - वृन्दावन

आज आपको भगवान श्री कृष्णा को समर्पित श्री कृपालु जी महाराज द्वारा बनवाए गए उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृन्दावन में स्थित प्रेम मंदिर लिए चलता हूँ ! 54 एकड़ में फैले इस विशाल मंदिर का शिलान्यास जनवरी 2001 में कृपालु जी द्वारा ही किया गया और ये 17 फरवरी 2012 को जनता के लिए खोला गया ! यूँ तो ये मंदिर भगवन श्री कृष्णा को समर्पित है किन्तु इस दो मंजिला मंदिर के भूतल पर भगवान कृष्णा राधा जी के साथ और प्रथम मंजिल पर भगवान श्री राम सीता जी के साथ विराजमान हैं ! मथुरा से वृन्दावन जाते समय अटल्ला चुंगी से वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग पर ही इसका रास्ता है ! इस्कॉन मंदिर से बिलकुल विपरीत दिशा में चलते जाइए , आप प्रेम मंदिर पहुँच जाएंगे ! लेकिन समय का विशेष ध्यान रखियेगा क्यूंकि ये मंदिर दोपहर को 12 बजे बंद हो जाता है और फिर शाम को साढ़े चार बजे ही खुलता है ! कोशिश करियेगा कि अँधेरे में इस मंदिर को देखें , क्यूंकि जब इस पर रौशनी पड़ती है तो इसकी खूबसूरती हज़ार गुना बढ़ जाती है !

आज ज्यादा लिखूंगा नहीं , आइये फोटो देखते हैं : 
 
 


प्रेम मंदिर का प्रवेश द्वार





यह फोटो इंटरनेट से प्राप्त करी गयी है

प्रेम मंदिर दिन के उजाले में












गोवर्धन पर्वत उठाते भगवन श्री कृष्ण

गोवर्धन पर्वत उठाते भगवन श्री कृष्ण

गोवर्धन पर्वत उठाते भगवन श्री कृष्ण


गोपियों संग रास रचाते भगवान  श्री कृष्ण ​


​थोड़ी थोड़ी शाम उतर रही है



एक फोटो भाईसाब यानी योगी सारस्वत जी का भी

मंदिर के एक कोने में गोपियाँ



ये कालिया नाग और इस पर श्री कृष्णा दोनों ही इधर उधर घूमते हैं







अद्भुत , अद्वितीय प्रेम मंदिर

अद्भुत , अद्वितीय प्रेम मंदिर

अद्भुत , अद्वितीय प्रेम मंदिर

अद्भुत , अद्वितीय प्रेम मंदिर






 गोवर्धन -मथुरा


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मथुरा -वृन्दावन-गोवेर्धन ऐसे कई बार गया होऊंगा लेकिन कभी धार्मिक रूप से पूजा करने नहीं गया था ! कभी एक बार रिश्तेदारी में मथुरा गया तो वहां उन्होंने पत्नी को आशीर्वाद दे दिया पुत्रवती भवः ! और ये भी कह दिया कि जब पुत्र पैदा हो जाए तो गोवेर्धन मंदिर में 5 किलो दूध चढ़ा देना ! भगवन की असीम अनुकम्पा हुई कि प्रथम संतान के रूप पुत्र प्राप्ति हुई ! लेकिन गोवर्धन में दूध नहीं चढ़ा पाया आखिर 5 साल के लम्बे इंतज़ार के बाद अवसर प्राप्त हुआ गोवेर्धन जाने का ! उत्तर भारत में दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है जिसमें लोग घरों में गोबर का गोवर्धन बनाते हैं और दूध से उसकी पूजा करते हैं ! गोवर्धन पूजा , भगवान कृष्ण द्वारा उठाये गए गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के रूप में करी जाती है ! किस्सा कुछ इस तरह से है कि इन्द्र ने जब किसी बात पर गुस्सा होकर बारिश करनी शुरू कर दी तो मथुरा के आसपास के इलाकों में बहुत पानी भर गया और सब त्राहि त्राहि करने लगे , इन्द्र से सबने प्रार्थना करी कि अब बारिश रोक दो किन्तु इन्द्र ने बात नहीं मानी तो भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया और सब ब्रजवासियों उसके नीचे शरण दी ! आखिर में इन्द्र को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी ! मैं भी उसी ब्रज का निवासी हूँ लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए गाज़ियाबाद में रहता हूँ !

दीपावली के दिन मैं खुर्जा में था ! अगले दिन गोवर्धन पूजा थी और मुझे लगा कि इससे बेहतर अवसर दूध चढ़ाने के लिए और कोई नहीं हो सकता ! अगली सुबह कभी भी सात बजे से पहले न जागने वाला प्राणी चार बजे जाग भी गया और पांच बजे बस भी पकड़ ली अलीगढ की , फिर अलीगढ से मथुरा ! पौने आठ बजे यमुना पार लक्ष्मी नगर पर था ! आजकल बस ज्यादातर लक्ष्मी नगर तक ही जाती हैं , पल बन रहा है आगे और लक्ष्मी नगर से आगे बस स्टैंड तक कम से कम एक घंटा लग जाता है इसलिए सब लक्ष्मी नगर पर ही उत्तर जाते हैं फिर ऑटो से जाते हैं ! अपने रिश्तेदार को पहले ही सूचित कर दिया था , उनको साथ लेकर करीब 9 बजे नए बस स्टैंड से गोवर्धन के लिए बस पकड़ी। यहां ये बताना सार्थक होगा कि मथुरा में दो बस स्टैंड हैं , एक नया एक पुराना ! पुराने बस स्टैंड से अलीगढ , हाथरस , जयपुर की बस मिलती हैं और नए से दिल्ली , फरीदाबाद , आगरा , गुडगाँव , वृन्दावन , गोवर्धन की बस मिलती हैं ! साढ़े दस के आसपास हम लाइन में थे ! बड़ी लम्बी लाइन थी दूध चढाने वालों की ! सब के हाथ में प्लास्टिक का गिलास दिखाई दे रहा था। मैंने भी दूध की केन अपने कंधे पर रखी और लग गया लाइन में ! मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत छोटा है इसलिए द्वार पर और भी ज्यादा भीड़ हो जाती है ! और अंदर भीड़ जैसे सारा पुण्य आज ही ले लेना चाहती हो ! लाइन में लगा हुआ था कि किसी ने पीछे से धक्का दे दिया और मैं सीधा उस कुण्ड में पहुँच गया जिसमें दूध चढ़ाया जाता है ! कुण्ड शायद गलत शब्द होगा , असल में एक इर्रेगुलर पत्थर है ऊँचा सा , जिसके चारों तरफ गोलाई में छोटी सी बाउंड्री बानी है , मुझे किसी ने उसी बौंडरी में धकेल दिया और अवसर देखकर मैंने भी केन से दूध चढ़ाना शुरू कर दिया ! मैं बिलकुल ऊपर से दूध चढ़ा रहा था जैसे ही पुजारी का ध्यान मेरी तरफ गया उसने हाथ मार के केन नीचे कर दी कि नीचे से चढ़ा ! मैंने भीड़ में , इतने बेहतर तरीके से दूध चढ़ा पाने की कल्पना भी नहीं करी थी , भला हो मुझे धक्का देने वाले का। का एक नुक्सान भी मुझे झेलना पड़ा , पीछे वालों को कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा होगा , वो अपना हाथ लंबा करके दूध चढ़ाते जा रहे थे और वो दूध गोवर्धन मंदिर की शिला तक तो नहीं बल्कि मेरी पीठ पर या मेरे सिर पर गिरा जा रहा था और इसका परिणाम ये हुआ कि जब मैं मंदिर से बाहर निकला तो पूरा भीगा हुआ था ! मैंने भी दुग्ध स्नान कर लिया ! हाहाहा !

मथुरा से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर मथुरा -डीग मार्ग पर पड़ने वाला गोवर्धन अपनी 21 किलोमीटर की परिक्रमा के लिए विख्यात है ! गुरु पूर्णिमा के दिन गोवर्धन पर्वत की हजारों लोग परिक्रमा करते हैं , गुरु पूर्णिमा को मुंडिया पूनों भी कहते हैं। गोवर्धन में दानघाटी मंदिर , मुखारबिंद , मानसी गंगा , हरिदेव मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं !

गोवर्धन से वृन्दावन और वहां से वापस आकर कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन किये और फिर वापस गाज़ियाबाद लौटने का सोचा ! लेकिन जन्मभूमि से लौटते लौटते रात हो गयी और फिर सुबह 5 बजे चलने वाली emu ट्रेन से ही गाज़ियाबाद लौट पाया ! वृन्दावन के विषय में पहले लिख चुका हूँ पिछली पोस्ट में !


आइये फोटो देखते हैं :



पीछे भीड़ का नजारा

दानघाटी मंदिर में श्री जी की मूर्ति
दानघाटी मंदिर


दानघाटी मंदिर











दानघाटी मंदिर

गोवर्धन पर्वत के कुछ अंश
गोवर्धन पर्वत के कुछ अंश


गोवर्धन में हरिदेव मंदिर
श्री हरिदेव जी
गोवर्धन में हरिदेव मंदिर

मानसी गंगा मंदिर
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि

                                              
मथुरा वृन्दावन की यात्रा लेकर अभी एक बार और मिलेंगे यहीं , आइयेगा जरूर यात्रा जारी है 

 बोलो श्री बांके बिहारी लाल की जय

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सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||


भगवान श्री कृष्णा को समर्पित न जाने कितने मंदिर अलग अलग नामों से वृन्दावन में स्थित हैं ! अनगिनत उतने ही जितनी भगवन की लीलाएं ! उनमें से ही कुछ मंदिरों के दर्शन करते हैं , आइये ! फोटो देखए हैं :


​वृन्दावन में प्रेम मंदिर के पास स्थित एक और मंदिर में लगी भगवान श्री गणेश की मूर्ति

​वृन्दावन में प्रेम मंदिर के पास स्थित एक और मंदिर में लगी भगवान श्री बजरंगबली  की मूर्ति ​



​कालीदह मंदिर

​कालीदह मंदिर

​कालीदह मंदिर ​में बरगद का बहुत पुराना  वृक्ष

​कालीदह मंदिर ​में बरगद का बहुत पुराना  वृक्ष
​वृन्दावन की पुरानी गालियां ऐसी ही वीरान और जीर्ण शीर्ण हैं
​वृन्दावन की पुरानी गालियां ऐसी ही वीरान और जीर्ण शीर्ण हैं
​मदन मोहन मंदिर 

 मनन धाम : गाज़ियाबाद


दिल्ली मेरठ रोड पर स्थित , दिल्ली से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर भगवन शिव को समर्पित मनन धाम गाज़ियाबाद का एक प्रसिद्द तीर्थ स्थल है ! हालाँकि गाज़ियाबाद में तीर्थ के नाम पर या कहा जाए कि घूमने के नाम पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी प्रशंसा करी जा सके ! हाँ , मॉल जरूर हैं एक से बेहतर एक ! अगर कहीं जाना हो तो आप मोहन नगर मंदिर , दूधेश्वर मंदिर या फिर मनन धाम ही जा सकते हैं ! वैसे अगर कोई जाना चाहता है और उसके पास समय है तो सीधा दिल्ली की तरफ रुख करता है ! मनन धाम के विषय में मुझे मेरी हिमाचल यात्रा के दौरान पता चला ! असल में रोड के किनारे चाय पीते समय किसी से ऐसे ही बात होने लगी और जब उसे पता चला कि हम गाज़ियाबाद से आये हैं तो वो बोला गाज़ियाबाद तो हम हर साल जाते हैं !! काहे के लिए ? सत्संग में , मनन धाम में सत्संग होता है ! तब से मनन धाम के दर्शन करने का मन था लेकिन बहुत दिनों के बाद अवसर मिला तो आपके लिए भी चित्र ले आया !

आइये देखते हैं:














मन्दिर के शिखर पर लगा शंख आकर्षित करता है



हवन कुण्ड ! मस्तों का झुण्ड



​रोड पर से ऐसा दीखता है मनन धाम

​रोड पर से ऐसा दीखता है मनन धाम



मनन धाम के पास ही जैन धर्मावलम्बियों के ऋषभांचल भी है ! उसके भी कुछ फोटो
मनन धाम के पास ही जैन धर्मावलम्बियों के ऋषभांचल भी है ! उसके भी कुछ फोटो
मनन धाम के पास ही जैन धर्मावलम्बियों के ऋषभांचल भी है ! उसके भी कुछ फोटो


ऋषभांचल से ऐसा दीखता है मनन धाम
मनन धाम के पास ही जैन धर्मावलम्बियों के ऋषभांचल भी है ! उसके भी कुछ फोटो


ऋषभांचल से ऐसा दीखता है मनन धाम

































http://yogi-saraswat.blogspot.com/2013/12/blog-post_23.html

 द्रोण सिटी ............. दनकौर

महाभारत काल की कथा सबको पता है कि जब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर विद्या सिखाने के लिए मना कर दिया तब एकलव्य ने गुरु द्रोण की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसके समक्ष ही , उस प्रतिमा को साक्षात् गुरु मानकर तीर चलाने की शिक्षा ली ! पिछले दिनों मुझे उसी गुरु द्रोण की नगरी दनकौर जाने का अवसर प्राप्त हुआ ! शनिवार और रविवार दो दिन की कॉलेज की छुट्टी थी तो सोचा मौसम भी अच्छा है , देख कर आया जाए !

दनकौर बहुत छोटा सा क़स्बा है ! दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर और ग्रेटर नॉएडा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा ये क़स्बा आम भारतीय कस्बों जैसा ही शांत दीखता है ! ग्रेटर नॉएडा और नॉएडा उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जनपद में आते हैं और दनकौर भी इसी जनपद में है ! जाने के लिए आप ग्रेटर नॉएडा के परी चौक से कासना होते हुए जा सकते हैं या फिर अगर अपना व्हीकल है तो आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रेसवे से  जाना ज्यादा बेहतर है । एक्सप्रेसवे से गलगोटिया यूनिवर्सिटी के सामने से कट लीजिये और बस कुछ ही दूर दनकौर पहुँच जाइये । दनकौर ऐसा स्थान है जहां आप 2 घंटे में ही पूरा क़स्बा आराम से देख लेंगे ।

असल में ये द्रोण सिटी नहीं है , यहाँ एकलव्य ने मूर्ती की स्थापना करके गुरु द्रोण को साक्षात् मानकर धनुर विद्या सीखी थी इसलिए मुझे लगता है इसका नाम एकलव्य सिटी होना चाहिए था लेकिन द्रोण सिटी ही कहते हैं ! इस कसबे को पर्यटन स्थल बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे श्री  पंकज कौशिक कहते हैं कि असल में जब एकलव्य यहाँ शिक्षारत था तब एक बार गुरु द्रोण अपने शिष्यों के साथ इधर से निकल रहे थे , उनके रास्ते में एक कुत्ता उन पर भौंक रहा था ।  एकलव्य वहीँ कहीं जंगल में था ,  वो गुरु द्रोण को पहिचानता था , उसे ये देखकर बहुत गुस्सा आया कि एक कुत्ता उसके गुरु पर भौंक रहा है तो उसने अपने बाणों से उस कुत्ते का मुंह भर दिया जिससे उस कुत्ते का मुंह खुला का खुला रह गया । इसी मान्यता को सिद्ध करता हुआ एक गाँव भी है पास में जिसका नाम है मुँहफाड़ । उसी घटना के बाद गुरु द्रोण को एकलव्य और उसकी धनुर विद्द्या के विषय में पता चला ।

दनकौर में गुरु द्रोण को समर्पित एक खूबसूरत मंदिर है जहां गुरु द्रोणाचार्य की वो मूर्ति भी है जो एकलव्य ने बनाई थी लेकिन ये मूर्ति मिट्टी की नहीं पत्थर की है ! मंदिर परिसर में ही एकलव्य पार्क भी है जो रखरखाव की उपेक्षा झेल रहा है । हालाँकि उसके दरवाजे बंद रहते  हैं लेकिन फिर भी एक कोशिश करी कि कुछ फ़ोटो ले लिए जाएँ ! मेरे साथ मेरा साथी राजेश रमन भी था और मेरा स्टूडेंट कुशाग्र कौशिक भी था । कुशाग्र दनकौर का ही है इसलिए उसे पहले ही सूचित कर दिया था जिससे वो हमारी कुछ मदद कर सके और उसने सच में पूरी मदद करी । धन्यवाद कुशाग्र
दनकौर में एक पीर बाबा की मज़ार है , जैसा कि कुशाग्र ने बताया कि उर्स के समय यहाँ बाहर के देशों तक से भी जायरीन आते हैं और जो मन्नत इस पीर पर मांगी जाती है पूरी होती है । मेरी कोई मन्नत ही नहीं है तो क्या मांगता ? खैर ! अगर आप दिल्ली या आस पास से हैं तो कुछ घंटे का सफ़र तय करके यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है ! और अगर आपके पास समय है तो थोड़ी ही दूर यानि करीब 10 -12 किलोमीटर की दूरी पर रावण के पिता द्वारा स्थापित शिवलिंग भी है जहां एक मंदिर भी है ! इस गाँव का नाम बिसरख है !



आइये फोटो देखते हैं :



एकलव्य द्वारा बनाई गयी गुरु द्रोण की मूर्ति

गुरु द्रोण की मूर्ति 

गुरु द्रोण की आरती

गुरु द्रोण का मंदिर

मंदिर परिसर में लगी एकलव्य की प्रतिमा




ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी


बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव मंदिर

बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव लिंग





दनकौर में स्थित एक सुन्दर मजार 


 https://jogharshwardhan.blogspot.com/2014/04/meerut-synopsys.html

 Meerut a short write-up

Meerut is situated about 70 km north-east of Delhi & is well connected with roads & rail. Meerut district was created in 1818 under British rule comprising of Meerut , Ghaziabad, Mawana, Sardhana, Hapur & Baghpat. Ghaziabad & Baghpat are now separate districts. ( Update - I understand Hapur is also a separate district now.)

Meerut cantonment is spread in 3500 hectare & was established in 1803 by British East India Company. Meerut district has an area over 2500 sq km (Delhi is nearly 1500 sq km) & population of approx 35 lacs as per 2011 census.

Being close to Hastinapur, Indraprastha & situated in Doab region between Ganga & Yamuna several legends are associated with Meerut.

Having shifted to Meerut I was keen to know the history of the city. Following information has been gathered from internet, history books etc. Your comments are welcome.

* This area was under the rule of King Maya (or Mayasura) & hence the name Mayarashtra or Maya-Dant-Ka-Khera which over a period of time became Meerut. The King Maya had a daughter Mandodari who got married to Ravna. It is believed that Mandodari used to worship Goddess Chandi in Chandi Devi temple in Nauchandi ground.

* Another story is that Shravan Kumar carried his parents on his shoulder behngi for pilgrimage & stopped here for rest. While he was taking water in a pitcher, the sound so made was mistook by King Dashrath as that of a deer drinking water. He shot an arrow towards the source of sound & killed Shravan Kumar instead of dear. Parents of Shravan Kumar cursed the King that he would also suffer & die due to separation from his son.

* Another version is that King Yudhishter awarded the area to Mahi an architect who built a palace in Indraprastha & hence the name Mahirashtra or Meerut.

* The name is also attributed to King Mahipala of Indraprastha as this area fell under his rule.

* Alamgir, Meerut had a settlement which is considered to be the eastern most part of Indus Valley Civilisation.

* During the reign of Emperor Ashok (273 - 232 BC) it had been a Budhist centre . One of the Ashoka pillars was found here. Pillar was ordered by Firoz Shah Tughlaq (1351 - 1388) to be carried to Delhi & installed at Ridge near present day Bara Hindu Rao Hospital / Delhi University.

* In eleventh century part of Meerut was ruled by King Har Datt of Bulandshahr which is mentioned in Ain-i-Akbari. He built a strong fort He was defeated by Mahmud Ghazani in 1018. It was regained by local Hindu Raja shortly thereafter.

* In 1192 Qutbudin Aibak a general of Mohammad Ghori attacked & looted the city

* In 1398 came the devastating invasion of Timur (also called The Lame due to hip injury) despite tough resistance by Jats & Rajputs at Loni fort. From there & from Delhi Timur took & massacred 100,000 prisoners as per his own write ups in Tuzk-e-Taimuri.

* In 1788 Marathas took over from Ghulam Kadir despite stiff resistance. In 1803 Marathas ceded the area to British as soon as they captured Delhi.

* In 1857 began the Great Indian Rebellion against British East India Company in Meerut. The cartridges for use in new Enfield rifle were pre-greased with beef tallow & pork lard. To load the rifle cartridges had to be opened by mouth which proved offensive to both Hindu & Muslim sepoys & sowars. Over 2000 Britishers & about 2500 sepoys of 3rd Bengal Light Cavalry were stationed in Meerut at that time.

On 24-04-1857 Lt Col of 3rd Cavalry ordered 90 of his men to perform firing drill with new cartridges. 85 of them refused & were court marshalled . 74 were punished with 10 years imprisonment & 11 younger ones five years with hard labour. The condemned prisoners were stripped of uniforms, shackled & marched to jail as all other troops at the station watched them.

Next day Sunday 10-05-1857 as the news spread, Indian troops revolted & there was general unrest in the city & Britishers were attacked. Kotwal Dhan Singh Gurjar opened the gates of jail & 85 sepoys & 800 other prisoners were freed. Lot many Britishers were killed. 'Delhi Chalo' movement started towards Delhi next day. Thus began the first attempt to be free of Britishers.

 History Repeats Itself

In good old times under the rule of great king Maho, the treasury & banking operations of his kingdom were entrusted to a minister named Baho. Minister Baho worked hard and managed well the operations of treasury & banking. It benefitted inhabitants as well as king Maho. After all the treasury was for the welfare of the inhabitants despite the differences in colours of their skins and difference in their faiths and difference in shapes of their eyes. Minister Baho had appointed a chieftains, sub-chieftains and many sub-sub-chieftains in various towns and bazaars. Minister Baho earned great respect and recognition from the inhabitants of the kingdom due to his untiring efforts. But you are aware that no one can live forever.

Health of minister Baho was declining and it was being carefully watched by a big landlord Ghato. He was no doctor but his wish of life was to capture the ministry of treasury & banking. He was seeing opportunity coming his way as minister Baho was getting weaker by the day. He consulted his astrologer, his trusted friends & prepared a roadmap. First road shall lead to the palace of queen which shall be travelled by his wife. Suitable jewellery & gifts were packed for the queen. Second road will go to jungle for hunting by the Prince to be followed by son of Ghato. Fully loaded team for the purpose was organised. Ghato himself will take care of some of the ministers in the cabinet of His Highness Maho. Their gift boxes and invitations were ordered. Ghato was now looking for his deputies.

He spotted a suitable hand named Hencho from across five rivers who promised to eliminate anybody on slightest hint given by Ghato. He would not rest till ministry of treasury & banking was cleaned as per wishes of the new boss Ghato. He said he was all thorough his life a lower rung henchman but if given promotion he was ready to do anything. He said he knew how to scare people and to push them in a corner. Scaring the people gives great inner joy & satisfaction he said.
The Hunter

Soon Ghato became minister and Hencho also started getting some piece of action. Minister Ghato handed over a list of rogue staff of treasury & banking operations and sub-chieftains etc to Hencho for action. 

Part of secret list shared between Minister Ghato and his henchman Hencho has been obtained and is produced here along with action taken report submitted by Hencho. Please keep this to yourself or else.

Minister Ghato - Instead of arranging free supply of chicken & mutton to royal kitchen this chieftain of bazaar named AKS, himself demands free chickens from supplier. I don’t like this. Please take action. 
ATR of Hencho – The chieftain AKS has been charged with unbecoming behaviour with a client last year & also shifted away from family to eastern hills as sub-chieftain. His sub has been made sub of a sub-chieftain in western hills. Their guard has been dismissed. Area has been cleared for appointment of person of choice Your Highness Ghato!

Minister Ghato - Chieftain of town BKS, is always short of business targets given to him. He always agrees with given targets in meetings but thereafter he forgets the targets. What’s wrong with him? 
ATR of Hencho – He has been threatened with dire consequences and posting into far flung areas. He has been booked for lapses committed seven years back. You would have enjoyed looking at him when he was booked – perplexed Your Highness Ghato!

Minister Ghato - Chieftain of Lower Bazaar CKS, is not seen in bazaar area during the day. How is that? Is he not interested in business? 
ATR of Hencho - Horse provided to him has been seized thereby reducing his horsepower. Warned & threatened him Your Highness Ghato! Things should improve now.

Hencho carried on the executions as and when asked by Minister Ghato. In due time he  learnt about history of Minister Ghato and his tricks of getting into the cabinet. Soon Hencho started preparing a team & in a short while eliminated Minister Ghato & took over the ministry in a silent coup.

After becoming a minister Hencho came in direct contact with the king Maho & started cultivating relationship with him. He soon found out weakness of the king & by attending to the weakness he gained the confidence of king. Slowly his ambition grew & he started preparing for final assault on the king. He built up a team headed by Tippo & after a while he ousted the king Maho in a coup. Hencho declared himself to be the king.

Hencho appointed Tippo as his minister of treasury & banking operations. Tippo put in his best & things improved a lot. In due course he learnt about history of previous ministers & he also became ambitious.

Well, history was about to repeat itself.
No mistake this time!

 Places to visit in Vrindavan : Mathura

 मथुरा - वृन्दावन जाना मेरे लिए ऐसा है जैसे मैं अपने घर जा रहा हूँ लेकिन घर के आसपास भी कभी  कभी इतना कुछ छूट जाता है कि उसे देखने के लिए बार -बार जाना होता है।  कुछ नहीं भी छूटे तब भी घर की रोटी का स्वाद लेते रहना चाहिए।  वो ही स्वादिष्ट पेड़े , वही गिलास भर के मीठी चाय जिसमे पानी नाम मात्र के लिए डालते हैं लेकिन गाजियाबाद ने और आज की परिस्थितियों ने आदत बिगाड़ दी है।  पेट मोटा हो गया है इसलिए ज्यादा मीठा नहीं खा पाता और अब काली चाय ज्यादा पसंद आती है।  हमाये ब्रज में जब चाय बनती है तब एक बात जरूर बोली जांत है - पत्ती रोक कें , चीनी ठोक कें !! समझि तो गए ई हुंगे तुम और अगर समझ में न आई होय तो मौय पूछ लियों !! ठीक है सा !! राधे -राधे !! वृन्दावन चलते हैं ग़ाज़ियाबाद से !! 



दिल्ली -गाजियाबाद से वृन्दावन आसानी से पहुंचा जा सकता है।  बहुत सी ट्रेन , बस चलती ही रहती हैं। होटल भी बहुत सारे हैं और खाने के लिए भी सब तरह का खाना उपलब्ध है।  अब सीधा बात करते हैं भगवान श्री कृष्ण की पवित्र और श्रद्धामयी नगरी वृन्दावन की  घूमने वाली जगहों की ! 


गाजियाबाद रेलवे स्टेशन 

मथुरा रेलवे स्टेशन 

1. बांके बिहारी मंदिर :  बांके बिहारी मंदिर वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था। हरिदासजी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मन्त्र दीक्षा ली तथा यमुना के समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यान-मग्न रहने लगे। जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई ! इस मूर्ति को मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते है। 

                                   

2. प्रेम मंदिर प्रेम मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। प्रेम मन्दिर का लोकार्पण 17 फरवरी 2012 को किया गया था जबकि शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को कृपालुजी महाराज द्वारा किया गया था। इतने कम समय में प्रेम मंदिर ने बहुत प्रसिद्धि पा ली है ! दो मंजिल के इस मंदिर में भूतल यानी ग्राउण्ड फ्लोर पर भगवान् श्री कृष्ण और राधा जी विराजमान हैं जबकि पहली मंजिल पर राम दरबार है ! प्रवेश द्वार के पास ही भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किये गए कालिया नाग के वध को प्रदर्शित किया गया है।  शाम की अलग अलग रंगों की रौशनी में इस मंदिर को देखने का अनुभव जीवनपर्यन्त याद रखने वाला होता है !







3. रंगजी या रंगनाथ मंदिर : रंगजी मंदिर वृंदावन के कुछ उन गिने चुने मंदिरों में से एक है जो श्रेष्ठ द्रविड वास्तुशिल्प शैली में बना है। इसे 1851 में बनवाया गया था और इसमें मुख्य देवता के रूप में श्री रंगनाथ या रंगजी विराजमान हैं। ... यह मंदिर वृंदावन के बड़े और भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों में से एक है। रंगजी भगवान विष्णु के साकार रूप हैं। दक्षिण भारत के संत स्वामी रंगाचार्य महाराज ने करीब पांच सौ साल पहले वृंदावन को अपनी साधना स्थली के रूप में अंगीकार किया था। रामानुज संप्रदाय के आचार्यो ने वृंदावन में श्रीरंग मंदिर के नाम से आचार्य पीठ की स्थापना की। करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले उनके मथुरा निवासी शिष्यों राधाकृष्ण, सेठ गोविंद दास एवं सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने रंगजी मंदिर का निर्माण कराया। ब्रह्मोत्सव में श्री गोदारंगमन्नार भगवान स्वर्ण-रजत निर्मित रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकलते हैं। 60 फीट ऊंचा सोने का खंभा-ऊंचे परकोटे वाले मंदिर में सात परिक्रमा हैं तो पश्चिम द्वार पर सात मंजिली ऊंचा शिखर है। मंदिर की चतुर्थ परिक्रमा के विशाल प्रांगण में गरुड़ स्तम्भ (स्वर्ण स्तम्भ) है, जो कि 60 फीट ऊंचा है और पूरा स्वर्ण जड़ित है। इसी कारण इसे सोने के खंभे वाला मंदिर भी कहा जाता है। प्रांगण में दक्षिण भारतीय संस्कृति के प्रतीक गोपुरम एवं मण्डपम निर्मित हैं। सिंह दरवाजे की ओर का गोपुरम 6 कोष्ठ वाला है एवं पूर्व की ओर का गोपुरम 5 कोष्ठ का है। पूर्व दरवाजे से प्रवेश करते ही सामने 16 स्तंभों पर टिकी विशाल बारहद्वारी है।







4. शाह जी मन्दिर :  यह मन्दिर वास्तुकला, चित्रकला तथा शानदार मूर्तिकला का अद्भुत समन्वय है। श्वेत संगमरमर के इस अत्यन्त आकर्षक मन्दिर की विशेषता है कि इसके खम्बे सर्पाकार में एक ही पत्थर की शिला से निर्मित हैं। पत्थर में जड़ाऊ काम के चित्र भी यहाँ अद्भुत हैं। इस मंदिर को स्थानीय लोग टेढ़े खम्भे वाले मंदिर के नाम से भी जानते हैं।  मंदिर के प्रवेश द्वार के दाएं हाथ की तरफ ही एक और सुन्दर जगह है -निधि वन नाम से।  शाह जी मंदिर जाएँ तो बंदरों का विशेष ध्यान रखिये ! वो आपके हाथ में दिखने वाली हर चीज को आपके हाथ से छीन के ले जा सकते हैं -चाहे वो आपका फ़ोन , पर्स , कैप यहाँ तक कि पानी की बोतल भी ! 








5. गोविन्द देव मंदिर : गोविन्द देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण 1590 ई. में हुआ था। इस मंदिर के शिला लेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मानसिंह ने बनवाया था। रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी नामक दो वैष्णव गुरूऔं की देखरेख में मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख भी मिलता है। जेम्स फर्गूसन, प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखा है कि यह मन्दिर भारत के मन्दिरों में बड़ा शानदार है। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है 'औरंगज़ेब ने शाम को टहलते हुए, दक्षिण-पूर्व में दूर से दिखने वाली रौशनी के बारे जब पूछा तो पता चला कि यह चमक वृन्दावन के वैभवशाली मंदिरों की है। औरंगज़ेब, मंदिर की चमक से परेशान था, समाधान के लिए उसने तुरंत कार्यवाही के रूप में सेना भेजी। मंदिर, जितना तोड़ा जा सकता था उतना तोड़ा गया और शेष पर मस्जिद की दीवार, गुम्बद आदि बनवा दिए। (सात मंज़िल थीं आज केवल चार ही मौजूद हैं)



​6 . मदनमोहन मंदिर मदन मोहन जी का मंदिर वृंदावन में स्थित एक वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण संभवतः 1590 से 1627 के बीच में मुल्तान निवासी श्री रामदास खत्री एवं कपूरी द्वारा करवाया गया था। इसी नाम से एक मंदिर कालीदह घाट के समीप शहर के दूसरी ओर ऊँचे टीले पर विद्यमान है। 


​7. कालीदह मंदिर : 


8. इस्कॉन मंदिर ( अंग्रेज़ों का मंदिर ) : इस मंदिर की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभय चरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने की थी. आपको बता दें, ISKCON का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है. जिसे हिंदी में अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन कहा जाता है. इस मंदिर का पावन भजन "हरे रामा हरे रामा कृष्णा" है



​9 पागल बाबा मंदिर : सब मंदिरों में एक मंदिर बहुत ज्यादा खास है और इस मंदिर का नाम है ‘पागल बाबा मंदिर’। आपको बता दें कि इस मंदिर का ‘पागल बाबा’ द्वारा कराया गया था और इस मंदिर को मॉडर्न वास्तुकला का उदाहरण भी माना जाता है।​ इस मंदिर के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि पौराणिक कथायों की माने तो बांके बिहारी का एक गरीब ब्राह्मण बहुत बड़ा भक्त था। एक बार उसने एक महाजन से कुछ रुपए उधार लिए थे और हर महीने उसे थोड़ा-थोड़ा करके चुकता रहता था। जब लास्ट किस्त रह गई तब महाजन ने उसे अदालती नोटिस भेज दिया कि अभी तक उसने उधार चुकता नहीं किया है इसलिए पूरी रकम ब्याज वापस करे। 

ऐसे में ब्राह्मण बहुत परेशान हो गया था। उसने महाजन के पास जाकर बहुत सफाई दी लेकिन महाजन अपने दावे से टस से मस नहीं हुआ और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से यही कहा कि उसने सारा पैसा चुका दिया है और महाजन झूठ बोल रहा है। जज ने पूछा कोई गवाह है जिसके सामने तुम महाजन को पैसा देते थे। थोड़ी देर रुक कर और सोच कर ब्राह्मण ने कहा, “मेरे हिस्से की गवाही बांके बिहारी देंगे।“ 

ऐसे में अदालत ने गवाह का पता पूछा तो ब्राह्मण ने बताया, “बांके बिहारी वल्द वासुदेव, बांके बिहारी मंदिर वृंदावन।“ ऐसे में इस पते पर सम्मन जारी कर दिया गया। ब्राह्मण ने सम्मन को मूर्ति के सामने रखकर कहा, ‘‘बांके बिहारी आपको गवाही देने कचहरी आना है।'' इसके बाद यह हुआ कि गवाही के दिन सचमुच एक बूढ़ा आदमी जज के सामने खड़ा होकर बता गया कि पैसे देते समय मैं साथ होता था और साथ ही यह भी बता गया कि कब-कब रकम वापस की गई थी। 

जब जज ने सेठ का बहीखाता देखा तो गवाही सच निकली। रकम दर्ज थी और नाम फर्जी डाला गया था। जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दे दिया। महाजन के मन में उथल-पुथल मच गई और उसने ब्राह्मण से पूछा कि वो बूढ़ा आदमी कौंन था। ब्राह्मण ने बताया कि वह तो सर्वत्र रहता है, गरीबों की मदद के लिए अपने आप आता है। इसके बाद जज साहब ब्राह्मण से बोले की यह आदमी कौन थे जो गवाही देकर चले गए? ब्राह्मण बोला “अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था। जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया।“ 

इतना सुनने के बाद जज ब्राह्मण के चरणों में लेट गए और बांके बिहारी का पता पूछा। इस सवाल के जवाब में ब्राह्मण ने यही कहा, “मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो तो हर जगह है।“ इसके बाद जज अपना घरबार और सारा काम-धंधा सब छोड़ ठाकुर को ढूंढने के लिए निकल गया और फकीर बन गया। जब वो बहुत साल बाद वृंदावन लौट कर आया तो लोग उसे पागल बाबा के नाम से जानने लगे। पागल बाबा मंदिर’ दस मंजिल का बना हुआ है और इस मंजिल के उपरी भाग से वृन्दावन को बखूबी निहारा जा सकता है। 

इस मंदिर के निचले भाग में पूरे साल कठपुतली डांस आयोजित किया जाता है। 


10. वैष्णो देवी मंदिर : जम्मू के वैष्णो देवी की तर्ज पर वृंदावन में बने इस मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है। लोगों के अनुसार आज भी इस मंदिर की रक्षा हनुमान जी करते हैं। इस मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति की ऊंचाई को लेकर इसका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

11. निधिवन : धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं।


                                                




 Waterfalls in and around Mirzapur Uttar Pradesh

मिर्ज़ापुर (यूपी )  के वाटरफॉल्स  :

कोरोना की भयानक दूसरी लहर के बाद ये पहला ब्लॉग लिख रहा हूँ।  न जाने कितनों ने अपनी जान गंवाई , कितने अनाथ हो गए और कितने ही माँ-बाप असहाय हो गए !! उन सभी पुण्यात्माओं को अपने शब्दों के माध्यम से नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !! 

मिर्ज़ापुर ! नाम तो सुना ही होगा ऐसे या वैसे ! वैसे सुना है तो परिभाषा को बदलना होगा आपको और ऐसे सुना है तो सही सुना है। वैसे मतलब फिल्म के नाम की वजह से और ऐसे मतलब -विंध्यवासिनी मंदिर , अष्टभुजा मंदिर और कालीखोह मंदिर की वजह से तो मिर्ज़ापुर प्रसिद्ध है ही लेकिन रुकिए -------मिर्ज़ापुर सिर्फ इतना नहीं है ! मिर्ज़ापुर की असली खूबसूरती , असली खजाना तो मिर्ज़ापुर शहर के बाहर निकल के है ! अहा - अद्भुत , अनजाना सा , अकल्पनीय और अविश्वसनीय सा लेकिन किसी से मिर्ज़ापुर के विषय में बात कर के तो देखिये , वो एकदम से कहेगा -अच्छा वो ! फिल्म वाला मिर्ज़ापुर !! 

आज मंदिरों की बात नहीं लिख रहा , आज मिर्ज़ापुर की प्राकृतिक धरोहरों को आपके सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ और ये कोशिश सफल तभी होगी जब आप कम से कम एक बार तो मिर्ज़ापुर होकर आएंगे।  और  अभी तक आप मिर्ज़ापुर नहीं गए हैं तो एक बार जाकर देखिये , मिर्ज़ापुर की सुंदरता आपका मन मोह लेगी ! न न... मैं शहर की बात नहीं कर रहा , मैं शहर के बाहर जंगलों में स्थित यहाँ के खूबसूरत प्राकृतिक  झरनों की बात कर रहा हूँ जो एक -दो नहीं , पांच -दस नहीं , 22  हैं ! जी हाँ बाईस वाटरफॉल्स मौजूद हैं मिर्ज़ापुर के आसपास के जंगलों में। लेकिन ये वाटरफॉल्स केवल मानसून के मौसम में ही सक्रिय रहते हैं और सही तरह से जिन्दा भी रहते हैं , जैसे -जैसे मॉनसून ख़त्म होता है ये सांस लेना बंद कर देते हैं और फरवरी -मार्च आते आते लगभग सभी वाटरफॉल्स मृतप्राय हो जाते हैं।  तो अगर आपको इन वाटरफॉल्स को देखना है , पूरे यौवन पर देखना है तो निश्चित रूप से आपको मॉनसून में ही इधर का रुख करना होगा।  

Outside Railway Station : Varanasi Cantt

दो साल से इधर नजर थी लेकिन कोविड की वजह से मुश्किल हो रहा था जाना , अंततः जुलाई 2021 में अवसर मिल गया और तुरंत बनारस के अपने अनन्य मित्र संदीप भाई द्विवेदी जी को सूचना दे दी , वो स्वयं मेरे साथ इन वाटरफॉल्स को देखने की इच्छा जता चुके थे।  

Banaras Hindu University Gate : Varanasi 

बनारस पहुँचते ही एक गड़बड़ हो गई ! मुझे वाराणसी कैंट स्टेशन उतरना था लेकिन सुबह -सुबह 6 बजे अधखुली आँखों से वाराणसी कैंट से पहले के स्टेशन "बनारस " उतर गया।  परेशानी ख़ास नहीं थी क्यूंकि मुश्किल से दोनों स्टेशन के बीच की दूरी 7 -8 किलोमीटर ही होगी किन्तु , वाराणसी कैंट स्टेशन पर मेरा स्टूडेंट आशीर्वाद पाल सुबह से इंतज़ार कर रहा था और मैं गलती से एक स्टेशन पहले उतर गया :) फिर आशीर्वाद को फोन कर के सब कहानी बताई और वो बनारस स्टेशन आ गए कुछ देर में ही।  उधर संदीप भाई को तैयार होकर निकलने को कह दिया और मैं होटल से नहा धोकर जा पहुंचा BHU गेट , अपने एक और पाठक अमृतांशु श्रीवास्तव से मिलने।  BHU के अंदर मैं पहले जा चुका हूँ इसलिए अंदर जाने का कोई मतलब नहीं था , तब तक "आलू बॉन्डा " उदरस्थ कर लेते हैं , वैसे भी सुबह से चाय -चाय करते करते आंतें जल गई होंगी।  

Ganga Ghat : Kashi 

Rudra Convention Centre : Varanasi 

आगे बढ़ने से पहले मैं आपको वो 22  वाटरफॉल्स बताता हूँ जो मिर्ज़ापुर और उसके आसपास मौजूद हैं।  इन वाटरफॉल्स के बारे में जब "होमवर्क " कर रहा था तब केवल मुझे 15 वाटरफॉल्स के बारे में पता था लेकिन कुछ संदीप भाई का ज्ञान और कुछ स्थानीय लोगों का ज्ञान जब अपने कालीन भैया , चंद्रेश कुमार जी  के ज्ञान के साथ मिश्रित कर के जो प्रोडक्ट प्राप्त हुआ वो 22 वाटरफॉल्स का था।  तो अब एक लिस्ट तैयार हुई है इन 22  वाटरफॉल्स की : 

  आप चाहें तो मेरा ये वीडियो देख सकते हैं : 

Top 15 Waterfalls in Uttar Pradesh :  https://www.youtube.com/watch?v=N7onkbm5z3A

1 .  लखनिया दरी 
2.   सिद्धनाथ दरी 
3 .   राजदरी 
4 .   देवदरी 
5 .   विंढम फॉल 
6 .   टांडा फल 
7 .   जोगिया दरी 
8 .   सिसली फॉल 
9 .   चूना दरी 
10 . खड़ंजा फॉल 
11 . बकरियां फॉल 
12 . कुशियारा फॉल 
13 . खजूरी डैम वॉटरफॉल 
14 . जोगदहवा वॉटरफॉल 
15 . लतीफशाह डैम 
16 . मुक्खा फॉल 
17 . अलोपी दरी 
18.  नौका दरी 
19 . बद्री (बदरिया ) दरी 
20 . पंचशील की दरी (ठाड़े पत्थर ) 
21. नौगढ़ वाटर फॉल 
22 . नकटी दरी 

अब इतने सारे वाटरफॉल्स को न तो एक -चार दिन की ट्रिप में देखा जा सकता है और न ये संभव है।  आपको कम से कम एक सप्ताह चाहिए होगा इन सब जगहों तक पहुँचने के लिए।  मैं जो वाटरफॉल्स घूम पाया , पहले उनका जिक्र करेंगे फिर बाकी बचे हुए सभी वाटरफॉल्स तक पहुँचने का रास्ता और बाकी detail लिखूंगा।  

सिद्धनाथ दरी (Sidhanath Dari ) : चुनार रोड पर बनारस से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिद्धनाथ दरी बहुत जबरदस्त वॉटरफॉल है जहाँ बनारस और आसपास के लोग परिवार सहित पिकनिक मनाने जाते हैं।  शनिवार -रविवार को खूब भीड़ रहती है और रोड से बमुश्किल 100 मीटर अंदर ये वॉटरफॉल बहुत ही शानदार दिखता है लेकिन साफ़ -सफाई बिलकुल नहीं है।  आसपास यहाँ सैकड़ों छोटी -छोटी दुकानें "उग" आती हैं मानसून के मौसम में !



पंचशील की दरी (ठाड़े पत्थर ) Panchsheel ki Dari (Thade Patthar ) : इसी रोड पर राजगढ़ से कुछ और आगे चलकर है पंचशील की दरी वॉटरफॉल लेकिन ये खूबसूरत होने के बावजूद इतना famous नहीं है ! इसका एक कारण ये हो सकता है कि रोड से करीब तीन किलोमीटर हटकर है जहाँ  आप सिर्फ पैदल जा सकते हैं या अपना two wheeler ले जा सकते हैं।  कार भी हमे करीब दो किलोमीटर पहले ही खड़ी करनी पड़ी थी।  जंगलों के बीच से होकर गुजरता रास्ता एक बिलकुल सुनसान इलाके में लेकर जाता है इसलिए मैं अकेले जाने की सलाह नहीं दूंगा ! दो -तीन लोग हों तो बिलकुल जाइये और इस लगभग छुपे स्थान का आनंद लीजिये ! 



पहले दिन हम ये दो ही वाटरफॉल्स देख पाए और वापस लौट चले बनारस की तरफा।  अभी थोड़ा समय था , मौका भी था तो भगवान शिव के 'काशी -विश्वनाथ " दर्शन को क्यों न जाते ? 

अगले दिन बारिश ने अपना रौद्र रूप दिखा दिया।  सुबह 9 बजे शुरू हुई बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया और डेढ़ घण्टे तक अनवरत जारी रही।  ये डेढ़ घण्टा मैं , BHU गेट के सामने एक तिरपाल के नीचे खड़ा , बारिश रुकने  इंतज़ार में पूड़ी -जलेबी की खुशबु लेता रहा क्यूंकि पेटपूजा तो पहले ही कर चुका था।  

लगभग आधा दिन जा चुका था।  संदीप भाई और उनके मित्र के साथ आज हमारी गाडी नौगढ़ की तरफ दौड़ रही थी।  क्या खूबसूरत रास्ता है अप्रतिम !! हमने कई बार गाडी रोक -रोक के प्राकृतिक नजारों का न सिर्फ  आनंद लिया बल्कि खूब फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी की।  इसकी सुंदरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहाँ पहली बार आने वाले लोगों की गाड़ियों की छत खुली हुई थी और  गाड़ियों  स्पीड बमुश्किल 10 किलोमीटर प्रति घण्टा रही होगी।  नव विवाहित जोड़े , खुली गाडी में धीरे -धीरे चलते हुए प्रकृति का आनंद उठा रहे थे।  कुछ देर के लिए सही , कुछ ही महीनों के लिए सही ये क्षेत्र शिमला -कुफरी -चैल जैसा हरा भरा दिखता है !  राजदरी-देवदरी वॉटरफॉल पहुँच गए लेकिन गाड़ियों की लम्बी लाइन लगी है अंदर जाने के लिए।   




राजदरी-देवदरी वॉटरफॉल (Rajdari Devdari Watefall )  : बनारस से करीब 70 किलोमीटर दूर ये दोनों वाटरफॉल्स शायद एकमात्र ऐसे वाटर फाल्स हैं जिनकी एंट्री टिकट लगती है 50 रूपये।  अत्यंत ही खूबसूरत ये दोनों वाटरफॉल्स लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर हैं लेकिन दोनों का एंट्री गेट एक ही है और टिकट भी दोनों की एक ही है।  लेकिन मौसम में भयंकर भीड़ होती है , हाँ सार्वजनिक परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए चंदौली / वाराणसी से अपना वाहन लेकर जाना बेहतर रहेगा।  रास्ता बहुत ही खूबसूरत है और अगर समय हो तो राजदरी -देवदरी से थोड़ा आगे नौगढ़ की तरफ होकर आइयेगा जहाँ आपको "Watch Tower " देखने को मिलेगा जिस पर चढ़कर आप यहाँ की अद्भुत प्राकृतिक छटा का आनंद उठा सकते हैं।  लौटने में संदीप भाई का बताया हुआ "छान पत्थर " वॉटरफॉल खोजने में हमें दो घंटे लग गए मगर  छानपत्थर कहीं नहीं मिला लेकिन इस दरम्यान मिर्ज़ापुर के गाँवों और "Real India " को देखने का एक अवसर जरूर मिला।  

PC: Chandresh Kumar 

PC: Chandresh Kumar 

PC: Chandresh Kumar 

लौटते हुए संदीप भाई ने , यहाँ की प्रसिद्ध और एकदम खूबसूरत "छातो वैली" (Chhatto Valley) का भी एक चक्कर लगवा दिया।  क्या गजब की जगह है छातो वैली ! जो मॉनसून के मौसम में सुंदरता और हरियाली के मामले में किसी भी हिल स्टेशन से होड़ करती हुई दिखती है।  छोटी -छोटी water streams इसकी सुंदरता में और बढ़ोत्तरी कर देती हैं।  हमारे पास समय की कमी थी और आज का सूरज डूबने की तरफ बढ़ रहा था इसलिए हम नौका दरी तक नहीं जा पाए।  आपके पास समय हो तो आप वहां जरूर जाइयेगा।  

दूसरा दिन खत्म हो चुका था और मैं रॉबर्ट्सगंज की बस पकड़ के निकल चुका था।  संदीप भाई का उपहारस्वरूप दिया हुआ "बनारसी गमछा" और  रसमलाई का डिब्बा अभी भी बैग की शोभा बढ़ा रहे थे जिनमें से मैंने रसमलाई रॉबर्ट्सगंज पहुँचते ही निपटा दी :)  बीच में मेरा एक दिन का  सोनभद्र  के रॉबर्ट्सगंज स्थित चंद्रकांता महल / विजयगढ़ फोर्ट और सलखन फॉसिल्स पार्क का भी प्लान था जिसका ब्लॉग बाद में लिखूंगा।  तो सोनभद्र से निपटकर मैं चल दिया मिर्ज़ापुर ! रात हो चुकी थी और करीब 11 बजे का टाइम था।  भूख के मारे बुरा हाल था मेरा , बंद होते खाने के होटलों  में से एक "पप्पू ढाबे " के आधे गिरे शटर को दोबारा ऊपर कराया -बोला ! एक ही सब्जी बची है ? मैंने कहा -दही है ? हाँ है ! बस फिर सब्जी हो न हो कोई बात नहीं -बस चार रोटी खिला दे ! पेट की गुड़गुड़ शांत हुई तो भारी बारिश से लबालब हुए मिर्ज़ापुर की गंध फेंक रही सडकों पर होटल लेने के लिए ऑटो में चक्कर काटता रहा।  जेल के सामने एक धर्मशाला मिली - दसवीं शताब्दी की बनी हुई प्रतीत होती थी ! लकड़ी की शहतीरों से बने कमरे और हवा का कोई प्रबंध नहीं ! पंखा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था। ..... नहीं भाई ! मैं नहीं रह पाऊंगा यहाँ ! इससे बेहतर तो मैं रेलवे स्टेशन पर जाकर रात गुजार लूंगा !! बोलै -थोड़े ज्यादा पैसे खर्च करोगे ? कितने ? 300 रुपया !! तो ये कमरा कितने का था जो अभी दिखाया !! 100 रूपये का !! मैं मन में बहुत हँसा ! 100 रूपये का। .... कहाँ चला आया मैं !! 300 रूपये का ऊपर की मंजिल पर कमरा मिल गया , हॉल टाइप ! तीन बेड पड़े थे जिन पर गंदे से गद्दे पड़े थे।  आज की रात नींद नहीं आएगी। ... सामने जेल का गेट दिखाई दे रहा था।  चादर मंगवाई। . सड़ी हुई सी थी इसलिए वापस कर दी , अपनी ही बिछा लूंगा।  मच्छरों ने हमला बोल दिया लेकिन शरीर की थकान , मच्छरों के हमले से ज्यादा तारी थी।  सो गया !! 

आज का दिन इधर अपना आखरी दिन था।  सुबह -सुबह विन्ध्वासिनी देवी मंदिर के दर्शन निकल पड़ा।  वहां से टांडा फॉल जाने का सोचा लेकिन ऑटो वाला 500 रूपये मांग रहा था इसलिए विंढम की तरफ बढ़ चला।  

विंढम वॉटरफॉल (Wyndham Waterfall) : उत्तर प्रदेश का शायद सबसे Famous Waterfall होगा विण्ढ़म वॉटरफॉल।  मिर्ज़ापुर से लगभग  13 किलोमीटर दूर बछराकलां के पास विण्ढ़म फॉल का नाम यहाँ कभी 13 वर्षों तक जिलाधिकारी रहे अंग्रेज़ अधिकारी पी विण्ढ़म  के नाम पर है जिनका जिक्र जिम कॉर्बेट ने भी अपनी किताब में किया है।  बहुत ही सुन्दर और शानदार वॉटरफॉल है ये और आसपास के लोगों के लिए "प्रिय पिकनिक स्पॉट" भी है।  फॉल के बाहर खाने -पीने की दुकानें हैं और रोड से वॉटरफॉल तक का करीब एक किलोमीटर का रास्ता देखने लायक है।   




खड़ंजा वॉटरफॉल (Khadanja Waterfall) : विंढम फॉल से बाहर रोड पर आकर आप जब मिर्ज़ापुर की तरफ करीब तीन किलोमीटर लौटेंगे तब आपको खड़ंजा वॉटरफॉल का बोर्ड दिखाई देगा।  Main Road से भी तीन किलोमीटर और अंदर होगा ये वॉटरफॉल लेकिन कोई Public Transport उपलब्ध नहीं है।  या तो अपना कोई वाहन हायर करके ले जाइये या फिर मेरी तरह किसी से लिफ्ट लीजिये। वॉटरफॉल ज्यादा सुन्दर नहीं है इसलिए अगर समय की कमी हो तो आप skip कर सकते हैं यहाँ जाना लेकिन हाँ ! रास्ता बहुत खूबसूरत है।  

लखनिया दरी (Lakhaniya Dari) : लखनिया दरी , मैं 2014 में एक बार जा चुका हूँ इसलिए न तो इस बार इतना वक्त निकाल पाया और न ही इस जगह को प्राथमिकता में रखा।  बनारस से रॉबर्ट्सगंज वाले रास्ते पर , अहरौरा से थोड़ा सा  आगे है ये वाटर फॉल।  रोड से थोड़ा यानी करीब एक किलोमीटर हटकर होगा जहाँ खूब भीड़भाड़ रहती है।  थोड़ा फिसलने से बचने का प्रयास करें और बच्चों का विशेष ध्यान रखें।  बनारस से करीब 55 किलोमीटर और चुनार से 35 किलोमीटर दूर पड़ता है ये वॉटरफॉल। कोशिश करियेगा कि भारी बारिश के बीच यहाँ न जाएँ क्योंकि कई बार यहाँ हादसे होते रहे हैं।  चूना दरी और बद्री दरी वॉटरफॉल भी इसके आसपास ही हैं जबकि करीब 15 किलोमीटर दूर लतीफशाह डैम है।  समय इजाजत दे तो आप एक और वॉटरफॉल जा सकते हैं जिसका मैंने लिस्ट में नाम नहीं दिया है और वो है -डूंगिया वॉटरफॉल ( Dungia Waterfall ) 

टाण्डा वॉटरफॉल (Tanda Waterfall) : बनारस से तो ये वॉटरफॉल दूर है करीब 80 किलोमीटर लेकिन मिर्ज़ापुर से बस 14 किलोमीटर ही है और बहुत ही शानदार दृश्य बनता है बारिश के मौसम में।  आसपास के लोग पिकनिक मनाने के लिए पहुँचते हैं लेकिन Public Transport नहीं मिलता आसानी से।  यहाँ जाएँ तो बोकरिया फॉल मत छोड़ना।  

अलोपी दरी (Alopi Dari) : अलोपी दरी बहुत ही खूबसूरत वॉटरफॉल है जहाँ नाममात्र की जनता पहुँचती है।  मिर्ज़ापुर के मड़िहान क्षेत्र के जंगलों में स्थित ये वॉटरफॉल अभी तक भीड़भाड़ से बचा हुआ है।  रोड से करीब 3 किलोमीटर अंदर है ये वॉटरफॉल और यहीं अलोपी माता का एक मंदिर भी है।  जब जाएँ तो अगरबत्ती का पैकेट भी ले जाएँ यहाँ जलाने के लिए।  Public transport नहीं है इसलिए अपने वाहन से जाएँ तो बेहतर ! यहीं पास में ही जोगिया दरी वॉटरफॉल भी है और थोड़ा और आगे जाकर  Jamithwa Dari भी है।  

मुक्खा वॉटरफॉल (Mukkha Fall) : रॉबर्ट्सगंज और घोरावल रोड पर एक जगह आती है सुकृत , यहाँ से करीब 3 किलोमीटर हटकर एक बहुत शानदार वॉटरफॉल है -मुक्खा वॉटरफॉल।  पब्लिक ट्रांसपोर्ट न के बराबर है इसलिए या तो आप गाडी हायर करके जाएँ या फिर घोरावल से ऑटो किराए पर ले जा सकते हैं।  

बाकी जो वाटरफॉल्स हैं वो कम प्रसिद्ध हैं और बहुत सुन्दर भी नहीं हैं इसलिए लिखने का कोई प्रयोजन नहीं बनता।  आप चाहें तो गूगल मैप में जाकर उनकी लोकेशन पता कर सकते हैं और विस्तृत जानकारी ले सकते हैं।  

बहुत धन्यवाद !! अगले मानसून में संभवतः मैं भी आपको इन जगहों पर भटकता हुआ मिल जाऊं फिर से ........



 झाशी, उत्तरप्रदेश येथील किल्ला







झाशी, उत्तरप्रदेश येथील किल्ला
पोस्तसांभार : https://www.sanatan.org/mr/a/28865.html
झाशी, उत्तरप्रदेश येथील हा किल्ला राजा वीरसिंह जुदेव बुंदेलाने वर्ष १६१३ मध्ये बांधला. राजा बुंदेलच्या राज्याची ही राजधानी होती. हा किल्ला १५ एकर जागेत बांधला आहे. हा किल्ला राजा गंगाधरराव नेवाळकर यांचे पूर्वज श्री नारूशंकर नेवाळकर यांना राजा जुदेव बुंदेलने भेट दिला. राजा गंगाधरराव यांच्या मृत्यूनंतर राणी लक्ष्मीबाईंनी येथूनच वयाच्या अवघ्या २३ व्या वर्षी राज्य सांभाळले. १८५८ ला ब्रिटिशांनी आक्रमण केल्यानंतर हा किल्ला ब्रिटिशांच्या कह्यात गेला. या किल्ल्याला एकूण २२ बुरुज आहेत.
झाशीची राणी सर्वोत्कृष्ट होती आणि तिच्याएवढा धैर्यवान योद्धा आपण बघितला नाही, असे ज्याच्याविरुद्ध समरांगणावर तिचा शेवटचा संग्राम झाला, त्या सेनापती सर ह्यू रोजने म्हटले आहे. झाशीच्या स्वातंत्र्यासाठी ही पलटण लक्ष्मीबाईंच्या नेतृत्वाखाली तीन मास प्राण तळहातावर घेऊन लढत होती. त्या काळातील अतिशय थोड्या अश्‍वपारख्यामंध्ये तिची गणना होत असे. घोड्यावर पक्की मांड ठोकून दोन्ही हातात तलवार घेऊन ती लढू शकत होती आणि ती शेवटी तशी लढलीही. आपण बाईमाणूस असलो, तरी एक सामर्थ्यशाली राज्यकर्ती म्हणून कोणत्याही प्रकारच्या कर्तव्यपालनात रतिभरही कमी नाही, हे तिने सिद्ध केले. आपल्या राज्यात प्रजा निर्भय, निश्‍चिंत आणि दैनंदिन व्यवहार निर्धास्तपणे करत राहील, याची काळजी ती घेई.
ग्वाल्हेर, मध्यप्रदेश येथील झाशीची राणी लक्ष्मीबाई यांचे समाधीस्थळ
वर्ष १८५७-५८ च्या स्वातंत्र्यसंग्रामाच्या वेळी झाशीवर ब्रिटिशांनी आक्रमण केल्यानंतर राणी सिंदीया राजांच्या साहाय्यासाठी येथे आली; पण तेव्हा सिंदीया राजांनी राणीला साहाय्य न केल्यामुळे राणी लक्ष्मीबाई युद्धात घायाळ झाली. नंतर स्वतःचे शरीर ब्रिटिशांच्या हाती लागू नये; म्हणून युद्धभूमीपासून दूर गेल्यानंतर राणीचा घोडा कोसळल्यामुळे त्या ठिकाणी असलेल्या महंत गंगासागर नावाच्या संन्याशाला राणीने विनंती केली, मी देहत्याग केल्यानंतर ब्रिटिशांच्या हाती माझे शरीर लागायला नको. तेव्हा महंतांनी त्यांच्या कुटीतील गवत राणी लक्ष्मीबाईंच्या पार्थिवावर घालून तिची दहनक्रिया याच ठिकाणी केली. वर्ष १९२० मध्ये भारतीय पुरातत्व विभागाने या ठिकाणी राणीचा अश्‍वारूढ पुतळा बनवला.

























































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