कश्मीर(Kashmir) - भारत के सुदूर उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र ग्रेट हिमालय(Great Himalaya) और पीर पंजाल पर्वत श्रेणी(Pir Panjal Range) के मध्य बसा एक बेहद खूबसूरत भूभाग है। कश्मीर की सुंदरता के बारे में हम सभी बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं। राजनैतिक और सुरक्षा कारणों से अतीत में यहाँ घूमने वाले लोगों की संख्या सीमित रही है। लेकिन भारतीय सिनेमा में कश्मीर अपनी छाप हम सभी के जेहन में हमेशा से छोड़ता रहा है। वर्तमान में कश्मीर की परिस्थितियाँ पर्यटन के लिए बहुत बेहतर हुई हैं जिसके कारण अब लोग धरती के स्वर्ग कश्मीर का रुख घूमने के लिए करने लगे हैं।
कश्मीर(Kashmir) की राजधानी श्रीनगर(Srinagar) झेलम नदी(Jhelam River) के खूबसूरत घाटी में स्थित हैं। डल झील(Dal Lake) इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता हैं। कश्मीर घाटी में छह जिले बड़गाम, पुलवामा, श्रीनगर, बारामुला, कुपवाड़ा और अनंतनाग हैं। कश्मीर घाटी की सुंदरता के बारे में किसी कवि ने कहा है कि -
ग़र फ़िरदौस बर रुए ज़मीं अस्त,
हमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त।
अर्थात अगर इस धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। कश्मीर(Kashmir) में सर्दियों के मौसम में बर्फ़बारी होता है और गर्मी के मौसम यहाँ बहुत ही सुहावने होते हैं। गर्मी के मौसम में हम लोगों का भी कश्मीर घूमने का कार्यक्रम बना। हमारी कश्मीर(Kashmir) की यात्रा बहुत ही यादगार और अच्छी रही। हमें अपने देश के एक बेहद खूबसूरत हिस्से और वहां के लोगों और संस्कृति को पास से जानने का मौका मिला। अपने कश्मीर(Kashmir) के यात्रा के अनुभव और घूमने के मुख्य स्थानों के बारे में बताने की कोशिश कर रहा हूँ -
➥डल झील श्रीनगर (Dal Lake - Srinagar)
डल झील(Dal Lake) कश्मीर की राजधानी श्रीनगर(Srinagar) में स्थित एक बेहद ही खूबसूरत झील है। चारों ओर पहाड़ों से घिरी यह झील पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है। इस झील में यहाँ की विशेष नाव शिकारा(Shikara) में झील की सैर करना एक बहुत ही सुखद अनुभव था। शिकारा बहुत सुंदर ढंग से सजाये गए थे जिसपर बैठने के लिए आरामदायक मखमली गद्दे रखे गए थे। झील के अंदर सुन्दर फौवारे लगाए गए हैं। शिकारे पर ही आपको चलता फिरता बाज़ार भी नज़र आता है। खाने पीने के सामान, फल, स्थानीय वस्तुओं से भरे शिकारे आपके आस पास आकर अपने सामानों को बेचने लगते हैं। हम लोगों ने कश्मीरी कहवा(Kashmiri Kahwa) का स्वाद लिया। दिन ढलते ही शाम के समय यह झील और भी अच्छी दिखने लगती है। हम लोग अपने कश्मीर यात्रा के पहले दिन ही डल झील(Dal Lake) में 3-4 घंटे शिकारा विहार का लुफ्त उठाते रहे। झील के चारों ओर रोड पर लगे सुन्दर लाइट के बीच में यह शांत झील सुकून का एहसास दिला रही थी। यह बहुत ही अच्छा अनुभव था। डल झील में सभी को शिकारा राइड(Shikara Ride) ज़रूर करना चाहिए।
➥गुलमर्ग (Gulmarg)
अपने कश्मीर(Kashmir) यात्रा के दूसरे दिन हमें गुलमर्ग(Gulmarg) घूमने जाना था। श्रीनगर के पश्चिम में 51 किलोमीटर दूर बसा गुलमर्ग(Gulmarg) एक विश्वप्रसिद्ध हिल स्टेशन है। इसे फूलों की वादी( Meadows of Flower) के नाम से भी जाना जाता है। श्रीनगर से गुलमर्ग का रास्ता भी बहुत अच्छा है। सर्दियों में लोग गुलमर्ग(Gulmarg) स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) करने आते हैं। यहाँ का रोप वे(Rope Way or Cable Car) जिसे गोंडोला राइड(Gondola Ride) के नाम से जाना जाता है जो हमें गुलमर्ग के बेहद ऊँचे पहाड़ों पर ले जाता है। गोंडोला राइड(Gondola Ride) करना एक बहुत ही रोमांचकारी अनुभव था। हम लोगों ने गुलमर्ग(Gulmarg) के बर्फीले पहाड़ पर स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) भी किया। चूँकि श्रीनगर(Srinagar) से गुलमर्ग(Gulmarg) की दूरी 3 घंटे में कार से पूरी हो जाती है इसलिए गुलमर्ग(Gulmarg) में लोग अक्सर रात्रि प्रवास(Night Stay) नहीं करते हैं और शाम तक श्रीनगर वापस आ जाते हैं। हम लोगों ने भी ऐसा ही किया।
➥पहलगाम(Pahalgam)
यह हमारा कश्मीर(Kashmir) में तीसरा दिन था। कश्मीर में घूमना हम लोगों को बहुत अच्छा लग रहा था। हम लोग श्रीनगर के पूर्व में 90 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम(Pahalgam) के लिए निकले। पहलगाम(Pahalgam) को चरवाहों की घाटी(Valley of Shepherd) के नाम से भी जाना जाता है। लिड्डर नदी(Lidder River) के किनारे बने रास्तों से हम लोग पहलगाम(Pahalgam) की ओर बढ़ चले थे। कश्मीर की खूबसूरती को यहाँ के देवदार के पेड़ और पत्थरों से टकरा कर बहती नदियां बढ़ा देती हैं। लगभग 4 घंटे के कार यात्रा के बाद हम लोग पहलगाम(Pahalgam) पहुँच गये। यहाँ से आगे मुख्य स्थानों को देखने के लिए घोड़ों पर बैठकर करना था। घोड़े पर बैठकर आगे के रास्तों पर बढ़ना बहुत ही रोमांचकारी और शानदार अनुभव था। कुछ स्थानों पर रास्ता बहुत ही खतरनाक और डरावना था लेकिन यहाँ के घोड़े और उसको चलाने वाले लोग बहुत ही अनुभवी हैं। हम लोगों ने यहाँ कश्मीर घाटी(Kashmir Valley) का सुंदर दृश्य देखा। रास्ते में सुन्दर झरने(Waterfall) भी दिखे। पहलगाम(Pahalgam) का सबसे अच्छा स्थान है बैसरन घाटी(Baisaran Valley)। हरे भरे घासों, देवदार के पेड़ों और बर्फीली पहाड़ों के मध्य में बसी यह घाटी कश्मीर(Kashmir) की सुंदरता का मुख्य स्तम्भ है। पहलगाम(Pahalgam) के बैसरन(Baisaran) की इस घाटी में हम लोगों ने बहुत अच्छा समय बिताया। चूँकि पहलगाम में हम लोगों का रात्रि प्रवास(Night Stay) था इसलिए हम लोग शाम को अपने होटल पहुंच गए। पहलगाम अमरनाथ की पवित्र यात्रा का एक मुख्य पड़ाव भी है। अगले दिन वापस श्रीनगर(Srinagar) जाने के क्रम में हम लोग अखरोट(Walnut) और सेव(Apple) के बाग देखने गए। पहलगाम(Pahalgam) में केसर(Saffron) की खेती भी होती है। हम लोगों ने यहाँ के स्थानीय दुकानों से सूखे मेवें(Dry Fruits) और केसर(Saffron) ख़रीदा।
➥हाउस बोट श्रीनगर(House Boat - Srinagar)
पहलगाम से वापस श्रीनगर आकर हमें डल झील(Dal Lake) के हाउस बोट(House Boat) में रुकना था। यह कश्मीर(Kashmir) में हमारा चौथा दिन था। कार ने हमें डल झील(Dal Lake) के किनारे घाट पर उतार दिया जहाँ से हाउस बोट(House Boat) तक शिकारे पर बैठकर जाना था। शिकारे पर बैठकर हम लोग अपने हाउस बोट पर पहुँचे। देवदार के लकड़ी के बना हाउस बोट(House Boat) बहुत ही सुन्दर था। हाउस बोट(House Boat) से पूरा डल झील(Dal Lake) का नज़ारा आँखों को सुकून दे रहा था। हाउस बोट(House Boat) की बाहरी नक्काशी बेहद शानदार थी। लकड़ी के दीवारों पर सुन्दर कारीगरी की झलक दिख रही थी। हाउस बोट(House Boat) की आंतरिक सजावट (Interior Decoration) भी बहुत अच्छी थी। हाउस बोट(House Boat) पर बेहद नर्म कालीन बिछी हुई थी। शाम के समय हम लोग हाउस बोट(House Boat) के बाहर देर रात तक बैठकर डल झील(Dal Lake) को खूबसूरती को निहारते रहे। यह एक बहुत अच्छा और ना भूलने वाला पल था।
➥सोनमर्ग(Sonmarg)
कश्मीर(Kashmir) में पांचवा दिन और हमारा अगला पड़ाव सोनमर्ग(Sonmarg) में था। श्रीनगर(Srinagar) से सोनमर्ग की दूरी 81 किलोमीटर है। सोनमर्ग(Sonmarg) श्रीनगर के पूर्व में है। हम लोग श्रीनगर से सोनमर्ग(Sonmarg) के रास्तों को देखते हुए आये। यह बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों से होकर गुज़रता है। सोनमर्ग(Sonmarg) का सबसे प्रसिद्ध स्थान है थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier)। अपने होटल में हम लोग थोड़ा रूककर थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) देखने के लिए निकले। होटल के पास से ही घोड़े पर बैठ कर जाना था। घोड़े वाले ने ही हमें खास गर्म कपड़े और जूते पहनने के लिए दिए। सोनमर्ग(Sonmarg) में घोड़े से किया जाने वाला रास्ता पहलगाम(Pahalgam) के रास्तों से अपेक्षाकृत आसान है। रास्ते में हम लोगों ने प्रसिद्ध बॉलीवुड फिल्मों के शूटिंग के स्थान देखे। सोनमर्ग(Sonmarg) बहुत ही सुन्दर स्थान है। यहाँ के घोड़े नदी को भी निर्भीक होकर आसानी से पार कर रहे थे। कुछ देर बाद हम लोग थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) के पास पहुंच गए। यहाँ पर स्थानीय लोग आग जलाये हुए थे। बारिश के वजह से सर्दी काफी बढ़ गयी थी। हम लोगों ने यहाँ चाय और मैगी खाया। थोड़े देर बाद हम लोग थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) के पास ट्रैकिंग(Trekking) करते हुए बढ़ने लगे। सामने बर्फ के पहाड़ और वहाँ से पिघलकर बहता पानी बहुत अच्छा लग रहा था। हम लोगों ने थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) को बहुत पास से देखा जहाँ बर्फ पिघलकर नदी बन रहा था। अब शाम होने लगा था और हम लोग वापस होटल आ गए।
कश्मीर(Kashmir) में बिताये गए यह पाँच दिन अब तक की ज़िन्दगी के बहुत खूबसूरत दिनों में से एक थे। कश्मीर को पास से देखकर हमने पाया की वास्तव में यह धरती का स्वर्ग है। कश्मीर का हर हिस्सा एक सुन्दर प्राकृतिक नज़ारा है। यहाँ के लोग, संस्कृति, खूबसूरत वादियाँ, देवदार के जंगल, डल झील, बर्फीली पहाड़िया, सुन्दर झरने, निर्मल नदियां और केसर तथा सेव के बाग़ सभी को अपने ओर आकर्षित करते हैं। हम लोगों को यहाँ घूमना बहुत अच्छा लगा। जब कभी भी आप लोगों को कश्मीर(Kashmir) आने का मौका मिले यहाँ ज़रूर आइये।
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➜कश्मीर में ये करना ना भूलें : डल झील में शिकारा राइड, गुलमर्ग में गोंडोला राइड, पहलगाम में सेव के बगीचे देखना, कश्मीरी कहवा का स्वाद लेना, हाउस बोट में रुकना, फोटोग्राफी।
➜कश्मीर कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर में स्थित है तथा निकटम रेलवे स्टेशन भी जम्मू में 290 किलोमीटर दूर है जहाँ के लिए देश के सभी बड़े शहरों से ट्रैन मिलती हैं। जम्मू, लेह, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से कश्मीर घाटी आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
➜कश्मीर जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल कश्मीर में पर्यटक आते रहते हैं लेकिन गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक कश्मीर जाने का सबसे अच्छा समय हैं। सर्दियों में दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी ( Snowfall ) का लुफ्त लेने आप कश्मीर आ सकते हैं।
➜कश्मीर जाने में लगने वाला समय : 5 दिन / 4 रात
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जम्मू कश्मीर(Jammu Kashmir) के बारामूला(Baramulla) जिले में स्थित गुलमर्ग(Gulmarg) एक बेहद खूबसूरत स्थान है। श्रीनगर(Srinagar) से गुलमर्ग(Gulmarg) की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है। श्रीनगर से हम लोग कार से गुलमर्ग(Gulmarg) के लिए निकले। पूरा रास्ता अच्छे अच्छे नजारों से भरा पड़ा था। हमारे ड्राइवर बिलाल भट बहुत ही अच्छे और खुशमिज़ाज़ किस्म के इंसान थे। रास्तों में कश्मीर(Kashmir) अच्छी अच्छी जानकारियों से हम लोगों का ज्ञानवर्धन करा रहे थे। गुलमर्ग(Gulmarg) को फूलों के घाटी(Meadows of Flowers) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर्वतारोहण(Mountaineering), गोल्फ(Golf) तथा स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) भी सिखाया जाता है। अक्टूबर से फरवरी तक खूब बर्फ़बारी होती है। गुलमर्ग(Gulmarg) में दुनिया का सबसे ऊँचा गोल्फ कोर्स है। सर्दियों में गुलमर्ग(Gulmarg) में स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) करने दुनिया भर से सैलानी यहाँ आते हैं।
श्रीनगर से गुलमर्ग(Gulmarg) आने के क्रम में हम लोग एक बेहद खूबसूरत जगह पर रुके। रोड के किनारे दूर तक हरे भरे घांस के ऊँचे नीचे मैदान बहुत अच्छे लग रहे थे। इन घांस के मैदानों में सुन्दर फूल खिले हुए थे। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ के बीच में यह घाटी बेहद अच्छी लग रही थी। मौसम में एक सुकून देने वाली ठंढक थी। हम लोग यहाँ थोड़ी देर के लिए रुके। प्राकृतिक माहौल का जी भरकर आनंद लेते हुए बहुत सारे फोटो अपने मोबाइल से खींचे। कुछ देर बाद हम लोग फिर से गुलमर्ग(Gulmarg) के लिए बढ़ने लगे। रास्ते में भारतीय थल सेना(Indian Army) के गाड़ियों के काफिले भी दिखे। ऐसे दुर्गम इलाकों में हमारी भारतीय थल सेना(Indian Army) का जज़्बा देशप्रेम की भावना का बेहतरीन उदाहरण था।
लगभग 3 घंटे की यात्रा के बाद हम लोग गुलमर्ग(Gulmarg) पहुंच गए। गुलमर्ग(Gulmarg) का सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र यहाँ की केबल कार(Cable Car or Rope Way) है जिसे गोंडोला राइड(Gondola Ride) के नाम से जाना जाता है। गुलमर्ग(Gulmarg) की यह गोंडोला राइड(Gondola Ride) दुनिया की दूसरी और एशिया की पहली सबसे ऊँची केबल कार(Cable Car) है। इसकी ऊँचाई लगभग 13,450 फुट है। यह दो भागों में बनाई गयी है। भाग-1(Section-1) की दूरी 2.3 किलोमीटर और ऊँचाई 400 मीटर है। जबकि भाग-2(Section-2) की दूरी 2.5 किलोमीटर और ऊँचाई 880 मीटर है। हम लोग टिकट लेकर भाग-1(Section-1) के लिए गोंडोला राइड(Gondola Ride) पर बैठे। इस केबल कार पर बैठकर धीरे धीरे हम लोग ऊँचे पहाड़ों की तरफ बढ़ने लगे। मज़ा तो बहुत आ रहा था लेकिन नीचे की खाई देख कर थोड़ा डर भी लग रहा था। कुछ देर बाद हम लोग ऊपर पहाड़ पर पहुंच गए। यहाँ फूलों के बहुत अच्छे मैदान थे। घास के मैदान में घोड़े घास खा रहे थे। नज़ारा बहुत अच्छा लग रहा था। हम लोग यहाँ बैठकर कश्मीर(Kashmir) की खूबसूरती को जी भरकर निहार रहे थे।
भाग-1(Section-1) का गोंडोला राइड(Gondola Ride) जहाँ ख़त्म होता हैं वहीं से भाग-2(Section-2) के गोंडोला राइड(Gondola Ride) का टिकट मिलता है। हम लोग भी भाग-2 (Section-2) का टिकट लेकर केबल कार में बैठ गए। भाग-2(Section-2) का गोंडोला राइड(Gondola Ride) भाग-1(Section-1) के गोंडोला राइड(Gondola Ride) के अपेक्षा ज्यादा ऊँचा और रोमांचकारी था। यहाँ के पहाड़ बहुत दुर्गम और खाई बहुत गहरी थी। नीचे पथरीली जमीन पर उगे घांस और वहाँ चरते भेड़े बहुत अच्छे लग रहे थे। सर्दी भी काफी लगने लगा था। हम लोग मोबाइल से फोटो और वीडियो बना रहे थे। कुछ देर की आनंददायक और रोमांचकारी गोंडोला राइड(Gondola Ride) के बाद हम लोग गुलमर्ग(Gulmarg) के पहाड़ों की चोटियों पर थे। आस पास चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ दिख रहे थे। कश्मीर(Kashmir) के इन्हीं नजारों को देखने हम यहाँ आये थे।
हम लोगों ने सर्दी को दूर भगाने के लिए गरमागरम चाय पिया। बर्फ में पहनने के लिए ख़ास लंबे जूते यहाँ किराये पर मिलते हैं। हम लोग इन जूतों को पहनकर ट्रैक(Trek) करते हुए स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) के स्थान की ओर जाने लगे। हम लोगों ने बारी बारी से स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) का मज़ा लिया। यह बहुत अच्छा अनुभव था। लेकिन बर्फ के साथ गहरी खाई थोड़ा डरा भी रही थी। हमने यहाँ बहुत सारे फोटो और वीडियो भी बनाये। स्नो स्कीइंग(Snow Skiing) करने के बाद हम लोग पहाड़ के दूसरी ओर गए जहाँ से नियंत्रण रेखा(Line of Control) पास दिखती है। सामने के पहाड़ बहुत सुन्दर दिख रहे थे। ठंढी हवा दिल को सुकून पहुँचा रही थी। बहुत अच्छी धूप खिली हुई थी। हम लोग पत्थरों पर आराम से बैठ कर कश्मीर(Kashmir) के इन सारे खूबसूरत लम्हों को समेट लेना चाह रहे थे। काफी देर तक नजारों को जी भरकर देखने के बाद हम लोग वापस गोंडोला राइड(Gondola Ride) के पास पहुंचे। हमें एक बार फिर से वापसी करते हुए गुलमर्ग(Gulmarg) के मनमोहक दृश्यों का गोंडोला राइड(Gondola Ride) से देखने का आनंद मिला। यह वाकई बहुत ही रोमांचक अनुभव था। इन ना भूल पाने वाले बेहद कीमती पलों को अपनी यादों में समेटे हम लोग गुलमर्ग(Gulmarg) से वापस श्रीनगर(Srinagar) बढ़ने लगे।
गुलमर्ग(Gulmarg) की सुंदरता को शब्दों में बयां करना बहुत ही मुश्किल काम है। कश्मीर(Kashmir) आने पर गुलमर्ग(Gulmarg) आना कभी मत भूलिए। आपने गुलमर्ग(Gulmarg) की खूबसूरती को बॉलीवुड की फिल्मों में ज़रूर देखा होगा। लेकिन कभी कश्मीर(Kashmir) आकर गुलमर्ग(Gulmarg) की इन वादियों में घूम कर देखिये मज़ा आ जायेगा। गुलमर्ग बहुत ही खूबसूरत और लाजवाब हिल स्टेशन है। यहाँ की प्राकृतिक दृश्य आपको कश्मीर(Kashmir) और गुलमर्ग(Gulmarg) से प्यार करने पर मज़बूर कर देंगे। गुलमर्ग की खूबसूरत वादियों को मेरा ढेर सारा प्यार।
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➜गुलमर्ग में ये करना ना भूलें : गोंडोला राइड, स्नो स्कीइंग, फोटोग्राफी।
➜गुलमर्ग कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर में स्थित है तथा निकटम रेलवे स्टेशन भी जम्मू में 290 किलोमीटर दूर है जहाँ के लिए देश के सभी बड़े शहरों से ट्रैन मिलती हैं। जम्मू, लेह, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से श्रीनगर होते हुए गुलमर्ग आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
➜गुलमर्ग जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल गुलमर्ग में पर्यटक आते रहते हैं लेकिन गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक गुलमर्ग जाने का सबसे अच्छा समय हैं। सर्दियों में दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी ( Snowfall ) का लुफ्त लेने आप गुलमर्ग आ सकते हैं।
➜गुलमर्ग जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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कश्मीर(Kashmir) के अनंतनाग(Anantnag) जिले स्थित पहलगाम(Pahalgam) एक छोटा लेकिन विश्वप्रसिद्ध क़स्बा है। कश्मीर(Kashmir) की राजधानी श्रीनगर(Srinagar) से पहलगाम(Pahalgam) की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। लिड्डर नदी(Lidder River) किनारे बसा पहलगाम(Pahalgam) पवित्र अमरनाथ यात्रा का प्रवेश द्वार है। पहलगाम(Pahalgam) को चरवाहों की घाटी(Valley of Shepherds) के नाम से भी जाना है।पहलगाम(Pahalgam) की सुंदरता के बारे में हम लोगों से बहुत कुछ सुन रखा था लेकिन अब अपने आँखों से इसे देखने हम लोग श्रीनगर(Srinagar) से पहलगाम(Pahalgam) के लिए कार से निकले। हमारे ड्राइवर शब्बीर भट ने पहलगाम के बारे में बुनियादी बातें बताई।श्रीनगर से पहलगाम जाने के रास्ते में अखरोट(Walnut) और सेव(Apple) के बहुत सारे पेड़ दिखे। शब्बीर ने बताया की हम लोग पहलगाम से श्रीनगर वापस आते वक़्त सेव के बड़े से बगीचे में चलेंगे। पहाड़ी रास्तों में हरियाली और मौसम का मज़ा लेते हुए हम मस्ती से बॉलीवुड के गाने सुनते हुए पहलगाम(Pahalgam) की बढ़े जा रहे थे।
थोड़े सफर के बाद पहलगाम(Pahalgam) की शान लिड्डर नदी(Lidder River) दिखने लगी। लिड्डर नदी(Lidder River) के किनारे ही सड़क पर हमारी कार चल रही थी। कश्मीर(Kashmir) की नदियों की खासियत है कि ये ज्यादा गहरे नहीं होते हैं लेकिन पहाड़ के ढलान से उतरते हुए पत्थरों से टकराने के कारण पानी के लहरों से बेहद ही खूबसूरत दिखते हैं। दूसरी बात ये है कि इन नदियों का पानी बहुत की साफ़ और दूध की तरह सफ़ेद दिखता है। लिड्डर नदी(Lidder River) के ऊपर बने पुलों(Bridge) से होकर गुज़ारना बहुत अच्छा लग रहा था। हम लोगों ने लिड्डर नदी(Lidder River) के पास जाने के लिए कार को थोड़ी देर के लिए रोकने का फैसला किया। लिड्डर नदी(Lidder River) की आवाज़ बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन इसका पानी बहुत ही ठंढा था। हम लोगों ने यहाँ फोटोग्राफी किया और कुछ देर बाद आगे पहलगाम(Pahalgam) के लिए फिर से चल पड़े।
कुछ देर बाद हम लोग पहलगाम(Pahalgam) के कार स्टैंड पर पहुँच गए। यहाँ से आगे के घूमने के स्थानों पर हमें घोड़े से जाना था। हम लोग घोड़े से आगे जाने लगे। यह पहाड़ों के बीच देवदार के पेड़ों वाले जंगल का रास्ता था। साथ में हमने स्थानीय फोटोग्राफर को भी ले लिया। कुछ आसान रास्तों के बाद आगे का रास्ता कठिन होता चला गया। मैंने इससे पहले भी घोड़े पर बैठकर सफर किया है लेकिन यकीन मानिये पहलगाम(Pahalgam) में घोड़े से करने वाला सफर बहुत ही मुश्किल, रोमांचक, थोड़ा डरावना और साहसिक है। कई स्थानों पर तो समझ ही नहीं आ रहा था कि घोड़े के आगे जाने का रास्ता कहाँ है लेकिन पहलगाम(Pahalgam) के घोड़े बहुत प्रशिक्षित(Trained) और कमाल के साहसिक थे। इन घोड़ों के साथ चलने वाले इनके संचालक भी बहुत मेहनती और माहिर थे। कभी कभी जब ये घोड़े अपने रास्तों को बदल दे रहे थे तो संचालक अपने आवाज़ से ही उनको रास्ते पर वापस ला रहे थे।
रोमांच से भरे रास्ते पर बढ़ते हुए हम लोग कश्मीर घाटी(Kashmir Valley) के पॉइंट पर पहुँचे। यहाँ से पहलगाम(Pahalgam) कस्बे का दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था। घाटी और पहाड़ों पर विशिष्ट शैली में बने कश्मीरी घर बहुत अच्छे लग रहे थे। थोड़ी देर आगे जाने पर एक सुन्दर सा झरना(Waterfall) दिखा। घोड़े के साथ चलने वाले लड़के ने बताया कि इन जंगलों में जम्मू कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह बाघ का शिकार करने आते थे। घोड़े पर बैठ कर इन उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना अद्भुत अनुभव लग रहा था। थोड़ी देर बाद हम लोग पहलगाम(Pahalgam) के आकर्षण का केंद्र बैसरन(Baisaran) के पास पहुँचे। घोड़े से उतर कर थोड़ा पैदल चलकर आगे जाना था जहाँ बैसरन(Baisaran) घाटी का मुख्य द्वार था। जैसे ही हम लोग द्वार से होकर बैसरन(Baisaran) घाटी पहुँचे हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।
बैसरन(Baisaran) घाटी पहलगाम(Pahalgam) का दिल है। एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैले बैसरन(Baisaran) घाटी हरे घासों वाली ऊँचे नीचे ढलानों से बनी है। इतने हरे भरे घास के मैदान मैंने अब तक की ज़िन्दगी में कभी नहीं देखे थे। बैसरन(Baisaran) घाटी के चारों ओर देवदार के जंगल और उनके पीछे बर्फ से भरे पहाड़ इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। हम लोग यहाँ चारों ओर खूब घूमे। हमारे फोटोग्राफर ने हम सभी की बहुत सारी अच्छी तस्वीरें भी खींची। हम लोगों ने यहाँ के नज़ारे के वीडियो भी बनाये। कुछ स्थानीय लोग यहाँ की सफ़ेद घुंघराले वालों वाली बकरी और खरगोश लिए हुए थे जिनके साथ हम लोगों ने फोटो भी खिचाये। ऐसा लग रहा था कि हम लोग किसी नब्बे(1990s) के दशक के बॉलीवुड के किसी फ़िल्मी नज़ारों के बीच में आ गए हों। ऐसा लग रहा था कि जैसे हम जन्नत में आ गए थे। कभी हम नरम मखमली घासों पर बैठ रहे थे कभी लेट रहे थे और कभी दौड़ भी रहे थे। कुल मिलकर हम यहाँ की सुंदरता को अपने यादों में समेट रहे थे। वाह, क्या खूबसूरत वक़्त बिताया था हमने बैसरन(Baisaran) घाटी में।
बैसरन(Baisaran) घाटी को मिनी स्विट्ज़रलैंड(Mini Switzerland) के नाम से भी जाना जाता है। इसे मिनी स्विट्ज़रलैंड(Mini Switzerland) बुलाये जाने पर मुझे गंभीर आपत्ति है। हमें अपने देश की खूबसूरत स्थान को किसी विदेश के स्थान से तुलना करने की क्या ज़रूरत है। पहलगाम(Pahalgam) में स्थित बैसरन(Baisaran) घाटी को किसी विशेषण(Adjective) की क्या आवश्यकता जब यह अपने आप में एक विशेषण(Adjective) है। जी भरकर मौज़ मस्ती करने के बाद भूख भी लगने लगा था। हम लोगों ने घास पर बैठ कर मैगी खाया और गरमागरम चाय पिया। बहुत देर तक बैसरन(Baisaran) घाटी में अच्छा वक़्त गुज़ारने के बाद हम लोग वापस घोड़े पर बैठ कर कार पार्किंग के स्थान पर वापस जाने लगे। एक बार फिर से कठिन रास्तों पर घोड़े की सवारी का लुफ्त उठाने का मौका मिला। आज का हमारा रात्रि प्रवास(Night Stay) पहलगाम(Pahalgam) में ही था। कार से हम लोग पहलगाम के अपने होटल की ओर जाने लगे।
पहलगाम(Pahalgam) में हमारा होटल लिड्डर नदी(Lidder River) के बिलकुल किनारे पर ही बना था। कार से सारा सामान अपने कमरे में रखवा कर हम लोग लिड्डर नदी(Lidder River) के किनारे घूमने के लिए गए। थोड़ा घूमने के बाद वापस आकर हम लोगों ने खाना खाया और रात के अँधेरे में टोर्च लेकर लिड्डर नदी(Lidder River) के साथ बने रास्ते पर टहलने के लिए निकले। लिड्डर नदी(Lidder River) के पानी की आवाज़ रात में ज्यादा गूंज रहा था जो कानों में किसी संगीत से कम नहीं लग रहा था। काफी देर तक टहलने के बाद हम लोग होटल के लॉन में बैठ कर देर रात तक पहलगाम(Pahalgam) और कश्मीर(Kashmir) की सुंदरता का बखान करते रहे।
पहलगाम(Pahalgam) में पूरी रात तेज़ बारिश होती रही थी। सुबह नाश्ता करने के बाद हम लोग छाता लेकर एक बार फिर लिड्डर नदी(Lidder River) के पास गए। नदी की धार बहुत तेज़ हो गया था। हम लोग नदी के किनारे पत्थरों पर बैठ कर अपना पैर नदी में डाल रहे थे। नदी का पानी बहुत साफ़ लेकिन अत्यधिक ठंढा था। लेकिन ऐसे प्राकृतिक माहौल में शरीर अपनी क्षमता भी बढ़ा लेता है। अच्छा वक़्त बिताने के बाद हम लोग वापस होटल आ गए। अब यह वक़्त पहलगाम(Pahalgam) से विदा लेने का था।
वापसी के समय जैसा हमारे ड्राइवर शब्बीर भट ने वादा किया था वह हमें सेव के बगीचे(Apple Orchard) में लेकर गया। गर्मी के मौसम में पेड़ों पर सेव बहुत सारे लगे थे। लेकिन वे कच्चे होने के कारण हरे रंग के दिख रहे थे। हम लोगों ने सेव के पेड़ों को बहुत करीब से देखा। सेव के इन बागों में घूम कर बहुत अच्छा लगा। अपने मोबाइल से फोटो भी ढेर सारा लिया। इन बागों के पास ही अखरोट(Walnut) के पेड़ भी लगे थे। कुछ समय बिताने के बाद हम लोग वापस कार से आगे चलने लगे। पहलगाम(Pahalgam) में केसर(Saffron), सेव(Apple), अखरोट(Walnut) इत्यादि की खेती बड़े पैमाने पर होती है। रास्ते में एक स्थानीय दूकान से हम लोगों ने केसर(Saffron) और सूखे मेवों(Dry Fruits) की खरीदारी किया। अब हम पहलगाम(Pahalgam) को पीछे छोड़ते हुए श्रीनगर(Srinagar) की ओर बढ़ चले थे। साथ में अपने साथ पहलगाम(Pahalgam) की सुखद यादों को पुलिंदा भी हमारे साथ हमारे दिलों दिमाग में चल रहा था।
कश्मीर(Kashmir) की यात्रा में पहलगाम(Pahalgam) की सैर एक अनिवार्य हिस्सा है। पहलगाम(Pahalgam) घूमे बिना कश्मीर की यात्रा ना सिर्फ अधूरी है बल्कि बेरंगी भी है। कभी एक बार चरवाहों की इस घाटी(Valley of Shepherds) में आकर प्रकृति के इस अनुपम भेंट को स्वीकार तो कीजिये। आप का मन और दिल पहलगाम(Pahalgam) की इन हसीन वादियों में खो जाएगा इसकी शत प्रतिशत गारंटी है। तो फिर कभी निकल जाइये कश्मीर(Kashmir) की ओर और पहलगाम(Pahalgam) आपको अपने रुप रंग से खुश और विस्मित ज़रुर कर देगा। पहलगाम तुम्हें ढेर सारा प्यार (Love You Pahalgam) ।
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➜पहलगाम में ये करना ना भूलें : बैसरन घाटी देखना, लिड्डर नदी के पास समय बिताना, घोड़े की सवारी, सेव और अखरोट के बाग़ देखना, केसर खरीदना, फोटोग्राफी।
➜पहलगाम कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर में स्थित है तथा निकटम रेलवे स्टेशन भी जम्मू में 290 किलोमीटर दूर है जहाँ के लिए देश के सभी बड़े शहरों से ट्रैन मिलती हैं। जम्मू, लेह, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से श्रीनगर होते हुए पहलगाम आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
➜पहलगाम जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल पहलगाम में पर्यटक आते रहते हैं लेकिन गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक पहलगाम जाने का सबसे अच्छा समय हैं। सर्दियों में दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी(Snowfall) का लुफ्त लेने आप पहलगाम आ सकते हैं।
➜पहलगाम जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
Blogger Name: Pramod Kumar Kushwaha
For more information & feedback write email at : pktipsonline@gmail.com
जम्मू कश्मीर(Jammu Kashmir) की राजधानी श्रीनगर(Srinagar) हमारे इस धरती के स्वर्ग की यात्रा का पहला पड़ाव था। कश्मीर(Kashmir) की खूबसूरती बात हो और श्रीनगर(Srinagar) के डल झील(Dal Lake) की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। दिल्ली(Delhi) से हवाई यात्रा द्वारा हम लोग श्रीनगर(Srinagar) पहुँचे। आसमान से हिमालय पर्वतमाला के बर्फ से भरे शिखर नज़र आने लगे थे। श्रीनगर(Srinagar) में हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही हमारे ड्राइवर बिलाल भट मिल गए जिन्होंने बहुत गर्मजोशी से हमारा स्वागत कश्मीर(Kashmir) की धरती पर किया। कश्मीर(Kashmir) के मौसम में एक खुशनुमा सा एहसास हम सभी महसूस कर रहे थे। स्थानीय लोगों द्वारा बोले जाने वाला कश्मीरी भाषा भी कानों में कुछ अलग सा मिठास घोल रहा था। ऐसे ही वक़्त के लिए शायर ख्वाज़ा मीर 'दर्द' ने ठीक ही कहा है कि -
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगानी ग़र कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ।
कुछ देर कार के सफर के बाद हम लोग अपने पूर्व निर्धारित होटल पर पहुँच गए। थोड़ा आराम करने के बाद हम लोग श्रीनगर(Srinagar) घूमने के लिए निकले। श्रीनगर(Srinagar) में घूमने और देखने योग्य बहुत सारे जगह है। ऐसे ही कुछ स्थानों के बारे में जानकारी नीचे साझा कर रहा हूँ -
➥डल झील में शिकारा राइड(Shikara Ride in Dal Lake)
डल झील(Dal Lake) कश्मीर की सबसे प्रसिद्ध झील है। डल झील(Dal Lake) को श्रीनगर(Srinagar) का दिल कहा जाए तो यह अतिश्योक्ति(Exaggeration) नहीं होगा। कश्मीर की जमीं पर पैर रखने के साथ ही हम लोग सबसे पहले डल झील(Dal Lake) घूमने गए। लगभग 18 वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील ऊँचे पहाड़ों से घिरी हुई है। डल झील(Dal Lake) को खूबसूरत बनाते हैं इसमें तैरते हुए शिकारे। शिकारा(Shikara) लकड़ी से बने एक विशेष आकार और बनावट के नाव होते हैं जो सिर्फ डल झील(Dal Lake) में ही दिखते हैं। इस नाव के दोनों सिरे नुकीले और पानी से ऊपर की ओर उठे होते हैं। एक सिरे पर नाव चलाने वाला गोलाकार चप्पू से नाव को आगे बढ़ाता है। शिकारे को बहुत की आकर्षक ढंग से सजाये जाते हैं और बीच में बैठने के लिए आरामदायक गद्दे लगे होते है।
हम लोग भी शिकारे पर बैठ कर डल झील(Dal Lake) को देखने लगे। शिकारे बहुत धीमी रफ़्तार से चलते हैं और आस पास के सुन्दर दृश्यों को देखने में बहुत मज़ा आता है। डल झील(Dal Lake) में फव्वारे लगे हुए थे जो बहुत अच्छे लग रहे थे। डल झील(Dal Lake) में देखने के लिए बहुत सारे केंद्र(Points) है जैसे कबूतरखाना, नेहरू पार्क, चार चिनार। हम लोगों ने कश्मीरी परिधान पहनकर डल झील(Dal Lake) में फोटो भी खिंचवाए। झील में वाटर लिली(Water Lily), कमल के फूल(Lotus) और पानी के सतह पर तैरने वाली घांस इसे और अच्छा बना रही थी। शिकारे के आगे बढ़ने के कारण इन घांसो के बीच से रास्ता बन जाता था जो शिकारे के आगे बढ़ने पर अपने आप गायब भी हो जा रहा था।
डल झील(Dal Lake) में पानी के ऊपर शिकारे पर ही खाने पीने के दुकान हैं। हम लोगों ने यहाँ पकौड़े खाये और कश्मीरी कहवा(Kahwa) का स्वाद लिया। कहवा(Kahwa) कश्मीर का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ है। इसको बनाने में बहुत सारे मसाले(Spices), सूखे मेवें(Dry Fruits) और शहद(Honey) का प्रयोग होता है। हमें कश्मीरी कहवा बहुत ही जायकेदार लगा। हम लोगों ने शिकारे पर ही स्थानीय फल जैसे खुबानी, आलू बुखारा, नाशपाती और सेव से बने फ्रूट चाट खाये। यह अलग अलग फलों का स्वादिष्ट मिश्रण था। शिकारे पर बहुत सारे दुकान भी थे जो डल झील(Dal Lake) में तैरकर सैलानियों को स्थानीय वस्तुएँ बेच रहे थे। डल झील(Dal Lake) में पानी के ऊपर ही एक बाजार भी है जहाँ के दुकानों पर शिकारे से ही जाया जा सकता है। यह सब देखना बहुत सुखद था कि कैसे डल झील(Dal Lake) की अपनी एक अलग दुनिया है जहाँ सब कुछ पानी के ऊपर नाव पर है। बाजार घूमने के बाद हम लोग फिरसे झील के बीच में आ गए।
शाम ढलने के साथ ही डल झील(Dal Lake) और भी खूबसूरत लगने लगी थी। इस झील के चारों ओर सड़क पर लगे तेज़ प्रकाश इसकी शोभा बढ़ा रहे थे। डल झील(Dal Lake) से दूर पहाड़ी पर राजा हरिसिंह का महल और होटल ताज भी दिख रहा था। शाम के समय झील शांत होने लगी थी और शिकारे पर धीरे धीरे झील में घूमना बहुत अच्छा अनुभव दे रहा था। जैसा हमने डल झील(Dal Lake) के बारे में सुना था उससे कहीं अधिक अच्छा यहाँ आकर लगा। श्रीनगर(Srinagar) में आकर डल झील(Dal Lake) में शिकारा राइड(Shikara Ride) करना कश्मीर(Kashmir) यात्रा का एक सबसे महत्वपूर्ण और ज़रूरी हिस्सा है।
➥डल झील का हाउस बोट(Shikara Ride in Dal Lake)
डल झील(Dal Lake) की दूसरी सबसे अच्छी चीज़ है इसके अंदर तैरने वाले हाउस बोट(House Boat)। यह एक बहुत ही सुन्दर बड़े आकर के नाव होते हैं जो देवदार की लकड़ी से बने होते है। इनमे से ज्यादातर हाउस बोट(House Boat) 40 वर्ष से ज्यादा पुराने है। सभी आलिशान सुविधाओं से लैस इन हाउस बोट(House Boat) में रहना एक बहुत अच्छा अनुभव था। हमारे कार ने हम लोगों को एक पूर्व निर्धारित घाट पर उतार दिया जहाँ से हाउस बोट(House Boat) तक शिकारे पर बैठ कर जाना था। थोड़े देर के शिकारा राइड के बाद हम लोग अपने हाउस बोट(House Boat) के पास पहुँचे। हाउस बोट(House Boat) की बाहरी दीवारों पर बहुत सुन्दर और महीन नक्काशी थी। हाउस बोट(House Boat) एक महल सा सुन्दर दिख रहा था। हाउस बोट(House Boat) के अंदर कमरे बने हुए थे जो अंदर से भी बहुत अच्छे ढंग से सजाये गए थे। हाउस बोट(House Boat) के फर्श पर बहुत नरम और मखमली कालीन बिछी हुई थी। यह एक बहुत आलीशान और भव्य हाउस बोट(House Boat) था।
हाउस बोट(House Boat) से जुड़ा हुआ ही इसका बैठने का खुला हिस्सा था जो लड़की के ऊपर ही बना था। चारों ओर झील का पानी और उसके ऊपर हाउस बोट(House Boat) पर हम लोग थे। यहाँ से बैठकर झील और पहाड़ का दृश्य और भी अच्छा लग रहा था। शाम होने पर लाइट की रौशनी में पूरी झील जगमग होने लगी थी। हम लोग बहुत देर रात तक हाउस बोट(House Boat) के बाहर बैठकर बाते करते रहे।
सुबह के समय सूर्योदय(Sunrise) का नज़ारा देखने के लिए हम थोड़ा जल्दी उठे। डल झील(Dal Lake) सूरज की लाल रौशनी में सोने जैसी चमक रही थी। शिकारे पर फूल बेचने वाले भी घूम रहे थे जो हमारे हाउस बोट(House Boat) के पास भी आये। शिकारे रंग बिरंगे फूलों से भरे बेहद अच्छे लग रहे थे। हाउस बोट(House Boat) में रुकने का एक अलग ही मज़ा था। कश्मीर(Kashmir) में हमारी यात्रा का प्रारंभ श्रीनगर के डल झील(Dal Lake) में बहुत भव्य तरीके से हुआ।
➥मुगल गार्डन(Mughal Garden)
श्रीनगर(Srinagar) के प्रमुख मुग़ल गार्डन में शालीमार बाग(Shalimar Garden), निशात बाग(Nishat Garden), चश्मा शाही(Chashma Shahi), परी महल(Pari Mahal) और वेरीनाग बाग(Verinag Garden) शामिल हैं। इनमे शालीमार बाग(Shalimar Garden) सबसे बड़ा बाग है। सभी बाग पहाड़ों की घाटियों में बनाये गए हैं। इन सभी बागों में पानी के फव्वारे(Water Fountain) लगाए गए हैं। इन खूबसूरत बागों का निर्माण 16वीं और 17वीं शताब्दी में जहाँगीर और दूसरे मुग़ल शासको ने करवाया था। इन बागों में लगे चिनार के पेड़ इसकी सुंदरता को और निखार देते हैं।
➥शंकराचार्य मंदिर(Shankracharya Temple)
शंकराचार्य मंदिर(Shankracharya Temple) कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की ऊँचाई लगभग 1000 फीट है। यह डल झील(Dal Lake) के पास ही एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। शंकराचार्य मंदिर(Shankracharya Temple) से डल झील(Dal Lake) और श्रीनगर(Srinagar) का नज़ारा बहुत अच्छा लगता है।
➥लाल चौक(Lal Chowk)
श्रीनगर(Srinagar) की बात हो और लाल चौक(Lal Chowk) का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। यह चौक अपने राजनैतिक सभाओं के लिए मशहूर है। चौक के मध्य में एक घंटाघर(Clock Tower) है जिसका निर्माण वर्ष 1980 में हुआ था। यह स्थान खरीदारी(Shopping) के लिए प्रसिद्ध है और आप यहाँ से कश्मीरी सामानों को खरीद सकते हैं।
➥ट्यूलिप गार्डन(Tulip Garden)
इसका पूरा नाम इंदिरा गाँधी ट्यूलिप गार्डन(Indira Gandhi Tulip Garden) है। डल झील(Dal Lake) के पास जबरवान के पहाड़ों(Zabarwan Hills) पर स्थित ट्यूलिप गार्डन कश्मीर(Kashmir) आने वाले सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। यहाँ 65 से ज्यादा ट्यूलिप की किस्में हैं जिनकी पूरी संख्या 15 लाख से ज्यादा है। हर साल मार्च के महीने में जब ट्यूलिप के फूल एक साथ खिल जाते है तो इस गार्डन को सैलानियों के लिए खोल दिया जाता है।
➥शिकारा बाजार(Market on Shikara)
डल झील(Dal Lake) में सुबह के 5 बजे सब्ज़ी के बाजार लगते है। रंग बिरंगे सब्ज़िओं से सजे ढेर सारे शिकारे हर सुबह अपनी ताज़ी सब्ज़ियों को यहाँ बेचते है जिसे देखने के लिए सैलानियों को भीड़ लगी रहती है। फूलों से भरे शिकारे भी यहाँ नज़र आते हैं। इसके अलावा डल झील(Dal Lake) में खाने के भी स्थान है जहाँ कहवा, मैगी, पकौड़े इत्यादि मिलते है। डल झील(Dal Lake) में ही एक बाजार है जहाँ शिकारा राइड करके जा सकते हैं। इन बाज़ारों में कश्मीर(Kashmir) का प्रसिद्ध पश्मीना(Pashmina) शॉल के बहुत सारे दुकान हैं। हमारे शहरों के बाज़ारों की तरह ही डल झील(Dal Lake) में भी यह बाजार बहुत सुव्यवस्थित तरीके से बनाया गया है। बस अंतर यह है कि गाड़ी या पैदल ना जाकर यहाँ शिकारा से जाना पड़ेगा।
कश्मीर(Kashmir) की यात्रा में श्रीनगर(Srinagar) घूमना एक बहुत अच्छा अनुभव था। श्रीनगर(Srinagar) के सभी दर्शनीय स्थानों का रखरखाव बहुत अच्छे तरीके से किया गया है। जब कभी भी आप कश्मीर(Kashmir) यात्रा पर हों तो श्रीनगर(Srinagar) में इन घूमने योग्य स्थानों पर ज़रूर जाइये।
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➜श्रीनगर में ये करना ना भूलें : डल झील में शिकारा राइड, डल झील में हाउस बोट में ठहरना, कश्मीरी सामानों की खरीदारी, ट्यूलिप गार्डन देखना, फोटोग्राफी।
➜श्रीनगर कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर में स्थित है तथा निकटम रेलवे स्टेशन भी जम्मू में 290 किलोमीटर दूर है जहाँ के लिए देश के सभी बड़े शहरों से ट्रैन मिलती हैं। जम्मू, लेह, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से श्रीनगर आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
➜श्रीनगर जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल श्रीनगर में पर्यटक आते रहते हैं लेकिन गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक श्रीनगर जाने का सबसे अच्छा समय हैं। सर्दियों में दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी(Snowfall) का लुफ्त लेने आप श्रीनगर आ सकते हैं।
➜श्रीनगर जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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कश्मीर(Kashmir) में अपने प्रवास के अंतिम चरण में हम लोग सोनमर्ग(Sonmarg) के लिए श्रीनगर(Srinagar) से निकले। सोनमर्ग(Sonmarg) कश्मीर के गांदरबल(Gandarbal) जिले में स्थित है। श्रीनगर(Srinagar) से सोनमर्ग(Sonmarg) की दूरी लगभग 81 किलोमीटर है। सोनमर्ग(Sonmarg) जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1(NH - 1) से होकर जाना होता है। सोनमर्ग(Sonmarg) कश्मीर(Kashmir) का आखिरी क़स्बा है और इसके आगे लद्दाख की सीमा शुरू होती है। सोनमर्ग(Sonmarg) में पहाड़ों की ऊँचाई बहुत ज्यादा है। बर्फ और बादलों से घिरे पहाड़ और इसके आस पास घने जंगल नज़ारे को अद्भुत बना देते है। सोनमर्ग(Sonmarg) के पास ही पवित्र अमरनाथ यात्रा के दूसरे रास्ते का प्रवेश द्वार बालटाल(Baltal) है। लगभग 3 घंटे की कार यात्रा के बाद हम लोग सोनमर्ग(Sonmarg) पहुँचे।
हमारे होटल के चारों ओर ऊँचे ऊँचे पहाड़ दिख रहे थे जिन पर रुई जैसे बादल फैले हुए थे। थोड़े आराम करने के बाद सोनमर्ग(Sonmarg) का प्रसिद्ध स्थान थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) देखने जाना था। हमारे होटल के पास से ही घोड़े की सवारी करते हुए थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) तक सफर करना था। सोनमर्ग(Sonmarg) के पास ग्लेशियर और बारिश होने के कारण ठंढ बहुत ज्यादा था। घोड़े वाले ने ही हम लोगों को बारिश और ठंढ से बचने के लिए ख़ास गर्म कपड़े और बूट किराये पर दिए। अब हम लोग धीरे धीरे ग्लेशियर की ओर बढ़ रहे थे। पहलगाम(Pahalgam) के घोड़ों द्वारा पार किये जाने वाले रास्तों के अपेक्षा सोनमर्ग(Sonmarg) का यह रास्ता थोड़ा आसान था। दूर तक हरी घास के ऊँचे नीचे ढलान वाले मैदान पर घास चरते घोड़ों को हमने दीवारों पर तस्वीरों में ही देखा था।
पहाड़ी रास्तों पर चलते हुए घोड़े वाले ने ऐसे बहुत सारे स्थानों को दिखाया जहाँ बॉलीवुड के फिल्मों की शूटिंग हुई थी। कुछ देर बाद एक तेज़ धार के साथ बहती एक नदी दिखाई दिया। हमारा आगे का रास्ता इस नदी को पार करके ही आगे जाने का था। हम रास्ता खोज ही रहे थे कि घोड़े नदी के अंदर उतर गए। हम लोग थोड़ा डर से गए थे। लेकिन इन घोड़ों का यह रोज़ का काम था। कुछ देर बाद हमें दूर से थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) दिखने लगा था। वहाँ से निकलने वाली नदी भी पास में बह रही थी। वहाँ घाटी में कुछ अस्थाई टेंट बने हुए थे जहाँ आग जल रही थी। सर्दी ज्यादा होने की वजह से हम लोग थोड़ी देर आग के पास बैठे। मैगी और चाय की व्यवस्था भी थी और जोरो की भूख तो लगी ही थी। तो पहले हमने मैगी खाया और चाय पिया। अब काफी ऊर्जा हमारे अंदर आ गया था।
टेंट के बाहर निकल कर हम लोग आस पास के नज़ारे देखने लगे। हर तरफ पहाड़ और वो भी बर्फ से भरे हुए। सामने ही थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) था और वहाँ से एक नदी हमारी ओर बह रही थी। हमारे पास ही नदी के ऊपर लकड़ी का एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत पुल(Bridge) था। हम लोगों ने इस पुल(Bridge) पर और इसके आस पास अलग अलग तरह से फोटो खींचे। यहाँ का नज़ारा पूरा फ़िल्मी था। एक नदी, उस पर एक छोटा लकड़ी का पुल, चारों ओर बर्फीले पहाड़ और जंगल। अब इससे अच्छा प्राकृतिक नज़ारा भला क्या हो सकता था। मैंने नदी के पानी को छूना चाहा तो लगा जैसे बर्फ को हाथ लगाया है। नदी तेज़ धार में पत्थरों से टकराती आगे बहती जा रही थी।
थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) को पास से देखने के लिए आगे कुछ दूर पैदल (Trekking) चल कर जाना था। हम उस ओर पहाड़ पर चढ़ने लगे। ग्लेशियर से निकलता हुआ पानी बहुत सारे धाराओं(Streams) में नीचे बह रहा था। इन धाराओं को सावधानी से पार कर हम लोग थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) के बिलकुल पास पहुँच गए थे। हमारे सामने पहाड़ पर बर्फ ही बर्फ थे और वे पिघल कल नदी का रूप ले रहे थे। मैंने अब तक ग्लेशियर के बारे में टेलीविज़न पर ही देखा था लेकिन इतने पास से अपने आँखों से देखना अद्भुत था। बर्फ कैसे पिघल कर नदी बन जाता है ये साक्षात हमारे सामने हो रहा था। हम लोगों ने ग्लेशियर के पास बर्फ पर कुछ फोटो खींचे। ठंढ के करना यहाँ ज्यादा देर तक रुकना कठिन हो रहा था और शाम भी होने लगी थी इसलिए हम लोग ट्रैक(Trek) करके वापस आने लगे।
अब अँधेरा काफी हो चूका था लेकिन घोड़े से वापस उसी पहाड़ी रास्ते और नदी को पार करके सोनमर्ग(Sonmarg) कस्बे तक भी जाना था। अँधेरे में सामने वाले पहाड़ पर कुछ रोशनी दिख रही थी। घोड़े वाले ने बताया की ये सब चरवाहों के टेंट हैं जो जम्मू से हर साल गर्मियों में अपनी भेड़े चराने सोनमर्ग(Sonmarg) के घास के मैदानों में आते है और सर्दियों में वापस जम्मू स्थित अपने घर चले जाते हैं। इस जानकारी को सुनकर हम लोग हैरान थे। हैरान तो हम लोग इतने अँधेरे में घोड़ों के आसानी से पथरीले रास्तों पर आराम से चलने पर भी थे। यह प्रशिक्षित घोड़े थे और घोड़ों को रात में भी आसानी से दिखाई देता है। लेकिन थोड़ा डर भी लग रहा था। हमारे डर को नयी ऊंचाई तब मिली जब घोड़े वाले ने बताया कि सोनमर्ग(Sonmarg) में जंगली भालू(Wild Bear) अक्सर दिख जाते है। कई बार तो इन जंगली भालुयों द्वारा सैलानियों पर हमले हो चुके थे। उसने यह भी बताया 4 दिन पहले भी यहाँ जंगली भालू(Wild Bear) दिखा था। अब क्या था। अँधेरे में यह जंगल का रास्ता कुछ ज्यादा कठिन लगने लगा था। एक स्थान पर हमारा घोड़ा रुक गया और आगे नहीं बढ़ रहा था। घोड़े वाले ने बताया की घोड़े ने शायद आगे कुछ देखा है। हमारे धड़कन काफी तेज़ होने लगी थी। उसने मोबाइल की रौशनी में आगे जाकर देखा तो यह एक कटा हुआ पेड़ था जो बैठे हुए भालू जैसा दिख रहा था।
थोड़ी देर में सोनमर्ग(Sonmarg) क़स्बा दिखने लगा था। यह एक बहुत ही अद्भुत और रोमांचक यात्रा था। सोनमर्ग(Sonmarg) में थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) को देख कर यह पता चला कि नदियों का निर्माण कैसे होता है। सोनमर्ग (Sonmarg) में बर्फीले पहाड़ सूरज रौशनी में सोने जैसे चमकने लगते है। अगर आप भी ग्लेशियर में होने वाले इन अद्भुत प्राकृतिक घटनाओं के साक्षी बनना चाहते हैं तो कश्मीर(Kashmir) आकर सोनमर्ग(Sonmarg) के थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) को ज़रूर देखिये।
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➜सोनमर्ग में ये करना ना भूलें : थाजीवास ग्लेशियर देखना, घोड़े की सवारी, फोटोग्राफी।
➜सोनमर्ग कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर में स्थित है तथा निकटम रेलवे स्टेशन भी जम्मू में 290 किलोमीटर दूर है जहाँ के लिए देश के सभी बड़े शहरों से ट्रैन मिलती हैं। जम्मू, लेह, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से श्रीनगर होते हुए सोनमर्ग आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
➜सोनमर्ग जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल सोनमर्ग में पर्यटक आते रहते हैं लेकिन गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक सोनमर्ग जाने का सबसे अच्छा समय हैं। सर्दियों में दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी(Snowfall) का लुफ्त लेने आप सोनमर्ग आ सकते हैं।
➜सोनमर्ग जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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राष्ट्रीय राजमार्ग-1(National Highway-1 or NH-1) के बारे में जबसे किताबों में पढ़ा था और यूट्यूब पर वीडियो देखा था तभी मुझे इस राष्ट्रीय राजमार्ग की सुंदरता को अपने आँखों से देखना था। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान ने सामरिक(Tactical) दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस राष्ट्रीय राजमार्ग(NH-1) को अपने नियंत्रण में लेने के लिए लद्दाख के कारगिल(Kargil) में हमला किया था। और आस पास के पहाड़ों पर धोखे से घुसपैठ करके कब्ज़ा कर लिया था। बाद में भारतीय सेना(Indian Army) ने अपने शौर्य और पराक्रम से इन घुसपैठियों को परास्त करके NH-1 को सुरक्षित कर लिया था। श्रीनगर(Srinagar) से लेह(Leh) की यात्रा हम लोगों को NH-1 पर कार द्वारा पूरा करना था। कश्मीर(Kashmir) में हमारा आखिरी पड़ाव सोनमर्ग(Sonmarg) NH-1 पर ही श्रीनगर(Srinagar) से लगभग 81 किलोमीटर दूर स्थित है। श्रीनगर(Srinagar) से यह राजमार्ग(Highway) पहाड़ों, जंगलों, नदियों, पुलों और दर्रों से होकर गुज़रता है। हम लोग सोनमर्ग(Sonmarg) पहुँच कर थाजीवास ग्लेशियर(Thajiwas Glacier) देखने गए। सोनमर्ग(Sonmarg) बेहद खूबसूरत स्थान है। हम लोग सोनमर्ग(Sonmarg) में रात को रुके थे।
सुबह सोनमर्ग(Sonmarg) से NH - 1 पर आगे बढ़ने लगे। हाईवे के साथ में सिंध नदी(Sindh River) बह रही थी। सिंध नदी(Sindh River) को लोग गलती से सिंधु नदी(Indus River) समझ लेते हैं जबकि ये दोनों अलग अलग नदियाँ हैं। कुछ देर बाद रास्ते में पहाड़ों की तलहटी में बालटाल(Baltal) क़स्बा दिखा। बालटाल(Baltal) से अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा शुरू होता है। भारतीय सेना के गाड़ियों का लंबा काफिला भी हमारे आगे चल रहा था। हम लोगों ने युद्ध टैंक भी देखा जो ट्रकों पर रखकर ले जाया जा रहा था। थोड़ी देर में हम लोग जम्मू कश्मीर(Jammu Kashmir) को पार करके लद्दाख(Ladakh) के सीमा में प्रवेश कर चुके थे। पहाड़ों के रंग बदलते जा रहे थे। जो पहाड़ कश्मीर(Kashmir) में देवदार और विभिन्न पेड़ों से भरे हुए हरे दिख रहे थे वो लद्दाख की तरफ बढ़ते हुए सूखे और पथरीले होने लगे थे।
कुछ देर बाद हम लोग ज़ोजिला(Zoji La) पहुँच गए। 'ला' का लद्दाख में मतलब होता है दर्रा(Pass)। ज़ोजिला(Zoji La) हिमालय पर्वत का एक प्रमुख पर्वतीय दर्रा(Mountain Pass) है जो लद्दाख के कारगिल (Kargil) जिले के द्रास(Drass) में स्थित है। इस दर्रे(Pass) को लद्दाख़ के प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है। NH-1 पर ज़ोजिला(Zoji La) में हम लोग कुछ देर जलपान करने के लिए रुके। यहाँ पहाड़ों पर बर्फ होने के कारण सर्दी लग रहा था। पहाड़ों पर भारतीय सेना के जवान पूरी मुस्तैदी से इस हाईवे पर नज़र रख रहे थे। यहाँ के हवा में ऑक्सीजन का स्तर(Oxygen Level) बहुत कम था और हमने गैस लाइटर जलाने की नाकाम कोशिश करके इसे देखा भी था। कुछ देर में हम लोग आगे बढ़ने लगे। लद्दाख के मौसम में यह ख़ास बात है कि बहुत ऊँचाई पर स्थित होने की वजह से धूप काफी चटक और तेज़ होती है। मौसम बिलकुल साफ रहता है और आसमान में बादल कम होने से बहुत ज्यादा नीला दिखता है।
सोनमर्ग(Sonmarg) से कारगिल(Kargil) की लगभग 123 किलोमीटर की लम्बी दूरी तय करने के बाद हम लोग कारगिल(Kargil) में पूर्व निर्धारित रंगयुल रेसोर्ट(Rangyul Resort) पहुँचे। यह NH-1 के किनारे पर भी बना बहुत सुन्दर रेसोर्ट था। इस रेसोर्ट में चारों ओर फूलों के पौधे लगे थे। शांतिपूर्ण वातावरण, सुन्दर फूलों और लकड़ी के बने आकर्षक कमरों के कारण मुझे यह रेसोर्ट बेहद पसंद आया। ऊँचे पथरीले पहाड़ों के बीच हरियाली से भरा यह स्थान बहुत अच्छा लगा। इस रेसोर्ट के लॉन में बैठ कर देर रात तक हम लोग बाते करते रहे। थकान के कारण नींद आने लगी और हम लोग भी सोने चले गए।
सुबह नाश्ता करने के बाद हम लोग अपने NH-1 की यात्रा के अगले पड़ाव लेह(Leh) जाने के लिए निकले। हमारे ड्राइवर गौहर शाह ने कारगिल(Kargil) में NH-1 पर उन स्थानों को दिखाया जहाँ पर कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान के टैंकों के गोले गिरे थे। उस समय इस हाईवे की सुरक्षा के लिए इन जगहों पर पत्थर के ऊँचे दिवार बनाये गए थे जो अभी भी वैसे ही खड़े हैं। गौहर शाह ने बताया कैसे सामने वाले पहाड़ों पर पाकिस्तानी घुसपैठिये छिपकर इस सामरिक महत्वपूर्ण के मार्ग NH-1 से सेना तथा अन्य गाड़ियों को निशाना बना रहे थे। कुछ दूर चलने के बाद हम लोग नामिका ला(Namika La) दर्रा पहुँचे। यह हिमालय के जांस्कर रेंज(Zanskar Range) में स्थित है। यहाँ पर हम लोगों ने भारतीय सेना के जवानों के साथ फोटो खिंचवाया।
नामिका ला(Namika La) दर्रे से आगे बढ़ने पर फाटुला चोटी(Fatula Top) आया। यह स्थान श्रीनगर(Srinagar) से लेह(Leh) के बीच NH-1 पर सबसे ऊँचाई वाला स्थान है। लद्दाख(Ladakh) का मौसम बहुत चमकीला होने की वजह से पहाड़ और घाटियाँ बहुत साफ तथा अच्छे नज़र आ रहे थे। आगे रास्ता बहुत सीधा और समतल था। दूर तक पथरीले मैदान और उसके बीच सीधी लकीर जैसी सड़क बहुत बढ़िया नज़ारा बना रही थी। हम लोग इस जगह के बारे में पहले भी सुन चुके थे। कार को किनारे रोक कर इस सीधी सड़क पर फोटो खिंचवाया। यह स्थान लद्दाख(Ladakh) आने वाले लोगों में बहुत लोकप्रिय है। कुछ देर बाद हम लोग लेह(Leh) शहर के पास पहुँच गए। कारगिल(Kargil) से लेह(Leh) की दूरी लगभग 217 किलोमीटर है। लेह के पास ही NH-1 पर मैग्नेटिक हिल(Magnetic Hill) और प्रसिद्ध गुरुद्वारा पत्थर साहिब(Gurudwara Pathar Sahib) स्थित है।
जम्मू कश्मीर(Jammu Kashmir) की राजधानी श्रीनगर(Srinagar) से लद्दाख(Ladakh) की राजधानी लेह(Leh) तक की लगभग 421 किलोमीटर की दूरी सोनमर्ग(Sonmarg) और कारगिल(Kargil) होते हुए 3 दिन में पूरी हुई। राष्ट्रीय राजमार्ग-1(National Highway-1 or NH-1) के बारे में जैसा सुना था उससे ज्यादा अच्छा सफर रहा। सीमा सड़क संगठन(Border Road Organization or BRO) का इतने दुर्गम क्षेत्रों में इतना बढ़िया हाईवे बनाने का काम तारीफ करने लायक है। NH-1 सपनों का हाईवे है जहाँ हर कोई मोटरसाइकिल या कार से सफर पूरा करना चाहता है। अगर आप लद्दाख(Ladakh) आ रहे है तो श्रीनगर(Srinagar) से लेह(Leh) तक की यात्रा सड़कमार्ग से NH-1 पर ही पूरा कीजिये। यकीन मानिए आपकी यह यात्रा बेहद सुन्दर और रोमांच से भरपूर होगी।
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➜राष्ट्रीय राजमार्ग - 1(NH-1) की यात्रा में ये करना ना भूलें : सोनमर्ग में थाजीवास ग्लेशियर देखना, कारगिल के द्रास में वॉर मेमोरियल देखना, ज़ोजिला दर्रा और जीरो पॉइंट देखना , फोटोग्राफी।
➜राष्ट्रीय राजमार्ग - 1(NH-1) कैसे पहुँचे : कश्मीर की राजधानी श्रीनगर हवाई मार्ग या सड़क मार्ग से आकर NH-1 की यात्रा की शुरुवात कर सकते हैं। यह यात्रा लद्दाख़ की राजधानी लेह से भी शुरु किया जा सकता है।
➜राष्ट्रीय राजमार्ग - 1(NH-1) की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय : गर्मियों में मार्च से अक्टूबर तक का समय राष्ट्रीय राजमार्ग-1(National Highway-1 or NH-1) की यात्रा का सबसे अच्छा समय हैं।
➜राष्ट्रीय राजमार्ग - 1(NH-1) की यात्रा करने में लगने वाला समय : 3 दिन / 2 रात
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लद्दाख(Ladakh) के उत्तरी भाग में नुब्रा घाटी(Nubra Valley) स्थित है। लेह(Leh) से नुब्रा घाटी(Nubra Valley) की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। नुब्रा(Nubra) का स्थानीय भाषा में मतलब होता है फूलों की घाटी(Valley of Flower)। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) में श्योक नदी(Shyok River) और नुब्रा नदी(Nubra River) के बहने के कारण लद्दाख(Ladakh) के अन्य भागों के अपेक्षा यहाँ बहुत हरियाली नजर आता है। लेह(Leh) से सुबह हम लोग नुब्रा घाटी(Nubra Valley) के लिए निकले। यह रास्ता दुर्गम पहाड़ों से होकर गुजरता है। कुछ समय के बाद लद्दाख(Ladakh) का प्रसिद्ध दर्रा(Mountain Pass) खारदुंगला(Khardung La) मिला। पहले यह स्थान दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित सड़क(Highest Motorable Place of World) था। यहाँ आस पास के पहाड़ बर्फ से ढके हुए थे जिसके कारण तापमान बहुत कम था। हम लोगों को यहाँ ऑक्सीजन का स्तर(Oxygen Level) भी काफी कम लगा। खारदुंगला(Khardung La) में पहाड़ के चोटिओं पर रंग बिरंगे तिब्बती झंडे बहुत अच्छे लग रहे थे।
खारदुंगला(Khardung La) से आगे बढ़ने पर घाटी में श्योक नदी(Shyok River) नज़र आने लगी। रेतीले घाटियों के बीच से बहने के वजह से इसका पानी मटमैला दिख रहा था। कुछ दूर जाने के बाद रेत के टीलों(Sand Dunes) से भरी एक जगह आई। हमारे ड्राइवर फुंचोक आंगचोक(Phunchok Angchok) ने बताया की यहाँ रेत के टीलों(Sand Dunes) के ऊपर ए.टी.वी. राइड(ATV Ride or All Terrain Vehicle Ride) भी होता है जो बहुत ही रोमांच से भरपूर होता है। हम लोग भी ए.टी.वी राइड(ATV Ride) करने के लिए रुके। ए.टी.वी.(ATV or All Terrain Vehicle) एक विशेष प्रकार का चार पहियों वाला वाहन(Vehicle) होता है जिसके पहिये बहुत मोटे होते हैं। इस गाड़ी में रेत के ऊँचे नीचे टीलों पर चलना बहुत बेहतरीन और रोमांचक अनुभव था। कभी कभी तो ऐसा लग रहा था कि रेत में ये पलट जायेंगे लेकिन ये विशेष वाहन बहुत शक्तिशाली थे। हम सभी को ए.टी.वी राइड(ATV Ride) करना बहुत अच्छा लगा।
इस रोमांच से भरपूर अनुभव का आनंद उठाकर हम लोग आगे बढ़ने लगे। आगे का रास्ता बहुत दूर तक समतल और सीधा होने की वजह से बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सफेद पत्थरों पर काली लकीर खींच दी हो। कुछ देर बाद हम लोग नुब्रा घाटी(Nubra Valley) के एक बड़े गाँव दिस्कित(Diskit) पहुँच गए। दिस्कित(Diskit) में नुब्रा नदी(Nubra River) आकर श्योक नदी(Shyok River) नदी में मिल जाती है। दिस्कित(Diskit) में लगभग 350 वर्ष पुराना एक बहुत ही भव्य बौद्ध मठ(Monastery) है। दिस्कित मठ(Diskit Monastery) के पास पहाड़ के ऊपर भगवान बुद्ध की बेहद आकर्षक और विशाल मूर्ति है। यह स्थान सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। हम लोगों ने यहाँ बहुत सारे फोटो खींचे। यहाँ पर हम लोगों ने विशेष बेलनाकार प्रार्थना यंत्र(Cylindrical Spinning Prayer Wheel) को घुमाया जिसे स्थानीय भाषा में मानी(Mani) बोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि मानी(Mani) घुमाने से सारे पाप(Sins) धुल जाते हैं। दिस्कित मठ(Diskit Monastery) से नुब्रा घाटी(Nubra Valley) का दृश्य बहुत मनमोहक लग रहा था। भगवान बुद्ध की मूर्ति के नीचे बने हॉल में कुछ अन्य मूर्तियाँ भी स्थापित थी।
दिस्कित(Diskit) से कुछ आगे बढ़ने पर हम लोग नुब्रा घाटी(Nubra Valley) के दूसरे बड़े गाँव हुन्डर(Hunder) पहुँचे। यह एक बहुत सूखा स्थान था। चारों ओर रेत के टीले(Sand Dunes) नज़र आ रहे थे। वर्ष 1947 से पहले हुन्डर(Hunder) के रास्ते मध्य एशिया(Middle Asia) तक घोड़ों और दो कूबड़ वाले ऊंटों(Double Hump Camel) से व्यापार होता था। अत्यंत आकर्षक दिखने वाले इन्हीं दो कूबड़ वाले ऊंटों(Double Hump Camel) को देखने और सवारी करने लोग हुन्डर(Hunder) आते हैं। हम लोग रेत के टीलों(Sand Dunes) पर दो कूबड़ वाले ऊंटों(Double Hump Camel) की सवारी करने के लिए गए। इन बेहद प्यारे ऊंटों पर बैठ कर हुन्डर(Hunder) के ठंडे रेगिस्तान में घूमने का अनुभव बहुत अच्छा था। धीमी गति से ये ऊंट रेगिस्तान में एक कतार में आगे बढ़ रहे थे। इन ऊंटों के साथ में ऊंट के बच्चे भी चल रहे थे। सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। काफी देर तक दो कूबड़ वाले ऊंटों(Double Hump Camel) की सवारी करने के बाद हम लोग श्योक नदी(Shyok River) के पानी में पैर डाल कर बैठे रहे। शाम हो चुकी थी लेकिन हुन्डर(Hunder) का माहौल बहुत अच्छा था। रात को हम लोग हुन्डर(Hunder) में ही रुकने वाले थे।
नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से आगे ही दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर(Siachen Glacier) है। यहाँ हम लोगों ने तुरतुक गाँव(Turtuk Village) के बारे में सुना। यह वर्तमान में भारत का आखिरी गाँव है। इसके बाद पाकिस्तान नियंत्रित गिलगित-बाल्टिस्तान का इलाका शुरू होता है। वर्ष 1971 से पहले तुरतुक गाँव(Turtuk Village) पाकिस्तान के नियंत्रण में था। लद्दाख(Ladakh) आने वाले लोगों में तुरतुक गाँव(Turtuk Village) बहुत लोकप्रिय है।
नुब्रा घाटी(Nubra Valley) में बिताया गया यह दिन हमारे जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में से एक था। लद्दाख(Ladakh) की नुब्रा घाटी(Nubra Valley) अपने आप में एक बहुत अद्भुत स्थान है। यहाँ आकर आपको बहुत अच्छा एहसास होगा। हुन्डर(Hunder) घाटी में दो कूबड़ वाले ऊंटों(Double Hump Camel) को देखना और उसकी सवारी करना एक सुखद अनुभव था। आप कभी भी लद्दाख(Ladakh) आइये तो नुब्रा घाटी(Nubra Valley) जरूर आइये।
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➜नुब्रा घाटी में ये करना ना भूलें : हुन्डर में दो कूबड़ वाले ऊँट की सवारी, नुब्रा घाटी में ए.टी.वी राइड, दिस्कित मोनेस्टरी को देखना, फोटोग्राफी।
➜नुब्रा घाटी कैसे पहुँचे : नुब्रा घाटी आने के लिए लद्दाख की राजधानी लेह आना पड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा लद्दाख की राजधानी लेह में है। सड़कमार्ग से लद्दाख पहुँचने के दो रास्ते हैं। श्रीनगर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH-1) से लद्दाख आ सकते हैं। दूसरा रास्ता मनाली से लद्दाख आने का है। दोनों ही रास्ते बहुत सुन्दर और रोमांच से भरपूर हैं। लद्दाख अभी रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ हैं।
➜नुब्रा घाटी जाने सबसे अच्छा समय : लद्दाख के नुब्रा घाटी में घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों में अप्रैल से जुलाई तक का हैं।
➜नुब्रा घाटी जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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लद्दाख(Ladakh) भारत के सबसे उत्तर भाग में बसा एक केंद्र शासित प्रदेश(Union Territory) है। इसे ऊँचे दर्रों की भूमि(Land of High Passes) के नाम से भी जाना है। लद्दाख(Ladakh) की राजधानी लेह(Leh) है। ट्रांस हिमालय(Trans Himalaya) के काराकोरम पर्वतमाला(Karakoram Range) में स्थित प्राकृतिक दृष्टि से बेहद सुन्दर यह प्रदेश सामरिक(Tactical) दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। लद्दाख(Ladakh) में पाकिस्तान अधिकृत गिलगित - बाल्टिस्तान(Pakistan Occupied Gilgit-Baltistan) और चीन(China) की सीमाएं मिलती हैं। यहाँ का ज्यादातर हिस्सा पठारी(Plateau) तथा मौसम शुष्क(Dry) और कठोर(Hard) है। बौद्ध धर्म(Buddhism) यहाँ का प्रमुख धर्म(Religion) है। लद्दाख(Ladakh) में बहुत सारे बौद्ध मठ(Monastery) हैं जो देखने योग्य हैं। यहाँ बहने वाली नदियों में सिंधु नदी(Indus River), जांस्कर नदी(Zanskar River) और श्योक नदी(Shyok River) मुख्य हैं। यहाँ के मुख्य दर्रों(Mountain Passes) में ज़ोजिला(Zoji La), खारदुंगला(Khardung La), चांगला(Chang La) और वरीला(Wari La) हैं। दर्रे(Mountain Passes) को स्थानीय लद्दाखी(Ladakhi) भाषा में 'ला'(La) कहा जाता है।
वैसे तो लद्दाख(Ladakh) हमेशा से पर्यटन की दृष्टि से एक बहुत प्रसिद्ध स्थान रहा है लेकिन इसको आम जनता और युवाओं में लोकप्रिय करने में बॉलीवुड के स्टार आमिर खान अभिनीत फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) का बहुत बड़ा हाथ है। इस फिल्म ने लद्दाख(Ladakh) की खूबसूरती को बहुत अच्छे ढंग से पेश किया है। हम लोग भी लद्दाख(Ladakh) घूमने के लिए श्रीनगर(Srinagar) से सड़कमार्ग द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) से होते हुए यहाँ पहुँचे। लद्दाख(Ladakh) का मौसम बहुत साफ, चमकीला और आसमान का रंग चटक नीला था। यहाँ के पहाड़ सूखे और पथरीले थे। पहाड़ों का रंग भी अलग अलग था। अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण कुछ स्थानों पर ऑक्सीजन का स्तर(Oxygen Level) बहुत कम हो जाता है। 'जुले'(Julley) यानी स्थानीय भाषा में नमस्कार से स्वागत करता लद्दाख(Ladakh) यहाँ आने वालों लोगों को एक अलग तरह का अनुभव देता है।
हम लोग लद्दाख(Ladakh) बहुत अच्छे तरह से घूमे और यहाँ के संस्कृति का अनुभव किया। वैसे तो मैंने भारत के अनेक स्थानों को देखा है लेकिन मुझे लद्दाख(Ladakh) सबसे अलग और अनूठा लगा। यहाँ का खानपान, पहनावा, भाषा, मठ, बाजार, मौसम और प्राकृतिक नज़ारे इत्यादि सब कुछ बेहद दिलचस्प हैं। लद्दाख(Ladakh) के कुछ मुख्य स्थानों के बारे में बता रहा हूँ -
➥कारगिल (Kargil)
कारगिल(Kargil) लेह(Leh) के बाद लद्दाख(Ladakh) का दूसरा बड़ा शहर है जो पश्चिमी भाग में स्थित है। यह सुरु नदी(Suru River), द्रास नदी(Dras River) और जांस्कर नदी(Zanskar River) की घाटी में बसा हुआ है। कारगिल(Kargil) से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) गुजरती है। कारगिल(Kargil) में ज़ोजिला(Zoji La), फोटुला(Fotu La) और नामिकाला(Namika La) मुख्य दर्रे(Mountain Passes) हैं। वर्ष 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल(Kargil) के इलाके में पहाड़ों पर अवैध रूप से कब्ज़ा करके राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) पर जाने वाले सेना के वाहनों पर हमला किया था। जिसे बाद में भारतीय सेना(Indian Army) ने ऑपरेशन विजय(Operation Vijay) के द्वारा अपने असीम शौर्य से वापस छीन लिया था। भारत के सैनिकों के अदम्य साहस की याद में कारगिल(Kargil) के द्रास(Dras) में वॉर मेमोरियल(War Memorial) बनाया गया है।
➥नुब्रा वैली (Nubra Valley)
लद्दाख(Ladakh) के उत्तरी भाग में बसी नुब्रा घाटी(Nubra Valley) में पहुँचने के लिए खारदुंगला दर्रे(Khardung La) को पार करना पड़ता है। खारदुंगला(Khardung La) दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे ऊँचा सड़कमार्ग(Second Highest Motorable Place of World) है। यहाँ ऑक्सीजन का स्तर(Oxygen Level) बहुत कम रहता है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) के पास ही दुनिया का सबसे ऊंचाई का युद्ध स्थल सियाचिन ग्लेशियर(Siachen Glacier) है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) में बहने वाली दो नदियां श्योक नदी(Shyok River) और नुब्रा नदी(Nubra River) है। इन नदियों के कारण ही नुब्रा घाटी(Nubra Valley) हरा भरा है। यहाँ छोटे बड़े कई गाँव बसे हैं जिनमे सबसे पुराना गाँव दिस्कित(Diskit) है। दिस्कित(Diskit) में एक बहुत सुन्दर बौद्ध मठ(Monastery) है। मठ(Monastery) के पास पहाड़ पर भगवान बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है जो सैलानियों में बेहद लोकप्रिय है। यहाँ से श्योक नदी(Shyok River) और उसकी घाटी(Valley) का बढ़िया नज़ारा दिखता है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) में रेत के टीलों(Sand Dunes) के ऊपर ए.टी.वी राइड(ATV Ride or All Terrain Vehicle Ride) भी होता है जो बहुत ही रोमांच से भरपूर होता है।
➥हुन्डर (Hunder)
नुब्रा घाटी(Nubra Valley) का दूसरा बड़ा गाँव हुन्डर(Hunder) है। यह एक ठंडा रेगिस्तान(Cold Desert) है। हुन्डर(Hunder) में दो कूबड़ वाले ऊंट(Double Hump Camel) पाए जाते हैं। रेत के टीलों(Sand Dunes) पर इन दो कूबड़ वाले ऊँटों(Double Hump Camel) की सवारी करना एक बहुत बेहतरीन अनुभव था। एक लाइन से चलते इन ऊँटों को देखना बहुत अच्छा लग रहा था। दो कूबड़ वाले ऊँटों(Double Hump Camel) की सवारी करने के बाद श्योक नदी(Shyok River) में पैर डाल कर बैठने से हुन्डर(Hunder) की यात्रा का थकान मिट गया था। रात में हम लोग हुन्डर(Hunder) में ही रुके थे।
➥पैंगोंग त्सो(Pangong Tso)
नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से हम लोगों को लद्दाख(Ladakh) के प्रसिद्ध पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) झील(Lake) देखने जाना था। झील(Lake) को स्थानीय भाषा में 'त्सो'(Tso) कहा जाता है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से कुछ दूर चलने पर पता चला कि आगे का रास्ता बारिश के कारण खराब हो गया है जिसकी वजह से बंद है। अब हम लोगों को पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) जाने के लिए दूसरे रास्ते से जाना था जिसके लिए अतिरिक्त 80 किलोमीटर की दूरी बढ़ गया। रास्ते में वारीला(Wari La) दर्रा(Mountain Pass) पड़ता है जो बहुत ऊँचाई पर है। आस पास के पहाड़ों पर बर्फ भी दिख रहे थे। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का रास्ता बहुत रोमांच भरा(Thrilling) और साहसिक(Adventurous) है। रास्तों के बीच में कई स्थानों पर नदियों की धाराएँ बहती है जहाँ अक्सर गाड़ियाँ फँस जाती हैं। हमारी भी गाड़ी कई जगह बहुत मुश्किल से पार हुई। करीब 10 घंटे के लंबे सफर के बाद हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) पहुँचे। यह चारों ओर से घिरी हुई एक बहुत बड़ी झील थी। आसमान साफ होने से इस झील का का पानी नीला दिख रहा था। हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे टेंट(Tent) में रुकने वाले थे। झील के पास जाकर हम लोगों ने इसे करीब से देखा। इसका पानी बहुत साफ था। हम लोगों ने यहाँ मोबाइल से बहुत सारे फोटो खींचे। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का पानी खारा और बहुत ठंडा था। झील के दूसरी ओर चीन के कब्जे वाला अक्साई चीन है । पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे टेंट में रात गुजारना बहुत अच्छा लगा।
➥लेह (Leh)
लद्दाख(Ladakh) की राजधानी लेह(Leh) सिंधु नदी(Indus River) के किनारे बसी हुई है। यह चारों ओर से पहाड़ों से घिरा एक बेहद सुन्दर शहर है। लेह(Leh) में घूमने के बहुत सारे स्थान है जिनमें हॉल ऑफ फेम(Hall of Fame), स्पितुक मठ(Spituk Monastery), सिंधु नदी और जांस्कर नदी का संगम(Indus River and Zanskar River Sangam), थिकसे मठ(Thiksey Monastery), बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots)में दर्शाए स्कूल ड्रक वाइट लोटस स्कूल(Druk White Lotus School), मैग्नेटिक हिल(Magnetic Hill), गुरुद्वारा पत्थर साहिब(Gurudwara Pathar Sahib) और शांति स्तूप(Shanti Stupa) मुख्य है। लेह का बाजार(Leh Market) भी घूमना अच्छा लगा।
लद्दाख(Ladakh) की हमारी यह यात्रा कई मायनों में बहुत अविस्मरणीय रही। यहाँ की संस्कृति से हम सभी बहुत प्रभावित हुए। लद्दाख(Ladakh) के सभी दर्शनीय स्थल बहुत खास हैं। यहाँ के मौसम में ताज़गी है। यहाँ के लोग और उनकी भाषा दिलचस्प है। लद्दाख(Ladakh) की यात्रा रोमांच से भरपूर है। जब भी लद्दाख(Ladakh) आने का मौका मिले यहाँ जरूर आइये।
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➜लद्दाख में ये करना ना भूलें : हुन्डर में दो कूबड़ वाले ऊँट की सवारी, नुब्रा घाटी में ए.टी.वी राइड, विभिन्न मोनेस्टरी को देखना, लेह के लोकल मार्केट में शॉपिंग, पैंगोंग त्सो में कैंप में रुकना, फोटोग्राफी।
➜लद्दाख कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा लद्दाख की राजधानी लेह में है। सड़कमार्ग से लद्दाख पहुँचने के दो रास्ते हैं। श्रीनगर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH-1) से लद्दाख आ सकते हैं। दूसरा रास्ता मनाली से लद्दाख आने का है। दोनों ही रास्ते बहुत सुन्दर और रोमांच से भरपूर हैं। लद्दाख अभी रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ हैं।
➜लद्दाख जाने सबसे अच्छा समय : लद्दाख घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों में अप्रैल से जुलाई तक का हैं।
➜लद्दाख जाने में लगने वाला समय : 7 दिन / 6 रात
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केंद्र शासित प्रदेश(Union Territory of India) लद्दाख(Ladakh) की राजधानी लेह(Leh) पहाड़ों की तलहटी में बसा एक सुन्दर शहर है। यह सिंधु नदी(Indus River) के किनारे स्थित है। कराकोरम पर्वतमाला(Karakoram Range) और हिमालय पर्वतमाला(Himalaya Range) के बीच लेह(Leh) शहर हमेशा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। हम लोग श्रीनगर(Srinagar) से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) के बेहतरीन रास्तों से होकर लेह(Leh) पहुँचे थे। लेह(Leh) आने का दूसरा लोकप्रिय रास्ता हिमाचल प्रदेश(Himachal Pradesh) के शहर मनाली(Manali) से शुरु होता है। लेह(Leh) में हवाई अड्डा(Airport) होने की वजह से विमान द्वारा सीधे यहाँ आ सकते है।
लेह(Leh) एक बौद्ध बहुल शहर है जो प्राचीन समय से तिब्बत(Tibbet) और मध्य एशिया(Middle Asia) के क्षेत्रों से व्यापार का प्रमुख केंद्र था। लेह(Leh) शहर और इसके आस पास घूमने के बहुत सारे स्थान है। हम लोग लेह(Leh) में दो दिन रुके थे। यहाँ के सभी दर्शनीय स्थलों को देखना बहुत अच्छा लगा। लेह(Leh) के ऐसे ही कुछ स्थानों के बारे में जानकारी साझा कर रहा हूँ -
➥थिकसे मठ(Thiksey Monastery)
थिकसे मठ(Thiksey Monastery) तिब्बती शैली(Tibbet Style) का एक बहुत सुन्दर बौद्ध मठ है। लेह(Leh) से 19 किलोमीटर दूर स्थित थिकसे मठ(Thiksey Monastery) का माहौल बहुत शांतिपूर्ण था। 12 मंज़िले इस मठ(Monastery) में मैत्रय बुद्ध की 50 फीट ऊँची बेहद आकर्षक और भव्य मूर्ति स्थापित है। यहाँ प्राचीन वस्तुएं जैसे थांगका(Old Buddhist Painting), तलवारें और बौद्ध धर्म से सम्बंधित बहुत सारे छोटी मूर्तियाँ भी रखी गई हैं। यहाँ का प्रार्थना हॉल बहुत आध्यात्मिक वातावरण वाला था। चारों ओर तिब्बती और बौद्ध धर्म से सम्बंधित देवताओं और गुरुओं की विशाल मूर्तियां थी जिनके चेहरे कपड़ों से ढके हुए थे। पूछने पर पता चला कि वर्ष में एक बार खास त्यौहार के मौके पर ही इन मूर्तियों के चेहरों से कपड़े को हटाया जाता है। मठ(Monastery) के छत लकड़ी से बने होने से अंदर का तापमान बहुत अच्छा था। थिकसे मठ(Thiksey Monastery) का मुख्य द्वार भी बहुत अच्छा लगा। मठ(Monastery) के प्रांगण(Premises) में एक बड़ा सा बेलनाकार घूमने वाला प्रार्थना यंत्र(Spinning Prayer Wheel) भी लगा है जिसे स्थानीय भाषा में मानी(Mani) कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की इस यंत्र को घुमाने से सभी पाप(Sins) खत्म हो जाते है। थिकसे मठ(Thiksey Monastery) में सभी लोग मानी(Mani) घुमाकर अपने पाप(Sins) कम कर रहे थे।
➥ड्रक वाइट लोटस स्कूल(Druk White Lotus School)
यह स्कूल बॉलीवुड की फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) में दिखाए जाने के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ। इसी कारण लेह(Leh) आने वाले लोग ड्रक वाइट लोटस स्कूल(Druk White Lotus School) घूमने ज़रूर आते हैं। इस स्कूल का प्रांगण(Premises) बहुत बड़ा है। ड्रक वाइट लोटस स्कूल(Druk White Lotus School) की मुख्य इमारत देखने में बौद्ध मठ की तरह है। हम लोग इस स्कूल के प्रांगण(Premises) में घूम कर फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) के दृश्यों के बारे में बाते कर रहे थे। यहाँ एक दिवार(Wall) भी है जो इस फिल्म में बहुत प्रसिद्ध हुआ था। हम लोगों ने यहाँ यादगार के लिए बहुत सारे फोटो खींचे।
➥हॉल ऑफ़ फेम (Hall of Fame)
लेह(Leh) शहर में हवाई अड्डे के बिलकुल पास ही हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) बनाया गया है। यह भारतीय सेना(Indian Army) के शौर्य और लद्दाख की संस्कृति को समर्पित है। हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) के परिसर के बाहर आर्मी के टैंक, हेलीकाप्टर और लड़ाकू विमानों के मॉडल रखे गए हैं। हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) परिसर के अंदर एक बड़ा सा गैलरी है। इस गैलरी के एक हिस्से में लद्दाख(Ladakh) के संस्कृति, पहनावा, त्यौहार, रीति-रिवाज़ों तथा खान पान के बारे में तस्वीरों की सहायता से बहुत अच्छे और विस्तार से दर्शाया गया है। इससे हमें लद्दाख(Ladakh) के इतिहास और अन्य रोचक जानकारियाँ मिली।
हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) का दूसरा हिस्सा भारतीय सेना(Indian Army) के सियाचिन(Siachen), कारगिल(Kargil) तथा लद्दाख के अन्य भागों के सैन्य उपलब्धियों को दर्शाता है। गैलरी में चित्रों और लेखों के माध्यम से सेना के वीरों की गाथाएँ पढ़कर बहुत गर्व का अनुभव हुआ। इस गैलरी में सेना के हथियार, सैन्य उपकरण, सियाचिन में पहने वाले विशेष कपड़े, सैन्य अभियानों के चित्र, युद्ध में बरामद पाकिस्तान के सैनिकों के सामान तथा लद्दाख के दुर्गम पहाड़ों के मॉडल रखे हुए हैं। हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) के परिसर के पीछे एक बहुत बड़े मैदान में वॉर मेमोरियल(War Memorial) बनाया गया है जहाँ युद्ध में शहीद हुए जवानों के नाम लिखे हुए हैं। लेह(Leh) आने पर हॉल ऑफ़ फेम(Hall of Fame) जाना मत भूलिए।
➥स्पितुक मठ(Spituk Monastery)
स्पितुक मठ(Spituk Monastery) लेह(Leh) शहर के बिलकुल सामने की पहाड़ी पर स्थित है। 11वीं शताब्दी में निर्मित यह एक तिब्बती बौद्ध मठ है। इस मठ(Monastery) से एक ओर सिंधु नदी(Indus River) बहती दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर लेह(Leh) शहर का दृश्य मनमोहक लगता है। लेह हवाई अड्डे(Leh Airport) की लकीरनुमा हवाई पट्टी का नज़ारा भी यहाँ से नज़र आता है। स्पितुक मठ(Spituk Monastery) में लाइन से छोटे स्तूप बने हुए थे। मठ(Monastery) के बाहर एक बहुत बड़ा और आकर्षक घूमने वाला प्रार्थना यंत्र(Spinning Prayer Wheel) मानी(Mani) लगा हुआ है। इस मठ(Monastery) भगवान बुद्ध के साथ हिन्दू देवी माँ काली की भी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्तियों के चेहरे भी ढके हुए थे जो सालाना उत्सव के अवसर पर ही हटाए जाते हैं। हम लोग स्पितुक मठ(Spituk Monastery) के प्रार्थना हॉल में बुद्ध की प्रतिमा के सामने बहुत देर तक ध्यान लगाकर बैठे रहे। स्पीकर पर कुछ बौद्ध मंत्रों का उच्चारण हो रहा था जो मन को बहुत सुकून दे रहा था।
➥सिंधु नदी और जांस्कर नदी का संगम (Sangam of Indus River & Zanskar River)
लेह(Leh) से 35 किलोमीटर दूर संगम में लद्दाख(Ladakh) की दो प्रमुख नदियों सिंधु नदी(Indus River) और जांस्कर नदी(Zanskar River) का मिलन होता है। ऊँचे पहाड़ों के घाटी में इन दो नदियों को मिलते देखना बहुत सुखद अनुभव था। इस संगम स्थान पर रिवर राफ्टिंग(River Rafting) भी होता है और यह पॉइंट दुनिया का सबसे ऊँचा रिवर राफ्टिंग पॉइंट है। यहाँ हवा बहुत अच्छा चल रहा था। यहाँ पर एक रेस्टोरेंट भी है जहाँ आप जलपान कर सकते हैं। हम लोग बहुत देर तक इस संगम के पास बने बेंच पर बैठकर सिंधु नदी(Indus River) और जांस्कर नदी(Zanskar River) के लहरों को आपस में मिलते देख रहे थे।
➥मैगनेटिक हिल (Magnetic Hill)
लेह(Leh) से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) पर लगभग 27 किलोमीटर दूर मैग्नेटिक हिल्स(Magnetic Hills) है। यह एक प्रसिद्ध और दिलचस्प स्थान है जो सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। यहाँ सीधे रास्ते ऐसे नज़र आते है जैसे आगे की तरफ बढ़ते हुए ऊँचे हो रहे हैं लेकिन वास्तव में वो नीचे की ओर ढलान वाले होते हैं। इसलिए इस स्थान पर ऐसा लगता है जैसे कार अपने आप न्यूट्रल में नीचे से ऊपर ज्यादा ऊँचाई की ओर बढ़ रहा हो। इसे ही लोग चुंबकत्व का प्रभाव(Magnetic Effect) मानते हैं जिसके कारण इस स्थान को मैग्नेटिक हिल्स(Magnetic Hills) के नाम से जाना जाता है।
➥गुरुद्वारा पत्थर साहेब (Gurudwara Pathar Sahib)
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) पर लेह(Leh) के पास गुरुद्वारा पत्थर साहिब(Gurudwara Pathar Sahib) है। इस गुरुद्वारे का रखरखाव भारतीय सेना(Indian Army) करती है। गुरुद्वारा पत्थर साहिब(Gurudwara Pathar Sahib) की कहानी बहुत रोचक है। कहानी यूँ है कि जब गुरु नानक देव जी वर्ष 1517 ईस्वी में लेह(Leh) आये थे तो यहाँ के लोगों ने उन्हें पास की पहाड़ी पर रहने वाले एक राक्षस के बारे में बताया। यह राक्षस लोगों पर बहुत अत्याचार करता था। गुरु जी को यहाँ पहाड़ों के नीचे ध्यान करते देख राक्षस बहुत क्रोधित होकर एक बड़ा से पत्थर उनके ऊपर फेक दिया। लेकिन पत्थर जैसे ही गुरु नानक देव जी को लगी यह मोम की तरह नरम होकर उनके शरीर में धंस गया। गुरु जी के ऊपर पत्थर का कोई असर न देख कर राक्षस एक बार फिरसे गुस्से में पत्थर पर पैर मारा जिससे उसका पैर पत्थर में धंस गया। यह देख कर राक्षस समझ गया की वह एक बहुत बड़े भगवान के भक्त को मारने की कोशिश की है और गुरु जी चरणों में लेट गया। गुरु नानक देव जी ने राक्षस को उपदेश दिया कि अब बाकी उम्र लोगों की सेवा में गुज़ारों और फिर वह लेह(Leh) से कारगिल(Kargil) होते हुए कश्मीर(Kashmir) चले गए।
मुझे गुरुद्वारा पत्थर साहिब(Gurudwara Pathar Sahib) में जाना बहुत अच्छा लगा। गुरु ग्रन्थ साहिब को मत्था टेकने के बाद हम लोग उस पत्थर के पास गए जिसका वर्णन मैंने ऊपर की कहानी में किया है। गुरुद्वारे का स्वादिष्ट प्रसाद खाने के बाद हम लोगों ने उस पहाड़ी को भी देखा जो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH - 1) के दूसरी ओर था जहाँ से राक्षस पत्थर फेका था। उस पहाड़ पर सीढ़ियों से चलकर ऊपर तक जा सकते हैं। यहाँ जरुर घूमने जाइये।
➥शांति स्तूप (Shanti Stupa)
लेह(Leh) का शांति स्तूप(Shanti Stupa) एक बहुत सुन्दर स्तूप है। यहाँ कार से जाया जा सकता है। पैदल आने वाले लोगों के लिए मुख्य रास्ते से ऊपर स्तूप तक सीढियाँ भी बनी है। शांति स्तूप(Shanti Stupa) को बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में बनाया गया था। यह एक सफेद रंग की गुम्बदाकार इमारत है जिसके ऊपर जाने के लिए घुमावदार सीढियाँ बने हुए हैं। स्तूप के बाहरी दीवारों पर भगवान बौद्ध के जीवन दर्शन को आकर्षक चित्रों से उकेरा गया है। सामने की ओर भगवान बुद्ध की सुनहरे रंग की मूर्ति स्थापित है। शांति स्तूप(Shanti Stupa) देखने में बहुत भव्य नजर आता है। स्तूप के आसपास बहुत खुला स्थान है जहाँ बैठकर स्तूप को और नीचे की घाटी में लेह(Leh) शहर के सुन्दर नज़ारे को देख सकते हैं। हम सभी लोगों को शांति स्तूप(Shanti Stupa) देखकर प्रसन्नता हुई। बहुत देर तक हम यहाँ स्तूप के चारों ओर टहलते रहे।
➥लेह बाजार (Leh Local Market)
हमारी लेह(Leh) यात्रा के आखिरी दिन शाम को हम लोग लेह का बाजार(Leh Market) घूमने गए। मुझे लेह बाजार(Leh Market) घूमना बहुत अच्छा लगा। यहाँ के तिब्बत मार्किट में स्थानीय लोगों द्वारा बनाये गए आभूषण(Local Jewellary), घर के सजावट के सामान(Show Pieces), ऊनी कपड़े(Warm Cloths), बौद्ध धर्म से सम्बंधित मूर्तियाँ और झंडे(Buddhist Flags & Idols), और यादगार के लिए ले जाए जाने वाली वस्तुएँ(Souvenir) मिलते हैं। हम लोगों ने भी अपनी लेह लद्दाख(Leh Ladakh) की यात्रा के यादगार के लिए कुछ वस्तुओं की खरीदारी किया। लेह का बाजार(Leh Market) बहुत खुले स्थान पर बनाया गया है। बाजार के ऊपर रंग बिरंगी तिब्बती झंडों की कतारों से सजाये जाने से यह बहुत अच्छा दिख रहा था। यहाँ के रेस्टोरेंट में हम लोगों ने स्वादिष्ठ मोमोज़(Momos) खाये। संगीत के स्वर में लेह के बाजार(Leh Market) की रौनक देखने लायक था। अगर आप लेह(Leh) घूमने गए हैं तो शाम को लेह के बाजार(Leh Market) घूमने ज़रूर जाइये।
लेह(Leh) में बिताया एक एक पल बहुत कीमती था। हमें लेह शहर में बहुत कुछ देखने को मिला। यहाँ के सभी दर्शनीय स्थल अपने आप में बहुत ख़ास हैं। यहाँ की संस्कृति में कुछ समय गुज़ारना एक प्रकार से सुखद अनुभव देने वाला था। हम लोग अपने आप को बहुत भाग्यशाली मान रहे थे कि हमें लद्दाख आने और यहाँ के संस्कृति और स्थानों को देखने का मौका मिला। लेह(Leh) शहर एक जीवंत और देखने योग्य शहर है जहाँ घूमने जाना सौभाग्य की बात है।
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➜लेह में ये करना ना भूलें : हॉल ऑफ़ फेम देखना, विभिन्न मोनेस्टरी को देखना, लेह के लोकल मार्केट में शॉपिंग, शांति स्तूप घूमना, फोटोग्राफी।
➜लेह कैसे पहुँचे : निकटतम हवाई अड्डा लद्दाख की राजधानी लेह में है। सड़कमार्ग से लेह पहुँचने के दो रास्ते हैं। श्रीनगर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH-1) से लेह आ सकते हैं। दूसरा रास्ता मनाली से लेह आने का है। दोनों ही रास्ते बहुत सुन्दर और रोमांच से भरपूर हैं। लेह अभी रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ हैं।
➜लेह जाने सबसे अच्छा समय : लेह घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों में अप्रैल से जुलाई तक का हैं।
➜लेह जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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Blogger Name: Pramod Kumar Kushwaha
For more information & feedback write email at : pktipsonline@gmail.com
लद्दाख(Ladakh) में घूमने के क्रम में नुब्रा घाटी(Nubra Valley) देखने और रात में रुकने के बाद हम लोगों का अगला पड़ाव विश्वप्रसिद्ध पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) था। त्सो(Tso) लद्दाख(Ladakh) के स्थानीय भाषा में झील(Lake) को कहा जाता है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की दूरी लगभग 275 किलोमीटर है। भारत - चीन के मध्य विवाद में इस झील का जिक्र हम सबने सुना था। इसके अलावा बॉलीवुड के अभिनेता आमिर खान की मशहूर फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) में भी इस झील को दिखाया गया है। हम लोग जब नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के लिए निकले तो पता चला कि श्योक नदी(Shyok River) की ओर से जाने वाला रास्ता अत्याधिक पानी बहने के कारण टूट गया है और इसे बंद दिया गया है। हमारे ड्राइवर फुंचोक आंगचोक(Phunchok Angchok) ने बताया कि परेशान होने की जरूरत नहीं है और हम दूसरे रास्ते से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) चलेंगे।
पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की तरफ जाने वाला यह नया रास्ता पुराने रास्ते की अपेक्षा 80 किलोमीटर ज्यादा लंबा और बेहद दुर्गम पहाड़ों से होकर गुजरता है। एक स्थान पर रुक कर हम लोगों ने लद्दाख(Ladakh) के स्थानीय व्यंजन थुक्पा(Thukpa) खाया जो नूडल(Noodle) और सब्जियों(Vegitables) से बना सूप(Soup) जैसा लग रहा था।करीब 4 घंटे के सफर के बाद हम लोग वरीला(Wari La) दर्रे(Mountain Pass) से होकर गुजरे। यहाँ का तापमान बहुत कम था। पहाड़ों की बर्फ पिघल कर छोटी धाराएं बन कर रास्ते पर आ रही थी। वरीला दर्रे(Wari La) में थोड़ा रुकने के बाद हम आगे बढ़े। रास्ते के किनारे नदी के पास हम लोगों को ढेर सारे यॉक(Yak) चरते हुए दिखाई दिए। कुछ स्थानों पर शिकार की तलाश करते बड़े आकर के जंगली कुत्ते भी नजर आये। नदी के किनारे बहुत जगह टेंट लगाकर कैंप करते युवाओं के समूह दिख रहे थे।
नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से करीब 10 घंटे की लंबी लेकिन साहसिक(Adventurous) यात्रा के बाद हम लोग लद्दाख(Ladakh) के प्रसिद्ध पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास पहुँचे। नीले पानी की यह झील बहुत दूर से दिखने लगी थी। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) दिखते ही हमारा थकान दूर होने लगा और हम लोग जोश से भर उठे। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) 134 किलोमीटर लंबी बूमरैंग(Boomrang) के आकर की खारे पानी की झील(Salt Water Lake) है जिसका एक तिहाई हिस्सा भारत में तथा बाकी का हिस्सा चीन के नियंत्रण में है। झील के किनारे की लाइन से टेंट बने हुए थे। आज की रात हम लोगों को पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे इन्हीं टेंटों में रहना था। अपना सारा सामान पूर्व निर्धारित टेंट में रखने के बाद हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास घूमने गए। इस झील का पानी बहुत स्वच्छ(Clean) और पारदर्शी(Transparent) था। आसमान में बादलों का नामोनिशान ना होने के कारण यह बहुत नीला दिख रहा था। साफ नीले आसमान की वजह से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का रंग भी गाढ़ा नीला नजर आ रहा था। अपने इसी रुप रंग के कारण यह झील पूरी दुनिया में लोकप्रिय है। इस झील के दूसरी ओर ऊँचे पहाड़ हैं।
पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में हमने पानी में थोड़ा अंदर जाकर देखा। झील का पानी इतना पारदर्शी था कि दूर तक इसका तल साफ दिख रहा था। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का पानी बहुत ठंडा था और इसमें खड़े रहना बहुत मुश्किल हो रहा था। कुछ सेकंडों में ऐसा लगा जैसे पैर सुन्न हो गया हो। हम लोग इस झील के किनारे बहुत देर तक बैठे रहे। यहाँ हमने जम कर फोटोग्राफी किया। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे प्रसिद्ध फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) के दर्शाया गया स्कूटर भी रखा था जिसपर बैठकर हमने भी फोटो लिया। अब शाम होने लगी थी और हल्की बारिश शुरू होने के कारण सभी अपने टेंट की ओर जाने लगे। रात में पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास तापमान बहुत नीचे गिर जाता है। हम लोग गर्म कपड़े पहन कर खाना खाने गए। उसके बाद देर रात तक टेंट के बाहर बड़े आकार में दिख रहे चाँद की रौशनी में ठंडी हवाओं के बीच बाते करते रहे। नींद आने लगी तो अपने टेंट में सोने आ गए। टेंट बहुत अच्छे और गर्म थे। इसके अंदर से बाहर के मौसम का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था। गर्म आरामदायक बिस्तर में रात को नींद बहुत अच्छी आयी।
सुबह तैयार होकर हम लोग एक बार फिर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे गए। इसकी खूबसूरती को निहारने से आँखों को बहुत सुकून मिल रहा था। वाकई यह झील बहुत सुन्दर है। आसमान में भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर गश्त लगाते दिखे। हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे दूर किनारों तक टहलते रहे। सर्दियों में इस झील में बर्फ जम जाती है ऐसा स्थानीय लोगों ने हमें बताया। बहुत देर तक अच्छा समय बिताने के बाद अब पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लौटने का वक़्त आ गया था। हम लोग अपने आप को बहुत खुशनसीब मान रहे थे कि हमें पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) देखने का मौका मिला। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से हम लोग लेह(Leh) की ओर यात्रा करने लगे। एक स्थान पर हम लोगों को बॉलीवुड के बेहद मशहूर गायक(Bollywood Singer) जुबिन नौटियाल(Jubin Nautiyal) दिखे। हमने उनके साथ फोटो भी खिचवाया। यह एक प्रकार से हमारे पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की यात्रा का खूबसूरत तोहफा था।
पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लेह(Leh) का रास्ता बहुत मायनों में बेहद कठिन लेकिन साहसिक(Adventurous) था। कई स्थानों पर पहाड़ों का बर्फ पिघलने से पानी की तेज़ धाराएं रास्ते के ऊपर बह रही थी। इसके वजह से रास्ता कई जगह से टूट गया था और उबड़ खाबड़ होने की वजह से गाड़ियों के पहिए फँस जा रहे थे। ऐसा इस रास्ते में 2-3 बार हुआ। लेकिन सभी लोग गाड़ियों को हाथों से धकेल कर इन पानी के धाराओं को पार करने में मदद कर रहे थे। कुछ देर बाद एक और दर्रा(Mountain Pass) चांगला(Chang La) पार करने के बाद हम लोग लेह(Leh) आ गए। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लेह(Leh) की लगभग 225 किलोमीटर की दूरी 6 घंटे में पूरी हुई थी। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की लंबी सड़क यात्रा के बाद हम लोग लेह(Leh) में पूर्व निर्धारित अपने होटल पहुँच गए।
लद्दाख(Ladakh) आकर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) को देखना हमारा एक सपना था जो साकार हो चुका था। मैंने इससे सुन्दर झील आज तक नहीं देखा था। चारों ओर पथरीले पहाड़ों से घिरी यह झील वाकई में लाजवाब है। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे बैठ कर इसे देखना कभी ना भूल पाने वाला पल था। इसकी सुंदरता को यहाँ आकर ही महसूस किया जा सकता है। किताबों में जैसा पढ़ा था या वीडियो में जैसा देखा था पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) उससे भी ज्यादा खूबसूरत लगा। यहाँ अपने जीवन में एक बार जरूर आइये।
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➜पैंगोंग त्सो में ये करना ना भूलें : पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में टेंट में रात गुज़ारना, नीले साफ़ आसमान के नीचे बैठकर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) को देखना, फोटोग्राफी।
➜पैंगोंग त्सो कैसे पहुँचे : पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) आने के लिए लद्दाख की राजधानी लेह आना पड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा लद्दाख की राजधानी लेह में है। सड़कमार्ग से लद्दाख पहुँचने के दो रास्ते हैं। श्रीनगर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH-1) से लद्दाख आ सकते हैं। दूसरा रास्ता मनाली से लद्दाख आने का है। दोनों ही रास्ते बहुत सुन्दर और रोमांच से भरपूर हैं। लद्दाख अभी रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ हैं।
➜पैंगोंग त्सो जाने सबसे अच्छा समय : लद्दाख के पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों में अप्रैल से जुलाई तक का हैं।
➜पैंगोंग त्सो जाने में लगने वाला समय : 2 दिन / 1 रात
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