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अलवर का अजेय दुर्ग: बाला किला
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| पीतल तोप |
किले के प्रवेश द्वार
पर वन विभाग के कर्मचारी रजिस्टर में आवक जावक दर्ज करने के साथ पर्यटकों
से पूछ्ताछ भी करते हैं। हमने भी अपनी उपस्थिति यहाँ के रजिस्टर में दर्ज
कराई।हस्ताक्षर करने के लिए पेन ढूंढने पर बैग में दिखाई नहीं दिया तो एक
फ़ारेस्टर ने अपना पेन दिया। मुझे किले पर पहुंच कर भी कुछ जानकारियाँ
लिखनी थी, उन्होने कहा कि यह पेन आप रख लीजिए। मैने कहा कि लौटकर आपको दे
दिया जाएगा। उन्होने कहा कि जरुरत नहीं है। लेकिन मुझे पेन की जरुरत उस समय
थी, लौटने के बाद वापिस किया जा सकता था। पहाड़ी सड़क पर आगे बढने पर अलवर
का विहंगम दृश्य दिखाई देने लगा। आगे चलने पर जयपोल द्वार दिखाई देता है।
यहीं पर बांए तरफ़ की सड़क धंस गई है। जहाँ बोरियाँ लगा रखी है, अगर ध्यान
नहीं रहा तो भयानक दुर्घटना भी हो सकती है। जयपोल द्वार के समीप नीचे खाई
में करणी माता का मंदिर है। इसका दर्शन हमने लौटते हुए करने का तय किया।
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| झरोखे से किले की प्राचीर |
अब हम पहाड़ के शिखर पर पहुच चुके थे। यहां से दो तरफ़ रास्ते जाते हैं,
बांई तरफ़ का रास्ता हनुमान मंदिर की तरफ़ जाता है और दांई तरफ़ का रास्ता
महल में। इस चौक पर सिंटेक्स की पानी की टंकी लगी है। यहीं पर दो सज्जन
बैठे मिल गए उन्होने हमें महल का रास्ता बताया। आगे चलने पर महल दिखाई देने
लगा। महल के बाहर दांई तरफ़ एक चाय नास्ते की दुकान है। हमने महल में
प्रवेश किया तो दो पुलिस वाले दिखाई दिए और प्रांगण में कोई नहीं था। नीचे
मंदिर बना हुआ है। महल में आर्कियोलॉजी वालों द्वारा मरम्मत की जा रही थी।
पुलिस वाले से चर्चा हुई तो उसने कहा कि यह किला अलवर पुलिस के कब्जे में
है। आप उस दरवाजे से भीतर जा सकते हैं।
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| महल का उपरी हिस्सा |
हमने महल में प्रवेश किया, सामने प्रांगण था, यह महल तीन मंजिला है। उपर की
मंजिल में राजा का खास दरबार है उसके दाईं तरफ़ के कमरे में वायरलेस सेट
चलने की आवाज आई। कुछ लोग दिखाई दिए। हमने पूरे किले का भ्रमण किया। इस
राजमहल किले के निर्माण के बाद में बना हुआ दिखाई दिया। कुछ दिनों पूर्व
यहाँ आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की 150 वीं जयंती मनाने के चिन्ह
दिखाई दे रहे थे। महल में कई तोपें रखी हुई है। जिसमें दो पीतल का पतरा
चढाई हुई तोपें भी शामिल थी। राजमहल के सिंह द्वार पर उत्कीर्ण राज चिन्ह
में ध्वज धारण किए हुए वृषभ एवं सिंह दिखाई देते हैं। यह महल बहुत ही अच्छी
हालत में है। यहाँ पुलिस की उपस्थित होने के कारण असामाजिक तत्वों की
उपस्थिति से बचा हुआ है। महल को देखने के लिए पर्यटकों के लिए कोई रोक टोक
नहीं है। इस किले के साथ हसन खान मेवाती का भी नाम जुड़ा हुआ है।
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| अलवर यात्रा का सूत्रधार मेरा फुफेरा भाई दिलीप |
किले में सलीम सागर नाम का एक तालाब है, कहते हैं कि जब बादशाह ने सलीम को
देश निकाला दे दिया था तब दिल्ली से ईरान तक उसे किसी भी राजा ने बादशाह के
भय के कारण शरण नहीं दी तब उसे अलवर गढ के राजा ने अपने किले में शरण दी।
ढाई वर्ष तक सलीम यहाँ शरणार्थी रहे। उसी की याद में सलीम सागर का निर्माण
किया गया। कहते हैं कि यह किला हमेशा अजेय रहा। इस पर आक्रमण तो अवश्य हुए
लेकिन कोई भी इसे जीत नहीं सका। इसलिए इसे बाला किला या कुंवारा किला कहा
जाता है। अजेय गढ होने के कारण ही राजा ने हिम्मत करके सलीम को यहाँ पर शरण
दी थी। महल दर्शन करने हमने स्टाल वाले से चाय बनवा कर पी। वह अलवर से
यहां आकर रोज अपनी दुकान लगाता है।
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| करणी माता |
मुगल साम्राज्य के उदय से पूर्व निर्मित इस किले के चारों और परकोटा बना
हुआ है जो बाहरी हमले से किले कि सुरक्षा करता था. यह किला उत्तर से दक्षिण
और पूर्व से पश्चिम तक १०६ किलोमीटर में फेला है. यह १५ बड़े व ५१ छोटे
बुर्जो और तोपों के लिए ४४६ द्वारों से युक्त एक सुदृढ़ प्राचीर है जिसे आठ
विशाल बुर्ज घेरे हुए है. इसमें अनेक द्वार है. जैसे जय पोल, सूरज पोल,
लक्ष्मण पोल, चाँद पोल, कृष्ण पोल और अँधेरी गेट प्रमुख है. इसमें जल महल,
निकुम्भ महल, सलीम सागर, सूरज कुंड व अन्य मन्दिर स्थित है.हम यहां से
हनुमान मंदिर के दर्शन हेतु गए, यहां पहुचने पर मंदिर बंद दिखाई दिया।
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| उजड़ी कोठी |
इसके आगे एक भग्न महल (कोठी) और है। जहाँ जाने के लिए कच्चा मार्ग है।
मार्ग में इतनी सारी रोड़ियाँ पड़ी है कि मोटर सायकिल के पंचर होने का खतरा
बना रहता है। आगे बढने पर सघन जंगल है। यहाँ पर काले हिरण (सांभर) विचरण
करते मिल जाते हैं। अब इन्हे मनुष्यों का अनुभव हो गया है। इसलिए देख कर भी
नहीं भागते। मुझे कई सांभर मिले। आगे चलकर एक द्वार बना हुआ है, इस द्वार
पर कोई किवाड़ नहीं है। बांए तरफ़ के मैदान पर कोठी बनी हुई है। निर्माण
के अनुसार यह अधिक पुरानी दिखाई नहीं देती। फ़िर भी कळी और सूर्खी के
निर्माण के आधार 200 वर्ष पुरानी तो मानी जा सकती है।
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| काला हिरण (सांभर ) |
लौटते हुए सांझ होने लगी थी। हमें जयपोल के समीप मोटर साईकिल खड़ी करके
करणी माता के दर्शन करने थे। सड़क पर एक पूजा सामग्री बेचने वाली की दुकान
लगी हुई थी और समीप ही सांभर बैठा हुआ था। दुकान वाला नदारत था। हम
पैड़ियों से उतरकर मंदिर तक पहुंचे। पुजारी ने बताया कि नवरात्रि के अवसर
यहां बहुत भीड़ होती है और श्रद्धालुओं का नौ दिनों तक तांता लगा रहता है।
दो-दो घंटे लाईन में लगे रहने के बाद दर्शन का नम्बर आता है। यहाँ करणी
माता के मंदिर में बेल्जियम के काँच की सुंदर पच्चीकारी की गई है। इस मंदिर
में बिजली नहीं है। अभ्यारण क्षेत्र होने के कारण बिजली नहीं लगाई जा
सकती। काँच लगे होने के कारण थोड़े से ही प्रकाश से मंदिर जगमगा उठता है।
इसका निर्माण महाराज विनय सिंह ने करवाया था। करणी माता का दर्शन करके हम
वापस शहर की तरफ़ चल पड़े। किले के द्वार स्थित वन विभाग के गार्ड का पेन
वापस किया और उसे धन्यवाद दिया।सांझ घिरने लगी थी, अलवर पहुच कर हमने
कचौड़ी खाई और खैरथल के लिए चल पड़े।
ब्लॉगिंग करते कब 4 साल बीत गए, पता ही न चला। आज "ललित डॉट कॉम" की 701 वीं पोस्ट है। इन वर्षों से अनेको ब्लॉगर्स से मुलाकात हुई, हजारों ब्लॉगों को पढा होगा। टिप्पणियों का अदान-प्रदान हुआ और ब्लॉग युद्धों का भी साक्षी बना। लेकिन जो मजा ब्लॉग़िंग का "ब्लॉगवाणी" एवं "चिट्ठा जगत" के रहते था। वह अब कहाँ। इन चिट्ठा संकलकों का स्थान कोई अन्य नहीं ले सका। अभी तक तो उर्जा बनी हुई है लेखन के लिए, कभी थोड़ा उतार चढाव भी आ जाता है। लेकिन ब्लॉगिंग निरंतर जारी है। इस अवसर पर सभी पाठकों को मेरी शुभकामनाएं।
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| जिन्दोली घाटी की सुरंग |
दिल्ली जयपुर रेलमार्ग
पर अलवर और रेवाड़ी के मध्य खैरथल स्टेशन स्थित है। राजस्थान की यह सबसे
बड़ी अनाज की मंडी मानी जाती है। यह एक व्यापारिक नगर है, पूर्व में रेल
लाईन पार करने के बाद इस नगर से लगा हुआ कस्बा किसनगढ़ बास है। यहाँ से
सोहना तावड़ू एवं भिवाड़ी तिजारा के लिए यात्रा के साधन मिलते हैं। मुझे आज
की रात खैरथल में गुजारनी थी और अगले दिन सुबह अलवर का भ्रमण करना था।
दौसा से ट्रेन में सवार हुए तो टीटी ने सभी सवारियों को एस टू में खदेड़ना
शुरु कर दिया। सारी सवारियाँ एक ही बोगी में भर दी। मैने इस रुट पर टीटीयों
की अधिक मनमानी देखी है। जयपुर से दिल्ली के लिए कुल जमा कुछ गाड़ियाँ ही
हैं तथा भीड़ इतनी अधिक रहती है कि कब किसका पर्स, घड़ी, अंगुठी पलक झपकते
की पार हो जाए पता नहीं चलता।
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| अलवर का मार्ग |
थोड़ी देर तक दरवाजे के पास अपने पिट्ठू पर बैठा रहा। फ़िर सामने एक सीट
खाली हुई तो जगह बन गई। लगभग साढे सात बजे खैरथल स्टेशन पर पहुंचा। दिलीप
मुझे लेने आया हुआ था। ठंड बढ गई थी, साथ ही चलती हुई हवा कानों को काट रही
थी। घर पहुंच कर खाना खाया और 8 बजे ही रजाई में घुस गया। एक रजाई से ठंड
कम नहीं हुई तो उस पर कंबल डाला तब कहीं जाकर आधे घंटे में गर्मी के साथ
नींद आ गई। फ़ोन बजने लगा, लेकिन रजाई से बाहर हाथ निकाल कर फ़ोन उठाने की
हिम्मत नहीं थी। फ़ोन दो बार बज कर अपने आप रह गया। सुबह 8 बजे गुदड़ों से
बाहर निकला और स्नानाबाद से आकर नाश्ता करके मैं और दिलीप अलवर भ्रमण को चल
पड़े।
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| झील |
खैरथल भी अरावली पर्वत श्रेणी में ही बसा हुआ है। पूर्व में अलवर जाने के
लिए जिंदोली घाटी पर चढना पड़ता था। रास्ते में कई खतरनाक मोड़ आते थे।
1994 में यहाँ टनल बननी प्रारंभ हुई थी। जिससे अलवर और खैरथल के बीच की
दूरी कम हो गई। आस पास के ग्रामीण अंचल के लोगों को भी इसका फ़ायदा मिला।
हम इसी टनल से अलवर के लिए निकले। काफ़ी बड़ी और ऊंची टनल बनाई गई है। इसके
निर्माण में एक खास बात यह थी कि इस टनल की खुदाई दोनो तरफ़ से की गई। यह
इंजीनियरिंग का बड़ा करिश्मा है। पहाड़ को दोनो तरफ़ से खोद कर सुरंग का
मिलान करना बड़ी बात हैं। 10 फ़ुट इधर उधर सरक जाए तो समय और धन का अपव्यय
हो सकता था। टनल में पहाड़ों से पानी रिस कर आता है और यह गर्मी में भी
ठंडी रहती है। बाहर 48 डिग्री तापमान में भी टनल में 20 डिग्री तापमान रहता
है।
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| जय पोल |
अलवर का प्राचीन नाम शाल्वपुर है। अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा हुए अलवर
शहर का इतिहास महाभारत काल से प्राचीन है। यह प्राचीन शहर अपने आगोश में
सहत्राब्दियों के इतिहास को समेटे बैठा है। न जाने कितने राजाओं ने यहाँ
राज किया और न जाने कितनी कहानियों का जन्म हुआ। महाभारत काल से इसके
इतिहास का पता चलता है। महाभारत के युद्ध के पूर्व राजा विराट के पिता वेणु
ने मत्स्यपुरी नामक नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। पिता की मृत्यु
के उपरांत राजा विराट ने मत्स्यपुरी से 30 मील पूर्व में विराट नगर बसा कर
उसे राजधानी बनाया। किंवदन्ती है कि सरिस्का के वनों में पाण्डवों ने
अज्ञातवास का कुछ काल व्यतीत किया। तीसरी शताब्दी में यहां गुर्जर एवं
प्रतिहार वंशीय क्षत्रियों का अधिकार था।
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| महल का पहला आँगन |
पाँचवी शताब्दी के आसपास इस प्रदेश के पश्चिमोत्तरीय भाग पर राज ईशर चौहान
के पुत्र राजा उमादत्त के छोटे भाई मोरध्वज का राज्य था जो सम्राट
पृथ्वीराज से ३४ पीढ़ी पूर्व हुआ था। इसी की राजधानी मोरनगरी थी जो उस समय
साबी नदी के किनारे बहुत दूर तक बसी हुई थी। इस बस्ती के प्राचीन चिन्ह नदी
के कटाव पर अब भी पाए जाते हैं। छठी शताब्दी में इस प्रदेश के उत्तरी भाग
पर भाटी क्षत्रियों का अधिकार था। राजौरगढ़ के शिलालेख से पता चलता है कि
सन् ९५९ में इस प्रदेश पर गुर्जर प्रतिहार वंशीय सावर के पुत्र मथनदेव का
अधिकार था, जो कन्नौज के भट्टारक राजा परमेश्वर क्षितिपाल देव के द्वितीय
पुत्र श्री विजयपाल देव का सामन्त था। इसकी राजधानी राजपुर थी।
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| महल का भीतरी दृश्य |
१३वीं शताब्दी से पूर्व अजमेर के राजा बीसलदेव चौहान ने राजा महेश के वंशज
मंगल को हराकर यह प्रदेश निकुम्भों से छीन कर अपने वंशज के अधिकार में दे
दिया। पृथ्वीराज चौहान और मंगल ने ब्यावर के राजपूतों की लड़कियों से
वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। सन् १२०५ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से
यह देश छीन कर पुन: निकुम्बों को दे दिया। १ जून, १७४० रविवार को मौहब्बत
सिंह की रानी बख्त कुँवर ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह
रखा गया। इसके पश्चात् सन् १७५६ में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में
जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी
विशाल छतरी बनी हुई है। मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र
प्रतापसिंह ने १७७५ ई. को अलवर राज्य की स्थापना की।
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| टूटे हुए झरोखे से अलवर शहर |
खैरथल से अलवर प्रवेश के समय सबसे पहले झील दिखाई देती हैं, पहाड़ियों के
बीच बनी इस झील के किनारे महल का निर्माण 1918 में किया गया। यह महल महाराज
जय सिंह का निवास था। वर्तमान में यहाँ के सांसद कुंवर भंवर सिंह का
कार्यालय का सूचना पट लगा दिखाई दिया। इससे आगे बढने पर थोड़ी चढाई के बाद
पहाड़ पर किले के बुर्ज दिखाई देने लगे। यह किला शहर से 595 मीटर की ऊँचाई
पर है। सरिस्का अभ्यारण क्षेत्र में होने के कारण इस किले की चौकीदारी
निदानी वन खंड के वन विभाग के जिम्मे है। अभ्यारण क्षेत्र होने के कारण
यहाँ किसी भी तरह का निर्माण वर्जित है। बाला किला निदानी वन खंड में धोंक,
रोंझ, कालाखैर, कूमठा, गुर्जन, पलाश, गोयाखैर, खिरनी, कड़ाया, तम्बोलिया,
जाल, गणगार, चापरेन, गुग्ग्ल, आकड़ा, अपामार्ग, मकड़घास, शतावरी,
चिरमी(रत्ति),औरया आदि वनस्पति पाई जाती है। बघेरा, लकड़बग्गा, गीदड़,
सांभर, चींटीखोर,चीतल, नीलगाय, जंगली सुअर, सेही, लंगुर, नेवला, पाटा गोह,
जंगली बिल्ली, कबर बिज्जू, मोर इत्यादि जीव जंतु पाए जाते हैं। जैव विविधता
एंव जंगली पशु पक्षी बाला किला के वन में देखने मिलते हैं।














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